उत्तर रेलवे सेंट्रल हॉस्पिटल के मामले में वर्तमान सीईई/उ.रे. को किसने बचाया?

तमाम अनियमितताओं के बावजूद एयर कंडीशनिंग/बीएमएस टेंडर को एक्सटेंशन दिया गया

घनश्याम सिंह द्वारा दिए गए एक्सटेंशन को जांच एवं कार्रवाई का मुद्दा क्यों नहीं बनाया गया?

सुरेश त्रिपाठी

यदि सोशल मीडिया में घूम रहे आठ जीएम्स की पोस्टिंग के लिए डीओपीटी/पीएमओ को भेजे गए रेलवे बोर्ड के प्रस्ताव पर भरोसा किया जाए, तो वर्तमान सीईई/उ.रे. घनश्याम सिंह एक-दो दिन में ही पूर्व रेलवे के महाप्रबंधक बनने जा रहे हैं, जिसके लिए वह काफी दिनों से प्रयासरत रहे हैं. उल्लेखनीय है कि पूर्व रेलवे में ही उनके प्राण बसते हैं. अब यह तो पता नहीं चला है कि ऐसा क्यों है, मगर यह जरुर बताया गया है कि पूर्व रेलवे उन्हें बहुत प्रिय है. यही वजह थी कि विगत में तत्कालीन सीईई/पू.रे. के रिटायर होने के बाद ही उन्होंने करीब आठ महीने बाद डीआरएम, भोपाल मंडल का चार्ज छोड़ा था और सीधे जाकर सीईई/पू.रे. का पदभार ग्रहण किया था. इसके बाद चूंकि उन्हें पुनः पूर्व रेलवे का जीएम और भावी मेंबर इलेक्ट्रिकल बनने के लिए जुगाड़ फिट करनी थी, इसलिए मेहताब सिंह के रिटायर होते ही फिर कोई जुगाड़ लगाकर वह उ. रे. निर्माण संगठन में सीईई/सी बनकर दिल्ली आ गए थे.

उपलब्ध कागजात के अनुसार तत्कालीन सीईई/सी/उ.रे. मेहताब सिंह के कार्यकाल में उत्तर रेलवे सेंट्रल हॉस्पिटल की एयर कंडीशनिंग और बिल्डिंग मैनेजमेंट सिस्टम के दो टेंडर (नं. 17-इलेक्ट./डिप्टी सीईई/सी/टी/34 एवं 17-इलेक्ट./डिप्टी सीईई/सी/टी/47) किए गए थे. इन दोनों टेंडर्स की कार्य समाप्ति अवधि पांच महीने की थी, मगर इनकी यह तारीख साढ़े तीन साल तक लगातार बढ़ाई जाती रही. फिर भी संबंधित कांट्रेक्टर द्वारा काम पूरा नहीं किया गया था. इन दोनों कार्यों में बहुत अधिक अनियमितताएं पाई गईं और इसके विरुद्ध कई लोगों ने लिखित शिकायत की थी.

20 जुलाई 2013 को एयर कम्फर्ट अनुष्का जेवी द्वारा पहली शिकायत (टेंडर नं. 17-इलेक्ट./डिप्टी सीईई/सी/टी/34, 9 मार्च 2010) इसके एग्रीमेंट को लेकर की गई थी. जबकि मयंक गुप्ता ने इसी मामले में डिप्टी सीईई/सी/सीएसबी राजेश सिंह, अनुष्का एयर कंडीशनिंग प्रा. लि. के डायरेक्टर राजकुमार, संजीव उम्मट एवं उनकी पत्नी रूपा उम्मट के खिलाफ सीबीआई/एसीबी, नई दिल्ली को की थी, जिसे सीबीआई ने 8 अक्टूबर 2013 को उ. रे. विजिलेंस को फॉरवर्ड किया था. इसके अलावा 9 मई 2014 को रेलवे बोर्ड द्वारा फॉरवर्ड की गई एडवोकेट अशोक पासवान की शिकायत और 5 जून 2014 की भारत भ्रष्टाचार मिटाव पार्टी के राष्ट्रीय चेयरमैन सुनील कुमार की शिकायत के साथ ही कई अन्य शिकायतें भी प्राप्त हुई थीं.

