पश्चिम रेलवे के पीसीएससी पर महिला कांस्टेबल ने लगाया शारीरिक शोषण का आरोप

पीड़ित महिला कांस्टेबल की व्यथा पढ़कर भी व्यथित नहीं हुए एजीएम!
मौनी जीएम/प.रे. का मातहत अधिकारियों पर कोई नियंत्रण नहीं है!
वर्तमान जीएम के कार्यकाल में सर्वाधिक बदनामी और नाकामी के दौर से गुजर रही पश्चिम रेलवे!

पश्चिम रेलवे के प्रमुख मुख्य सुरक्षा आयुक्त, रेलवे सुरक्षा बल (#PCSC/#RPF) #प्रवीणचंद्रसिन्हा के विरुद्ध एक महिला कांस्टेबल ने शारीरिक शोषण की लिखित शिकायत की है। महिला कांस्टेबल ने यह शिकायत #पश्चिमरेलवे के अपर महाप्रबंधक (#एजीएम) प्रकाश भूटानी को भेजी थी। #एजीएम भूटानी ने इसे प्रमुख मुख्य कार्मिक अधिकारी (#पीसीपीओ) को फॉरवर्ड किया है। सूत्रों के अनुसार इस शिकायत को “विशाखा कमेटी” को रेफर करने के बजाय इसे दबाने का प्रयास हो रहा है। हालाँकि इस पर #एसएजी स्तर की कमेटी के गठन का सुझाव दिया गया था, परंतु उसे भी नकार दिया गया। तथापि सूत्रों का यह भी कहना है कि मामला सार्वजनिक हो जाने पर अब इस शिकायत पर उचित संज्ञान लेने की तैयारी की जा रही है।

इस अत्यंत #शर्मनाक मामले को उजागर करने और उच्च पदस्थ अधिकारियों तथा रेल प्रशासन के संज्ञान में लाने वाली महिला कांस्टेबल के साहस और हिम्मत की दाद दी जानी चाहिए। हालाँकि ‘रेलसमाचार’ उक्त बातों की पुष्टि नहीं करता है, तथापि महिला कांस्टेबल ने एजीएम से निवेदन करते हुए लिखा है कि वह अपनी व्यथा उनसे बताना चाहती है जिससे वह एक उच्च अधिकारी होने के नाते उसकी समस्या का कोई उचित समाधान निकाल सकें और उसे एक सम्माननीय जीवन जीने में मदद कर सकें। उसने लिखा है, मेरी समस्या इस प्रकार है कि-

“पश्चिम रेलवे में तैनात पीसीएससी श्री प्रवीण चंद्र सिन्हा एक अय्याश प्रवृत्ति का आदमी है, महिला कांस्टेबल से लेकर निरीक्षक रैंक तक की किसी भी महिला को अपनी बुरी नजर से नहीं छोड़ता है। ट्रांसफर करने के नाम पर उनका शोषण करता है, उन्हें शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर करता है, और न आने/मानने पर नौकरी खाने की धमकी देता है। मैं पिछले तीन सालों से इनका शिकार हो रही हूँ। और केवल मैं ही नहीं, बल्कि इस तरह की अन्य कई महिला स्टाफ हैं, जो कि आरपीएफ में हैं, यह उन सबका शोषण करता है।”

उसने लिखा है कि “जब भी पीसीएससी महोदय कहीं भी टूर पर जाते हैं तब हमें आदेश देकर बुलाया जाता है और उनके साथ रात बिताने के लिए मजबूर किया जाता है, क्योंकि हम लोग मजबूर हैं, कुछ भी करने में सक्षम नहीं हैं, इसलिए हमें उनके आदेश का पालन करना पड़ता है।”

महिला कांस्टेबल ने लिखा है कि “अभी हाल ही में यह अहमदाबाद आए थे, जहाँ इन्हें एक शादी में जाना था, परंतु इन्होंने अपना इंस्पेक्शन दिखाया है और रेस्ट हाउस में ठहरे थे। वहाँ हमें बुलाकर इनके पास भेजा गया और इन्होंने हमारा शारीरिक शोषण किया। इस तरह से मुंबई में ऐसी कोई भी महिला नहीं है जिसका इन्होंने शारीरिक शोषण न किया हो। यही नहीं, यह वास्तव में शारीरिक संबंध बनाने में पूरी तरह से नाकाम हैं, परंतु वियाग्रा खाकर किसी जानवर की तरह यह हम पर टूट पड़ते हैं और हम एक जिंदा लाश बनकर रह जाते हैं।”

