‘विभागवाद’ के बाद अब ‘समूहवाद’ में बरबाद होने के कगार पर भारतीय रेल

जेएस/स्टै./रे.बो. ने रेलमंत्री को फाइल प्रस्तुत किए बिना खुद ही तय कर लिया एंटी डेटिंग का नियम

ग्रुप ‘बी’ को एंटी डेटिंग का लाभ दिए जाने के विरुद्ध ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों ने कैट में दायर किए हैं मामले

ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों को थोक में प्रमोशन दिए जाने से पदोन्नति की दौड़ में पिछड़ गए हैं ग्रुप ‘ए’ अधिकारी

सीआरबी के स्पीकिंग ऑर्डर और मेंबर मैकेनिकल के नोट से मामला उलझा, दो खेमों में बंटा रेलवे बोर्ड

सुरेश त्रिपाठी

भारतीय रेल पर ‘विभागवाद’ हमेशा से हावी रहा है. इसके कारण रेलवे का बहुत नुकसान हुआ है. रेलवे में विभागवाद है, हमेशा रहा है, इस बात से रेलवे के सभी कैडर ऑफिसर्स न सिर्फ सहमत रहे हैं, बल्कि इसको वे पूरी तरह से स्वीकार भी करते हैं. अब इस कड़ी में‘समूहवाद’ (ग्रुप वाद) भी शामिल होने जा रहा है. क्योंकि जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों में ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों को वरीयता देते हुए उनके थोक में प्रमोशन हुए हैं और जिस तरह ग्रुप ‘ए’ के अधिकारी इस दौड़ में पिछड़ गए हैं, उससे अब यह दोनों ग्रुप आमने-सामने आ गए हैं.

ग्रुप ‘बी’ को पांच साल की एंटी डेटिंग और कुछ अन्य लाभ दिए जाने के विरुद्ध ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों ने विभिन्न केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल्स (कैट) में रेलवे के खिलाफ मामले दायर किए हैं. इस संदर्भ में हाल ही में मेंबर मैकेनिकल, रेलवे बोर्ड ने भी एक नोट जारी करके यह कहा है कि ग्रुप ‘बी’ को दी गई पांच साल की एंटी डेटिंग नियम विरुद्ध और ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों की प्रोन्नति को अवरुद्ध कर रही है.

समूहवाद की इस लड़ाई में जहां एक तरफ ग्रुप ‘ए’ अधिकारी अपने प्रति हुए कथित अन्याय के खिलाफ एकजुट हो गए हैं और जिस तरह उन्हें रेलवे बोर्ड के कुछ सदस्यों का भी समर्थन मिल रहा है, उसे देखते हुए दूसरी तरफ ग्रुप ‘बी’ के अधिकारी अपने अधिकार के प्रति सचेत तो हैं ही नहीं, बल्कि उनका संगठन (इंडियन रेलवे प्रमोटी ऑफिसर्स फेडरेशन) इस मामले में पूरी तरह उदासीन है, जबकि इसके पदाधिकारी पता नहीं किस गफलत में हैं. ग्रुप ‘बी’ को मिली सुविधा कहीं छिन न जाए, इसके लिए कुछ पूर्व पदाधिकारी न सिर्फ अपनी मुहिम चला रहे हैं, बल्कि इसके विरुद्ध उन्होंने रेलवे बोर्ड को एक ज्ञापन भी भेजवाया है.

