जनरल कंडीशंस ऑफ कांट्रेक्ट/प्राइस वेरिएशन क्लॉज में हाई लेबर कंपोनेंट कास्ट क्यों?
वर्तमान जीसीसी/पीवीसी के समस्त प्रावधानों की पुनर्समीक्षा आवश्यक हो गई है
टनलिंग के लिए भारी मानव संसाधन के बजाय बहुत बड़ी-बड़ी पहाड़ कटाई मशीनें उपलब्ध हो गई हैं
अर्थ वर्क, बलास्ट और टनलिंग आदि कार्य वर्तमान में मानव श्रम के बजाय मशीनों से किए जा रहे हैं
अर्थ वर्क में मिट्टी/बोल्डर्स की खुदाई-भराई-ढुलाई/समतलीकरण आदि सभी कार्य मशीनों से किए जा रहे हैं
बलास्ट की तोड़ाई-फोड़ाई-भराई-ढुलाई और फैलाव आदि कार्य मानव श्रम से नहीं मशीनों से किए जा रहे हैं
सुरेश त्रिपाठी
रेलवे बोर्ड का इंजीनियरिंग डायरेक्टरेट समय-समय पर विभिन्न इंजीनियरिंग टेंडर्स से सम्बंधित कॉन्ट्रैक्ट्स वर्क्स के लिए जनरल कंडीशंस ऑफ कांट्रेक्ट के ‘प्राइस वेरिएशन क्लॉज़’ में फेरबदल करता रहता है. सर्वप्रथम यह कंडीशंस वर्ष 1980 में तय की गई थीं. इसके 7 साल बाद वर्ष 1987 में और 10-10 साल बाद वर्ष 1996 एवं 2006 में इनमें बदलाव किया गया था. इसके बाद वर्ष 2007 में एक बार तथा वर्ष 2008 में 3 बार और वर्ष 2012 में 2 बार इन कंडीशंस में फेरबदल किया गया. 14 दिसंबर 2012 के पत्रांक 2007/सीई-I/सीटी/18-पीटी.19 के अनुसार इंजीनियरिंग निदेशालय ने भारतीय रेल जनरल कंडीशंस ऑफ कांट्रेक्ट (जीसीसी) के ‘जनरल इंस्ट्रक्शंस’ में ‘क्लॉज़ 46ए – प्राइस वेरिएशन क्लॉज़’ के रूप में एक नया ‘क्लॉज़’ जोड़ा है.
उक्त नए क्लॉज़ के बाद भी तमाम इंजीनियरिंग कॉन्ट्रैक्ट्स के अंतर्गत ‘लेबर कंपोनेंट’ के तहत अर्थ वर्क, बलास्ट एंड क्वारी प्रोडक्ट्स, टनलिंग एवं इतर वर्क्स आदि जैसे कॉन्ट्रैक्ट्स में लेबर कंपोनेंट की कास्ट कम करने के बजाय बढ़ाई गई है. जबकि अन्य कंपोनेंट्स में भी इसी तरह कुछ इधर-उधर करके यह कास्ट बढ़ी है. वर्ष 1987 में इसके लिए रेलवे बोर्ड ने कुछ वरिष्ठ इंजीनियरिंग अधिकारियों की एक समिति गठित की थी. उक्त समिति ने तब अर्थ वर्क कॉन्ट्रैक्ट्स के तहत लेबर कंपोनेंट की तत्कालीन 55% कास्ट को घटाकर 50% करने की सिफारिश की थी. इसी प्रकार फ्यूल कंपोनेंट में 5% को 20%, इतर मटेरियल कंपोनेंट्स में 5% को 15% एवं फिक्स्ड कंपोनेंट में 35% को 15% करने की अनुशंसा की थी.
इसी तरह बलास्ट एवं क्वारी प्रोडक्ट्स कॉन्ट्रैक्ट्स के अंतर्गत लेबर कंपोनेंट को 45% से 55%, फ्यूल को 5% से 15%, इतर मटेरियल कंपोनेंट्स को 10% से 15% और फिक्स्ड कंपोनेंट को 40% से 15% करने को कहा था. टनलिंग कॉन्ट्रैक्ट्स के तहत लेबर कंपोनेंट को 40% से 45%, फ्यूल कंपोनेंट को 5% से 15%, एक्सप्लोसिव कंपोनेंट 12.5% से 15%, इतर मटेरियल कंपोनेंट्स को 2.5% से 5%, फिक्स्ड कंपोनेंट 35% से 15% तथा इतर वर्क्स कॉन्ट्रैक्ट्स के अंतर्गत लेबर कंपोनेंट को 30% को समान रखते हुए मटेरियल कंपोनेंट को 30% से 40%, फ्यूल कंपोनेंट 5% से 15% एवं फिक्स्ड कंपोनेंट को 35% से 15% किए जाने की सिफारिश हुई थी.
उक्त समिति की सभी सिफारिशें 14 दिसंबर 2012 के समसंख्यक पत्रांक में लगभग ज्यों की त्यों स्वीकार गई हैं. इन सभी मदों की कास्टिंग में सबसे ज्यादा विरोधाभाषी ‘लेबर कास्ट या कंपोनेंट’ की मद में की गई बढ़ोत्तरी है, क्योंकि अर्थ वर्क, बलास्ट और टनलिंग आदि के कार्य वर्तमान में मानव श्रम के बजाय मशीनों से ज्यादा किए जा रहे हैं. अतः इसमें कार्य की अपेक्षा मानव श्रम कम हुआ है. पहले जब हैवी मशीनें नहीं थीं, तब उक्त मदों में मानवीय श्रम संसाधन ज्यादा लगता था, जबकि अब वर्तमान में इन कार्यों के लिए बहुत बड़ी-बड़ी मशीनें आ गई हैं, जिनसे जो काम मानव श्रम से 30 दिनों में होता था, वह अब 3 दिन में होने लगा है. सम्पूर्ण अर्थ वर्क में मिट्टी या बोल्डर्स की खुदाई-भराई-ढुलाई और समतलीकरण आदि सभी कार्य मशीनों से किए जा रहे हैं. इसमें पहले जहां 100 लेबर लगते थे, वहीं अब यह संख्या घटकर औसतन 10 हो गई है.