रेलवे की कानून-व्यवस्था राज्यों का विषय नहीं है -यू. एस. झा
रेल संपत्ति/रेलयात्रियों के विरुद्ध अपराध रोकने में कोई रुचि नहीं लेती हैं राज्य सरकारें
राज्यों सरकारों पर नहीं है रेलसंपत्ति/रेलयात्रियों के जान-माल की क्षति-पूर्ति का उतरदायित्व
बीकानेर/भुसावल : ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन (एआईआरपीएफए) की सर्वसाधारण सभा एवं केंद्रीय कार्यकारिणी की बैठक 16-17 जुलाई 2016 को रेलवे प्रेक्षाग्रह, बीकानेर में संपन्न हुई. इस मौके पर राष्ट्रीय अध्यक्ष एस. आर. रेड्डी और राष्ट्रीय महासचिव यू. एस. झा सहित राष्ट्रीय कार्यकारिणी और जनरल काउंसिल के सभी सदस्य उपस्थित थे. इसी अवसर पर के उ.प.रे. का वार्षिक अधिवेशन भी संपन्न हुआ. बैठक में रे.सु.ब. कर्मियों और रेलयात्रियों की समस्याओं के बारे में गहन विचार-विमर्श हुआ. राष्ट्रीय महामंत्री यू. एस. झा ने बैठक को संबोधित करते हुए प्रतिदिन रेल से यात्रा करने वाले लगभग तीन करोड़ यात्रियों के जान-माल की सुरक्षा सुनिष्चित करने पर जोर दिया. उन्होंने रे.सु.ब. कर्मियों से कानूनी शक्तियों के अभाव में भी जान की बाजी लगाकर रेलयात्रियों की जान-माल और रेल संपत्ति की सुरक्षा करने की अपील की.
श्री झा ने रेल यात्रियों की सुरक्षा पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि विश्व के सभी देशों की रेलों में कानूनी शक्तियों से संपन्न एकल सुरक्षा व्यवस्था हेतु रेल पुलिस है. उन्होंने यहां इस बात का भी उल्लेख किया कि भारतीय संविधान में भी भारतीय रेल (रेल मंत्रालय) को ही रेलयात्रियों के जान-माल एवं रेल संपत्ति की सुरक्षा का पूर्ण दायित्व सौंपा गया है. ऐसा न करने पर होने वाले अपराधों और प्रबंधन अथवा प्रशासनिक लापरवाही के कारण होने वाली किसी भी प्रकार की क्षति की भरपाई करने का उतरदायित्व भी रेलवे को ही दिया गया है.
उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान के प्रावधानों से स्पष्ट है कि ‘रेलवेज संविधान की धारा 246 की सातवीं अनुसूची की केंद्रीय सूची की इन्ट्री-22 का विषय है तथा भारतीय रेल से ले जाए जाने वाले माल एवं यात्री इन्ट्री-30 का विषय हैं. इनके विरुद्ध होने वाले अपराधों की रोकथाम के लिए केंद्र सरकार का दायित्व है कि वह संसद द्वारा प्रविष्टि संख्या 93 का विषय होने के कारण इन अपराधों की रोकथाम करने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार के रेल मंत्रालय की है. इन्हें नहीं रोक पाने पर इनके द्वारा हुई क्षति की भरपाई करने की जिम्मेदारी क्लेम देकर रेल मंत्रालय की सुनिष्चित की गई है.’
उन्होंने कहा कि राज्य सरकारें एवं उनकी रेल पुलिस/स्थानीय पुलिस का क्षेत्राधिकार उनके राज्य की सीमाओं के अंतर्गत सीमित है, जबकि रेल प्रस्थान स्टेशन से गंतव्य स्टेशन पहुँचने के दौरान कई राज्यों से गुजरती है. इस दौरान होने वाले अपराधों और आपराधिक घटनाओं की जानकारी जब ट्रेन के दूसरे राज्य में पहुँचने पर होती है, तब उक्त अपराध की एफआईआर दर्ज की जाती है, जिसे वहाँ की रा.रे.पु. (जीआरपी) यात्री के चलने वाले स्टेशन अर्थात दूसरे राज्य को भेज देती है. उनका कहना था कि ऐसी स्थिति में होने वाले अपराध का कोई परिणाम प्राप्त नहीं होता है. अतः राज्य सरकार तथा उनकी रा.रे.पु./स्थानीय पुलिस को रेल संपत्ति एवं यात्रियों के जान-माल की हुई क्षति की पूर्ति का उतरदायित्व विधिक रूप से नहीं होता है. इसलिए वे रेल संपत्ति और रेलयात्रियों के विरुद्ध अपराध रोकने में कोई रुचि नहीं लेते हैं.
