फर्जी टेस्ट रिपोर्ट जारी करने वाली लैब्स के विरुद्ध राजद्रोह का मामला दर्ज हो

कार्य में कोताही करने वाले ठेकेदारों के विरुद्ध जीसीसी क्लॉज़ की कार्रवाई की आदत डालनी चाहिए

अधिकारी यदि मटीरियल पासिंग अथॉरिटी है, तो उसके फेल्योर की भी जिम्मेदारी उसे ही लेनी चाहिए

कांक्रीट के मिक्स डिजायन में भारी भ्रष्टाचार, जोनल और बोर्ड स्तर पर माइक्रो मॉनिटरिंग एवं सत्यापन जांच सुनिश्चित होनी चाहिए

हाजीपुर ब्यूरो : पूर्व मध्य रेलवे और पूर्वोत्तर रेलवे के अंतर्गत फार्मेशन कार्यों में उपयोग होने वाली मिट्टी की फर्जी क्वालिटी टेस्ट रिपोर्ट बनाकर देने वाले इंजीनियरिग कॉलेजों, रेलवे, बिहार एवं उत्तर प्रदेश सरकार की अप्रूव्ड टेस्ट लैब, जो फर्जी मटीरियल का टेस्ट रिपोर्ट जारी करती हैं, उन सभी के विरुद्ध कम से कम राजद्रोह का मामला दर्ज करवाया जाना चाहिए. चूंकि इनके द्वारा दी गई रिपोर्ट के कारण ही रेलवे को घटिया या अनावश्यक अतिरिक्त मोटाई-चौड़ाई-गहराई में निर्माण कार्य करने पड़ते हैं. व्यर्थ में सरकारी राजकोष का धन भ्रष्टाचार के तहत ठेकेदारों के फायदे के लिए निर्माण कार्य में लगा दिया जाता है. दूसरी तरफ बलुअस या सिल्ट वाली मिट्टी को क्ले अर्थात अच्छी क्वालिटी दर्शाते हुए एमडीडी को स्टैंडर्ड 1.85 से ऊपर टेस्ट रिपोर्ट में दर्शाया जाता है, जो कि स्पष्ट रूप से देशद्रोह का मामला है. कर्मचारियों का कहना है कि चूंकि सामान्यतः सिल्ट या सैंडी मिट्टी का एमडीडी 1.75 से 1.78 के बीच ही मिलता है. इसी डाटा से फार्मेशन का कम्पेक्शन सुनिश्चित होता है.

कर्मचारियों का कहना है कि एक अदने से रेलवे खलासी को भी यह बात मालूम है. फिर बड़े अधिकारियों को भी यह इसकी गंभीरता को समझना और देखना चाहिए. गलत टेस्ट रिपोर्ट देने वाले को तुरंत ब्लैकलिस्ट किया जाना चाहिए और उनके सम्बंधित कंट्रोलिंग कार्यालय प्रमुख को सही टेस्ट रिपोर्ट की प्रति देते हुए उचित करवाई के लिए कदम उठाया जाना चाहिए. कांक्रीट के मिक्स डिजायन में भी भारी भ्रष्टाचार हो रहा है, जिसे गहरी अभिरुचि लेते हुए जोनल और बोर्ड स्तर पर माइक्रो मॉनिटरिंग एवं सत्यापन जांच सुनिश्चित होनी चाहिए. मिट्टी की गलत टेस्ट रिपोर्ट का खामियाजा रेलपथ से सम्बंधित ठेकेदारों को भी भुगतान पड़ता है, क्योंकि उसे बार-बार रेल लाइन को पैक्ड करके ठीक करना पड़ता है, फिर भी यदि कोई दुर्घटना घटित हो जाती है, तो उसके लिए ठेकेदार को नहीं अधीनस्थ (पीडब्ल्यूआई) को मेजर पेनाल्टी चार्जशीट और कठोर दंड भुगतना पड़ता है, जबकि वास्तव में वह उस गुनाह का दोषी नहीं होता है. दोषी तो वह कार्य निरीक्षक और अधिकारी, खासकर मटीरियल अप्रूव करने वाले अधिकारी, होते हैं, जो प्रारम्भ में घटिया क्वालिटी की मिट्टी या क्ले के बदले बलुई मिट्टी से फार्मेशन बनवा देते हैं और कार्य-स्थल का निरीक्षण करते हैं. जबकि उन्हें अपनी आंखें खोलकर मिट्टी की क्वालिटी की गुणवत्ता को पहले ही विजुअलाइज कर लेना चाहिए. यदि ऐसा ही चलता रहा, तो स्टैण्डर्ड निर्माण कार्य कैसे होगा, इस पर रेल प्रशासन को अवश्य विचार करना चाहिए.