उल्लेखनीय है कि 19 मार्च 2015 को ग्रुप ‘ए’ आईआरएसएसई अधिकारी आर. के. कुशवाहा ने चेयरमैन, रेलवे बोर्ड को एक विस्तृत ज्ञापन सौंपकर उसमें ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों को दी जा रही पांच साल की ‘एंटी डेटिंग’ को खासतौर पर गलत और नियम विरुद्ध बताते हुए इसे स्थापित भर्ती एवं पदोन्नति नियमों के प्रतिकूल बताया था और रेलवे बोर्ड से इस नीति पर पुनर्विचार किए जाने की मांग की थी. रेलवे बोर्ड ने श्री कुशवाहा के इस ज्ञापन पर कोई विचार नहीं किया और न ही उन्हें कोई समुचित उत्तर दिया. इसके बाद श्री कुशवाहा ने ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों के साथ पदोन्नति में किए जा रहे भेदभाव के खिलाफ पटना कैट में 1 अप्रैल 2015 को एक याचिका (ओ. ए. नं. 050/00260/2015) दाखिल कर दी. इसके साथ ही देश भर में कई अन्य कैट में भी कई अन्य ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों ने ऐसी याचिकाएं दाखिल की हैं.

श्री कुशवाहा के जिस ज्ञापन के जवाब में रेलवे बोर्ड ने कोई उचित कदम उठाना अथवा कोई समुचित उत्तर देना जरूरी नहीं समझा था, उसी को आधार बनाकर दाखिल की गई याचिका पर पटना कैट के आदेश पर चेयरमैन, रेलवे बोर्ड (सीआरबी) को छह पेज का लंबा ‘स्पीकिंग ऑर्डर’ देना पड़ा है. मेंबर मैकेनिकल के नोट सहित श्री कुशवाहा के ज्ञापन और सीआरबी के स्पीकिंग ऑर्डर की प्रतियां ‘रेलवे समाचार’ के पास मौजूद हैं.

श्री कुशवाहा ने 19 मार्च 2015 के अपने ज्ञापन में कहा है कि..

1. Regarding fixing inter-se seniority between direct recruits and promotee officers, as per DOPT’s guidelines, the date of sending of requisition for filling up of vacancies to the recuriting agency, i.e. UPSC in the case of direct recruits; whereas in the case of promotee the date on which proposal, complete in all respects, is send to UPSC/Chairman-DPC for convening of DPC to fill up of the vacancies through promotion would be the relevant date. Accordingly, the sending of the requisition to UPSC for IRSSE-2008 Batch vide Railway Board letter no. 2007/E(GR)/I/2/2, dated 11.07.2018 would be the date of seniority of IRSSE-2008 Batch i.e. 11.07.2008.

2. But 87 Group ‘B’ S&T officers (42 condidates for the panel year 2012-13 and 44 condidates for the panel year 2013-14) were inducted in to Group ‘A’ w.e.f. 08.05.2014 vide Railway Board letter no. E(O)/I/2014/SR-6/11, Dated 12.12.2014 and DITS of all 87 promote officers was given on 08.05.2009 (i.e. 5 years Weightage) and placed above the IRSSE-2008 Batch direct officers wrongly. While fixing of seniority of IRSSE-2008 Batch, the date of actual appointment was taken into consideration i.e. 14.12.2009. This is against the DOP&T’s guidelines and the judgement of Hon’ble Supreme Court in the case of N. R. Parmar.

3. The status of the induction of promotees and direct recruits into Group ‘A’ cadre of IRSSE during the last 7 years is furnished below..

Year     No. of direct recruits       No. of promotee
inducted into Group ‘A’
Indented        Joined          

2001        20                18              32
2002        07                05              135
2003        07                07              0
2004        07                07              39
2005        20                16              83
2006        20                18              0
2007        25                24              87
Total       106              95              376

As per Rule 4 of the recruitment Rule of DOP&T not more than 50% of the vacancies shall be filled up by Department Promotion Committee (DPC) by promotion of Group ‘B’ officers of Signal Engineering Department. But as per the above table, it is very clear the 376 promotee officers are promoted against 95 direct recruit officers (75:25) ratios, which is illegal and a violation of Recruitment Rule.

4. The illegal merging of two DPC Panels is a violation of DOP&T’s guidelines. This had led to sever aberrations and seniority affects the seniority and career prospects of direct recruits.

इसके बाद श्री कुशवाहा ने पटना कैट में दायर अपनी याचिका ओ. ए. नं. 050/00260/2015 में राहत (रिलीफ) की मांग करते हुए कहा है कि..

