रेल व्यवस्था की बरबादी: युवाओं को मोदी सरकार से ऐसी उम्मीद तो कतई नहीं थी!
आईआरएमएस संबंधी रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) के बचकाने नोटिफिकेशन ने एक तरफ देशभर में युवाओं को उद्वेलित कर दिया है, तो दूसरी तरफ राजनीतिक क्षेत्र में रेलमंत्री की प्रशासनिक क्षमता को लेकर एक बहस छिड़ गई है। इस एक निर्णय से वर्तमान रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव की कथित चहुंमुखी प्रतिभा की कलई खुल गई है, और इससे यह भी स्थापित हो गया है कि वे वही करते या कहते हैं, जो दरअसल “खान मार्केट गैंग” उनसे करवाता और कहलाता है!
#RailSamachar को कई बड़े नेताओं के फोन आ रहे हैं। पूर्वांचल से आने वाले एक बड़े नेता ने फोन पर कहा कि “रेलमंत्री का #IRMSE का यह अविवेकपूर्ण निर्णय इनके पॉलिटिकल कैरियर पर हमेशा के लिए विराम लगा देगा और इनका “खान मार्केट सलाहकार गैंग” देखिएगा इनको भाजपा का ए. राजा बनाकर छोड़ेगा!”
पूरे रेल महकमे में सबको रेलमंत्री की हैसियत का पता है, क्योंकि जैसा खान मार्केट गैंग हवा बनाता है, उसके हिसाब से रेलमंत्री तो कहने के मंत्री हैं, असल में रेलमंत्री तो उनके सलाहकार महोदय हैं। सलाहकार महोदय के करीबी खुलकर बोलते हैं, “रेलमंत्री पर हमारे साहब का इतना अहसान है कि अगर मंत्री जी अपने चमड़े की जूती बनाकर भी उनको पहनाएं तो भी सलाहकार बाबू का अहसान नहीं उतार पाएंगे!”
जबकि मंत्री से यदाकदा सौभाग्य से मिलने वाले लोगों का कहना है कि “रेलमंत्री अगर पॉलिटिकल बैकग्राउंड से होते तो हर जगह से उनको भी सही फीडबैक मिल रही होती, लेकिन इन लोगों (#KMG) ने उनके पॉलिटिकल दायरे को भी इतना स्मार्टली कंट्रोल कर रखा है कि जिसके कारण शायद ही कोई पॉलिटिकल शख्सियत या एमपी मंत्री जी के प्रति अच्छा ओपिनियन रखता हो!”
यह लोग कहते हैं कि “ये मंत्री बातें तो बढ़िया से करता है, पर बोली-बानी से ही केवल चॉकलेट देता है और काम न करने में ही अपनी बहादुरी समझता है। उससे मिलने के बाद से अगर कोई जनप्रतिनिधि गलती से उसके किसी सलाहकार के पास चला गया तो वे उसको इतना ज्ञान देते है कि वे एमपी/एएलए बेचारे अपमान का घूंट पीकर वापस चले आते हैं।”
अक्सर ऐसा देखा जाता है कि हर आने वाले से जाने वाला लोगों को बेहतर लगता है। यहीं देखें, अब पॉलिटिकल लोगों के साथ रेलवे के अधिकांश अधिकारी मानने लगे हैं कि पीयूष गोयल इनसे लाख गुना बेहतर व्यक्ति और मंत्री थे, जो कार्यकर्ताओं तक की भी सुनते थे और रेल अधिकारियों से सलाह लिए बिना सीधे निर्णय लेकर मदद कर देते थे। डांटते-डपटते थे, लेकिन शायद ही कोई बचकाना और हास्यास्पद निर्णय उनके कार्यकाल में हुआ!
वरिष्ठ रेल अधिकारी भी अब यह खुलकर मानने और कहने लगे हैं, “पॉलिटिकल सर्कल में रेलमंत्री की छवि बहुत ही खराब हो चुकी है और अब इस IRMSE के कारण युवाओं में भी वे एक खलनायक बनकर उभरते नजर आ रहे हैं। अगर मंत्री जी चाहें तो एक स्वतंत्र एजेंसी से अपने बारे में इसकी पड़ताल करा लें!”
