‘रेलवे समाचार’ की खबर का असर, उत्तर रेलवे ने जारी किया करेक्शन सर्कुलर
एकीकृत मानक दर सूची-2010 के आइटम नं. 081280 के अंतर्गत उच्च दरों को रद्द किया
प्रेस्ड स्टील डोर फ्रेम्स की आपूति और फिक्सिंग की पूर्व दरों को अनावश्यक रूप से ज्यादा माना
जीसीसी/पीवीसी क्लॉज में ‘हाई लेबर कंपोनेंट’ में भी अविलंब आवश्यक संशोधन करना जरूरी
सुरेश त्रिपाठी
उत्तर रेलवे ने ‘रेलवे समाचार’ द्वारा ‘उत्तर रेलवे और सीपीडब्ल्यूडी की मानक दर सूची में जमीन-आसमान का अंतर’ शीर्षक से 23 सितंबर 2015 को और ‘उत्तर रेलवे निर्माण संगठन द्वारा कॉन्ट्रैक्टर्स को दिए जा रहे हैं अनावश्यक रेट्स’ शीर्षक से 13 अक्टूबर 2015 को प्रकाशित दोनों खबरों का सटीक संज्ञान लेते हुए यह मान लिया गया है कि ‘एकीकृत मानक दर सूची-2010’ के आइटम नं. 081280 के अंतर्गत प्रेस्ड स्टील डोर फ्रेम्स की आपूति और फिक्सिंग की पूर्व दरें न सिर्फ अनावश्यक रूप से ज्यादा हैं, बल्कि उन्हें तत्काल प्रभाव से रद्द करते हुए वास्तविक बाजार दरों पर उक्त सभी आइटम्स का मूल्य निर्धारित किए जाने सम्बंधी नया सर्कुलर (संख्या डिप्टी सीई/सी/जी/मिस्लेनियस/ईएसटीटी.) भी 15 अक्टूबर 2015 को जारी कर दिया है.
उक्त सर्कुलर में कहा गया है कि –
Sub. : System improvement regarding discrepancies in USSOR-2010 items –
“It is observed that rates of USSOR item no. 081280 (081281, 081282 and 081283) providing and fixing pressed steel door frames are abnormally higher side.
In view of above, it has been decided that USSOR item no. 081281, 081282 and 081283 should not be operated and if required the same may be taken as NS item with AOR based on market survey.”
मुख्य प्रशासनिक अधिकारी/निर्माण/उ.रे. बी. डी. गर्ग की मंजूरी के बाद डिप्टी सीई/सी/जी-2 मोहम्मद ईशा द्वारा जारी किए उपरोक्त सर्कुलर में उन्हीं तीनों आइटम्स का उल्लेख किया गया है, जिनके बारे में ‘रेलवे समाचार’ ने यह सवाल उठाया था कि इनकी दरें बाजार दरों से और ‘दिल्ली शेड्यूल ऑफ रेट्स-2012’ में दी गई दरों से कई सौ गुना ज्यादा और अवास्तविक हैं. मुख्य प्रशासनिक अधिकारी/निर्माण/उ.रे. बी. डी. गर्ग इस बात के लिए वास्तव में धन्यवाद के पात्र हैं कि उन्होंने न सिर्फ वास्तविक समस्या का फौरन संज्ञान लिया, बल्कि तुरंत उसका समाधान करते हुए बड़े पैमाने पर हो रहे रेलवे रेवेन्यु के नुकसान को भी बचाया है.
जीसीसी/पीवीसी क्लॉज में ‘हाई लेबर कंपोनेंट’ में भी अविलंब संशोधन आवश्यक
अब इसी परिप्रेक्ष्य में रेल प्रशासन और रेलवे बोर्ड को चाहिए कि वह जनरल कंडीशंस ऑफ कांट्रेक्ट/प्राइस वेरिएशन क्लॉज में हाई लेबर कंपोनेंट कास्ट को भी अविलंब संज्ञान में लेते हुए इसमें तुरंत सुधार करे, क्योंकि वर्तमान जीसीसी/पीवीसी के समस्त प्रावधानों की पुनर्समीक्षा आवश्यक हो गई है. अब टनलिंग के लिए भारी मानव संसाधन के बजाय बहुत बड़ी-बड़ी पहाड़ कटाई मशीनें उपलब्ध हो गई हैं. अर्थ वर्क, बलास्ट और टनलिंग आदि कार्य वर्तमान में मानव श्रम के बजाय मशीनों से किए जा रहे हैं. अर्थ वर्क में मिट्टी/बोल्डर्स की खुदाई-भराई-ढुलाई/समतलीकरण आदि सभी कार्य मशीनों से किए जा रहे हैं. बलास्ट की तोड़ाई-फोड़ाई-भराई-ढुलाई और फैलाव आदि सभी कार्य मानव श्रम से नहीं, बल्कि अब मशीनों से किए जा रहे हैं. रेलवे बोर्ड, इंजीनियरिंग निदेशालय ने 14 दिसंबर 2012 के पत्रांक 2007/सीई-I/सीटी/18-पीटी.19 के अनुसार भारतीय रेल जनरल कंडीशंस ऑफ कांट्रेक्ट (जीसीसी) के ‘जनरल इंस्ट्रक्शंस’ में जो नया ‘क्लॉज़ 46ए – प्राइस वेरिएशन क्लॉज़’ के रूप में जोड़ा है, उसमें वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए संशोधन किया जाना आवश्यक है. इससे जो बजट बचेगा, उससे रेलवे के अन्य कई विकास कार्य हो सकेंगे.
