इज्जतनगर में एडीआरएम ने किया रेलवे की इज्जत का फालूदा
इंजीनियरिंग भ्रष्टाचार: बाद में डॉक्यूमेंट्स लेकर स्वीकृत किया टेंडर
The result of a #long_stay at one place!
That’s why the #Rotation is required seriously!
गोरखपुर ब्यूरो: मेसर्स अजय कंस्ट्रक्शन का टेंडर 11.10.2022 को टर्मिनेट किया गया। मेसर्स अजय कंस्ट्रक्शन के टर्मिनेटेड टेंडर का बचाव पूर्व डिप्टी सीई/सी, पूर्व सीनियर डीईएन/समन्वय और वर्तमान एडीआरएम/इज्जतनगर राजीव अग्रवाल ने इसलिए किया, क्योंकि यह टेंडर उन्होंने ही बाद में डॉक्यूमेंट्स लेकर स्वीकृत किया था, जो कि जनरल कंडीशंस ऑफ कांट्रैक्ट (जीसीसी) के अनुसार पूर्ण रूप से गलत और नियम विरुद्ध है।
मेसर्स अजय कंस्ट्रक्शन के मालिक अजय अग्रवाल पुत्र स्व. द्वारिकाधीश अग्रवाल के पांच टेंडर पहले ही 10.03.2022 को टर्मिनेट किए गए थे। इन टर्मिनेटेड टेंडर्स को बचाने के लिए 06.04.2022 को प्रमुख मुख्य इंजीनियर, पूर्वोत्तर रेलवे, गोरखपुर को पत्र लिखा गया। मेसर्स अजय कंस्ट्रक्शन फर्म के मालिक अजय अग्रवाल द्वारा लिखे गए पत्र में उक्त तीन टेंडर्स का उल्लेख था, जो कि बाद में 11.10.2022 को निरस्त किए गए।
इसके बारे में रेलवे ने बाद में सभी पार्टनरशिप डीड्स और एफिडेविट जमा करने का पत्र फर्म को लिखा था तथा अजय कुमार अग्रवाल पुत्र स्व. नरेन्द्र देव की शिकायत पर पूर्वोत्तर रेलवे का विजिलेंस प्रकोष्ठ जांच कर रहा था। तब स्वयं को बचाने के लिए एक फर्जी मेमोरेंडम फाइल में लगवाकर विजिलेंस को दे दिया गया, जिससे विजिलेंस इस पर जांच न करे कि डॉक्यूमेंट्स राजीव अग्रवाल द्वारा बाद में लिए गए।
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ठेकेदार को फर्जी मेमोरेंडम के आधार पर मेसर्स अजय कंस्ट्रक्शन को आवंटित तीनों टेंडर निरस्त कर दिए गए, जिससे एडीआरएम राजीव अग्रवाल कार्रवाई से बच गए थे, जिसके कारण ठेकेदार की मदद करना राजीव अग्रवाल की मजबूरी हो गई थी, क्योंकि ठेकेदार अगर इस मुद्दे को उठाता तो इनकी नौकरी खतरे में पड़ जाती।
वे सभी डॉक्यूमेंट्स भी #RailSamachar के पास सुरक्षित हैं जो कि गोपनीयता की शर्त पर मेसर्स अजय कंस्ट्रक्शन के प्रतिनिधि द्वारा उपलब्ध कराए गए हैं। वास्तव में यह मेमोरेंडम 2021 में बनाया गया था और इस प्रकरण में नोटरी एवं स्टैम्प वेंडर द्वारा सच्चाई छुपाने का प्रयास किया गया। लेकिन जब इस विषय में कड़ाई से पूछताछ हुई तो दोनों ने सच्चाई उगल दी, क्योंकि अगर वह दोनों सच्चाई नहीं बताते तो दोनों पर जालसाजी का मुकदमा हो जाता और लाइसेंस भी कैंसिल होते।
सभी काम दूसरों से करवाए राजीव अग्रवाल ने:
एडीआरएम/इज्जनतगर राजीव अग्रवाल ने जो भी कार्य करवाए, वे सभी दूसरों से करवाए, स्वयं उन्होंने कहीं पर भी अपनी कलम नहीं चलाई। अजय कुमार अग्रवाल पुत्र स्व. नरेंद्र देव द्वारा मेसर्स अजय कंस्ट्रक्शन फर्म के मालिक अजय अग्रवाल के खिलाफ एक एफआईआर 14.01.2023 को दर्ज कराई गई, जिसमें पुलिस द्वारा रेलवे के तीन कर्मचारियों को भी समन किया गया है तथा बयान देने के लिए बुलाया गया है।
