रेलवे के प्रत्येक इंजीनियरिंग कार्य का भौतिक/जमीनी सत्यापन अनिवार्य बनाया जाए

1. नई रेल लाइन के सर्वेक्षण कार्य में सर्वप्रथम इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि रेलवे स्टेशनों का निर्माण वहीं किया जाए, जहां नजदीकी सड़क तथा घनी आबादी पास में हो, ताकि अधिकतम लोग आसानी से स्टेशन पहुंच सकें और उसका उपयोग कर सकें. रेलवे को भी इसका आवश्यक रिटर्न तभी मिल सकेगा.

2. जमीन अधिग्रहण पूर्णरूप से हो जाने और रेलवे को उसका हैंडओवर मिल जाने के बाद ही ब्लैंकेट मटीरियल के साथ सर्वप्रथम फॉर्मेशन बनाने का टेंडर करके कार्य प्रारम्भ किया जाना चाहिए. शुद्ध रूप में केवल फार्मेशन और ब्लैंकेट का टेंडर होना चाहिए. उसे कम्पोजिट टेंडर के रूप में कन्वर्ट नहीं होने दिया जाए. सामान्यतः 30 किमी. लम्बाई और 5 मीटर ऊंचाई का निर्माण कार्य पूरा करने में कम से कम 5 वर्ष का समय लगता है. ऐसे में फार्मेशन का कार्य फिनिशिंग स्टेज पर पहुंचने से पूर्व स्टेशन बिल्डिंग, स्टाफ क्वार्टर और छोटे-बड़े पुलों को बनाने के लिए अनावश्यक रूप में राष्ट्र का कीमती धन 4 साल पहले से ठेकेदार को दे दिया जाता है. इस तरह कांक्रीट की सर्विस लाइफ 4 साल बिना रेलवे के उपयोग के ही समाप्त हो जाती है. इसके साथ ही रेलवे राजस्व की कुल राशि का भी ब्याज या रिटर्न शून्य होता है. वित्तीय औचित्य के सिद्धान्त का कड़ाई से पालन और कार्य का भौतिक सत्यापन तथा दंड का प्रावधान होने से रेलवे को करोड़ों की बचत को सुनिश्चित किया जा सकता है.

3. कम्पोजिट टेंडर कर दिए जाने से अनावश्यक रूप से रेलवे प्रोजेक्ट की लागत (कॉस्ट) बढ़ जाती है. साथ ही फार्मेशन के अलावा अन्य निर्माण कार्य बाद में ही वास्तविक रूप से शुरू हो पाते हैं, जैसे मेजर और माइनर ब्रिजों का निर्माण, सेंटर लाइन की शुद्धता और रेलवे लाइन की गोलाई (कर्व) के अनुसार होना चाहिए. इसके साथ स्टेशन बिल्डिंग और स्टाफ क्वार्टर्स का निर्माण भी प्रोजेक्ट के वास्तविक रूप से ओपन होने से 18 महीने पहले किया जाना चाहिए.

4. मेजर रेलवे ब्रिज को जबरन गर्डर ब्रिज में कन्वर्ट करके उसमें लोहे का स्लीपर लगाने से बचना चाहिए. बरसात के पानी या नदी में ओवर फ्लो होने के बाद फार्मेशन या बांध के दोनों तरफ जहां जल जमाव होता है, वहां आरसीसी स्लैब या प्रीकॉस्ट आरसीसी ब्रिज बनाया जाना चाहिए. बहुत आवश्यक हो, तो ही कम्पोजिट गर्डर को उपयोग में लाना हमेशा रेलवे हित में होता है, और है भी. इस तरह का प्रावधान होने से रेलवे की करोड़ों की बचत को सुनिश्चित किया जा सकता है.

