पूर्व मध्य रेलवे निर्माण संगठन में भ्रष्टाचार ही अब शिष्टाचार बन गया है

ओपेन फाउंडेशन के मामले में आरडीएसओ और रेलवे बोर्ड के निर्देशों की खुली अवहेलना

टारगेट पूरा करने के नाम पर अपरोक्ष रूप से खुलेआम किया जा रहा है ठेकेदारों का फेवर

‘अन्य टेंडर में यह रेट रिस्ट्रिक्टेड है’ लिखकर दिए जा रहे हैं हाई रेट पर ठेकेदारों को टेंडर

निर्धारित प्रावधान को नजरअंदाज करके वेल/पाइल फाउंडेशन देकर ठेकेदारों को फायदा पहुंचाया जा रहा है

पूर्व मध्य रेलवे, निर्माण संगठन में कुछ खास ठेकेदारों के पक्ष में कम्पोजिट टेंडर जारी किए जाने की पक्की खबर ‘रेलवे समाचार’ को प्राप्त हुई है. जबकि इन कम्पोजिट टेंडरों से सम्बंधित कथित निर्माण कार्यों को किए जाने का वास्तविक समय एक-डेढ़ वर्ष बाद ही आ पाएगा. ऐसे में एक-डेढ़ साल पहले से यह टेंडर किए करने का क्या फायदा रेलवे को होने वाला है? और किसको अनुचित लाभ पहुंचाने का प्रयास किया गया है? यह सवाल तमाम फील्ड कर्मचारियों द्वारा पूछे जा रहे हैं.

इसके साथ ही कर्मचारियों का कहना है कि जो स्टोन डस्ट की आपूर्ति सीधे रेलवे वैगन से करवाई जा रही है, वह भी तकनीकी रूप से गलत है. उनका कहना है कि इस मामले में आरडीएसओ की गाइड लाइन की अवहेलना की जा रही है. फार्मेशन के ऊपर 30 सेमी. की लेयर (परत) बिछाने के लिए उस पर पानी डालकर कम्पेक्शन किए जाने का निर्देश है, फिर डायरेक्ट वैगन से ट्रैक बिछाकर स्टोन डस्ट डालने से इसका मानक फायदा नहीं मिलने वाला है. आने वाले समय में इस फार्मेशन की लेयर की मोटाई में कमी हो जाएगी और एक समान लेवल नहीं हो पाएगा, जिससे बरसात का पानी पॉकेट बन कर जमा होगा और फार्मेशन धंस जाएगा अथवा उसमें पम्पिंग डिफेक्ट पैदा होना लगभग तय है.

कर्मचारियों का कहना है कि टारगेट पूरा करने के नाम पर अपरोक्ष रूप से ठेकेदारों का खुलेआम फेवर किया जा रहा है. उनका कहना है कि सतर्कता संगठन का हाल तो यहां ‘सो गया यह जहां सो गई हैं सारी मंजिलें’ जैसा हो रहा है. उन्होंने कहा कि यहां कौन सुनेगा, किसको सुनाऊं, अगर कुछ कहता हूं, तो कोई भी आरोप लगाकर प्रशासन वापस विभाग की सेवा में भेज देगा.’ उन्होंने बताया कि कई ठेकेदारों के पक्ष में हाई रेट पर टेंडर दे दिए गए हैं और उनमें यह लिख दिया गया है कि ‘अन्य टेंडर में यह रेट रिस्ट्रिक्टेड है’, ऐसा क्यों? सीबीआई से ऐसे सभी टेंडरों की जांच होनी चाहिए. क्योंकि दिए गए टेंडर्स में लिखे गए लगभग सभी कारण फर्जी दर्शाए गए हैं और दर्शाए जा रहे हैं. इस तरह रेलवे को भारी आर्थिक नुकशान पहुंचाया जा रहा है और कई अच्छे ठेकेदारों को कार्य करने से वंचित किया जा रहा है, जिसे जांच एजेंसियों को तुरंत जांच करके बंद करवाना चाहिए.

कई कर्मचारियों का कहना है कि जब रेलवे बोर्ड का निर्देश (पत्र संख्या 2013/सीई-3/बीआर/ आरडीएसओ/मिस. दि. 15.09.2014) है कि नए निर्माण कार्यो में ओपेन फाउंडेशन को प्राथिमिकता देनी है, फिर जबरन वेल और पाइल फाउंडेशन क्यों टेंडर में डाले जा रहे हैं? उनका कहना है कि सरप्लस कम्पोजिट गर्डर स्टोर और प्लांट डिपो में उपलब्ध हैं, तो फिर साधारण गर्डर का उपयोग कर चैनल स्लीपर क्यों लगाकर करोड़ों रुपए का नुकशान किया जा रहा है? इन कर्मचारियों की मांग है कि जांच एजेंसियां और रेल मंत्रालय ऐसे सभी निर्माण कार्यों का सत्यापन करवाए. उनका कहना है कि राष्ट्रहित में यह तमाम धांधली अविलंब बंद होनी चाहिए और दो वर्ष से अधिक एक ही पद पर जमे निर्माण अधिकारियों का तुरंत अन्यत्र स्थानांतरण किया जाना चाहिए, क्योंकि लम्बे समय तक एक ही जगह बैठकर यह अधिकारी अपनी हिटलरशाही चला रहे हैं, जो कि रेलवे के हित में नहीं हैं.