उपरोक्त सभी शिकायतों में मुख्यतः उक्त दोनों टेंडर्स में टेक्निकल स्पेसिफिकेशंस में बदलाव करके एक फर्म विशेष का फेवर किए जाने, उच्च दरों पर टेंडर दिए जाने, वित्तीय रूप से अयोग्य फर्म को टेंडर अवार्ड किए जाने, आपसी मिलीभगत से फंड की अफरा-तफरी करने और किए गए कार्य का भुगतान नहीं करने आदि आरोप लगाए गए थे. मामले की गंभीरता को देखते हुए ही रेलवे बोर्ड ने एडवोकेट अशोक पासवान की शिकायत की असलियत पता किए बिना ही इसकी गहराई से जांच करने का आदेश उ. रे. विजिलेंस को दिया था.

तत्पश्चात विजिलेंस जांच में इस बात को सही पाया गया कि कुछ अत्यंत प्रतिष्ठित फर्मों के शामिल होने के बावजूद टेंडर की टेक्निकल स्पेसिफिकेशन एवं अप्रूव्ड सोर्सेस में एक फर्म विशेष को ही उक्त टेंडर देने के लिए जानबूझकर बदलाव किए गए थे. इसके अलावा जांच में यह भी सही पाया गया कि कार्य समाप्ति की अंतिम तारीख तय किए बिना ही कार्य अवधि को साढ़े तीन साल तक बढ़ाया गया, जबकि इसकी शुरुआती कार्य समाप्ति अवधि मात्र पांच महीने ही थी. अंततः कार्य अधूरा होने पर भी जब इस टेंडर को टर्मिनेट किया गया, तो आर्बिट्रेशन का मामला बन गया. टीसी मेंबर्स को दिग्भ्रमित किया गया और उनकी नोटिंग्स एवं अन्य कागजात में हेराफेरी की गई. बिना किसी जांच के फाइनेंसियल क्रेडेंशियल्स के संदिग्ध कागजात स्वीकार किए गए. उच्च दरों पर टेंडर अवार्ड किए जाने की बात भी सही थी, जिसके तहत उच्च दरों पर सिंगल बजटरी कोटेशन जारी किए गए थे.

जांच में यह भी साबित हुआ कि बिना किसी उचित अप्रूवल के ही 4.5 करोड़ रुपए से ज्यादा की लागत की मशीनरी स्थापित कर दी गई, जो कि आज भी विवाद एवं आर्बिट्रेशन का मुद्दा है. जिस मटीरियल की आपूर्ति ही नहीं की गई, उसका भी भुगतान जारी किया गया था. इसके साथ जो मटीरियल आया भी था, वह भी संबंधित पार्टी भुगतान जारी होते ही उठा ले गई. इसके बावजूद कथित चेतावनी के साथ पार्टी का पूरा भुगतान कर दिया गया. बिना किसी अप्रूवल या लीगल वेटिंग के ही फर्म ने सीधे बैंक भुगतान के ली अपना बैंक एकाउंट नंबर भी बदल लिया. जांच में पाया गया कि तमाम मटीरियल को बुक्स में भी नहीं लिया गया और मटीरियल इशू करने तथा रिसिप्ट का अधूरा एवं अनुचित रिकॉर्ड मेनटेन करने सहित भुगतान जारी करने से पहले आपूर्ति किए गए सभी आइटम्स का निरीक्षण करने की भी जरुरत नहीं समझी गई. इसके अलावा बिल्डिंग मैनेजमेंट सिस्टम के कार्य का टेंडर बोगस इलेक्ट्रिकल लाइसेंस के आधार पर अवार्ड किया गया था.