5. मेजर रेलवे ब्रिज को जबरन गर्डर ब्रिज और लोहे के स्लीपर के साथ तथा छोटे ब्रिज को जबरन मेजर ब्रिज में कन्वर्ट करके उसे गर्डर ब्रिज या अधिक स्पैन में बनाने के प्रायोजित तरीकों से ठेकेदार के फेवर में निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए. इसके साथ ही ऐसे सम्बंधित निर्माण टेंडर करने वाले अधिकारियों के विरुद्ध किए गए निर्माण का भौतिक सत्यापन करके कड़े विभागीय दंड का प्रावधान होना चाहिए.

6. बिना फार्मेशन के निर्माण कार्य और उसके कम्पलीट हुए बिना अनावश्यक रूप में फर्जी समय और कार्य की आवश्यकता या अन्य तरीकों से स्टेशन बिल्डिंग, स्टाफ क्वार्टर्स और छोटे-बड़े पुलों का एडवांस टेंडर का औचित्य तथा सभी निर्माण कार्यों का भैतिक सत्यापन कराकर उस अवधि का खर्च या इस मद में भुगतान की गई राशि के औचित्य की जांच और दंड का प्रावधान सम्बंधित रेल अधिकारियों के विरुद्ध होना अत्यंत आवश्यक है. रेलवे सतर्कता संगठन एवं सीवीसी को इसे सुनिश्चित करना चाहिए. इसके साथ ही सीबीआई को भी इस तरह की सूचनाएं इकठ्ठा करके स्वतः कार्रवाई करने की छूट दी जानी चाहिए, जिससे उसे ऐसे मामलों में लिखित शिकायत मिलने का इंतजार न करना पड़े.

7. इंजीनियरिंग मैन्युअल के कोड क्रमांक आईएस-456:10.1.2 के अनुसार फील्ड में क्वालिटी एसुरेंस मेजर्स की शत-प्रतिशत सुनिश्चितता सम्बंधित अधिकारी और निरीक्षक की उपस्थिति में होनी चाहिए. फील्ड में कांक्रीटिंग के समय एक गैर-जानकर और मामूली खलाशी को रखकर अपरोक्ष रूप से ठेकेदार को मदद पहुंचाई जाती है. इसके लिए किए जा रहे निर्माण कार्य का मेजरमेंट रिकॉर्ड इंजीनियरिंग कोड की क्रम संख्या 1315-1316 के अनुसार सहायक अभियंता (एईएन) या कार्यपालक अभियंता (एक्सईएन) द्वारा किया जाना सुनिश्चित किया जाना चाहिए, ताकि 100% टेस्ट चेक डिप्टी चीफ इंजीनियर करे, तभी क्वॉलिटी लगभग 100% तक सुनिश्चित हो सकेगी. अभी की प्रचलित कार्य-प्रणाली के अनुसार डिप्टी चीफ इंजीनियर क्वालिटी के लिए अपने अधीनस्थ को इसकी जांच में जिम्मेदार ठहराकर खुद बच निकलते हैं. सतर्कता विभाग भी इस पर ध्यान नहीं देता है. इसीलिए अधीनस्थ से ठेकेदार के पक्ष में बिना पूरे हुए (अनफिनिश्ड) निर्माण कार्य का बार-बार बिल भुगतान करवाने की परंपरा बनी हुई है.

8. फार्मेशन निर्माण कार्य प्रारम्भ होने से पूर्व जीटीएस मैप के अनुसार फ्लाई लेवल के सहारे बेंचमार्क को निर्धारित करते हुए यह शुद्धता के अनुरूप होना जरुरी है, ताकि अनावश्यक फार्मेशन हाइट बनाने से बचा जा सकेगा. तब ठेकेदार को भी वास्तविक कार्य के अनुरूप ही बिल भुगतान हो पाएगा. प्रत्येक 30 सेमी. की लेयर वाली मोटाई का कम्पैक्शन वास्तविक रूप से सुनिश्चित होना जरूरी है. तभी उक्त मापन को अंकित करके ठेकेदार का भुगतान किया जाना चाहिए. कम्पैक्शन नहीं होने से बलास्ट पंचिंग होती है और उससे अनावश्यक खर्च बढ़ता है तथा रेलवे को इससे ज्यादा वित्तीय हानि होती है.

