वीसी बोले तो वैताल कांफ्रेंस
लोगबाग अपनी अपार अर्थात एपीएआर में गर्व से लिखेंगे मैंने 100 वीसी अटैंड की हैं, मैंने 150 वीसी की हैं। मुझे कैबिनेट रैंक दो, मुझे प्रमोशन दो। वीसी इज ए गेम चेंजर!
व्यंग्य
वैताल को भी किसी ने देखा नहीं है। उसकी केवल छवि ही छवि है लोगों के मनो-मस्तिष्क में। इसलिए यह वैताल कांफ्रेंस है। वैताल की वैताल के लिए वैताल द्वारा ली जाने वाली कांफ्रेंस।
इतने बड़े स्केल पर वीसी को महामारी की तरह फैलाने में दूसरी महामारी करोना का बहुत बड़ा रोल रहा है। हमें दिखता नहीं। अब वो ही तो वैताल के बारे में भी मशहूर रहा है।
आजकल क्या नौकरशाह! क्या नेता लोग! सबमें वीसी करने की होड़ लगी है। इससे टेक-सैवी होने का रौब भी पड़ता है बिना कुछ किए-धरे ही। खुद को टीवी पर न देख पाने वालों की भड़ास वीसी में निकलती है।
आप बढ़िया-बढ़िया रंगीन कपड़े पहनकर अपने पूरे वार्डरोब को एक-एक कर इस्तेमाल कर सकते हैं। महिला अधिकारियों और नेतानियों की समस्या और भी बड़ी है। उन्हें यह भी याद रखना होता है और ख्याल रखना होता है कि साड़ी रिपीट न हो। मैचिंग है या नहीं। उम्र से बड़ा तो नहीं दिखा देगी आदि आदि। एसीपी (अलार्म चेन पुलिंग) से ज्यादा एएसपी (आपका साड़ी प्रिंट) डिस्कस होना चाहिए, भले वीसी के बाद ही सही।
इससे आप यह न समझें कि वीसी के फायदे नहीं हैं। लीजिये प्रस्तुत हैं वीसी के 10 बड़े फायदे- वैसे मैं जानता हूं फायदे और भी हैं और आप खुद भी दो-चार फायदे गिना देंगे-
1. अब फील्ड में जाने की जरूरत ही नहीं रह गई। बात-बात बोले तो हर बात के लिए वीसी, और तो और बिना बात के वीसी। इससे बड़ा प्रभाव पड़ता है। लगता है आपको दफ्तर की कितनी फिक्र है।
2. आप बाॅस हैं तो जैसे बाॅस ने कल आपको सबके सामने लताड़ लगाई थी, अब ये आपका कर्तव्य और अधिकार दोनों है कि आप अपने अंडर वालों को दिन में तारे दिखा दें। उन्हें खूब खरी-खोटी सुना कर अपना मन हल्का कर लें। गुस्सा और खीझ जल्द से जल्द निकाल देना चाहिए, नहीं तो शरीर को ये रोगग्रस्त कर देते हैं।
3. आप वीसी में बार चार्ट, पाई चार्ट को भी खूब-खूब दिखा सकते हैं। बनाने तो किसी और ने हैं। वैसे इतने सारे चार्ट न आपको समझ लगने हैं, न देखने वालों को। हां, मगर इससे क्वालिटी टाइम अच्छा व्यतीत (वेस्ट) होता है। फिर अगर आप बीच-बीच में एक आध सवाल पूछ लें तो आपको लोग धुरंधर मान लेंगे – मसलन “ये इस क्वार्टर में परफारमेंस पिछले काॅरेस्पांडिंग क्वार्टर से गिर कैसे गई?” और गिरी न हो, तो भी आप पूछ सकते हैं, “बढ़ कैसे गई?” ताकि उन चीजों पर ज्यादा ध्यान दिया जाए।
4. वीसी से टीए, डीए की बहुत बचत हुई है। जब कोई फील्ड में जाएगा ही नहीं तो टीए, डीए किस बात का भई?
5. अब बंगला प्यून तो रहे नहीं। अतः आप वीसी करके टाइम पर घर जा सकते हैं और घर के कामकाज यथा बरतन घिसने, लहसुन छीलने, मसाला पीसने में श्रीमती जी का हाथ बँटा सकते हैं। अब तक तो आप जान ही गए होंगे कि ये थके हुए अफसर और नेता लोग वीसी रखते ही तभी हैं जब आपको बीवी-बच्चों के साथ बाहर जाना हो। शुक्रवार शाम या शनिवार शाम। कोई त्योहार है तो त्योहार वाले दिन या हद से हद एक शाम पहले। तभी न आपको पता लगेगा बाॅस की पाॅवर का। और आप बाॅस को गाली दोगे। बाॅस लोग गालियों से ऊपर उठ चुके होते हैं। वे स्थितप्रज्ञ हैं। ‘ये क्या कम है कि (गाली देते वक्त ही सही) दुनिया याद करती है।’
6. इंस्पेक्शन नहीं, फील्ड में झांकना नहीं, तो सैलून, बर्थ, सीटों की बचत ही बचत। इन को पब्लिक को देने से भी बहुत आय होगी।
7. जब कोई बात पता न हो, या पल्ले न पड़ रही हो, या लेटेस्ट स्थिति न मालूम हो, तो आप नीचे से चिट, फर्रे का आदान-प्रदान भी कर सकते हैं, या फिर कैमरे के साथ थोड़ी छेड़छाड़ करके सबकी नजर बचाकर लेटेस्ट पोजीशन ली जा सकती है।
8. अब कुछ भी हो जाए, आप कह सकते हैं कि पिछले हफ्ते की वीसी तक तो सब ठीकै-ठाक था। ये कबमें हो गया? ऐसा कहते हुए ख्याल रहे आपको पूछने वाले से ज्यादा बड़ा मुंह फाड़ते हुए आश्चर्य और शाॅक का एक्सप्रैशन देना है।
9. फोटोशाॅप, माॅर्फ करके अब फील्ड भी वर्चुअल फील्ड हो जाएंगे। सब हरा-हरा या गुलाबी-गुलाबी, जो भी रंग चलन में हो या बाॅस को पसंद हो। यह फील्ड में जाने से नहीं होगा। लोगबाग अपनी अपार अर्थात एपीएआर में गर्व से लिखेंगे मैंने 100 वीसी अटैंड की हैं, मैंने 150 वीसी की हैं। मुझे कैबिनेट रैंक दो, मुझे प्रमोशन दो। वीसी इज ए गेम चेंजर।
10. दरअसल वीसी भारतीय रेल का भावी यात्रियों को संदेश भी है कि अरे बेवकूफो! तुमसे घर में रुका नहीं जाता? क्यों भागते फिरते हो? धक्के खाते हो? हमारी तरह तुम भी क्यों नहीं रिश्तेदारों से वीसी करके रिश्तेदारी निभाते हो।
अब चलूं जरा एक जरूरी वीसी अटैंड करनी है। मिलते हैं अगली वीसी में! जय हो वीसी की! लाॅन्ग लिव वीसी!
पुनश्च:
अबसे यह प्रस्ताव है कि वीसी रात को दस बजे शुरू की जाया करेगी, ताकि आप निश्चिंत होकर खा-पीकर (पीकर नहीं सिर्फ खाकर) अटैंड करें, इससे ऑफिस टाइम बचेगा। ऑफिस की चाय बिस्कुट जूस काजू का खर्च बचेगा।
*डॉ रवीन्द्र कुमार सेवानिवृत्त आईआरपीएस अधिकारी और सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हैं।