अपना कान टटोलने के बजाय कौवे के पीछे भाग रही सीबीआई और विजिलेंस

गंभीरतापूर्वक जांच के बजाय पता लगा रहे हैं कि ‘रेलवे समाचार’ को कागजात किसने दिए?

‘रेलवे समाचार’ के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं सीबीआई, रेलवे बोर्ड, रेल प्रशासन और रे.बो. विजिलेंस

जांच एजेंसियों की इस प्रकार की कार्य-प्रणाली उचित नहीं ठहराई जा सकती – वरिष्ठ रेल अधिकारी

सुरेश त्रिपाठी

‘रेलवे समाचार’ के प्रति भयंकर रूप से पूर्वाग्रह से ग्रस्त रेलवे बोर्ड, रेल प्रशासन, रेलवे बोर्ड विजिलेंस और सीबीआई की स्थिति ‘कौवा कान ले गया’ कहावत वाली हो रही है. यह सभी अथॉरिटी अपना कान टटोलने (अपनी गलती सुधारने) के बजाय कौवे के पीछे भाग रही हैं. यही कारण है कि संबंधित मामले की गंभीरतापूर्वक जांच करने, मामले की तह तक जाने और दोषियों को दंडित करने के बजाय ये सभी अथॉरिटीज यह पता लगाने का प्रयास कर रही हैं कि उक्त मामले से संबंधित कागजात मीडिया (रेलवे समाचार) तक कैसे पहुंचे अथवा उक्त कागजात ‘रेलवे समाचार’ को किसने मुहैया कराए?

उल्लेखनीय है कि ‘रेलवे समाचार’ की वेबसाइट www.railsamachar.com पर 21 जुलाई 2016 को ‘उत्तर रेलवे सेंट्रल हॉस्पिटल के मामले में वर्तमान सीईई/उ.रे. को किसने बचाया?’ शीर्षक से और ‘तमाम अनियमितताओं के बावजूद एयर कंडीशनिंग/बीएमएस टेंडर को एक्सटेंशन दिया गया’ एवं‘घनश्याम सिंह द्वारा दिए गए एक्सटेंशन को जांच एवं कार्रवाई का मुद्दा क्यों नहीं बनाया गया?’ जैसे उप-शीर्षकों से प्रकाशित खबर से सीबीआई और रेलवे बोर्ड विजिलेंस सहित रेल प्रशासन द्वारा पूर्व सीईई/सी/उ.रे. घनश्याम सिंह को बचाने की पोल पूरी तरह से खुल गई थी.

‘खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे’ जैसी स्थिति में ‘कौवा कान ले गया’ की तर्ज पर अपना कान टटोलने के बजाय सीबीआई और रेलवे बोर्ड विजिलेंस दोनों कौवे को पकड़ने दौड़ पड़े. यानि यह पता लगाने निकल पड़े कि उक्त शीर्षक खबर के साथ प्रकाशित कागजात ‘रेलवे समाचार’ को कैसे और कहां से मिले अथवा किसने मुहैया कराए?

रेलवे बोर्ड के हमारे अत्यंत विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार ‘रेलवे समाचार’ की उक्त खबर से अत्यंत कुपित सीबीआई ने रेलवे बोर्ड विजिलेंस से इस बारे में जानकारी मांगी. सूत्रों का कहना है कि रेलवे बोर्ड विजिलेंस ने पहले अपने तौर पर मामले की जांच की, मगर जब उसको इस बारे में कुछ भी पता नहीं चला, तब उसने सीबीआई को इस संबंध में लिखकर दे दिया कि वह इस मामले की गहराई से जांच करे.

सूत्रों का कहना है कि अब सीबीआई इस बात का पता लगा रही है कि उक्त कागजात ‘रेलवे समाचार’ को कैसे और कहां से मिले, अथवा किसने मुहैया कराए? सूत्रों ने यह भी बताया कि संबंधित कागजात की फोटो से यह भी पता लगाने का प्रयास किया जा रहा है कि उक्त फोटो किस कैमरे से लिए गए? सूत्रों का कहना है कि सीबीआई ने इस मामले में रेलवे बोर्ड के कई वरिष्ठ अधिकारियों से पूछताछ करते हुए उनके बयान भी दर्ज किए हैं.

इस संबंध में कई जानकारों एवं कई वर्तमान और सेवानिवृत्त वरिष्ठ रेल अधिकारियों का कहना है कि उक्त खबर से यह तो एकदम स्पष्ट है कि सीबीआई और रेलवे बोर्ड विजिलेंस द्वारा एक अत्यंत सोची-समझी रणनीति के तहत घनश्याम सिंह को बचाया गया. उनका यह भी कहना है कि यदि ऐसा नहीं होता, तो सीबीआई के पास उक्त मामला 21-22 महीनों तक की लंबी अवधि तक बिना किसी उचित कार्रवाई के पेंडिंग नहीं रहता. उनका कहना है कि रेलवे बोर्ड विजिलेंस ने भी संबंधित मामले में अक्षम्य लापरवाही बरती है और घनश्याम सिंह को बचाने में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है तथा उसकी इसी खामी की वजह से घनश्याम सिंह महाप्रबंधक बनने में कामयाब रहे हैं.

इन जानकारों और वरिष्ठ रेल अधिकारियों का यह भी कहना है कि मामले से संबंधित कागजात किसने और कैसे या क्यों मुहैया कराए, यह जांच का मुद्दा नहीं है, बल्कि यदि ‘रेलवे समाचार’ द्वारा प्रकाशित संबंधित खबर और संबंधित कागजात सही हैं, तो जांच इस बात की होनी चाहिए कि ऐसी कोताही क्यों बरती गई? उनका यह भी कहना है कि मामले की गंभीरतापूर्वक जांच करके दोषियों को दंडित किया जाना चाहिए, न कि पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर खबर प्रकाशित करने वाले अखबार या वेबसाइट के खिलाफ सबूत जुटाने निकल पड़ना चाहिए. उन्होंने कहा कि जांच एजेंसियों की इस प्रकार की कार्य-प्रणाली उचित नहीं ठहराई जा सकती है.