9. कम से कम पांच साल के ओपन लाइन में रेगुलर ड्यूटी के अनुभव के बाद ही निर्माण विभाग में किसी कर्मचारी या अधिकारी की पदस्थापना होनी चाहिए, तभी निर्माण कार्यों में गुणवत्तापूर्ण शुद्धता को सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी. उदाहरण के लिए पूर्व मध्य रेलवे, निर्माण विभाग में कुल 188 कार्य निरीक्षक पदस्थापित करके रखे गए हैं, जिसका कोई औचित्य नहीं है. जबकि यहां चल रहे सभी प्रकार के निर्माण कार्यों की देखरेख के लिए बमुश्किल 60 से 70 कार्य निरीक्षकों की ही वास्तविक आवश्यकता है. साथ ही अन्य कई अक्षम कर्मचारियों को एडहाक पदोन्नति भी जातिगत नेक्सस के तहत दी गई है. जबकि सचाई तो यह है कि निर्माण संगठन, पूर्व मध्य रेलवे में 60% अधिकारी और 40% कर्मचारी बिना काम के ही मुफ्त वेतन और अन्य तमाम सुविधाओं का लाभ ले रहे हैं और राजभोग कर रहे हैं, क्योंकि उनके पास कोई काम नहीं है. और जो काम है, वह वे करते नहीं हैं.

10. रेलवे को अपनी ट्रैक मशीनों के बेहतर उपयोग और आउटपुट को भी सुनिश्चित करना चाहिए, जिससे करोड़ों के टेंडर्स के माध्यम से करवाई जा रही दूसरी-तीसरी पैकिंग और बलास्ट बॉक्सिंग के आइटम को टेंडर्स से डिलीट करने में आसानी तो होगी ही, जबकि इससे न सिर्फ कार्य की बेहतर गुणवत्ता सुनिश्चित हो सकेगी, बल्कि बड़ी मात्रा में रेल राजस्व की भी बचत होगी.

11. अब तक सभी जोनल रेलवे में रेलों का पैनल में फ्लश बट वेल्डिंग प्लांट में प्रोडक्शन किया जाता रहा है. कुछ दिनों से यह काम भी ठेकेदारों को बहुत हाई रेट पर दिए जाने का चालन शुरू हो गया है. सम्बंधित ठेकेदार यह महत्वपूर्ण और रेल संरक्षा से जुड़ा काम समय से नहीं कर पा रहे हैं. इसके अलावा इस विशेष कार्य का अनुभव भी बहुत कम ठेकेदारों को है. अतः रेलवे को अपनी ऑन ट्रैक फ्लश बट वेल्डिंग मशीन खरीद लेना ही हमेशा के लिए फायदेमंद होगा.

12. इंजीनियरिग कोड का पालन करते हुए एईएन/एक्सईएन ही मेजरमेंट बुक भरें और डिप्टी चीफ इंजीनियर (डिप्टी सीई) शत-प्रतिशत टेस्ट चेक करें, तभी निर्माण कार्यों की 100% गुणवत्ता सुनिश्चित हो सकेगी. इसे वास्तविक रूप से अमल में लाना सर्वथा रेल हित में होगा. पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे (एनएफआर) सहित कुछ अन्य जोनल रेलों में इस प्रावधान का पालन किया जा रहा है. अतः इसे न सिर्फ रेलवे के सभी छोटे-बड़े निर्माण कार्यो में अनिवार्य रूप से लागू किया जाना चाहिए, बल्कि सभी जोनल रेलों में भी समान रूप से इस पर अमल किया जाना चाहिए.

