रेलवे में एकीकृत सुरक्षा व्यवस्था का कोई विकल्प नहीं
कैरियर्स एक्ट 1865, इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, 1872 और संशोधित रेलवे एक्ट, 1989 की धारा 93 से 111 एवं 123 से 127 के अनुसार भारतीय रेल की यह जिम्मेदारी है कि बुकशुदा माल तथा यात्रियों को उनकी संपत्ति के साथ गंतव्य तक समय पर और सुरक्षित पहुंचाए. ऐसा न कर पाने पर यदि बुकशुदा माल तथा यात्रियों और उनकी संपत्ति को आपराधिक तथा प्रशासकीय लापरवाही के कारण कोई क्षति होती है, तो भारतीय रेल को उसकी भरपाई करनी होगी.
भारतीय रेल, भारतीय संविधान की धारा 246 की सातवीं अनुसूची की केंद्रीय सूची की एंट्री 22 और भारतीय रेल से ढोए जाने वाले माल एवं यात्री एंट्री 30 तथा इन सबके विरुद्ध अपराध एंट्री 93 के विषय हैं. अत: केंद्रीय सूची की उक्त और अन्य विषयों के विरुद्ध अपराध को केंद्रीय सूची का विषय बनाया गया है, अर्थात् भारतीय रेल, इसकी संपत्ति, यात्री और उनके सामान के विरुद्ध अपराध को रोकने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार के रेल मंत्रालय की है, क्योंकि ऐसा न करने पर उनकी क्षति की भरपाई का उत्तरदायित्व भारतीय रेल पर है.
अत: पूर्व रेलमंत्री डॉ. रामसुभग सिंह की अध्यक्षता वाली उच्चाधिकार प्राप्त समिति (1966-68) ने सरकार को प्रस्तुत अपने प्रतिवेदन में भारतीय रेल के समस्त अपराधों की रोकथाम हेतु आरपीएफ को जांच और अभियोजन के समुचित विधिक अधिकार प्रदान करने की सिफारिश की. उनकी सिफारिशों का संक्षेप में अभिप्राय यह है कि जिसको अपराध न रोक पाने पर हुई क्षति की भरपाई का उत्तरदायित्व हो, उसे ही क्षति रोकने का समुचित अधिकार होना चाहिए.
विश्व के सभी देशों की रेलों पर वहां के कानूनों के अंतर्गत भारतीय रेल जैसी ही जिम्मेदारी दी गई है, जिसका निर्वहन न करने पर वैसा ही उत्तरदायित्व दिया गया है. अत: विश्व के किसी भी देश की रेल, उसकी संपत्ति, रेलयात्री और उनके सामान की सुरक्षा की जिम्मेदारी उस रेल की अपनी सुरक्षा एजेंसी को दी गई है, वहां की राज्य की पुलिस को नहीं.
सन 1947 में इंग्लैंड की सरकार ने अपने ट्रांसपोर्ट एक्ट को संशोधित कर अपने देश की सभी प्राइवेट रेलों को राष्ट्रीयकृत कर दिया. तत्पश्चात वहां की प्राइवेट रेलों के सुरक्षाकर्मियों का एकीकरण कर उन्हें न केवल ‘ब्रिटिश ट्रांसपोर्ट पुलिस’ का नाम दिया, बल्कि सिविल पुलिस के समकक्ष सभी कानूनी अधिकार देकर ब्रिटिश रेलवे की सुरक्षा की संपूर्ण जिम्मेदारी सौंप दी. परिणामस्वरूप ब्रिटिश रेलवे की राज्य पुलिस अपने राज्यों में वापस हो गई तथा ब्रिटिश ट्रांसपोर्ट पुलिस ने पूरी जिम्मेदारी से ब्रिटिश रेलवे के अपराधों को नियंत्रित किया.
रेलवे बोर्ड के तत्कालीन चीफ कमिश्नर कर्नल इमर्सन ने ब्रिटिश ट्रांसपोर्ट पुलिस की सफलता से प्रभावित होकर इंग्लैंड की सराकार से भारतीय रेल के अपराध को नियंत्रित करने की सलाह मांगी. जवाब में इंग्लैंड के तत्कालीन पुलिस चीफ ने चीफ कमिश्नर, रेलवे बोर्ड को लिखित सलाह दी कि भारतीय रेल के अपराधों को रोकने हेतु उनके ‘वॉच एंड वार्ड’ को समस्त सिविल पुलिस के कानूनी अधिकारों से संपन्न करना चाहिए.