कुछ कर्मचारियों का कहना है कि मिट्टी की गलत टेस्ट रिपोर्ट बनाकर और केवल फाइल में लगाकर मुक्ति पा लेने का सिलसिला अब निश्चित रूप से बंद होना चाहिए. उनका कहना है कि फील्ड टेस्टिंग में कोर कटर टेस्ट के दौरान मॉइस्चर मीटर की मदद से सत्यतता की जानकारी तो सभी सम्बंधित अधिकारियों को रहती ही है, इसके बावजूद ठेकेदार के पक्ष में उनका अनभिज्ञ बने रहना भी तो राजद्रोह की ही श्रेणी में आता है. यही देशद्रोह यहां के कुछ रेल अधिकारी भी कर रहे हैं. इन कर्मचारियों का कहना है कि ठेकेदारों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे मटीरियल की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए सम्बंधित अधिकारी ही पूरी तरह से जिम्मेदार हैं. परंतु वास्तविकता में अधिकारीगण ठेकेदारों के मटीरियल की गुणवत्ता सुनिश्चित करने में पूरी तरह से फेल हुए हैं, जिसका खामियाजा आगे आने वाले समय में इस रेलवे को भुगतना पड़ेगा.

उन्होंने बताया कि यदि मिट्टी की क्वालिटी सिल्ट/बलुअस है, तो उस पर कम से कम 90 सेमी. की ब्लैंकेटिंग करना अनिवार्य है. यदि मिट्टी क्ले है, तो मात्र 30 सेमी. की ब्लैकेटिंग से ही यह काम चल जाता है. इसके अलावा यदि फार्मेशन का कार्य किसी पहाड़ी इलाके में किया जा रहा है, तो उक्त क्षेत्र में ब्लैंकेटिंग नहीं की जानी चाहिए. अतः मिट्टी की सही टेस्ट रिपोर्ट होना रेलवे के निर्माण कार्यों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए अत्यंत जरूरी है. रेल प्रशासन को जोनल स्तर पर विश्वसनीय टेस्ट लैब अवश्य सुनिश्चित करना चाहिए. तथापि यदि पुनः गलत टेस्ट रिपोर्ट आती है, तो उक्त लैब के विरुद्ध देशद्रोह का मामला दर्ज कराया जाना चाहिए. यही रेलवे और राष्ट्र के हित में होगा.

कर्मचारियों का कहना है कि पूर्व मध्य रेलवे प्रशासन द्वारा निर्माण विभाग में अनुभवहीन अधिकारियों और निरीक्षकों की पदस्थापना बनाए रखे जाने से ही क्वालिटीपूर्ण कार्य करवाने में सफल नहीं हो पा रहा है. उनका कहना है कि पू.म.रे. निर्माण संगठन के कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों का आरडीएसओ की गाइड लाइन, रेलवे मैनुअल, सतर्कता बुलेटिनों और समय-समय पर जारी होने वाले दिशा-निर्देशों से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है. वे अपने पद की जिम्मेदारी अपने अधीनस्थ निरीक्षकों पर डालकर सिर्फ ‘रस-माधुरी’ और लजीज व्यंजन का लुत्फ उठाने में मस्त रहते हैं. ठेकेदार या उसके मुंशी को अपने चेम्बर में कुर्सी पर बैठाकर चाय-नास्ता करवाते हैं, जबकि अधीनस्थ निरीक्षक को जानबूझकर उसके सामने खड़ा रखकर अन्य कार्य में व्यस्त होने का नाटक करते हैं, ताकि निरीक्षक ठेकेदार या उसके मुंशी के समक्ष दबाव में रहकर हीनभावना का शिकार बना रहे.

ऐसे अधिकारी और ठेकेदार अधीनस्थों के सामने जानबूझकर राजनेताओं और उच्च अधिकारियों से अपने करीबी संबंधों का बार-बार बखान करते हुए उन्हें बरबाद कर देने और चार्जशीट या कांफिडेंशियल लेटर थमा देने की जुमलेबाजी करके नौकरी से बर्खास्त कर देने की धमकी देते रहते हैं. अधिकारियों और ठेकेदारों की यह कार्य-पद्धति घोर निंदनीय है. उन्हें यह ध्यान नहीं रहता है कि राजनेता केवल अधिकारियों को ही नहीं पहचानते हैं. अधीनस्थ कर्मचारी के पिता, भाई-बंधू अथवा किसी नाते-रिश्तेदार का भी उक्त नेता से सीधा संबंध हो सकता है, जिसके दम पर वह अधीनस्थ को धमकाते हैं, या अपमानित करते हैं, नौकरी से बर्खास्त की धमकी देते हैं. हो सकता है कि अधीनस्थ कर्मचारी का ही उक्त राजनेता और अधिकारी के बॉस से सीधा संबंध हो और वह उक्त राजनेता एवं अधिकारी के नाम पर जो धन अर्जन कर रहे हैं, या अब तक किए हैं, उसकी जानकारी उक्त राजनेता और अधिकारी के बॉस तक पहुँचा देगा, तब क्या होगा?