उक्त नए क्लॉज़ के बाद भी तमाम इंजीनियरिंग कॉन्ट्रैक्ट्स के अंतर्गत ‘लेबर कंपोनेंट’ के तहत अर्थ वर्क, बलास्ट एंड क्वारी प्रोडक्ट्स, टनलिंग एवं इतर वर्क्स आदि जैसे कॉन्ट्रैक्ट्स में लेबर कंपोनेंट की कास्ट कम करने के बजाय बढ़ाई गई है. वर्ष 1987 में इसके लिए रेलवे बोर्ड ने कुछ वरिष्ठ इंजीनियरिंग अधिकारियों की एक समिति गठित की थी. उक्त समिति ने तब अर्थ वर्क कॉन्ट्रैक्ट्स के तहत लेबर कंपोनेंट की तत्कालीन बजट को घटाने की सिफारिश की थी. उक्त समिति की सभी सिफारिशें लगभग ज्यों की त्यों स्वीकार गई हैं. इन सभी मदों की कास्टिंग में सबसे ज्यादा विरोधाभाषी ‘लेबर कास्ट या कंपोनेंट’ की मद में की गई बढ़ोत्तरी है, क्योंकि अर्थ वर्क, बलास्ट और टनलिंग आदि के कार्य वर्तमान में मानव श्रम के बजाय मशीनों से ज्यादा किए जा रहे हैं. अतः इसमें कार्य की अपेक्षा मानव श्रम कम हुआ है. पहले जब हैवी मशीनें नहीं थीं, तब उक्त मदों में मानवीय श्रम संसाधन ज्यादा लगता था, जबकि वर्तमान में इन कार्यों के लिए बहुत बड़ी-बड़ी मशीनें आ गई हैं, जिनसे जो काम मानव श्रम से 30 दिनों में होता था, वह अब 3 दिन में होने लगा है. सम्पूर्ण अर्थ वर्क में मिट्टी या बोल्डर्स की खुदाई-भराई-ढुलाई और समतलीकरण आदि सभी कार्य मशीनों से किए जा रहे हैं. इसमें पहले जहां 100 लेबर लगते थे, वहीं अब यह संख्या घटकर औसतन 10 हो गई है.
इसी प्रकार पहले बलास्ट (गिट्टी) की तोड़ाई-फोड़ाई-भराई-ढुलाई और फैलाव आदि सभी कार्य मानव श्रम द्वारा किए जाते थे, जबकि अब यह सभी कार्य बड़ी-बड़ी मशीनों द्वारा किए जा रहे हैं. पहाड़ काटने में यानि टनल बनाने के लिए पहले भारी मानव संसाधन की जरूरत होती थी, जबकि अब इस काम के लिए बहुत बड़ी-बड़ी पहाड़ कटाई मशीनें उपलब्ध हो गई हैं, जिससे वर्तमान में यह काम बहुत आसान हुआ है. मगर लेबर कंपोनेंट कास्ट कम किए जाने के बजाय बढ़ाई गई है, जबकि इन सभी कार्य के लिए वर्तमान में फ्यूल कंपोनेंट कास्ट बढ़ी है, क्योंकि उक्त भारी-भरकम मशीनों को चलाने के लिए बड़े पैमाने पर फ्यूल कंजम्प्शन (डीजल/पेट्रोल का इस्तेमाल) बढ़ा है. फ्यूल कंपोनेंट कास्ट नहीं बढ़ाए जाने के कारण लेबर कंपोनेंट के मद की कास्ट को फ्यूल कंपोनेंट कास्ट के मद में एडजस्ट करके लेबर कंपोनेंट कास्ट का बेजा उपयोग हो रहा है.
उल्लेखनीय है कि वर्ष 1998-99 में रेलवे बोर्ड ने बलास्ट आपूर्ति के संबंध एक और सर्कुलर जारी करके हाथ से तोड़ी गई गिट्टी (बलास्ट) की आपूर्ति को प्रतिबंधित करते हुए मशीन क्रश्ड बलास्ट की आपूर्ति लिए जाने का निर्देश दिया था. इसका कारण यह था कि एक तो हाथ से तोड़ी गई गिट्टी की साइज एक समान नहीं होती थी और इसकी आपूर्ति में भी निर्धारित समय पर नहीं हो पाती थी. इसके अलावा तभी मशीनीकरण की बड़े पैमाने हो चुकी शुरुआत के कारण गिट्टी की आपूर्ति में लगने वाला समय भी कम हो गया था और गिट्टी की साइज भी लगभग एक समान मिलने लगी थी. इससे जाहिर है कि इस मामले में मानव श्रम कम हुआ है, इसलिए इस मद में सर्वाधिक बजट रखा जाना ही अनुचित है. इसी प्रकार जीसीसी/पीवीसी के क्लॉज़ 46ए.9 के अंतर्गत जिन-जिन स्टील मैटेरियल्स की सप्लाई का उल्लेख किया गया है, उनमें भी हाई कास्ट, बाजार मूल्य से कई-कई गुना ज्यादा, का प्रावधान करके भारी बंदरबांट हो रही है. अतः वर्तमान जीसीसी/पीवीसी के समस्त प्रावधानों की पुनर्समीक्षा आवश्यक हो गई है.