सरकारी सेवा में कार्यरत अधिकारियों/कर्मचारियों से एक आह्वान
यदि आप अपने बॉस से सीधे असहमति व्यक्त करने का भी साहस नहीं जुटा पाते हैं, तो भी आज सूचना क्रान्ति के समय में आपके पास बहुत सारे विकल्प उपलब्ध हैं जिनके माध्यम से आप अपनी बात को मजबूत तरीके से उठा सकते हैं और सही जगह तक अपनी आवाज पहुँचा सकते हैं!
हर सरकारी कर्मचारी और अधिकारी को उसके परिश्रम का पारिश्रमिक (वेतन) भारत के समेकित निधि (कंसॉलिडेटेड फंड) से मिलता है, जो भारतीय जनता की गाढ़ी कमाई अर्थात् टैक्स से निर्मित होता है। इसलिए आप सबका अपनी सरकारी सेवा, अपनी संस्था के साथ-साथ इस देश के सामान्य नागरिक के प्रति एक गंभीर दायित्व बनता है, क्योंकि वही आपका वास्तविक नियोक्ता (दाता) है।
विषय यह है कि सरकारी सेवाओं में एक सामान्य प्रवृत्ति पाई जाती है कि आपके वरिष्ठ अधिकारी आपके सामने ही कुछ बहुत गलत निर्णय लेते दिखाई हैं और आपको भी उस पर सहमत होने को बाध्य करते हैं। आपको भी इस बात का स्वाभाविक डर या भय रहता है कि सहमति नहीं जताने पर आपका उत्पीड़न या अन्यत्र ट्रांसफर हो सकता है। ऐसी परिस्थिति में सामान्यतः आप चाहे-अनचाहे अथवा जाने-अनजाने अपने वरिष्ठों के गलत निर्णयों को मानने की ही सहमति देते हैं और उसे चुपचाप सहन कर लेते हैं।
ऐसा इसलिए भी है कि सरकारी तंत्र में व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर दुर्भाग्य से वरिष्ठ-कनिष्ठ के बीच लगभग मालिक और दास जैसा संबंध बना दिया गया है। इस देश की प्रगति के मार्ग में ऐसी सोच एक बहुत बड़ी बाधा है। मातहतों को हतोत्साहित करने के लिए हर दुष्ट या भ्रष्ट ऑफिसर अथवा सुपरवाइजर के मुँह से यह कहावत अक्सर कही जाती है, “Boss is always right” वस्तुतः बॉस ऑलवेज राइट नहीं होता, बल्कि आप अपना मन मारकर, सही समय पर सही बात न कहकर, अपने बॉस के इस झूठे अहंकार को उसके सामने दब्बू बनकर और यस सर यस सर, यू आर राइट सर करके हवा देते हैं। इस तरह आप अपने कर्तव्य के साथ कोताही तो करते ही हैं, बल्कि देश, समाज और व्यवस्था के साथ भी बेईमानी करते हैं।
ऐसे अवसरों पर आपको यह सोचना होगा कि आपका वेतन आपके बॉस की पॉकेट से नहीं वरन् देश के नागरिकों की गाढ़ी कमाई से आता है। ऐसे में आपका नैतिक दायित्व बनता है कि आप ऐसे मौकों पर उन नागरिकों के बारे में सोचकर निर्णय लें, भले ही आपका यह निर्णय आपके वरिष्ठ अधिकारी की दुष्ट मंशा के विपरीत हो!
कहने का तात्पर्य यह है कि भले ही आप छोटे कर्मचारी हैं, या कनिष्ठ अधिकारी हैं, आपको अपनी राय खुलकर और स्पष्ट रूप से नियम के अनुसार अपने बॉस के समक्ष बड़े साहस और बड़ी बेबाकी के साथ रखनी चाहिए। आपका बॉस आपसे सहमत हो, या न हो, तथापि न केवल आपको अपनी बात उसके सामने बेझिझक होकर कहनी चाहिए, बल्कि उसे फाइल पर भी उसी स्पष्टता के साथ दर्ज करना चाहिए।
आपको ओवर-रूल (अनदेखा या अनसुना) करना आपके बॉस का अधिकार है, परंतु आप अपना दायित्व पूरी निष्ठा के साथ निभाएँ। यदि आप अपने बॉस से सीधे असहमति व्यक्त करने का भी साहस नहीं जुटा पाते हैं, तो भी आज सूचना क्रान्ति के समय में आपके पास बहुत सारे विकल्प उपलब्ध हैं जिनके माध्यम से आप अपनी बात को मजबूत तरीके से उठा सकते हैं और सही जगह तक अपनी आवाज पहुँचा सकते हैं!
एक बात का दायित्व और समझें सरकारी अधिकारी और कर्मचारीगण, वह यह कि आपका एक हस्ताक्षर एक सामान्य व्यक्ति का जीवन स्तर ही नहीं, बल्कि इस देश के ताने-बाने को बदलने की शक्ति रखता है। इसके मूल्य को समझें। अतः आपके दैनंदिन कामकाजी व्यवहार में यह थोड़ा सा ही साहसपूर्ण परिवर्तन इस देश की व्यवस्था को सुधारने की दिशा में एक मजबूत कदम बन सकता है और आपका वरिष्ठ अधिकारी अगली बार कुछ भी मनमाना निर्णय लेने से पहले सौ बार अवश्य सोचेगा।
ये और बात है कि आँधी हमारे वश में नहीं।
मगर दीपक जलाना तो हमारा अधिकार है॥
सदैव स्मरण रखें, आपका यह गिलहरी प्रयास आपकी संस्था और देश-समाज और व्यवस्था को मजबूत-सुसंगत बनाने में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा। थोड़ा सत-साहस करके देखिए, बहुत अच्छा लगेगा! और दिमाग से अनावश्यक बोझ भी उतर जाएगा!
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी