April 4, 2024

सिविल सेवा परीक्षा पर प्रश्नचिन्ह

संजीव सान्याल का सुझाव बहुत सही है और अच्छा हो कि 2024 के चुनाव में आने के बाद नई सरकार सबसे पहले स्टील फ्रेम में लगी जंग को साफ करे!

प्रेमपाल शर्मा

स्टील फ्रेम कही जाने वाली भारतीय #नौकरशाही की #सिविल सेवा परीक्षा (#सीएसई) पर पहली बार सरकार के इतने उच्च स्तर से प्रश्न उठाया गया है। प्रश्न उठाने वाले #संजीवसान्याल प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति में हैं और उनकी इस बात को गंभीरता से लेना आवश्यक है कि “20 से 30 साल की उम्र के लाखों युवा अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण 8 साल सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी में बर्बाद करते हैं। #आईएएस/#आईपीएस और दूसरी सेवाओं में जाने की मृगतृष्णा हर वर्ष लाखों युवाओं की ऊर्जा को तो बर्बाद कर ही रही है, देश की शिक्षा व्यवस्था में कोचिंग संस्थान भी इसी की उपज हैं।”

पहले सिविल सेवा परीक्षा की कुछ बुनियादी बातें

वर्तमान में इस परीक्षा में बैठने की आयु 21 वर्ष से 37 वर्ष तक है। सामान्य उम्मीदवारों के लिए 32, ओबीसी के लिए 35, और एससी/एसटी के लिए 37 वर्ष। सामान्य उम्मीदवार छह बार परीक्षा दे सकता है। ओबीसी 9 बार और एससी/एसटी 16 बार ! पहला प्रश्न भर्ती परीक्षा की उम्र और प्रयासों की संख्या पर ही है। वर्ष 1979 में #दौलतसिंहकोठारी समिति की सिफारिश पर सभी परीक्षाओं को मिलाकर एक सिविल सेवा परीक्षा शुरू की गई थी और उम्र 26 से बढ़कर 28 वर्ष और उसमें तीन प्रयास सामान्य के लिए और शेष के लिए रियायत के साथ। उससे पहले आजादी के बाद उम्र 24 और 26 तक ही सीमित रही थी।

आयु सीमा 28 वर्ष करने के पीछे तर्क था कि तब तक देश में #साक्षरता दर कम थी और देश के दूर देहात के उम्मीदवारों को मौका देने के लिए इसकी जरूरत थी। आपको याद होगा मौजूदा #आईएएस परीक्षा ब्रिटिश कालीन #आईसीएस परीक्षा का बदला हुआ नाम है जिसे देश के पहले उप प्रधानमंत्री और लौहपुरुष सरदार पटेल ने स्टील फ्रेम के रूप में मंजूर किया था। ब्रिटिश शासन में इस में भर्ती की उम्र 19 वर्ष और फिर बढ़कर 21 वर्ष हुई थी। प्रशासन चलाने के लिए हमें ऐसे ही युवा चाहिए और ऐसे युवाओं के बल पर ही ब्रिटेन ने दुनिया पर राज किया। गुणवत्ता महत्वपूर्ण होती है संख्या नहीं।

आजादी के बाद हमारी #गरीबी और विशेष परिस्थितियों में कुछ सुधार की जरूरत थी, लेकिन सुधार के नाम पर बिगाड़ की नहीं। एक तरफ हमारी साक्षरता बढ़ी है, समाज के सभी वर्ग उच्च शिक्षा में भी हैं। बावजूद इन सबके प्रशासनिक क्षमता को दरकिनार करते हुए #राजनीतिक-रेवड़ी के नाम पर उम्र लगातार बढ़ाई जाती रही है। #मंडल-कमीशन के बाद यह 28 से 30 की गई। फिर #यूपीए सरकार ने 2004 में बढ़ाकर सामान्य की 30 से 32 कर दी और यह सिलसिला तब से लगातार चल रहा है।

क्या 30 पार कर चुके अधिकांश नौजवान #आईआईटी आदि से निकले हुए उन नौजवानों का मुकाबला कर सकते हैं जिनकी उम्र 21 से 25 साल की होती है। इतनी बड़ी उम्र और इतने प्रयासों पर कई बार उंगली उठाई गई है। यह नेचुरल प्रतिभाशाली का चुनाव नहीं है। सुविधाओं के लिए देश के हाकिम बनने की चाह में रट्टा मारकर #कोचिंग संस्थानों में डेरा डाले चंद युवाओं का मैदान ज्यादा है। प्रशासनिक सुधार आयोग ने अपनी रिपोर्ट में भी उम्र और प्रयासों को कम करने की बात कही है। और भी कई समितियों की सिफारिशें फाइलों में बंद पड़ी हैं। उम्र आदि काम करने के सवाल पर कुछ लोग गरीब-गरीब की दुहाई देने लगते हैं। लेकिन उनको समझने की जरूरत है कि गरीबों का भला एक सक्षम, पारदर्शी और योग्य नौकरशाही ही कर सकती है, लुंज-पुंज अपेक्षाकृत अधेड़ नहीं। और उसकी शुरुआत अब हो चुकी है।