उसने लिखा है कि “इसमें कोई शक नहीं कि कुछ महिला निरीक्षक अपने फायदे के लिए इनका साथ देती हैं तथा अन्य महिला कर्मियों, विशेषकर कांस्टेबल रैंक की महिलाओं को उनसे फायदा पहुँचाने के लिए उनका ब्रेन वाश कर उनके पास जाने को प्रेरित करती हैं। इनकी सबसे नजदीकी महिला मालाड पोस्ट पर तैनात निरीक्षक… तो पूरी तरह से उनकी रखैल की तरह ही रहती है और जब भी चाहते हैं उसे रेस्ट हाउस में बुलाते हैं।”

महिला कांस्टेबल ने आगे लिखा है कि “इसी प्रकार दाहोद में एक अन्य महिला निरीक्षक… हमेशा उनकी सेवा में हाजिर रहती है, और यह उसको पूरी तरह से संरक्षण देते हैं। दाहोद में इतनी चोरियाँ हो रही हैं और अवैध हाकर गाड़ियों में चल रहे हैं, लेकिन इस महिला निरीक्षक पर कभी कोई कार्रवाई नहीं की गई, और न ही उसकी बदमाशियों को रोकने की कोई कोशिश की गई है।”

उसने लिखा है कि “बात केवल यहीं तक नहीं रुकती, जो भी नई महिला कांस्टेबल – जो रिक्वेस्ट ट्रांसफर पर अन्य रेल से आई होती हैं – उन सबको कई-कई दिनों तक हेडक्वार्टर में रखकर पोस्टिंग के लिए इंतजार करने के नाम पर बारी-बारी से प्रतिदिन हमबिस्तर किया गया तथा सबकी उनकी चॉइस के मंडल में तैनाती की गई। जो भी महिला स्टाफ इनके पास जाने से मना करती है, उसे अन्य मंडल में ट्रांसफर कर दिया जाता है, जैसे वड़ोदरा से उप-निरीक्षक… जो कि वड़ोदरा में थी, वह इनके काबू में नहीं आई, तो उसको जानबूझकर इन्होंने राजकोट मंडल में ट्रांसफर कर दिया, जिससे सभी महिलाएँ डरी हुई हैं।”

महिला कांस्टेबल ने लिखा है कि “इस प्रकार जब भी कोई कार्यक्रम का आयोजन, जिसमें विशेषकर महिलाओं के कार्यक्रम जानबूझकर कराते हैं, जिसमें छाँट-छाँटकर महिला स्टाफ को उनके लिए उन्हें मुंबई बुलाया जाता है, और फिर उनमें से भी अच्छी-अच्छी लड़कियों को छाँटकर अपने साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर किया जाता है।”

इसका उदाहरण प्रस्तुत करते हुए महिला कांस्टेबल ने लिखा है कि “अभी कुछ ही समय पहले मुंबई में बैडमिंटन प्रतियोगिता के लिए महिलाओं का कार्यक्रम रखा गया था जिसकी इंचार्ज मालाड पोस्ट पर तैनात इनकी सबसे नजदीकी महिला निरीक्षक थी, उसने ही एक नई लड़की को इनके पास भेजा था।” उसने लिखा है कि “चूँकि मैं स्वयं वहाँ थी, और मैं स्वयं उनका शिकार बनी हूँ, इसलिए मुझे एक-एक घटना का पता है।”

उसने आगे लिखा है कि “मुंबई सेंट्रल मंडल की एक महिला कांस्टेबल… को इन्होंने (अर्थात् पीसीएससी ने) प्रेगनेंट कर दिया था, जिससे उसे गर्भपात कराने के लिए मजबूर होना पड़ा था।” उसने लिखा है कि “इसी तरह इनके तीन-चार गुर्गे पूरी तरह से मंडलों में कार्यरत हैं, जो इनके लिए लड़की उपलब्ध कराने का काम करते हैं, जैसे कि मुंबई मंडल का एक निरीक्षक… जिसे इन्होंने पहले तो नालासोपारा पोस्ट पर लगाया, फ्री-टाइम पूरा हुए बिना ही वहाँ से अँधेरी पोस्ट पर ले आए, जिससे इन्होंने दस लाख रुपये भी लिया, और वह अब इनके लिए लड़कियों की व्यवस्था भी करता है, यह निरीक्षक अँधेरी आते ही खुलेआम टिकटों की कालाबाजारी करने वाले एजेंटों का धंधा शुरू करा दिया। यही काम एक महिला उप-निरीक्षक… और वड़ोदरा का एक निरीक्षक… भी करता है।”

महिला आगे लिखती है कि “इनकी कामेक्षा केवल इतने से पूर्ण नहीं होती है, बल्कि ज्यादातर यह एक से अधिक लड़कियों की डिमांड करते हैं, और उनके साथ बिस्तर पर एक साथ नंगा-नाच करते हैं, और बोलते हैं कि मेरी पत्नी बीमार रहती है, अत: मैं तुम लोगों को बुलाता हूँ, तुम्हें कोई फायदा लेना है तो मुझे बताओ!”