(i) That your Lordship may graciously be pleased to quash and set aside the impugned order dated 12.02.2014 passed by the Respondent No.4 as contained in annexure A/4 which is contrary to the order passed by Hon’ble Supreme Court of India in N. R. Parmar case as referred to above.

(ii) That your Lordship may further pleased to direct the respondents to recast the seniority a fresh on the basis of principle laid down by the Hon’ble Supreme Court of India in N. R. Parmar case without any further delay.

(iii) That the Respondents further be directed to grant all consequential benefits in favour of the applicant including promotion in JA Grade on the basis of his seniority as per the principle laid down by the Hon’ble Supreme Court of India in N. R. Parmar case without any further delay.

श्री कुशवाहा के उपरोक्त तथ्यों/तर्कों के जवाब में और पटना कैट के ऑर्डर पर सीआरबी ने अपने ‘स्पीकिंग ऑर्डर’ में वादी (श्री कुशवाहा) के ज्ञापन और ओ. ए. में दिए गए तमाम तथ्यों को नकार दिया है. सीआरबी ने अपने तर्कों के समर्थन में डीओपीटी के ओ. एम. दि. 04.03.2014, डीओपीटी ओ. एम. नं. 9/11/55/आरपी, दि. 22/29.12.1959, भारतीय रेल स्थापना नियमावली, खंड-1 (आईआरईएम/वॉल्यूम-1) के नियम 328, 336, 334-2ए एवं 2बी, ए. के. निगम बनाम सुनील मिश्रा मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय, दो-दो डीपीसी एक साथ कराए जाने के समर्थन में डीओपीटी ओ. एम. दि. 10.04.1989 के पैरा 6.4.1 एवं 6.4.4 आदि-आदि का हवाला दिया है.

इस संदर्भ में जानकारों का कहना यह है कि नियमानुसार दस साल की सर्विस के बाद पांच साल का वेटेज (एंटी डेटिंग) मिलता है. लेकिन जॉइंट सेक्रेटरी/स्टैब्लिशमेंट, रेलवे बोर्ड ने रेलमंत्री को फाइल प्रस्तुत किए बिना ही अपने स्तर पर यह तय कर लिया था कि जिस ग्रुप ‘बी’ अधिकारी का वेतन 18,950 रुपए हो जाएगा, उसको पांच साल की एंटी डेटिंग दे दी जाएगी. रेलवे में अधिकार के दुरुपयोग का यह अपने-आपमें एक अनूठा उदाहरण है, क्योंकि अन्य किसी भी केंद्रीय मंत्रालय अथवा अन्य किसी भी अन्य कैडर में आज तक ऐसा नहीं हुआ है कि किसी बाबू ने मंत्री को बताए बिना या उसकी संस्तुति लिए बिना ऐसा कोई निर्णय अपने स्तर पर लिया हो.

जॉइंट सेक्रेटरी/स्टैब्लिशमेंट, रेलवे बोर्ड की इस मनमानी के खिलाफ जब एफआरओए के तत्कालीन पदाधिकारियों ने आपत्ति दर्ज कराई, तब अपने इस मनमानी निर्णय पर जॉइंट सेक्रेटरी/स्टैब्लिशमेंट ने चुपके से तत्कालीन मेंबर स्टाफ की संस्तुति ले ली, मगर मेंबर स्टाफ मंत्री नहीं है और न ही हो सकता है, इसलिए इस पर मेंबर स्टाफ की संस्तुति का कोई अर्थ नहीं है, जब तक कि इस मनमानी निर्णय पर मंत्री की संस्तुति न हो, और मंत्री की यह संस्तुति आज तक इस नियम/निर्णय पर नहीं है. जानकारों का कहना है कि वर्ष 2003 के बाद से अब तक इस मनमानी नियम की वजह से ग्रुप ‘बी’ के सभी कैडर को मिलाकर लगभग ढ़ाई से तीन हजार ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों को ग्रुप ‘ए’ का लाभ देकर पदोन्नत किया जा चुका है. जबकि इनमें से 90 प्रतिशत अधिकारियों को न तो एक लाइन लिखनी आती है, और न ही इन्हें किसी कार्य/व्यवस्था का विश्लेषण बनाना आता है. उनका यह भी कहना है कि यही वजह है कि तमाम मंडलों में ब्रांच ऑफिसर्स के पदों पर कार्य कर रहे इन अधिकारियों के कारण ही लगातार रेल दुर्घटनाएं हो रही हैं.