इस सबके लिए तत्कालीन सीईई/सी मेहताब सिंह (कन्वेनर-रिटायर्ड), सीई/सी ए. के. लाहोटी (टीसी मेंबर) एफएएंडसीएओ/सी/जी डॉ. सुमित्रा वरुण (टीसी मेंबर-रिटायर्ड), सीईई/सी आर. के. अटोलिया, डिप्टी सीईई/सी/सीएसबी राजेश सिंह (एक्जिक्युटिंग ऑफिसर), सीनि.एएफए/सी आर. के. ग्रोवर, एईई/सी/सीएसबी एन. के. सचदेव (फील्ड ऑफिसर), एईई/सी/सीएसबी आर. ए. मीणा (फील्ड ऑफिसर), एसएसई/सी/सीएसबी सी. पी. एस. तोमर (रिटायर्ड), सीनि.क्लर्क/सीएसबी हरिकिशन गुप्ता (रिटायर्ड), सीनि.एसओ/सी विजय कुमार और एकाउंट असिस्टेंट अनिल सक्सेना को जांच में दोषी पाया गया था. इसी बीच कुछ जोड़तोड़ के चलते 26 सितंबर 2014 को यह पूरा मामला सीबीआई को सुपुर्द कर दिया गया था. तथापि उ. रे. विजिलेंस की जांच के आधार पर और सीवीसी को पहली एडवाइस के लिए मामला भेजे जाने से पहले ही तत्कालीन सीईई/सी मेहताब सिंह को उनके रिटायरमेंट से पांच दिन पूर्व 26 अगस्त 2014 को मेजर पेनाल्टी चार्जशीट (एसएफ-5) थमा दी गई थी. 34-35 साल की रेल सेवा के बाद रेलवे कई बार अपने अधिकारियों को बहुत बेइज्जत करके घर भेजती है, उसका यह एक नमूना है. मेहताब सिंह का यह मामला आज भी चल रहा है.

इसके बाद चूंकि सीबीआई ने 8 अक्टूबर 2013 को मयंक गुप्ता की शिकायत उ. रे. विजिलेंस को फॉरवर्ड करते हुए लिखा था कि यदि मामले में रेल अधिकारियों की किसी प्रकार की आपराधिक संलिप्तता दिखाई देती है, तो उसे यह मामला पुनः वापस भेजा जाए. इसी आधार पर उ. रे. विजिलेंस ने सीबीआई को यह केस सुपुर्द करने के लिए रेलवे बोर्ड को लिखा. रेलवे बोर्ड ने 11 अगस्त 2014 को यह मामला सीबीआई को भेजे जाने की अनुमति दे दी. इसके बाद 29 सितंबर 2014 को सीबीआई ने मामले से संबंधित सभी फाइलों को अपने कब्जे में ले लिया था. इसके पहले सीबीआई ने 17 सितंबर 2014 को एक पत्र (सं.सीबीआई/एसीबी 4628/टीसी/30/2014/एसीयू-VIII) लिखकर उ. रे. विजिलेंस से उक्त फाइलों को आगे जांच के लिए माँगा था. इसके बाद इस मामले में उ. रे. विजिलेंस ने अपनी जांच बंद कर दी थी.

मगर सीबीआई ने 29 सितंबर 2014 से लेकर 26 मई 2015 तक कोई कार्यवाही नहीं की. इसी बीच सीनि.क्लर्क हरिकिशन गुप्ता (31 जुलाई 2015) और एसएसई/सी सी. पी. एस. तोमर (30 सितंबर 2015) की सेवानिवृत्ति का समय नजदीक आ गया. उ. रे. विजिलेंस द्वारा सीबीआई को यह जानने के लिए बार-बार संपर्क किया गया कि वह इस मामले में क्या कर रही है? परंतु सीबीआई द्वारा हर बार यही जवाब दिया गया कि मामले की छानबीन जारी है और जल्दी ही कोई कार्यवाही की जाएगी. तथापि उक्त दोनों कर्मचारियों की नजदीक आती सेवानिवृत्ति को ध्यान रखकर उ. रे. विजिलेंस ने स्वतः संज्ञान लेते हुए हरिकिशन गुप्ता को क्लीन चिट दे दी और सी. पी. एस. तोमर को सेवानिवृत्ति से कुछ दिन पहले एसएफ-5 चार्जशीट थमा दी और 4 जनवरी 2016 को सीबीआई से मामले में जल्दी कोई कार्रवाई करने का अनुरोध पत्र भेज दिया.