अंत में महिला कांस्टेबल ने एजीएम प्रकाश भूटानी से निवेदन किया है कि “मेरे इस मामले को उच्च स्तर पर उठाएँ और एक जाँच आयोग का गठन कराएँ, जिससे इनकी सारी सच्चाई सबके सामने आ जाए, और ऐसे दुष्कर्मी को सख्त सजा मिले, क्योंकि यह इतनी नीच प्रवृत्ति का है कि अपनी लड़की की उम्र से भी छोटी लड़कियों को अपनी हवस का शिकार बनाता है। यदि जाँच की जाए, तो सभी लड़कियाँ इसके खिलाफ बोलने के लिए तैयार हैं।”

#रेलसमाचार द्वारा इस मामले की विस्तृत छानबीन की गई। आरपीएफ स्टाफ का कहना है कि परिस्थितिजन्य आधार पर शिकायत सही प्रतीत होती है। अहमदाबाद मंडल के कई आरपीएफ स्टाफ से बात करने पर पता चला कि 11 दिसंबर 2023 को पीसीएससी इंस्पेक्शन प्रोग्राम बनाकर अहमदाबाद गए थे, अत: शिकायतकर्ता महिला कांस्टेबल ने अपने पत्र में जो लिखा है वह सही प्रतीत होता है, तथापि ‘रेलसमाचार’ महिला द्वारा पत्र में लिखी बातों की पुष्टि नहीं करता है। स्टाफ ने यह भी बताया कि अगले दिन पीसीएससी किसी अर्जेंसी के चलते वहीं से दिल्ली चले गए थे। रेलवे बोर्ड के सूत्रों का कहना है कि यहाँ वह उस दिन सीआरबी को भी मिले थे।

अहमदाबाद स्टाफ से यह भी ज्ञात हुआ कि पीड़ित महिला कांस्टेबल बुरी तरह डरी हुई है और उसे अपनी जान का खतरा भी महसूस हो रहा है। यह भी पता चला कि मुख्यालय से आईवीजी की एक टीम दो दिन पहले अहमदाबाद और वीरमगाम पोस्ट पर गई थी, और वहाँ से बहुत सारे रिकॉर्ड उठाकर लाई है। यह भी पता चला है कि मुख्यालय से एक कार्मिक अधिकारी ने पीड़ित महिला कांस्टेबल को फोन किया था, मगर उसने फोन पर कुछ भी बात करने से मना कर दिया। यह भी बताया गया कि वह अकेले मुख्यालय मुंबई आने से भी डर रही है।

इस पर अधिक जानकारी के लिए पीड़ित महिला कांस्टेबल की व्यथा पढ़कर भी व्यथित नहीं होने वाले एजीएम #प्रकाशभूटानी को भी कई बार कॉल की गई, परंतु उन्होंने कॉल इसलिए नहीं रिसीव नहीं की, क्योंकि उन्होंने शिकायत को फॉरवर्ड करके न केवल अपने कर्तव्य से छुट्टी पा ली थी, बल्कि वह इस पर कोई कार्रवाई करना ही नहीं चाहते थे, यह कहना है पश्चिम रेलवे मुख्यालय के हमारे सूत्रों का। जीएम अशोक मिश्रा को कॉल करने का कोई मतलब नहीं था, क्योंकि वह मौन धारण किए हुए हैं, बल्कि इसके चलते उनका अपने मातहत अधिकारियों पर कोई नियंत्रण नहीं है, इसीलिए पश्चिम रेलवे उनके कार्यकाल में सर्वाधिक बदनामी और नाकामी के दौर से गुजर रही है। वहीं उनका लंबे समय से एक ही जगह टिके सीपीआरओ ने एक स्थानीय रिपोर्टर के पूछने पर कहा है कि इस मामले में एक ‘अज्ञात पत्र’ मिला है, जबकि उक्त पत्र पर शिकायतकर्ता पीड़ित महिला कांस्टेबल का हस्ताक्षर दर्ज है।