जहां तक रेलवे सर्कल से बाहर की बात है, तो बनारस, प्रयागराज, गोरखपुर, लखनऊ, पटना, दिल्ली, जयपुर, अहमदाबाद, मुंबई आदि में जितना आक्रोश इस रेलमंत्री को लेकर छात्रों में है, उतना पूरे देश में प्रधानमंत्री मोदी के बाकी कामों पर पानी डालने के लिए यह एक निर्णय काफी है।
बनारस से एक वरिष्ठ पत्रकार का कहना है कि “धीरे-धीरे 2024 के चुनाव तक यह एक बहुत बड़ा मुद्दा बन जाएगा और चुनाव में भाजपा को युवाओं का सामना करना मुश्किल हो जाएगा। खुद मोदी जी का बनारस में युवाओं का भयानक आक्रोश झेलना पड़ सकता है, जिसका फायदा विपक्षी पार्टियां बखूबी उठाएंगी।”
वह कहते हैं कि “यह बहुत सम्भव है कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले ही मंत्री को बदल दिया जाए और अगर चुनाव तक रह गए तो 2024 के बाद इनके पॉलिटिकल कैरियर का हमेशा के लिए पटाक्षेप तय है!”
एक अन्य रेल अधिकारी ने अपनी ओपिनियन कुछ इस प्रकार से दी है – “But what surprises one that why and how electronics and communication engineering has been left out, as the future is going to be more data driven. Even now S&T engineers are electronics graduates but now we are shutting doors on them, none of the accounts service, including Audit and Accounts, Civil accounts are accounts degree holders they are generalist and trained and groomed.”
“IAS officer man the job of Finance secretary, Revenue Secretary and even the current RBI Governor is an IAS so why Indian Railway suddenly needs commerce graduates? Is railway accounting more complicated than audit & accounts or civil accounts? Since the inception of railways private companies like GIPR and BB&CI had three verticals, Civil, Traffic and Mechanical and in the modern context one can say, fixed infra, rolling infra and operations and business.”
“One more point, exams will be held simultaneously so for mains one has to take a call to appear either in IRMS or CSE.”
उनका कहना है कि “अंतर देखिए, जहां IRMSE के नए नोटिफिकेशन से टेक्निकल सर्विसेस के 10 साल पहले रिटायर हो चुके अधिकारी फोन घुमा-घुमाकर जान-पहचान के मीडिया वालों का ज्ञानवर्धन कर रहे हैं और बता रहे हैं कि अब रेलवे के इंजीनियर्स भी आईएएस के एक्जाम से ही आएंगे, वहीं सिविल सर्विसेज से रेलवे में आया और सबसे बड़े पद पर कार्यरत एक जोकर, जिसको शर्म से या प्रोटेस्ट में इस्तीफा दे देना चाहिए, अथवा जाकर मंत्री से खुलकर विरोध करना चाहिए, वह अपने 31 दिसंबर के रिटायरमेंट से पहले निर्लज्ज जैसा घूम-घूमकर अपना फेवरवेल ले रहा है और वहीं दूसरे अस्तित्वहीन बेहया को यह सुनाया जाता है कि फाइनेंस के मुखिया को बैलेंसशीट देखना नहीं आता।”
बहरहाल, #RailSamachar का मानना है कि हर देश-काल में चीजों में सुधार की गुंजाइश हमेशा रहती है, और परिवर्तन भी प्रकृति का साश्वत नियम है। तथापि किसी संस्था या बिल्डिंग का रिफार्म अथवा रेनोवेशन करते समय उसकी आधारभूत संरचना को कभी नहीं छेड़ा जाता। मगर रेलवे में यही उलटबांसी पिछले 8-9 साल से लगातार हो रही है, जो कि रेलवे को या तो इस देश से मिटा देगी, या फिर ऐसा कर देगी कि यह सर्वसाधारण के किसी काम की ही नहीं रह जाएगी। देश की सर्वाधिक रोजगार देने वाली संस्था का तमगा तो पहले ही रेल से छिन गया है। देश को मोदी सरकार से ऐसी तो उम्मीद कतई नहीं थी!