इस बीच वरिष्ठ मंडल अभियंता/समन्वय पर दवाब डालकर इन तीन टेंडर्स तथा फर्जी एफिडेविड के मामले में एक प्राइवेट व्यक्ति से फॉरेंसिक जांच कराई गई जो कि वैधानिक रूप से गलत थी, क्योंकि उक्त जांच रिपोर्ट में कहा गया कि फोटोस्टेट पेपर उपलब्ध कराया गया।
कोई भी फॉरेंसिक जांच फोटोकॉपी वाले पेपर से नहीं होती है तथा इसके लिए रेलवे द्वारा भी कोई पत्र नहीं लिखा गया, परंतु इन्होंने फॉरेंसिक जांच कराकर वरिष्ठ मंडल अभियंता/समन्वय पर दवाब डालकर मेसर्स अजय कंस्ट्रक्शन के खिलाफ जांच क्लीयर कराने की कोशिश की।
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एडीआरएम/इज्जतनगर राजीव अग्रवाल ने फर्म को क्लीन चिट देने का पूरा प्रयास किया, लेकिन ‘रेल समाचार’ की सतर्कता तथा पिछले अंक में प्रकाशित खबरों के मद्देनजर जालसाजी का ये कार्य पूरा नहीं हो पाया और मामले की पोल खुल गई।
अब मामले को रफा-दफा करने के लिए जोड़-तोड़ की जा रही है। इज्जतनगर मंडल में एडीआरएम/इंफ्रास्ट्रक्चर राजीव अग्रवाल, जो इज्जतनगर में ही लंबे अरसे तक पहले डिप्टी सीई/कंस्ट्रक्शन, और फिर सीनियर डीईएन/समन्वय रहे तथा बाद में वहीं एडीआरएम बन गए, वह निष्पक्ष जांच नहीं होने देंगे, ऐसा यहां के कई जानकारों का कहना है।
जानकारों का कहना है कि वास्तव में इस कार्य में न तो वर्तमान सीनियर डीईएन/समन्वय का कोई दोष है, न ही किसी अन्य रेलवे कर्मचारी का। यह पूरा षडयंत्र एक ही व्यक्ति अर्थात वर्तमान एडीआरएम/इज्जतनगर राजीव अग्रवाल द्वारा अपने कदाचारी कार्यों को छिपाने के लिए किया गया है। इस पूरे प्रकरण में अन्य कोई दोषी नहीं है, क्योंकि राजीव अग्रवाल के एडीआरएम/इज्जतनगर रहते कोई भी जांच निष्पक्ष तरीके से होना संभव नहीं है। यह पत्र अजय कंस्ट्रक्शन के गोपनीय प्रतिनिधि द्वारा ही उपलब्ध कराए गए हैं। उसका कहना है कि एडीआरएम/इज्जतनगर राजीव अग्रवाल ने स्वयं को बचाकर सबको फंसा दिया।
अपनी पहुंच और उच्च संपर्कों से लोगों को गलत काम करने पर विवश कर देते हैं राजीव अग्रवाल:
एडीआरएम/इज्जतनगर राजीव अग्रवाल अपनी पहुंच और उच्च संपर्कों के चलते लोगों को प्रभावित कर गलत कार्य करने पर विवश कर देते हैं। मेसर्स अजय कंस्ट्रक्शन का एक टेंडर – जिसमें कार्य अधूरा छोड़ा गया – में फर्म मालिक अजय अग्रवाल को काफी बड़ा नुकसान हो रहा था। वह टेंडर ₹50,000/- की पेनाल्टी लगाकर क्लोज कर दिया गया, जबकि नियम और जीसीसी की कंडीशंस के अनुसार कोई भी कार्य 99% भी पूरा कर लिया जाए और अगर एक प्रतिशत भी कार्य बचा हो तो उस कार्य को पूर्ण नहीं माना जा सकता। उस टेंडर को पार्ट टर्मिनेट किया जाता है। नियमानुसार अगर यह टेंडर पार्ट टर्मिनेट किया जाता तब ₹40 लाख की पेनाल्टी लगती, न कि ₹50,000/- की। इससे संबंधित भी दोनों पत्र उपलब्ध हैं।