कर्मचारियों का कहना है कि रेलवे सिस्टम में कहां क्या हो रहा है, कौन कैसा है, कौन कहां किससे मिल रहा है, कौन ठेकेदार कब किसके घर गया अथवा कौन अधिकारी ठेकेदार के अधिकृत आदमी से मिला, यह सब गतिविधियां फील्ड में कार्यरत लगभग सभी कर्मचारियों को पर्याप्त रूप से मालूम रहती हैं. उनका कहना है कि सम्बंधित अधिकारीगण और ठेकेदार अधीनस्थों को कम या कमजोर समझने की भूल नहीं करें और ठेकेदार के मुंशी के रूप में उन्हें जबरन गलत कार्य और ड्यूटी करने को मजबूर न करें, यही उनके हित में सही होगा. उन्होंने कहा कि यदि ठेकेदार ने कार्य/टेंडर लिया है, तो वह अपना क्वालिफाइड इंजीनियर रखे और एग्रीमेंट के अनुसार निर्धारित कार्य को समयानुसार पूरा करे. उनका कहना है कि अधिकारियों को चाहिए कि वे अपने अधीनस्थों को उचित सम्मान दें, तभी उन्हें वे सम्मान की नजर से देखेंगे और सम्मान भी देंगे.

इसके अलावा अधिकारियों को जीसीसी क्लॉज के तहत ठेकेदारों पर उचित करवाई का आदत भी डालनी चाहिए. कर्मचारियों का कहना है कि हालांकि यह सब तो पूर्व मध्य रेलवे में आम बात है. फिर भी यदि सम्बंधित अधिकारीगण उनकी इन बातों पर उचित ध्यान देंगे, तो इसमें उनके साथ ही रेलवे की भी भलाई ही होगी. उनका कहना है कि ओपन लाइन के अधिकारी निर्माण संगठन के लिए तब तक उपयुक्त नहीं हैं, जब तक कि वह पूर्व में सहायक अभियंता या निरीक्षक के पद पर कार्य-ड्यूटी न किए हों. पूर्व मध्य रेलवे में अधिकारीगण ठेकेदार के विरुद्ध जीसीसी के तहत प्रशासन द्वारा निर्धारित निर्माण कार्य समय से नहीं करने पर नियमानुसार समुचित करवाई नहीं करके पहले अपने अधीनस्थ के विरुद्ध ही षड्यंत्र प्रायोजित करते हैं, जिससे वे दीमक की तरह इस सिस्टम को खोखला कर रहे हैं, जो कि अत्यंत निंदनीय है.

यदि कोई कर्मचारी कुछ क्वालिटी कंट्रोल करने का प्रयास भी करता है, तो सम्बंधित अधिकारी निरीक्षण के दौरान अधीनस्थ के सामने ठेकेदार या उसके मुंशी के पक्ष में बात करता है. ऐसे में उक्त अधीनस्थ की गरिमा और अपने काम पर उसकी पकड़ अपने आप ढीली पड़ जाती है. अधीनस्थ के कुछ कहने पर उसे ठेकेदार से तुरंत जवाब मिलता है कि ‘जब साहब ही ऐसा करने को कह रहे हैं, तो फिर आप क्यों अधिक नियम-कानून झाड़ रहे हैं.’ इसके अलावा जब उससे बड़ा अधिकारी निरीक्षण करने आता है, तो सब कुछ अच्छा रहा, तो सम्बंधित अधिकारी द्वारा यह कहकर उसका श्रेय ले लिया जाता है कि हमने किया, और जब कुछ ख़राब मिलता है, तो वही अधिकारी यह कहता है कि ‘सर, क्या करें अपना मातहत मनमानी करता है.’

इस तरह हर हाल में किसी भी तरह ठेकेदार का का ही बचाव करने में सम्बंधित अधिकारीगण लगे रहते हैं. अधीनस्थ कर्मचारियों को अपने अधिकारियों का यह दोमुंहा मुखौटा तब बहुत अचंभित कर देता है. जब सम्बंधित अधिकारीगण स्पष्ट रूप से यह कहते हैं कि मटीरियल पासिंग अथॉरिटी वह हैं, फिर एक एसएसई कैसे उसे गलत ठहरा सकता है.’ ऐसे में जब मटीरियल फेल्योर की बात आती है, तो उसकी जिम्मेदारी लेने से वह पीछे क्यों हट जाते हैं और क्यों इसी मद में अधीनस्थों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई करने में स्वयं को सबसे ज्यादा होशियार मानते हैं?