मशीन क्रश्ड बलास्ट में मिलाकर सप्लाई की जाती है हैंड ब्रोकेन बलास्ट

बलास्ट की सप्लाई में 60 प्रतिशत तक समाहित है रेलवे में भ्रष्टाचार

‘रेलवे समाचार’ के पिछले अंक में ‘रेलवे में बलास्ट की आपूर्ति : मशीन क्रश्ड बनाम हैंड ब्रोकेन’ शीर्षक से प्रकाशित खबर पर विभिन्न तकनीकी रेल कर्मचारियों की बहुत शानदार प्रतिक्रिया मिली है. कर्मचारियों ने इस खबर को ‘बहुत ही अच्छा आर्टिकल बताया है.’ उनका कहना है कि श्री सुबोध जैन द्वारा इस मामले में दी गई सलाह बहुत महत्वपूर्ण है. तथापि उनका यह भी कहना है कि इसकी सप्लाई में 60% तक भ्रष्टाचार है. मशीन क्रश्ड के नाम पर हैंड ब्रोकेन बलास्ट को मिलाकर सप्लाई की जाती है.

इन कर्मचारियों का कहना है कि आज भी कुछ सप्लायरों द्वारा रेलवे को मशीन क्रश्ड के बदले हैंड ब्रोकन बलास्ट ही आदिवासी क्षेत्र में आपूर्ति की जा रही है. उनका कहना है कि चूंकि सप्लायर्स को हैंड ब्रोकेन बलास्ट अभी भी मशीन क्रश्ड बलास्ट से सस्ती पड़ती है. उन्होंने बताया कि यह सप्लाई एक सिंडिकेट के तहत प्रायोजित टेंडर के माध्यम से होती है. इसमें रेलवे के कुछ अधिकारी भी शामिल हैं, जो अधिक से अधिक अनावश्यक टेंडर करने में ज्यादा रुचि रखते हैं. टेंडर की क्वांटिटी देखकर उसे ज्यादा बड़ा बना दिया जाता है, जो कि रेल हित में नहीं है.

कर्मचारियों का कहना है कि जब मशीन क्रश्ड ब्लास्ट ही लेनी है, तो इसके टेंडर प्रावधान में लेबर कॉस्ट पीवीसी क्लॉज के तहत 55% बहुत अधिक है. इसी तरह अब रेलवे में कंक्रीट मिक्सिंग का कार्य भी 95% पूर्णतः मैकेनाइज्ड प्रावधान है. बैचिंग प्लांट में मिक्सिंग और पाइप लाइन या वे-बैचिंग प्लांट के माध्यम से रेडी मिक्स से कास्टिंग पूरी होती है. फिर भी उसमें ठेकेदारों को लेबर ओरिएंटेड बेनिफिट बहुत अधिक दिया जाता है. इस बिंदु पर भी रेल प्रशासन को विचार करना चाहिए. उनका कहना है कि क्योंकि डिजायन मिक्स के नाम पर अरबों रुपए का भुगतान रेलवे द्वारा किया जाता है, जबकि बिना बैचिंग प्लांट के यह डिजायन मिक्सिंग संभव ही नहीं है. फिर लेबर का चार्ज अधिक देना एम-20 से एम-5 के कार्यों में गुनाह है और यही सब भ्रष्टाचार का स्रोत है.

उनका कहना है कि अभी भी देर नहीं हुई है, रेलमंत्री और रेल प्रशासन को चाहिए कि वह श्री सुबोध जैन को उनके पुराने रिकार्ड और योग्यता, जो कि सदैव उत्कृष्ट रही है, के आधार पर अपना निजी तकनीकी सलाहकार नियुक्त करना चाहिए. यह भारतीय रेल और राष्ट्र के लिए बहुत ही अच्छा होगा. उल्लेखनीय है कि श्री जैन ने पिछली खबर में अपनी प्रतिक्रिया देते हुए दो-टूक शब्दों में अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा था कि जब मशीन क्रश्ड बलास्ट मंगाई जा रही है, तो उसमें 55% लेबर ओरिएंटेड कास्ट रखे जाने का अब कोई औचित्य नहीं रह गया है. इसे फौरन बदला जाना चाहिए. इस पर इंजीनियरिंग विभाग के तमाम फील्ड कर्मचारियों ने उपरोक्त सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए रेलमंत्री को उन्हें अपना तकनीकी सलाहकार नियुक्त करने की सलाह दी है.

उधर सोनपुर मंडल के डीआरएम को इन कर्मचारियों ने पूर्व मध्य रेलवे का एक ‘आइकॉन’ बताते हुए कहा कि  डीआरएम/सोनपुर के कार्य-निर्देशों का अनुकरण करने मात्र से रेलवे वास्तव में सोने की चिड़िया के रूप में विकसित हो सकती है. उनका कहना है कि डीआरएम/सोनपुर जैसे ईमानदार और रेलवे के प्रति समर्पित अधिकारी के दम पर ही आज रेलवे जीवित है. एक तरफ इंस्पेक्शन सैलून में कुछ रेल अधिकारी अपने घर में अधिनस्थों से खाने के सामान मंगाते हैं, जिसे पूर्व मध्य रेलवे में ‘शिष्टाचार’ कहा जाता है, जबकि उक्त अधिकारी को अपने मातहतों से आठ गुना अधिक वेतन मिलता है. फिर भी ऐसे अधिकारियों की न तो रेलवे में कमी है, और न ही उनके लालच का कोई अंत नजर आ रहा है.

दूसरी तरफ डीआरएम/सोनपुर अपने निरीक्षण के दौरान सैलून के खर्च के साथ ही अपने साथ आए सभी अन्य अधिकारियों को भी खुद के पैसे से खिलाते हैं. इसके अलावा सभी रेलवे कॉलोनियों और कार्यालयों के आसपास हुए अतिक्रमण, अनधिकृत निर्माण तथा अवैध झोपड़ियों को उन्होंने खुद अपनी देखरेख में हटवा दिया है. इस तरह रेलवे को अरबों रुपए की चल-अचल संपत्ति का फायदा हुआ है, जो मुफ़्त में बाहरी लोग उठा रहे थे. कर्मचारियों का कहना है कि ऐसे ही अधिकारी की इस सिस्टम में जरूरत है, जो सिर्फ रेलवे के नियम के अधीन निर्देशित कार्य को पूरा करवाए. कर्मचारियों ने बताया कि सुबह 6 बजे से लेकर रात के 12 बजे तक केवल रेलवे के सुधार में लगे रहने और खुद सभी मामलों में शामिल डीआरएम को देखकर ही सोनपुर मंडल के अंतर्गत सभी स्टेशनों पर और लगभग सभी ट्रेनों में लोगों ने बिना टिकट चलना बंद कर दिया है और सभी रेलकर्मी अपनी निर्धारित ड्यूटी के प्रति समर्पित हो गए हैं.