इज्जतनगर मंडल: फर्म को फेवर करने के चक्कर में अपने दायित्वों को भूल गए अधिकारी!
रेलवे के नियमों को दरकिनार कर अधिकारियों ने विजिलेंस एडवाइस को रखा ताक पर, विजिलेंस अधिकारी हुए किंकर्तव्यविमूढ़!
कूटरचित शपथपत्र, अवैध पार्टनरशिप डीड, गलत/असामान्य फाइनेंशियल एवं टेक्निकल क्रेडेंसियल पर टेंडर हस्तगत करने वाली फर्म के साथ स्वयं को बचाने में लगे अफसरों का प्रहसन
स्वयं के अपराध की जांच स्वयं करना अर्थात स्वयं के अपराध का जज बनना है। यह प्रहसन पूर्वोत्तर रेलवे के इज्जतनगर मंडल में हो रहा है। नीचे स्तर पर यह कृत्य इसलिए संभव हो रहे हैं, क्योंकि ऊपर स्तर पर रेल का शीर्ष नेतृत्व अपने हित साधन में व्यस्त है। यह इसलिए भी संभव हो रहा है, क्योंकि लंबे समय से अधिकांश अधिकारी और कर्मचारी न केवल एक ही जगह टिके हुए हैं, बल्कि उसी जगह कई-कई प्रमोशन ले चुके हैं। व्यवस्था में भ्रष्टाचार जिस तरह फल-फूल रहा है, उससे इसके विरुद्ध प्रधानमंत्री मोदी जी की ‘जीरो टॉलरेंस’ की कर्णप्रिय बात एक मजाक बनकर रह गई है! प्रस्तुत प्रकरण इस बात का भी प्रमाण है कि अधिकांश अधिकारी रेल-हित में नहीं, स्व-हित में रेल को लूटकर देश और व्यवस्था दोनों को बरबाद कर रहे हैं!
गोरखपुर ब्यूरो: रेलवे में कमीशनखोरी की कई अफसरों को ऐसे लत लग गई कि नियम कायदों की धज्जियां उड़ा दी हैं। टेंडर देने से लेकर फर्म को भुगतान करने तक नियमों की जमकर अनदेखी की जा रही है। ई-टेंडर खोले जाने के बाद फर्म विशेष से कागजात लेकर फाइल में लगाकर फर्म विशेष को टेंडर आवंटित किए जा रहे हैं, जबकि ई-टेंडर खोलने के बाद टेंडर में कोई कागजात लगाना सर्वथा गलत और नियम विरुद्ध है।
किसी टेंडर की वैधता सामान्य रूप से तब तक बढ़ाई जा रही है जब तक कमीशनखोर अधिकारी को कमीशन नहीं मिल जाता है। मोटा कमीशन लेकर नियम विरुद्ध टेंडर दिए जा रहे हैं। इतना ही नहीं फर्जीवाड़ा पकड़े जाने पर फर्म को बचाने के लिए भी कमीशनखोर अफसरों ने पूरी ताकत झोंक दी है।
इसके अलावा, कार्रवाई से बचने के लिए इन अफसरों ने जांच लंबित करा दी। इन सबके बीच चहेती फर्म को भुगतान भी कर दिया। इस मामले की शिकायत भी हो चुकी है। सीबीआई जैसी संस्था से मामले की जांच हो तो कई अफसरों की करतूत सामने आ जाएगी।
अजय कंस्ट्रक्शन बरेली के पांच टेंडर को टर्मिनेट किया गया था। आरोप है कि अजय कंस्ट्रक्शन ने टेंडर लेने के लिए जालसाजी की थी। फर्म ने अपने ऑफर के साथ फर्म की अवैध पार्टनरशिप डीड, गलत/असामान्य फाइनेंशियल और टेक्निकल क्रेडेंशियल जमा किया था। इन पांचों टेंडर के कारनामों (एग्रीमेंट्स) का विवरण इस प्रकार है-