13. गाइड बांध बनाने के कार्य में उसके औचित्य क्षेत्र में ही उसे समाप्त किया जाना चाहिए, न कि ठेकेदार और खुद के अनुचित फायदे के लिए सरकारी धन का दुरुपयोग करते हुए उसकी लम्बाई-चौड़ाई और ऊंचाई में बढ़ोत्तरी कर देनी चाहिए. बोल्डर पिचिंग केवल नदी की धारा की तरफ ही हो, यह सुनिश्चित किया जाना बहुत जरूरी है. हाई फ्लड लेवल से अधिक ऊंचाई में निर्माण करने का निर्णय लेना सिर्फ रेलवे का कीमती पैसा बरबाद करना है, जबकि तकनीकी तौर पर इसका कोई औचित्य नहीं है. इस तरह के अनावश्यक निर्णय लेने वाले और कमीशनखोरी के धंधे में लिप्त सम्बंधित अधिकारियों के विरुद्ध कठोर दंड का प्रावधान किया जाना चाहिए.

14. मिट्टी की ‘अल्टीमेट बियरिंग कैपिसिटी एवं गुणवत्ता’ की जांच का सत्यापन अनिवार्य रूप से होना चाहिए. क्योंकि रेलवे को इसका गलत डाटा दिखाकर ही ब्रिज, बिल्डिंग आदि के फाउंडेशन की गहराई-मोटाई और संख्या बढ़ाकर करोड़ों रुपए की बंदरबांट ठेकेदारों और अधिकारियों की मिलीभगत से लगातार की जा रही है. जानबूझकर गलत सैम्पल लेकर टेस्ट पूरा करवाया जाता है. इसका पुनः भौतिक सत्यापन होना चाहिए. इसके साथ ही टेस्ट पाइल को कांक्रीटिंग से पूर्व पूर्णतः मड पम्प से तब तक साफ किया जाए, जब तक कि साफ पानी आना दिखाई नहीं दे जाए. पाइल को फेल कराने के उद्देश्य से जानबूझकर कीचड़ रहते हुए कास्टिंग करके काम को फेल करा दिया जाता है, ताकि उसका डाया, गहराई और संख्या को बढ़ाया जा सके.

15. किसी भी निर्माण प्रोजेक्ट के टेंडर में उक्त निर्माण कार्य पूरा होने की दी जा रही समय-सीमा का सत्यापन और जिस निर्धारित समयावधि में कार्य पूरा किया जाना है, इसे सुनिश्चित करने की अत्यंत जरूरत है. उदाहरण के लिए पूर्व मध्य रेलवे अथवा अन्य किसी भी जोनल रेलवे में जिस निर्माण कार्य हेतु वर्ष 2008 में टेंडर किया गया था, वह कार्य अभी और अगले 2 साल तक पूरा होने की उम्मीद नहीं है. फिर भी इसकी समयावधि का विस्तार बार-बार किया जा रहा है. इसके औचित्य का सत्यापन और टेंडर करने वाले सम्बंधित अधिकारी के विरुद्ध दंड का प्रावधान जरूरी है. अनावश्यक रूप से डस्ट और बलास्ट की सप्लाई का टेंडर करने के साथ ही एडवांस में अन्य पी-वे मटीरियल की खरीदारी तत्काल प्रभाव से बंद किए जाने की अनिवार्य आवश्यकता है. अरबों रुपए का यह सामान पांच साल से भी अधिक वर्षों पहले से खरीदकर छोड़ दिया गया है. जहां 60 केजी की ही रेल चाहिए, और जहां 5 जीएमटी से अधिक और सीसी+8+2टी की गुड्स ट्रेन चलना अनुमानित है, वहां भी रेलवे बोर्ड के आदेश (पत्र संख्या 2007/सीई-II/टीएस/6/पीटी-II, दिनांक 16.05.2012) का अनुपालन सुनिश्चित नहीं किया जा रहा है. क्योंकि यहां पहले से ही 52 केजी का सरप्लस मटीरियल भरा पड़ा है. इस मामले में सुनिश्चित नीति का निर्धारण किया जाना चाहिए, ताकि रेलवे को हो रही भारी आर्थिक क्षति को कम किया जा सके.