राजीव अग्रवाल के विरुद्ध पीएमओ को लिखा गया था शिकायती पत्र:
राजीव अग्रवाल के संबंध में एक शिकायती पत्र मेसर्स नरेंद्र देव द्वारा 31.10.2022 पीएमओ को लिखा गया था। इसमें पीएमओ द्वारा कमेटी गठित कर आर्बिट्रेशन कर दिया गया, जिसमें ठेकेदार को वास्तविक ₹62 लाख का भुगतान रेलवे ने बाद में किया। यह भुगतान भी तब संभव हो पाया, जबकि राजीव अग्रवाल इज्जतनगर कंस्ट्रक्शन आफिस से डिप्टी चीफ इंजीनियर की पोस्ट से ट्रांसफर कर दिए गए। अगर राजीव अग्रवाल के डिप्टी सीई/सी रहते तो यह भुगतान संभव नहीं था, क्योंकि ये भुगतान जानबूझकर राजीव अग्रवाल द्वारा नहीं किया गया था। अगर ₹62 लाख का भुगतान रेलवे द्वारा बाद में आर्टिबिट्रेशन के माध्यम से किया गया, तो यह भुगतान पहले नियमानुसार क्यों नहीं किया गया? यह गहन जांच और दंड तय करने का विषय है।
रेलवे के लैंड प्लान से हटा दी गई सेमीखेड़ा की रेलवे लैंड:
इसके अलावा रेलवे की एक जमीन, जो कि सेमीखेड़ा, बरेली में है, उसे रेलवे के लैंड प्लान से हटा दिया गया। इस मामले के संज्ञान में आने पर प्रमुख मुख्य इंजीनियर द्वारा रेलवे को कब्जा दिलवाने के लिए पत्र लिखा गया, लेकिन राजीव अग्रवाल ने उसमें भी हीलाहवाली की। प्रमुख मुख्य इंजीनियर द्वारा तत्परता से मंडल रेल प्रबंधक को पत्र लिखकर लगभग 50 करोड़ की संपत्ति पर रेलवे को दोबारा कब्जा मिला। इसमें राजीव अग्रवाल की कितनी सहभागिता थी, यह जांच का विषय है परंतु इस संबंध में जो पत्राचार रेलवे द्वारा किया गया है, वह दर्शाता है कि राजीव अग्रवाल ने जानबूझकर हीलाहवाली की।
एक हजार करोड़ की रेलवे लैंड की बंदरबाट:
एक मामला संज्ञान में यह भी आया है कि पूर्वोत्तर रेलवे में लगभग एक हजार करोड़ की रेलवे लैंड की बंदरबाट की गई है। रामगंगा पर रेलवे की जमीन रेलवे ने छोड़ी है तथा अपने लैंड प्लान से भी हटा दी है, जबकि भू-राजस्व के अभिलेखों में रेलवे के नाम खतौनी में दर्ज है। यही मामला सेमीखेड़ा, बरेली में भी रेलवे की जमीन के मामले में था। अगर रेलवे के अधिकारियों ने निष्पक्ष जांच की गई, तो करोड़ों रुपये की रेलवे संपत्ति रेलवे को वापस मिल सकती है।
इस कार्रवाई से रेलवे को करोड़ों के राजस्व का मुनाफा होगा। इस अत्यंत गंभीर मामले में गहन जांच आवश्यक है। इस संबंध में सारे दस्तावेज भी उपलब्ध हैं लेकिन राजीव अग्रवाल के एडीआरएम/इज्जतनगर रहते इज्जतनगर मंडल में निष्पक्ष जांच कतई संभव नहीं है, क्योंकि राजीव अग्रवाल अपनी पहुंच और उच्च संपर्कों के चलते जांच प्रभावित करते हैं और जो भी अधिकारी जांच के लिए आते हैं, वह उनसे कनिष्ठ होते हैं। अतः यह जांच या तो इंटर-रेलवे विजिलेंस को सुपुर्द की जाए, या फिर यह पूरा मामला सीबीआई को सौंपा जाना चाहिए। क्रमशः जारी..