इसी बीच रेलवे बोर्ड ने उ. रे. विजिलेंस से सीबीआई की कार्रवाई से संबंधित विस्तृत रिपोर्ट सौंपने को कहा. इस पर रेलवे बोर्ड को मेहताब सिंह और तोमर की डीएंडएआर कार्यवाही के लिए एक ही जांच अधिकारी नियुक्त करने को गया. रेलवे बोर्ड ने उ. रे. विजिलेंस को कहा कि वह सीबीआई से पूछकर बताए कि मामले में आगे की कार्यवाही किस तरह चलाई जाए, क्योंकि मामले से संबंधित अधिकारी एवं कर्मचारी उनके विरुद्ध बिना किसी विजिलेंस एडवाइस के एक के बाद एक रिटायर हो रहे हैं. इसके बाद सितंबर 2014 से पूरे 21 महीनों तक सभी फाइलें अपने पास रखकर बैठी सीबीआई द्वारा किसी प्रकार का स्पष्ट पत्राचार नहीं किया गया. इस परिदृश्य में उ. रे. विजिलेंस ने बचे हुए कर्मचारियों एवं अधिकारियों के विरुद्ध एक बार फिर से विभागीय प्रक्रिया शुरू करने का निश्चय किया. इस संदर्भ में उसने 11 मई 2016 को एक पत्र रे.बो. को भेजा. इसी के बाद 27 मई 2016 को सीबीआई ने उ.रे.विजिलेंस के पास से मामले से संबंधित सभी ओरिजनल फाइल्स को अपने कब्जे में लिया और उसी दिन मामले से संबंधित सभी 12 अधिकारियों और कर्मचारियों के घरों एवं दफ्तरों पर छापेमारी की.

बहरहाल, तत्कालीन सीईई/सी, तिलक ब्रिज, उ. रे. मेहताब सिंह के 31 अगस्त 2014 को रिटायर होने के बाद उनकी जगह वर्तमान सीईई/उ.रे. घनश्याम सिंह ने उक्त पद का कार्यभार संभाला था. जानकारों का कहना है कि मेहताब सिंह के रिटायर होने के बाद भी वर्तमान सीईई/उ.रे. घनश्याम सिंह ने भी बतौर तत्कालीन सीईई/सी/तिलक ब्रिज उपरोक्त दोनों टेंडर्स को कई बार विस्तार (एक्सटेंशन) दिया था. विजिलेंस जांच में पाई गई उपरोक्त तमाम अनियमितताओं के लिए यदि तत्कालीन उपरोक्त 12 अधिकारी एवं कर्मचारी दोषी थे, तो उन्हीं तमाम अनियमितताओं के होते हुए बतौर सीईई/सी घनश्याम सिंह ने भी वही सारी अनियमितताएं की थीं और कमीशनखोरी के चलते ही उन्होंने इन दोनों टेंडर्स को अनावश्यक विस्तार दिया था. उनका कहना है कि तब घनश्याम सिंह के खिलाफ सीबीआई की जांच और उनके घर एवं दफ्तर में सीबीआई की छापेमारी क्यों नहीं हुई? जानकारों का यह भी कहना है कि उपरोक्त मामले में घनश्याम सिंह को उ. रे. विजिलेंस और सीबीआई की जांच एवं कार्रवाई से जानबूझकर बचाया गया है. इस पूरे मामले से संबंधित सभी जरूरी कागजात ‘रेलवे समाचार’ के पास सुरक्षित हैं. क्रमशः…