उपरोक्त तथ्यों से जाहिर होता है कि इस मामले में कोई बहुत बड़ा झोल किया गया था. रेलवे बोर्ड ने इस मामले में तमाम नियम-कानून को तोड़-मरोड़कर इसका आधार वेतनमान को बना दिया. जबकि ऐसा नहीं हो सकता है. इसीलिए ग्रुप ‘बी’ को यह एंटी डेटिंग 2-3 साल में भी मिल जा रही है. जबकि दस साल की सर्विस के बाद पांच साल की एंटी डेटिंग दिए जाने का चालबाजीपूर्ण नियम खुद रेलवे बोर्ड ने ही बनाया है. यह मनमानी व्यवस्था सिर्फ रेलवे में ही लागू है, जो कि पूरी तरह से गैर-कानूनी और असंवैधानिक है, क्योंकि ऐसा कोई प्रावधान किसी अन्य केंद्रीय सरकारी विभाग अथवा सेंट्रल सिविल सर्विसेस में लागू नहीं है. जानकारों का कहना है कि यही वजह है कि रेलवे के ग्रुप ‘ए’ अधिकारी अन्य केंद्रीय विभागों के अपने समकक्ष अधिकारियों से दो-दो बैच पीछे हो गए हैं. उनका यह भी कहना है कि रेलवे बोर्ड बोर्ड स्तर पर हुआ यह एक बहुत बड़ा घोटाला है. इसकी सीबीआई जांच कराई जानी चाहिए.

जानकर बताते हैं कि यह मामला ग्रुप ‘ए’ बनाम ग्रुप ‘बी’ का है ही नहीं, क्योंकि रेलवे में ग्रुप ‘बी’ में सीधी कोई भर्ती नहीं होती है. वास्तव में यह मामला ग्रुप ‘ए’ बनाम ग्रुप ‘सी’ का है, जिसे एक सोची-समझी साजिश के तहत ग्रुप ‘ए’ के बराबर खड़ा किया जा रहा है. उनका कहना है कि जब कोई ग्रुप ‘सी’ कर्मचारी पदोन्नत होकर ग्रुप ‘बी’ में पहुंचता है, तब उसका बेसिक वेतनमान 15,600+ होता है. ऐसे में ग्रुप ‘बी’ अधिकारी को 26,320 रुपए के वेतनमान में पहुंचने के बाद पांच साल की एंटी डेटिंग का लाभ दिया जा सकता है. लेकिन जॉइंट सेक्रेटरी/स्टैब्लिशमेंट, रेलवे बोर्ड ने इस तथ्य को छिपाकर मात्र 18,950 रुपए के वेतनमान में ही मनमानी तरह से यह लाभ दिया है. इसमें स्पष्ट रूप से किसी साजिश की गंध आ रही है.

उपरोक्त परिप्रेक्ष्य में अब अदालत द्वारा क्या निर्णय दिया जाता है, इसका सभी संबंधितों को बड़ी बेसब्री से इंतजार है. परंतु जानकारों का मानना है कि रेलवे बोर्ड पहले जो गलती कर चुका है, उसको जायज ठहराने के लिए कहीं न कहीं से और कोई न कोई नियम खोजकर अपनी गलती को किसी भी स्थिति में तब तक स्वीकार नहीं करेगा, जब तक कि अदालत द्वारा सही फैसला नहीं आ जाता है. जानकारों का यह भी कहना है कि रेलवे बोर्ड हमेशा की तरह अपनी गलती न मानने की परंपरा का ही पालन कर रहा है. उनका कहना है कि वही डीओपीटी वर्षों पहले दोनों समूह (ग्रुप ‘ए’ एवं ग्रुप ‘बी’) के लिए 50:50 प्रतिशत कोटा तय कर चुका है. इसके स्पष्ट आदेश भी हैं. सीआरबी ने भी अपने स्पीकिंग ऑर्डर में इसका उल्लेख किया है. परंतु रेलवे बोर्ड ने आज तक ग्रुप ‘बी’ को उसका निर्धारित कोटा नहीं दिया है. जबकि यहां आईआरएएस (एकाउंट्स) एवं आईआरएसएसई (एसएंडटी) कैडर में यह कोटा 75 प्रतिशत तक जा पहुंचा है.