16. रेल अधिकारियों द्वारा ठेकेदार भी बार-बार शोषित एवं प्रताड़ित न हो, और वह लिए गए टेंडर का काम भी समय पर पूरा कर दे, इसके लिए जरूरी है कि रेल प्रशासन यह सुनिश्चित करे कि जो कार्य वास्तविक रूप में होना है, उसी को दर्शाते हुए ही कोई भी टेंडर वास्तविक समय तथा वास्तविक दरों पर आधारित आइटम के अनुरूप ही किया जाए. न कि जो कार्य होना ही नहीं है, अथवा किसी ठेकेदार को मदद पहुंचाने और उसके माध्यम से व्यक्तिगत लाभ के हक में अधिकारियों द्वारा फालतू आइटम डालकर टेंडर की कॉस्ट बढ़ाना तथा अपना स्वार्थ साधना रेल हित में नहीं है. सम्बंधितों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई का प्रावधान होना चाहिए.

17. जमीन अधिग्रहण के समय भ्रष्टाचार, जातिगत ग्रुपिंग, नेताओं-अधिकारियों-इंजीनियरों के गठजोड़ के चलते रेलवे लाइन में अनावश्यक गोलाई (कर्व) नहीं बनाया जाए. पिछले दस सालों के दरम्यान बनीं सभी नई रेल लाईनों की जांच और सत्यापन किया जाना चाहिए. इसमें दोषी पाए जाने पर सभी सम्बंधित अधिकारियों को कठोर दंड दिए जाने का प्रावधान सुनिश्चित किया जाए, ताकि ऐसा करने से पहले सम्बंधित रेल अधिकारी सौ बार सोचें. ऐसा भ्रष्टाचार पूर्व मध्य रेलवे सहित नई बनीं करीब सभी जोनल रेलों में लगभग सभी नई रेल लाईनों के निर्माण में खूब हुआ है. अतः सभी नए रेलवे प्रोजेक्टों का ‘एल’ सेक्शन अनुमोदित करने से पूर्व उनका भौतिक सत्यापन/निरीक्षण अवश्य किया जाना चाहिए. इस सत्यापन/निरीक्षण के दौरान नोट में गोलाई (कर्व) देने का कारण लिखा जाए.

18. मिट्टी भराई का कार्य प्रारम्भ करने से पहले टीबीएम (अस्थायी बेंच मार्क) और रिकार्ड में लिए गए स्थायी बेंच मार्क (पीबीएम) के लेवल का संयुक्त सत्यापन और जांच सतर्कता संगठन द्वारा अनिवार्य रूप से कराते हुए अंतर पाए जाने पर सम्बंधितों के विरुद्ध कड़े दंड का प्रावधान होना चाहिए. रिकार्ड और ‘एल’ सेक्शन डायग्राम को जोनल मुख्यालय सहित रेलवे बोर्ड में, दोनों जगह एक साथ सुरक्षित रखने का प्रचलन अथवा प्रक्रिया तुरंत शुरू की जानी चाहिए. टीबीएम लेवल, फील्ड बुक, लेवल बुक में बार-बार डाटा बदलकर करोड़ों की हेराफेरी और भारी भ्रष्टाचार के तहत सम्बंधित रेल अधिकारियों द्वारा अवैध रूप से अकूत धनोपार्जन किया जा रहा है, जिससे राष्ट्र को अकल्पनीय आर्थिक क्षति हो रही है.

19. निर्माण कार्यों में ओपन फाउंडेशन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. ठेकेदार को अनावश्यक फायदा कराने के उद्देश्य से जबरन पाइल और वेल फाउंडेशन नहीं बनया जाना चाहिए. इससे धन का राष्ट्रीय अपव्यय हो रहा है.