चीफ कमिश्नर, रेलवे बोर्ड ने तदनुरूप प्रयास भी किया, किंतु इम्पीरियल पुलिस, जो आजादी के बाद ‘इंडियन पुलिस सर्विस’ हो गई, के अधिकारी एक के बाद एक समिति गठित कराकर रेलवे के वॉच एंड वार्ड को सिविल पुलिस के समान विधिक अधिकार दिलाने के प्रयास पर इसलिए पानी फेरते रहे कि इसे अधिकार मिलने से भारतीय रेल की जीआरपी को अपने राज्यों में वापस जाना पड़ता, जिसके परिणामस्वरूप जीआरपी से आईपी/आईपीएस अधिकारियों के पद, जो आज 160 के करीब हैं, समाप्त हो जाते, जिससे इनकी पदोन्नति के अवसर कम हो जाते.
चूंकि भारतीय रेलवे में अपराधों को रोकने की जिम्मेदारी के बावजूद समस्त कानूनी अधिकारों से संपन्न रहते हुए भी राज्य सरकारों को जीआरपी द्वारा उन्हें न रोक पाने के कारण रेल संपत्ति, यात्रियों और उनके सामानों की हुई क्षति की भरपाई का उत्तरदायित्व राज्य सरकारों पर बिल्कुल नहीं है, अत: जीआरपी उन अपराधों को रोकने में रुचि नहीं दिखाती है, जिससे अपराधी रेल में अपराध करना, रेल के बाहर अपराध करने से अधिक आसान मानते हैं और मानते रहेंगे.
ऐसे तो कहा जाता है कि भारत में कानून व्यवस्था राज्य का विषय है, किंतु व्यावहारिक रूप से यह सच नहीं है. रेल चूंकि केंद्रीय सूची का विषय है. अत: कानून व्यवस्था बिगड़ने पर रेल और यात्रियों के जान-माल को जो क्षति पहुंचती है, उस पर उस राज्य की विधानसभा में चर्चा की भी इजाजत नहीं होती है. इस विषय पर संसद में चर्चा होती है. इससे भी यह स्पष्ट है कि रेल की कानून व्यवस्था राज्य सरकार का विषय नहीं है.
जब ‘रेलवेज’ केंद्रीय सूची का विषय है, रेल से ढोये जाने वाले माल एवं यात्री केंद्रीय सूची के विषय हैं तथा इनके विरुद्ध अपराध भी केंद्रीय सूची का विषय हैं, तब रेलवे पुलिस को राजकीय सूची का विषय नहीं बनाया जा सकता. किंतु भारत में अंग्रेजों की सरकार ने भारतीय राजाओं के राज्य की रेल के नाम पर रेलवे पुलिस को भारत सरकार के अधिनियम 1935 की सातवीं अनुसूची की राजकीय सूची की एंट्री तीन का विषय बना दिया, ताकि उनसे आजादी के लड़ाकों का दमन कराया जाए और जब भारत का संविधान 1950 में लागू होना था, तब उसी सातवीं अनुसूची को भारत के संविधान में ज्यों का त्यों सम्मिलित कर दिया. चूंकि 1951 तक लगभग सभी राजघराने आजाद भारत में सम्मिलित हो गए और उनकी रेलें राष्ट्रीयकृत कर भारतीय रेल में समाहित कर दी गई. अत: रेल पुलिस का राज्य सूची में रखने का औचित्य समाप्त हो गया. अब जो राज्य हैं उनके अधीन कोई रेल नहीं है. इसलिए राज्य पुलिस राज्य सूची में रखना अर्थहीन है.
डॉ. रामसुभग सिंह की अध्यक्षता वाली उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने अपनी रपट में जोरदार सिफारिश की है कि रेलवे पुलिस को केंद्रीय या समवर्ती सूची में लाया जाए, ताकि रेल की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु आरपीएफ को समुचित कानूनी अधिकार दिया जा सके. चूंकि राज्य सरकारों की पुलिस/जीआरपी का क्षेत्राधिकार अपने राज्य तक सीमित होता है और ट्रेनें कुछ ही घंटों में कई राज्यों की सीमा लांघ जाती हैं, इसलिए राज्यों की पुलिस/जीआरपी के लिए भारतीय रेल के अपराध को रोकना न कभी संभव था, न है, और न हो पाएगा. रेलमंत्रीसुरेश प्रभु ने फरवरी 2015 में राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि भारतीय रेल इसकी सपत्ति और रेल यात्रियों (प्रतिदिन करीब 3 करोड़) की सुरक्षा हेतु आरपीएफ को समस्त कानूनी अधिकार देने हेतु सहयोग करें.