यह तो स्पष्ट है कि जब पांच साल की एंटी डेटिंग ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों को दी गई है, तब इसे जॉइंट सेक्रेटरी/स्टैब्लिशमेंट, रेलवे बोर्ड के उपरोक्त चालबाजीपूर्ण और असंवैधानिक नियम के हवाले से ही दिया गया है. जैसा कि सीआरबी ने भी अपने स्पीकिंग ऑर्डर में प्रमाणित करने की कोशिश की है. परंतु यह भी सर्वविदित है कि उस समय रेलवे बोर्ड के कुछ अधिकारियों और प्रमोटी फेडरेशन के तत्कालीन कुछ पदाधिकारियों की गहरी साठगांठ चल रही थी. इसी के चलते नियमों को तोड़-मरोड़कर उन्हें यह पांच साल की एंटी डेटिंग मिली और दो-दो, तीन-तीन डीपीसी एक साथ कराई गईं, जो कि बिना साठगांठ के संभव नहीं थीं. इसके नाम पर सभी ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों से बहुत बड़े पैमाने पर तब धन-उगाही भी की गई थी.

तथापि, जानकारों का यह भी कहना है कि सही या गलत, जो दिया जा चुका है, उसे अब वापस नहीं लिया जा सकता है. मगर इसका मतलब यह भी नहीं होना चाहिए कि जिसके साथ अन्याय हुआ है, उसे न्याय नहीं मिलना चाहिए. बल्कि इस परिप्रेक्ष्य में उचित न्याय करते हुए अदालत को उन सभी लोगों को भी दंडित करना चाहिए, जो इस साठगांठ में शामिल रहे हैं और सरकारी राजस्व को हुए नुकसान की भरपाई उनके वेतन से की जानी चाहिए. कुछ समय पहले यह बात भी उजागर हुई थी कि रेलवे बोर्ड में प्रमोशन और पदों के अवैध निर्माण के मामले में बहुत बड़ा (करीब पांच हजार करोड़ का) घोटाला हुआ है, मगर इस मामले को फौरन दबा दिया गया.

अब रेलवे बोर्ड ने दो-दो डीपीसी एक साथ कराए जाने से स्पष्ट रूप से इंकार कर दिया है, जबकि कई कैडर की दो-दो, तीन-तीन साल की डीपीसी नहीं हो पाई है. इसके अलावा, छठवें वेतन आयोग की सिफारिश के अनुसार रेलवे को छोड़कर बाकी सभी केंद्रीय सेवाओं की कैडर रिस्ट्रक्चरिंग करीब दो साल पहले पूरी हो चुकी है. जबकि रेलवे में अब जब सातवें वेतन आयोग के लागू होने का समय आ गया है, तब इसकी आठों संगठित सेवाओं में से किसी की भी रिस्ट्रक्चरिंग आज तक नहीं हुई है. इसके लिए रेलवे बोर्ड ही पूरी तरह से जिम्मेदार है. अब रेलवे बोर्ड को चाहिए कि वह बोर्ड में बैठे अपने सम्बंधित ‘कूपमंडूक’ अधिकारियों पर रेलवे के कुल 18,783 अधिकारियों को हुए भारी नुकसान की जिम्मेदारी तय करे और उनके खिलाफ उचित दंडात्मक कार्रवाई भी सुनिश्चित करे.