20. भ्रष्टाचार के तहत ठेकेदारों को निर्माण कार्य देने के लिए एसएलटी यानि सिंगल लिमिटेड टेंडर का प्रपोजल बनाने में उक्त कार्य में लगने वाली वास्तविक समयावधि को कम से कम तीन गुना कम दिखाकर सम्बंधित अधिकारियों द्वारा सम्बंधित ठेकेदार को सर्वश्रेष्ठ ठेकेदार बताकर और उसे सिंगल टेंडर आवंटित करके तात्कालिक धनोपार्जन कर लिया जाता है. बाद में उक्त समयावधि को बार-बार विस्तार देकर और क्वांटिटी वेरिएशन करने के साथ ही उसमें अन्य अनावश्यक कार्यों को भी जोड़ दिया जाता है. इसमें भी भ्रष्टाचार के तहत धनोपार्जन किया जाता है. इसके अलावा बार-बार समयावधि विस्तार प्रशासनिक एकाउंट में क्लॉज 17(ए) जीसीसी के तहत दिया जाता रहता है, जबकि निर्धारित समय के बाद समयावधि विस्तार जीसीसी क्लॉज 17(ए) के अधीन ठेकेदार के एकाउंट में बिना पीवीसी (प्राइज वेरिएशन क्लॉज) फायदे के स्वीकृत किए जाने को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए, चूंकि सम्बंधित ठेकेदार ने निर्धारित समयावधि में ठेके (टेंडर) की शर्तों के तहत कार्य पूरा नहीं किया है. अतः उसे अर्थ दंड दिया जाना भी अनिवार्य किया जाना चाहिए.

20ए. इसके साथ ही इस तरह से टेंडर बनाने वालों से और उसे स्वीकार करने वाले अधिकारी से रेल मंत्रालय, रेलवे बोर्ड, जांच एजेंसी को उसके खिलाफ ओपन टेंडर नहीं करने के औचित्य, हाई रेट देकर फिजूलखर्ची किए जाने के औचित्य, फील्ड की सही-सही और वास्तविक सूचनाएं नहीं दर्शाने के लिए कार्रवाई करनी चाहिए, क्योंकि उक्त अधिकारी की इस प्रकार की लापरवाही और भ्रष्टाचार के चलते ही सिंगल लिमिटेड टेंडर दिए जाने से राष्ट्र को आर्थिक क्षति तथा दूसरे वास्तव में सर्वश्रेष्ठ ठेकेदारों को भी कार्य अधिकार से वंचित किया जाता है. जबकि उक्त कार्य ओपन टेंडर करने से कम दर पर हो सकता है. अतः उक्त धनराशि की फिजूलखर्ची कराए जाने का मामला बनता है, जिसके लिए दंड का प्रावधान किया जाना और ऐसे अधिकारियों को दंडित किया जाना अत्यंत आवश्यक है. कथावाचक के रूप में केवल कार्य करने वाले अधिकारियों को चिन्हित कर उनका शीघ्र स्थानांतरण सुनिश्चित किया जाना चाहिए.

21. सतर्कता संगठन में अधिकारियों और कर्मचारियों की बार-बार पदस्थापना और उनके कार्यकाल के समय में विस्तार के प्रचलन को तुरंत समाप्त किए जाने की जरूरत है, क्योंकि इस प्रचलन से ग्रुपिजम और कुछ कथित विरोधी पक्षों को टारगेट किए जाने को बढ़ावा मिलता है. ‘जीरो टॉलरेंस’ पर रेलवे में पीरियोडिकल ट्रांसफर अवधि सुनिश्चित की जानी चाहिए. रेलवे के निर्माण संगठनों में तीन साल में पद या कार्यालय में परिवर्तन आवश्यक किया जाए अथवा प्रोजेक्ट ड्यूटी कार्य परिवर्तित कर दिए जाने चाहिए.

22. रेल अधिकारियों के लिए बंगला बनाने की प्रथा को अविलंब बंद किया जाना चाहिए और उक्त जगह पर मल्टीस्टोरी बिल्डिंग बनाई जानी चाहिए. इससे कीमती जमीन का अनावश्यक दुरुपयोग होने से बचा जा सकेगा और रख-रखाव कार्य में काफी खर्च की भी बचत हो जाएगी. साथ ही कम्न्यूटी हॉल भी मल्टीस्टोरी बनाए जाएं और उन्हें रेलवे के बाहर के लोगों को भी किराया लेकर उपलब्ध करवाया जाए.