मौनी जीएम/पश्चिम रेलवे, अशोक कुमार मिश्रा

इस मामले में #रेलसमाचार ने पीसीएससी प्रवीण चंद्र सिन्हा का पक्ष जानने के लिए उन्हें भी कम से कम चार बार कॉल किया, फिर भी उन्होंने कॉल रेस्पाँड करना अथवा कॉलबैक करना आवश्यक नहीं समझा। तथापि पश्चिम रेलवे मुख्यालय के एक उच्च पदस्थ अधिकारी ने पहचान गुप्त रखने की शर्त पर यह कंफर्म किया कि शिकायत पर उचित कार्रवाई की जा रही है। जबकि सूत्रों ने बताया कि पीसीएससी के दबाव में न केवल इस मामले में पीड़ित महिला कांस्टेबल पर नजर रखी जा रही है, बल्कि इस पूरे प्रकरण को दबाने के लिए खबर प्रकाशित करने वाले एक स्थानीय अखबार के रिपोर्टर को भी अनधिकृत रूप से बुलाकर दबाव में लेने का प्रयास किया गया है।

प्रवीण चंद्र सिन्हा, पीसीएससी/पश्चिम रेलवे

आरपीएफ के कई अधिकारियों और निरीक्षकों ने भी नाम न उजागर करने की शर्त पर पश्चिम रेलवे आरपीएफ में फैले अनेक दुराचरण की बात कही है। उनका कहना था कि आरपीएफ में महिला कांस्टेबल्स और महिला निरीक्षकों का शोषण और मानसिक उत्पीड़न कोई नई बात नहीं है। वर्दी की आड़ में और पद एवं रुतबे की धौंस दिखाकर यह सब पहले भी होता रहा है। यही नहीं, अन्य विभागों में भी ऐसे उदाहरण मौजूद हैं। उल्लेखनीय है कि दक्षिण पूर्व रेलवे के एक पूर्व पीसीएससी के इसी आचरण के कई ऑडियो-वीडियो और फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हुए थे, पर सारा मामला दबा दिया गया, जबकि वहाँ तब एक महिला ही जीएम की कुर्सी पर विराजमान थीं। यही हाल कुछ साल पहले मध्य रेलवे के भी एक पीसीएससी का रहा था।

अतः वर्तमान उन्नत तकनीक के समय चीजों-तथ्यों को जोड़ना और किसी अपराधी या आरोपी की मूवमेंट की रियल लोकेशन तलाश कर लेना कतई कठिन नहीं है। इसलिए शिकायतकर्ता महिला कांस्टेबल और पीसीएससी दोनों की मोबाइल लोकेशन के साथ ही इनसे जुड़े सभी लोगों की सीडीआर भी निकाली जानी चाहिए। समस्त #आरपीएफ स्टाफ की माँग है कि केवल मुंहजबानी नहीं, बल्कि पूरी तरह तकनीकी रूप से इस मामले की स्वतंत्र जाँच की जानी चाहिए, और इससे पहले पीसीएससी सिन्हा को किसी निष्क्रिय पोस्ट पर पश्चिम रेलवे से बाहर अविलंब शिफ्ट किया जाना चाहिए, जिससे वह निष्पक्ष जाँच को किसी भी प्रकार से प्रभावित न कर सकें।

आरपीएफ में भी #रोटेशन में भारी पक्षपात और भेदभाव हो रहा है, विशेष रूप से अधिकारियों के मामले में। आरपीएफ एसोसिएशन को निष्क्रिय ही इसीलिए करवाया गया था कि जिससे अधिकारियों की मनमानी पर कोई अंकुश लगाने वाला न रहे। पीसीएससी सिन्हा सहित महिला कांस्टेबल की शिकायत में जितने भी नाम आए हैं, वह सब न केवल लंबे समय से मुंबई में, एक ही डिवीजन में हैं, बल्कि संरक्षित भी हैं। आज जब रेलवे के सर्वोच्च पद पर एक महिला विराजमान है, तब ऐसे एक उच्च पदस्थ अधिकारी के कथित शर्मनाक आचरण का सामने आना और भी अधिक शर्मनाक है। सर्वसामान्य रेलयात्रियों में रेल की छवि की बुरी गति हो रही है, जब आरपीएफ में वर्दीधारी महिलाएँ ही सुरक्षित नहीं हैं तब रेल में यात्रा करने वाली महिला यात्रियों की सुरक्षा की क्या गारंटी है? अत: रेलवे बोर्ड की चेयरपर्सन सुश्री जया वर्मा सिन्हा और रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव को इस मामले का तुरंत गंभीरतापूर्वक संज्ञान लेना चाहिए तथा रेल की बिगड़ती अंदरूनी छवि को सुधारने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए।

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी