रेल रिफॉर्म तभी संभव है, जब डीआरएम में 52 साल का क्राइटेरिया तुरंत हटाया जाए!
अगर सरकार यह मानती है कि रेलवे की प्रशासनिक स्थिति वास्तव में दयनीय है और तमाम सुधार/रिफॉर्म की आवश्यकता है, तो व्यवस्था में मैच फिक्सिंग की तरह घुसे कोढ़ यानि 52 साल के असंवैधानिक क्राइटेरिया को तुरंत हटाया जाए!
सुरेश त्रिपाठी
चर्चा है कि रेलवे बोर्ड फिर से डीआरएम पैनल 52 साल की क्राइटेरिया के आधार पर ही बनाने जा रहा है और नए नोटिफिकेशन में 1 जून 2022 के बाद से जो अधिकारी 52 साल की क्राइटेरिया में आएंगे, उन्हीं का नए डीआरएम के लिए एम्पैनलमेंट किया जाएगा।
अधिकारियों का कहना है कि अगर यह चर्चा सही है तो इस रेलमंत्री से किसी भी सकारात्मक सुधार की अपेक्षा करना बेमानी है और रेलवे के इतिहास में ये सबसे असफल और जल्द दबाब में आकर यथास्थितिवादी रीढ़विहीन मंत्री साबित होंगे, जिनके समय में जितनी तेजी से रेल में भ्रष्टाचार बढ़ा है, उतनी ही तेजी से अक्षम और तिकड़मी लोगों का वर्चस्व भी बढ़ गया है।
उल्लेखनीय है कि नई प्रक्रिया के साथ 52 साल की क्राइटेरिया को समाप्त कर डीआरएम पैनल बनाने की चर्चा से रेल के बहुसंख्यक अधिकारियों में गजब का उत्साह और आशा का संचार हुआ था, अब वह न होने पर रेल के माहौल और व्यवस्था को अंधकार के गर्त में फेंक देगा और मेहनतकश, ईमानदारी से काम करने वाले अधिकारियों का विश्वास हमेशा के लिए संस्थागत न्याय से उठ जाएगा।
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अधिकारियों का यह भी कहना है कि इस बार जो 20 डीआरएम बने हैं, उसमें कई 53 और कुछ तो 54 साल में प्रवेश कर गए थे। क्या उनके लिए कुछ विशेष नियम बन गए थे? एक तो आप मनमाने तरीके से पैनल बनाएंगे और फिर एक-एक डेढ़-डेढ़ साल तक पोस्टिंग विलंबित करेंगे जिसका नुकसान सीधे उन लोगों को होता है जिनके पास उतना एज एडवांटेज नहीं है। इस जानबूझकर या प्रशासनिक अक्षमता के कारण की गई देरी से हर सर्विस और हर बैच के बहुत से लोग बाहर हो जाते हैं। इसका उत्तरदायित्व कौन लेगा?
खासकर ग्रामीण परिवेश और पिछड़े तबके से आए अधिकारियों को ही इस 52 साल की क्राइटेरिया के कारण नुकसान उठाना पड़ रहा है। अच्छे और पहले से अच्छी आर्थिक तथा सामाजिक स्थिति में रहने वाले गार्डियन को भविष्य में “एज फैक्टर” से होने वाले एडवांटेज के विषय में पता था, इसलिए वे अपनों बच्चों के मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट मे 4/5 साल तक बड़ी आसानी से उम्र कम करवा लेते थे।
लेकिन यह सद्बुद्धि(?) ग्रामीण और कमजोर पृष्ठभूमि से आने वाले बच्चों के माता-पिता में नहीं थी। इसलिए कई बार तो इस पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों के सर्टिफिकेट में उम्र वास्तविक से ज्यादा लिखी होती है। पहले लोग उम्र बढ़ाकर बेवकूफी में इसलिए भी लिखते थे कि जल्दी से सरकारी नौकरी मिल जाएगी। शीर्ष नेतृत्व को इन सामाजिक पृष्ठभूमि से जुड़े तथ्यों को भी ध्यान में रखना चाहिए, वह भी तब जब आपका महकमा मनमाने तरीके से कोई ऐसा खेल करता है जिससे खड़े-खड़े कुछ चुने हुए एलीट लोगों के पक्ष में ही पहले से ही मैच फिक्स हो जाए।
प्रश्न यह है कि अभी-अभी जब 53 और 54 साल वाले लोगों को डीआरएम में पोस्ट किया गया है, तो फिर किस जिद पर 52 साल वाले क्राइटेरिया के आधार पर रेलवे बोर्ड यह पैनल बना रहा है? और जिनको रेलवे बोर्ड की अक्षम्य लेट-लतीफी और अक्षमता के कारण वंचित रह गए लोगों को न्याय कौन देगा?
प्रश्न यह भी है कि जिस तरह के एज क्राइटेरिया का रिलैक्सेशन अभी हाल ही में इन 20 डीआरएम की पोस्टिंग में अपनाया गया, उसका फायदा औरों को क्यों नहीं मिलना चाहिए?
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कहां तो आप नए तरीके से डीआरएम में 52 साल का क्राइटेरिया हटाकर सेलेक्शन करने वाले थे और कहां आपने 20 ऐसे लोगों को डीआरएम बना डाला जिसमें दो को छोड़कर बाकी सब ‘कंसल ब्रांड’ के नमूने ही हैं। कहां तो सिस्टम से कचरा साफ करने की बात हो रही थी और कहां फिर वही कूड़ा भरा जा रहा है।
रेलमंत्री जी, इस तरह का कोई भी निर्णय केवल आपकी ही नहीं, मोदी सरकार की साख को भी मटियामेट कर रहा है और अब अधिकांश बुद्धिजीवी पत्रकार तथा अन्य क्षेत्रों से जुड़े लोगों, जिनमें अधिकारी/कर्मचारी वर्ग भी शामिल है, की रेल को लेकर यह अवधारणा बनती जा रही है कि – “ये लोग लुंज-पुंज और प्रशासनिक समझ एवं दूरदर्शिता से रहित अक्षम लोग हैं और कोई भी आवश्यक बड़ा सुधार इनके वश की बात नहीं है। लगता है कि इनमें तुगलक एक बार फिर जिंदा हो गया है।”
जनमानस में आपको लेकर रेल की जो छवि बन रही है, इस बारे में सोचने की आवश्यकता है, क्योंकि जिस भी व्यक्ति का दायित्व बोध स्पष्ट नहीं होगा, वह चाहे राजा हो या परिवार का मुखिया, वह कोई भी बड़ा क्रांतिकारी निर्णय नहीं ले सकता। वह सिर्फ यथास्थितिवादी की तरह अपना समय शांति से काटकर भोग करते हुए, अपनी झोली भरते हुए, निकल लेना चाहता है।
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ध्यान रहे कि “ऐसे लोग आसानी से दुष्टों और निहितस्वार्थी तत्त्वों के प्रभाव और दबाव में आ जाते हैं। जो दूरदृष्टि एक राजा में, नेता में होनी चाहिए, वह वास्तविक दायित्व बोध के अभाव में इनमें खत्म हो जाती है। ये उतनी ही दूर देख पाते हैं जितनी दूर इनके इर्द-गिर्द इनको घेरे हुए निहितस्वार्थी तत्व इनको दिखाना चाहते हैं और जो दिखाना चाहते हैं, वही यह देख पाते हैं।” मंत्री जी, इसमें से कितना तथ्य आप पर लागू होता है, यह आप स्वयं तय करें!
#RailSamachar कई बार हजारों रेलकर्मियों, अधिकारियों और विभिन्न क्षेत्रों के बुद्धिजीवी लोगों की ओपीनियन के आधार पर यह लिख चुका है कि 52 साल का क्राइटेरिया, डीआरएम का पैनल बनाने के लिए जो अनिवार्यता है, उसे तुरंत खत्म किया जाए। यह रेल के भविष्य के लिए अब तक का सबसे बड़ा रिफॉर्म साबित होगा।
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यह अपने आप में न केवल असंवैधानिक है, बल्कि यह प्रतिभाओं का गला घोंटने वाला क्राइटेरिया है, और जन्मतिथि आधारित योग्यता रखने वाले चंद तथाकथित कुलीन लोगों का एक ऐसा तबका तैयार करता है जो वाजिद अली शाह की तरह केवल राज भोगने के लिए ही बने होते हैं। इसीलिए प्रधानमंत्री और रेलमंत्री नजर घुमाकर देख लें कि इनके इतने डीआरएम और एचएजी+ (जीएम/बोर्ड मेंबर आदि) पदों को सुशोभित करने वाले 95% ऐसे हैं जो कायदे से क्लास 3 के पद की गरिमा के भी लायक नहीं हैं। लेकिन इन लोगों की एक ही योग्यता रही है कि ये लोग 52 साल की क्राइटेरिया में आते हैं।
इस 52 साल की क्राइटेरिया में कई तो ऐसे होते हैं जो ज्वाइनिंग के बाद केवल कुछ समय रेलवे में काम किए होते हैं और फिर इसी एज एडवांटेज के चलते सीधे डीआरएम में प्रकट होते हैं। फिर रेल से बाहर चले जाते हैं और फिर जीएम बनकर ही अवतरित होते हैं। फिर मेंबर और सीआरबी बनकर! उदाहरण स्वयं खोजे जा सकते हैं।
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इन्हीं एक-दो महत्वपूर्ण कारणों में से एक रहा है रेल की बर्बादी का, जिसके कारण मोदी सरकार इतनी व्यग्रता से सुधार लाने की बात कर रही है। “अगर सरकार यह मानती है कि रेल में सब कुछ ठीक चल रहा था, और चल रहा है, तो फिर 52 साल का क्राइटेरिया एकदम नहीं बदले, लेकिन अगर सरकार यह मानती है कि रेलवे की प्रशासनिक स्थिति वास्तव में दयनीय है और तमाम सुधार रिफॉर्म की आवश्यकता है, तो व्यवस्था में मैच फिक्सिंग की तरह घुसे कोढ़, यानि 52 साल के असंवैधानिक क्राइटेरिया को तुरंत हटाया जाए।”