श्री झा ने बताया कि इसी संदर्भ में रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने 21 फरवरी 2015 को लिखे गए अपने एक पत्र के माध्यम से सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से रेलवे सुरक्षा बल को रेलयात्रियों के जान-माल के विरुद्ध होने वाले समस्त रेल अपराधों में जाँच एवं अभियोजन का अधिकार देने में सहयोग करने का आग्रह किया है. उन्होंने कहा कि कुछ राज्य सरकारों की तरफ से अनभिज्ञ लोग कहते हैं कि कानून-व्यवस्था राज्य का विषय है. इसलिए भारतीय रेल में चलने वाले यात्रियों के विरुद्ध होने वाले अपराधों की जाँच और अभियोजन का अधिकार रेलवे सुरक्षा बल को देना कठिन है, जबकि वास्तविकता यह है कि समय-समय पर राज्यों में होने वाले अनेक आंदोलनों जैसे राजस्थान हरियाणा में गुर्जर, जाट आंदोलन एवं आंध्र प्रदेश में हुए आरक्षण आंदोलनों के दौरान देश की जीवन रेखा रेल का आवागमन बाधित करते हुए रेल संपत्ति की तोड़-फोड़ और आगजनी में हजारों करोड़ रुपए की आर्थिक क्षति हुई, जिसकी भरपाई किसी राज्य द्वारा नहीं की गई और न ही विधानसभाओं में इस पर कोई चर्चा हुई, जबकि उक्त क्षति की चर्चा संसद में की गई.
उन्होंने कहा कि यदि रेल की कानून व्यवस्था राज्य का विषय होता, तो राज्यों से यात्रियों के जान-माल और रेल संपत्ति की क्षति की भरपाई होनी चाहिए थी, जो नहीं हुई और न होती है, जहां तक रेल पुलिस का राज्य सूची में होने की तथाकथित बात है तो यह स्पष्ट है की रेल राज्य का विषय नहीं है और न ही राज्यों की रेलेव रह गई हैं, तो रेल में राज्य की पुलिस होने का कोई औचित्य ही नहीं है. श्री झा ने कहा कि राज्य सूची में रेल पुलिस होने का प्रावधान गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 से लिया गया है, जो कि उस समय चल रही रजवाड़ों की रेलों के लिए था. आजादी के बाद सन् 1951 में रजवाड़ों की रेलों का सरकार द्वारा अधिग्रहण कर लिया गया. उसके बाद रेल में जीआरपी रखे जाने का कोई औचित्य नहीं रह जाता है.
इस मौके पर हुए उ.प.रे. के जोनल पदाधिकारियों के चुनाव में अध्यक्ष- सुखराज, एसआई/उदयपुर, कार्याध्यक्ष- आर.के.एस. सिद्धू, आईपीएफ/मुख्यालय, उपाध्यक्ष-उमेद सिंह, एसआईपीएफ/ रतनगढ़, रणवीर सिंह सिहाग, आईपीएफ/ निर्माण, महामंत्री- कंवरलाल बिश्नोई, एसआईपीएफ/ लीगल सेल, मुख्यालय, संयुक्त मंत्री- ललित कुमार, कांस्टेबल/ जोधपुर, सहायक मंत्री- फ़तेह सिंह, हेड कांस्टेबल/जोधपुर, वीर सिंह, कांस्टेबल/ जयपुर, संगठन मंत्री- एस. एस. शेखावत, एसआई/बांदीकुई, कोषाध्यक्ष- देवराज कसाना, एसआईपीएफ/ क्राइम ब्रांच, मुख्यालय, कार्यालय सचिव- मदनलाल वर्मा, हेड कांस्टेबल/ क्राइम ब्रांच, अजमेर को सर्वसम्मति से निर्वाचित घोषित किया गया.
श्री झा ने उपरोक्त समस्त विचार 25 जुलाई को भुसावल में ऑल इंडिया आरपीएफ एसोसिएशन, मध्य रेलवे की जोनल कार्यकारिणी बैठक में भी व्यक्त किए. इस अवसर पर डीआरएम, भुसावल एस. के. चौधरी और आरपीएफ कमांडेंट सी. एस. मिश्रा भी उपस्थित थे. इस मौके पर मंडल कार्यकारिणी के लिए डीआरएम एस. के. चौधरी द्वारा आवंटित एसोसिएशन कार्यलय का भी उदघाटन डीआरएम श्री चौधरी एवं श्री झा ने किया. राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं म. रे. के महामंत्री एस. आर रेड्डी सहित जोनल एवं मंडल कार्यकारिणी के सभी सदस्य और सीआरएमएस के मंडल सचिव श्री समाधिया भी इस मौके पर उपस्थित थे. श्री झा ने इस मौके पर उपरोक्त तमाम संदर्भों और तथ्यों से प्रेस प्रतिनिधियों को भी अवगत करवाया.