1. Agreement no. E/25/TC, dtd. 31.05.2018.
2. Agreement no. E/64/TC, dtd. 17.10.2018.
3. Agreement no. E/68/TC, dtd. 23.10.2018
4. Agreement no. E/125/TC, dtd. 04.03.2019
5. Agreement no. E/60/TC, dtd 18.11.2019.
जब शिकायत हुई, तो अजय कंस्ट्रक्शन के दस्तावेजों की जांच की गई। रेलवे विजिलेंस की 10 मार्च 2022 की जांच रिपोर्ट में पता चला कि अजय कंस्ट्रक्शन की तरफ से फर्म की गलत एवं अमान्य पार्टनरशिप डीड लगाई गई थी। विजिलेंस जांच में उपरोक्त सभी आरोप सही पाए गए थे।
जांच में अजय कंस्ट्रक्शन के दस्तावेजों में कई तरह की खामी पाई गई और करवाई के लिए लिखा गया था। साथ ही सभी पांच टेंडरों को टर्मिनेट करने को कहा गया था। अफसरों ने यहीं से खेल करना शुरू कर दिया। अपनी चहेती फर्म को फंसता देखकर कमीशनखोर अफसरों ने नियमों को ताक पर रख दिया और मनमानी पर उतारू हो गए।
अजय कंस्ट्रक्शन पर कार्यवाही करना तो दूर, उसका भुगतान तक नहीं रोका गया। उसके बिल पास कर दिए गए और उसका करोड़ों रुपए का भुगतान कर दिया। यह सारा घालमेल विजिलेंस की रिपोर्ट देखने के बाद संबंधित अधिकारियों द्वारा किया गया।
विजिलेंस ने अपनी जांच में अजय कंस्ट्रक्शन का व्यापार बंद करने के लिए लिखा था, जिसे ‘बैनिंग ऑफ बिजनेस’ कहा जाता है। अफसरों ने यह भी नहीं किया और रेलवे बोर्ड को पत्र लिखकर मामले में दिशा-निर्देश मांग लिया, जो एक तरह से इस मामले को लटकाने जैसा ही है।
अधिकारियों की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह
इस पूरे प्रकरण में कई अफसरों की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। इसमें एडीआरएम राजीव अग्रवाल का भी नाम शामिल है। उल्लेखनीय है कि राजीव अग्रवाल पहले यहीं इज्जतनगर मंडल में ही सीनियर डीईएन कोऑर्डिनेशन हुआ करते थे, उस समय जांच के आधार पर विजिलेंस के निर्देशानुसार अजय कंस्ट्रक्शन के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई थी।
राजीव अग्रवाल बैनिंग ऑफ बिजनेस की कार्यवाही से बचाने एवं अपनी चहेती फर्म को बचाने के लिए अपना पदस्थापन एडीआरएम इज्जतनगर के पद पर कराने में सफल हो गए। अब वहीं एडीआरएम हैं और इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट उन्हीं के अधिकार क्षेत्र में है। ऐसे में निष्पक्ष कार्रवाई होने पर संदेह स्वाभाविक है।
नियमानुसार अगर कोई अधिकारी/कर्मचारी, जिस पर भ्रष्टाचार में शामिल होने का आरोप हो, को तत्काल वहां से हटा दिया जाना चाहिए जहां भ्रष्ट कृत्य किए गए हैं, पर राजीव अग्रवाल के मामले में कई शिकायतें रेलवे बोर्ड स्तर पर तथा अन्य के अलावा स्थानीय सांसद द्वारा किए जाने पर भी राजीव अग्रवाल को इज्जतनगर से नहीं हटाया जा सका। जबकि इज्जतनगर में ही यह मुख्य इंजीनियर निर्माण तथा वरिष्ठ मंडल अभियंता समन्वय के पद पर लंबे समय तक रह चुके हैं।
एडीआरएम राजीव अग्रवाल के साथ ही अजय कंस्ट्रक्शन को बचाने में वर्तमान सीनियर डीईएन कोऑर्डिनेशन अरुण कुमार की भूमिका भी कटघरे में हैं। अजय कंस्ट्रक्शन के जो 5 टेंडर टर्मिनेट किए गए हैं, उसमें तीन टेंडर अरुण कुमार ने ही मंजूर किए थे। उस समय वह सीनियर डीईएन थे। उस समय फर्म के अमान्य दस्तावेज पर टेंडर कैसे मंजूर किए गए, यह महत्वपूर्ण प्रश्न है!