23. रेलवे के अंतर्गत यदि स्कूल/कॉलेज चलाए जाने हैं, तो इन्हें तुरंत सीबीएसई बोर्ड के अधीन लाया जाए और उसके अनुरूप नए स्कूल/कॉलेजों का निर्माण करवाया जाए तथा यूपीएससी के अधीन शिक्षकों की आरक्षण रहित नियुक्ति करवाते हुए सभी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करवाई जाए. ट्यूशन फी केवल उच्च शिक्षा के लिए ही दी जाए. रेलवे परिवार के बाहर के बच्चों/युवाओं का नामांकन उक्त स्कूल/कॉलेज में देकर वास्तविक फी ली जाए. इस तरह रेलवे द्वारा राष्ट्र के सामाजिक एवं शैक्षिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया जा सकता है.

24. ट्रैकमैन या खलासी के पद पर नियुक्ति 10वीं से अधिक पास युवाओं को न देकर उनकी जगह सामान्य ग्रामीण एवं पिछड़े/गरीब परिवेश से आने वाले युवाओं को मौका दिए जाए, जो वास्तव में रेलवे ट्रैक के लिए निर्धारित शारीरिक मेहनत का कार्य कर सकें. वैकेंसी के लिए निर्गत योग्यता में यह लिखा जाए कि 8 घंटा कड़ी शारीरिक मेहनत करने की योग्यता का यह पद कार्य है. क्योंकि अज्ञानतावश अधिकांश पढ़े-लिखे और उच्च शिक्षित युवा इन पदों पर नौकरी तो ज्वाइन कर लेते हैं, लेकिन वे इसके अनुरूप ड्यूटी और शारीरिक मेहनत नहीं कर पाते हैं. इस तरह रेलवे की संरक्षा-सुरक्षा प्रभावित हो रही है. यदि सुपरवाइजर या मेट इन पर निर्धारित कार्य करने का दबाव डालते हैं, तो ये एकजुट होकर उसके खिलाफ मोर्चा निकालते हैं, मारने का प्रयास या धमकी देते हैं. इसके उदाहरण स्वरूप हाल ही में सोनपुर मंडल, पूर्व मध्य रेलवे में सहायक अभियंता और पीडब्ल्यूआई के साथ ऐसे ही एक मामले में ऐसे ही लोगों द्वारा हाथापाई की गई है. इन पढ़े-लिखे लोगों से रेलवे का ट्रैक मेंटेनेंस कार्य नहीं हो रहा है, जबकि ऐसा भी देखा जा रहा है कि प्रतिमाह ड्यूटी नहीं करने के बदले या हल्की ड्यूटी मिलने की एवज में मोटी राशियों का लेनदेन हो रहा है.

25. पी-वे मिस्त्री और पर्यवेक्षक के पदों को पुनः बहाल करने की अत्यंत आवश्यकता है. इन पदों पर सीधी नियुक्ति को भले ही प्रतिबंधित कर दिया जाए, परंतु ट्रैकमैन से विभागीय (डिपार्टमेंटल) क्रमबद्ध पदोन्नति के साथ इन पदों को भरा जाए, ताकि उनके अनुभव का उपयोग ट्रैक के प्रचलित रख-रखाव और संरक्षा एवं सुरक्षा में किया जा सके. यह पद रेल संरक्षा और सुरक्षा के लिए अत्यंत जरूरी हैं. इन पदों को समाप्त करने के आदेश के बाद ट्रैक का रख-रखाव कार्य बहुत बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है, जिसका भविष्य में में बहुत घातक परिणाम ट्रेन दुर्घटनाओं में बढ़ोत्तरी के रूप में सामने आएगा.

26. सभी रेल कर्मचारियों और अधिकारियों को पीरियोडिकल ट्रेनिग कोर्ष आवश्यक रूप से कराए जाने को सुनिश्चित और अनिवार्य बनाया जाए, ताकि वर्तमान नियम और कार्य-प्रणाली का बेहतर उपयोग रेल में हो सके.

-प्रस्तुति : सुरेश त्रिपाठी