ओपेन फाउंडेशन को एडॉप्शन करने के आदेश के बाबजूद पूर्व मध्य रेलवे, निर्माण संगठन द्वारा 7 अक्टूबर 2014 के बाद से आज तक इस उपरोक्त प्रावधान को सभी नए टेंडर्स में नजरअंदाज करते हुए वेल और पाइल फाउंडेशन ही ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने के लिए जबरन किया जा रहा है, वह भी अनावश्यक रूप से अधिक गहराई और मोटाई बढ़ाकर. इसके लिए मिट्टी की टेस्ट रिपोर्ट में व्यापक हेराफेरी भी की जा रही है.

इसके अलावा निर्माण अधिकारियों द्वारा ठेकेदार को देने के लिए समय अवधि का विस्तार अधिकतर टेंडर में नियम 17ए के तहत किया जा रहा है, वह भी तब जब ‘साहेब’ को ठेकेदार द्वारा खुश कर दिया जा रहा है, अन्यथा यह विस्तार प्रावधान 17बी में देकर ठेकेदारों से दोहन और धन या गिफ्ट मिलते ही फिर वही अधिकारी शब्दों का हेराफेरी करके उसे 17ए में कन्वर्ट कर देता है. यही खुला खेल फायदे वाले आइटम को 150% तक क्वांटिटी का वेरिएशन अनुमोदित करने में किया जा रहा है.

कर्मचारियों का कहना है कि कुछ अधिकारियों ने तो इस मामले में बेशर्मी की सारी हदें पार कर दी हैं. एक लाख से अधिक मासिक वेतन लेने वाले यह अधिकारी 4 स्टाफ अपनी निजी सेवा में बंगले पर और 2 स्टाफ साथ में ड्यूटी पर रखते हैं. इसके अतिरिक्त उन्हें गाड़ी की सुविधा भी मिली हुई है. इस तरह यह रेलवे का प्रतिमाह कम से कम यह 2 लाख रुपए से ज्यादा खर्च करते हैं, जबकि यात्रा भत्ता भी 80% फर्जी भर रहे हैं. फिर भी रेलवे के प्रति समर्पित या ईमानदार नहीं हैं. ऐसे अधिकारियों को तो भगवान भी कभी माफ नहीं करेगा.

यदि कोई ठेकेदार टेंडर की शर्तों के तहत किए गए समय करार के अनुसार निर्धारित समयावधि में निर्माण कार्य पूरा नहीं कर पाता है, तो उसे रेलवे की तरफ से 17ए के अंतर्गत और यदि ठेकेदार अपनी लापरवाही अथवा मैनपावर की कमी के चलते समय पर कार्य समाप्त नहीं कर पाता है, तो आर्थिक दंड के साथ उसे आगे कार्य करने के लिए समय विस्तार दिया जाता है. लेकिन भ्रष्टाचार के तहत ठेकेदार की लापरवाही को छुपाकर रेलवे द्वारा समयानुसार मेटेरियल की अनुपलब्धता और प्राकृतिक आपदा आदि का कारण दर्शा कर प्रशासनिक आधार पर ठेकेदार को समय विस्तार दे दिया जाता है.

कर्मचारियों का कहना है कि बिल क्लर्क, एस्टिमेटर, निरीक्षक और अन्य जो भी टेंडर करने तथा इन सभी कार्यों को निष्पादित करके उनका भुगतान करते हैं या करवाने में शामिल हैं, ऐसे सभी पदों पर कार्य कर रहे कर्मचारियों का भी अविलंब अन्यत्र स्थानांतरण किया जाना रेलवे के हित में होगा.

कर्मचारियों का यह भी कहना है कि महाप्रबंधक, पूर्व मध्य रेलवे और मुख्य प्रशासनिक अधिकारी/निर्माण, यह दोनों सक्षम और उच्च अधिकारी यह कार्य करने और कराने में सक्षम हैं. अतः रेलवे हित में इसे कराया जाना चाहिए. साथ ही पूर्वोत्तर रेलवे और पूर्व रेलवे के कर्मचारियों की सेवाएं उन्हें वापस की जानी चाहिए, क्योंकि नियम के विरुद्ध अभी भी 3 से 4 तदर्थ पदोन्नतियों के साथ लगभग मुफ़्त में बिना योग्यता के ये कर्मचारी वेतन ले रहे हैं.

कर्मचारियों का कहना है कि यहां जितना ज्यादा गहराई में जाया जाएगा, उतना ही ज्यादा भ्रष्टाचार का पर्दाफाश होता जाएगा. यहां बहुत बड़े पैमाने पर गड़बड़ी है. अधिकारियों द्वारा सरकारी गाड़ी का उपयोग अधिकतर आपनी फैमिली के लिए ही किया जा रहा है. मुख्यालय में रहते हुए भी 8 किलोमीटर से अधिक ड्यूटी दर्शा कर यात्रा भत्ता मुफ़्त में लिया जा रहा है. साथ ही रोड व्हीकल, जिस पर अधिकतर इनकी फैमिली ही घूमती रहती है, का जस्टिफिकेशन भी फर्जी बनाया जाता है. इस तरह पूर्व मध्य रेलवे में भ्रष्टाचार ही अब शिष्टाचार बन गया है. जबकि अधीनस्थों को दुत्कार, फटकार, शोषण हो रहा है मगर ठेकेदारों के नाम पर अधिकारियों का प्यार ही प्यार बरस रहा है. यही पूर्व मध्य रेलवे के निर्माण विभाग का असल सत्य है.

क्रमशः