फर्म को बचाकर स्वयं को बचाने का प्रयास कर रहे हैं सीनियर डीईएन एवं एडीआरएम
स्वाभाविक रूप से कहा जा सकता है कि अरुण कुमार उस समय भी अपने सीनियर राजीव अग्रवाल के निर्देशों पर काम कर रहे थे। इस पूरे प्रकरण की जांच होने पर भ्रष्टाचार के इस पूरे खेल का गहराई से खुलासा हो सकता है। पूरे प्रकरण में ऐसा लग रहा है कि सीनियर डीईएन अरुण कुमार और एडीआरएम राजीव अग्रवाल दोनों अपने पुराने गलत कामों से बचने और फर्म को बचाने की कोशिश कर रहे हैं, और यही कारण है कि अजय कंस्ट्रक्शन के खिलाफ कार्रवाई को लटकाया जा रहा है। फर्म के विरुद्ध ‘बैनिंग ऑफ बिजनेस’ के आदेश को भी दबा दिया गया है और उस पर कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है।
यह भ्रष्टाचार यहीं तक नहीं रुका, अजय कंस्ट्रक्शन के ऊपर वर्णित 5 टेंडरों के अलावा अन्य तीन टेंडर को भी विजिलेंस ने फर्जी शपथ पत्र देने के कारण टर्मिनेट करने की अनुशंसा की थी, जिन्हें अक्टूबर 2022 में टर्मिनेट कर दिया गया था। विजिलेंस ने अपनी जांच रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख किया है कि फर्म का बिजनेस बैन करने की अनुशंसा की गई थी, जिस पर एसडीजीएम/सीवीओ, पूर्वोत्तर रेलवे, गोरखपुर का अनुमोदन भी प्राप्त है, लेकिन उस पर आज तक कोई कार्यवाही सुनिश्चित नहीं हुई।
फर्म को बचाने के लिए सीनियर डीईएन अरुण कुमार ने अपने ही दो कनिष्ठ कर्मचारियों एक ओएस और एक आईओडब्ल्यू की दो सदस्यीय कमेटी बना दी। इस कमेटी ने अपनी जांच रिपोर्ट में फर्म के शपथ पत्र को सही करार दिया एवं इसकी जांच तक नहीं की गई तथा टेंडर खोलने के बाद शपथ पत्र टेंडर फाइल में कैसे लगा दिया गया, यह अब तक अज्ञात है।
कमेटी की जांच रिपोर्ट पर उठे सवाल
दो कनिष्ठ कर्मचारी आईओडब्ल्यू और ओएस की कमेटी की जांच रिपोर्ट पर भी कई सवाल खड़े हो रहे हैं। यह भी कि इस निम्न स्तर की कमेटी का औचित्य क्या है? सीनियर डीईएन, एडीआरएम और डीआरएम स्तर के टेंडर और उनके डॉक्यूमेंट्स अथवा उनमें हुई गड़बड़ियों की जांच क्या इस स्तर की कमेटी करेगी? अर्थात यहां पूरी व्यवस्था का मजाक बनाकर रख दिया गया है।
इसी प्रकरण में स्टाम्प बेचे जाने के मामले में अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व बरेली ने 30 दिसंबर 2022 को एक आरटीआई के जवाब में टेंडर में लगे स्टाम्प को अन्य फर्म – पीएसीएल लि. – को बेचे जाने की बात कही है। इस पर सीनियर डीईएन कोऑर्डिनेशन ने अपने अधीनस्थ आईओडब्ल्यू और ओएस की रिपोर्ट पर मामले की जांच फॉरेंसिक विभाग को भेज दी। यह एक तरह से अजय कंस्ट्रक्शन को राहत देने जैसा रहा है, तथा यह जांच की दिशा को बदलने के लिए किया गया कृत्य है।
सवाल यह है कि पूर्व में जिन टेंडर्स को अरुण कुमार ने आवंटित किया, उनकी जांच कार्यवाही में अरुण कुमार को कैसे शामिल किया गया? इसका अर्थ यह है कि इस तरह चोर या आरोपी को ही उसके अपराध की जांच सौंपकर उसे उसके ही मुकदमे का जज बना दिया गया!