कुछ और सुझाव सुधारों की भी तुरंत जरूरत है

#यूपीएससी को इस बात का अहसास होगा कि 2011 में शुरू हुई सी-सेट परीक्षा लगभग लॉटरी का खेल बन चुकी है। उससे पहले के आंकड़े बताते हैं कि पहले ऐसा नहीं था। मौजूदा प्रारंभिक परीक्षा में एक तुक्केबाजी हो रही है। पहली बार में इन सेवाओं में सफल होने वाला उसके बाद कई-कई बार प्रारंभिक परीक्षा में भी फेल होता रहता है और लगातार प्रारंभिक परीक्षा में फेल होने वाला अचानक ही टॉपर्स में शामिल हो जाता है। इन नौजवानों की मानसिक स्थिति पर भी इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है और आत्महत्या तक की खबरें आती हैं।

#कोठारी समिति की मूल सिफारिशों में मुख्य परीक्षा का एक विषय प्रारंभिक परीक्षा में भी शामिल था। या तो उसे तुरंत वैसे ही वापस लाया जाए या मुख्य परीक्षा से भी वैकल्पिक विषय को बाहर किया जाए। वर्ष 2000 में प्रोफेसर #अलघ कमेटी ने #कानून और #पब्लिक-एडमिनिस्ट्रेशन जैसे विषय जोड़े जाने की बात कही थी जिनकी जरूरत हर नौकरशाह को अपने पूरे कार्यकाल में रहती है। ट्रेनिंग के दौरान इन विषयों को फिर से पढ़ने की जरूरत भी नहीं रहेगी।

पिछले 10 वर्षों में एक और सुझाव को भी पूरी तरह से लागू नहीं किया गया है कि जो भी उम्मीदवार मुख्य परीक्षा पास करके साक्षात्कार देते हैं उनकी योग्यता के अनुसार देश के दूसरे राज्य स्तर या उपक्रम और दूसरे संस्थान उनको मौका दें। 10-15 लाख उम्मीदवारों में से यूपीएससी जैसे संस्थान से इस स्तर तक पहुंचे हुए नौजवानों में कुछ तो योग्यता होगी ही। बजाय इसके कि वे फिर शहर दर शहर दूसरी परीक्षा में बैठते रहें और कोचिंग संस्थान कुकुरमुत्तों की तरह बढ़ते रहें। इन सुधारों से देश के सर्वश्रेष्ठ मेधावी और उत्साह से इस परीक्षा में भाग लेने लगेंगे।

इन सुधारों को और आगे नहीं टाला जा सकता। सरकार और यूपीएससी को इस बात का भी अहसास होगा कि फिलहाल देश की सर्वश्रेष्ठ  नौजवानों की पहली प्राथमिकता यूपीएससी नहीं है। 21वीं सदी के अनुकूल उनकी योग्यता का फायदा अमेरिका इंग्लैंड से लेकर पूरी दुनिया उठा रही है, लेकिन हम उनको सही मौका देने में असफल रहे हैं।

दुनिया भर के विश्वविद्यालयों की तरफ भागते छात्रों की भीड़ और दुनिया की सबसे बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के शीर्ष पर आसीन भारतीय नौजवान इस बात का प्रमाण हैं। आत्मनिर्भर भारत के लिए तुरंत ऐसे कदम उठाने की आवश्यकता है। केंद्र के स्तर पर भी और राज्य के प्रशासनिक स्तर पर भी। इसलिए संजीव सान्याल का सुझाव बहुत सही है और अच्छा हो कि 2024 के चुनाव में आने के बाद नई सरकार सबसे पहले स्टील फ्रेम में लगी जंग को साफ करे।

भारतीय प्रशासनिक सेवा (#आईएएस) की रीढ़ कहीं जाने वाली नौकरशाही को ठीक किए बिना अमृतकाल का सपना अधूरा बना रहेगा। वर्तमान केंद्र सरकार ने आजादी के बाद के उलझे हुए कई मसलों को सुलझाने में अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाई है। अब समय आ गया है कि नौकरशाही के स्तर में भी आमूलचूल बदलाव किया जाए।

#प्रेमपालशर्मा, लेखक एवं पूर्व संयुक्त सचिव, रेल मंत्रालय, भारत सरकार। मोबाइल 99713 99046