1. एक पैनल बनने के बाद जब तक उसके सभी एम्पैनल्ड अधिकारियों की पदस्थापना डीआरएम में न हो जाए, तब तक दूसरे पैनल को प्रभावी न किया जाए, भले ही आप एडवांस में एक या दो एडहॉक पैनल बनाकर रखे जाएं।
2. डीआरएम और जीएम की हर छह महीने पर परफॉर्मेंस रिव्यू हो और संतोषजनक नहीं पाए जाने पर उन्हें तुरंत हटाकर दूसरे की पदस्थापना की जाए।
3. अयोग्य और नॉन-परफॉर्मर्स को ढ़ोने की बाध्यता नहीं होनी चाहिए, अन्यथा यही लोग पूरी संस्था को बर्बाद कर देते हैं, जैसा कि इन्होंने अब तक किया है।
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माननीय रेलमंत्री जी, एक बात और जान लें कि निर्णय स्वविवेक से दायित्व बोध के साथ नेता को लेना चाहिए, भले ही वह सुने सबकी। खासकर जिन अधिकारियों की आप तक प्रायः पहुंच है, अगर वे लोग आपसे उनके असाइंड वर्क के अलावा कोई दूसरी बात करते हैं, तो उनको बिना देर किए दरवाजा दिखा दें, क्योंकि यही वे निहितस्वार्थी तत्त्व हैं, जो कोई भी सही निर्णय नहीं लेने देंगे और अधिकारियों के वेश में ये अपने-अपने ट्राइब के लीडर हैं, जो अखिल भारतीय स्तर पर अपने व्यूह का जाल बिछाकर रखते हैं।
मंत्री महोदय, ये लोग इतने शातिर हैं कि आप जहां-जहां जाओगे, हर जगह इनके 8/10 लोग एक ही तरह के एजेंडे वाली स्क्रिप्ट के साथ आपको मिलेंगे और वही बोली बोलेंगे जो इनका सेट एजेंडा होता है। और तब पूरे देश में घूमने के बाद आपको लगेगा कि, “अरे अधिकांश लोगों की ओपीनियन तो ऐसी ही है, और अभी तक हम जो कर रहे थे, वह कितना गलत था!” ऐसे में मजाल है कि कोई इनकी स्क्रिप्ट से अलग बोलने वाला आगे आ जाए। और अगर गलती से आ भी गया, तो ये उसे ऐसे चुटकियों में मसल डालते हैं कि किसी को भनक भी नहीं लगती!
मंत्री जी, यह भी ध्यान रहे कि डीआरएम में पोस्टिंग के लिए 52 साल के क्राइटेरिया को हटाने और नए नियम बनाए जाने की हवा बनाकर ही खान मार्केट गैंग ने एक साल से अधिक डीआरएम पोस्टिंग रोके रखा और मौका मिलते ही अपना एजेंडा सेट कर लिया। मगर इससे बदनामी आपकी हुई, नाम आपका खराब हुआ, सवाल आपसे पूछा गया कि जब यही करना था तो एक साल तक पोस्टिंग विलंबित क्यों किया? मगर खान मार्केट गैंग का कुछ नहीं बिगड़ा, जबकि इस तरह एजेंडा उसका सेट हुआ!
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#RailSamachar ने यह भी लिखा था कि 52 साल के क्राइटेरिया को हटाकर डीआरएम में मेरिट पर ‘बेस्ट अमंग बेस्ट’ चुनने के लिए हर सर्विस के पूरे-पूरे बैच को एलिजिबल मानते हुए कड़ा 360 डिग्री रिव्यू किया जाए। इस तरह छांटे गए 68 डीआरएम में सबसे बेस्ट आने की कड़ी प्रतिस्पर्धा होगी, जिनमें से 27 जीएम चुनना बहुत आसान होगा। फिर इन 27 जीएम में से सबसे बेहतरीन 5 बोर्ड मेंबर छांटना बहुत सरल होगा। यह निश्चित रूप से हो सकता है, बशर्ते कि इसके लिए पर्याप्त राजनीतिक इच्छाशक्ति चाहिए और साथ में देश, समाज, व्यवस्था को सुधारने का निष्पक्ष और समर्पित प्रयास भी होना चाहिए। मंत्री जी, आप यह कर सकते हैं, क्योंकि सरकार, व्यवस्था और समाज के हर स्तर पर काम करने का आपको अनुभव है, मगर शर्त यह है कि यह करने के लिए सर्वप्रथम आपको “खान मार्केट गैंग” से अपना पीछा छुड़ाना होगा।
अतः डीआरएम में 52 साल का क्राइटेरिया समाप्त कर सभी को एम्पैनल होने का बराबर मौका दिया जाए और आश्वस्त रहें कि मेजॉरिटी भी यही चाहती है। रेल के उज्जवल भविष्य के लिए भी यह सबसे महत्वपूर्ण कदम होगा। स्मरण रहे कि रेल ही नहीं, रेल से जुड़ा हर देशवासी इसके लिए आपको और मोदी सरकार को हमेशा याद रखेगा, यह इतना बड़ा एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म होगा। क्रमशः जारी…
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