दबा दी गई मुकदमा दर्ज कराने की विजिलेंस एडवाइस
विजिलेंस ने अपनी जांच रिपोर्ट में अजय कंस्ट्रक्शन का शपथ पत्र और फर्जी स्टाम्प का मामला पाया। जांच में पता चला कि जो शपथ पत्र फर्म ने दिया था, उसके इस स्टाम्प की बिक्री किसी दूसरी फर्म – पीएसीएल – को की गई थी। इस बात का खुलासा जनसूचना अधिकार से हुआ। अपर जिलाधिकारी राजस्व ने अपनी रिपोर्ट में भी इसका उल्लेख किया है। ऐसे में यह साफ हो जाता है कि अजय कंस्ट्रक्शन ने जो शपथ पत्र लगाया था, वह कूटरचित अर्थात गलत था।
विजिलेंस ने अपनी जांच में इस बड़ी गड़बड़ी को पकड़ा था। साथ ही रिपोर्ट में अजय कंस्ट्रक्शन के खिलाफ विधिक कार्यवाही के लिए पर्याप्त आधार होने की बात कही थी, और लिखा था कि उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया जा सकता है। रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा है कि फर्म के खिलाफ पुलिस में एफआईआर कराने में कोई परेशानी नहीं है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अफसरों ने विजिलेंस की जांच रिपोर्ट को नजरअंदाज कर दिया, मुकदमा दर्ज कराना तो दूर, फर्म का भुगतान तक नहीं रोका।
अपनी करतूत छिपाने में जुटे हैं अफसर
दरअसल अजय कंस्ट्रक्शन के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ तो पूरे मामले में मिलीभगत करने वाले, मोटा कमीशन खाने वाले अफसरों की करतूत भी सामने आ जाएगी। फर्म को कूट रचित शपथ पत्र, अवैध पार्टनरशिप डीड और अमान्य फाइनेंशियल एवं तकनीकी क्रेडेंशियल लगाने के बाद भी टेंडर मिलना इतना आसान नहीं है। इसका अर्थ साफ है कि फर्म और अफसरों की मिलीभगत से यह सारा कांड हुआ है।
इस प्रकरण में अगर पुलिस में मुकदमा दर्ज किया गया होता, तो विवेचना होती और तब इस प्रकरण में शामिल अफसरों की गर्दन फंसने की भी संभावना बन जाती। इससे बचने के लिए रेलवे के अफसरों ने फर्म पर मुकदमा दर्ज नहीं कराया। अब प्रश्न यह है कि वर्तमान सरकार जो भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाने को दृढ़ संकल्प दिखाती है, क्या वह इन भ्रष्ट अधिकारियों एवं ठेकेदारों पर कठोर कार्यवाही करेगी? और अगर करेगी तो कब तक?
उपरोक्त पूरे प्रकरण से संबंधित समस्त आवश्यक दस्तावेजी प्रमाण #RailSamachar के पास सुरक्षित हैं।