November 4, 2022

‘सुधीर दृष्टि’ से रेल प्रबंधन को रसातल में जाते हुए निहारने को मजबूर क्यों हैं रेलमंत्री?

लंबे समय से एक ही जगह, एक ही शहर और एक ही रेलवे में जमे सेंधमार, डकैत और जतान्ध अधिकारियों से रेलवे को अविलंब मुक्त कराया जाए!

दो साल से अधिक के कार्यकाल वाले विभाग प्रमुखों को अन्य जोनल रेलों में भेजने और रोटेशन पॉलिसी पर अमल करने में शीर्ष रेल प्रबंधन को दिक्कत क्या है?

पूर्व मध्य रेलवे फंड की अफरा-तफरी और जातिगत भ्रष्टाचार के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है और यह सब महाप्रबंधक की जानकारी में होने के बावजूद किसके डर से वह कोई भी कदम उठाने में अक्षम और निष्क्रिय क्यों हैं?

रेलवे का शीर्ष प्रबंधन – “खान मार्केट स्कूल ऑफ मैनेजमेंट” – के चंगुल में है और बड़े भ्रष्टाचार के मामलों में उसकी चुप्पी कहें या संलिप्तता, वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी के ‘भ्रष्टाचार मुक्त भारत’ के सपने को संभवतः सपना ही बनाए रखना चाहता है, सरकार के स्तर पर कथनी और करनी में ऐसा विरोधाभास कभी नहीं देखा गया!

“कोरोनादेवी” के खौफ से विकसित ‘वीसी कल्चर’ ने फील्ड में रेलवे की कार्य संस्कृति को चौपट करके रख दिया है। अधिकारीगण वीसी में व्यस्त हैं, तो कर्मचारीगण फुर्सत में मस्त हैं। इसकी विस्तृत चर्चा फिर कभी की जाएगी, फिलहाल ईसीआर में हावी जातिगत समीकरण और इसे लेकर रेलवे बोर्ड की अन्मनस्कता के चलते काम करने वाले परिश्रमी और निष्ठावान अधिकारियों एवं कर्मचारियों में भारी हताशा का माहौल व्याप्त है।

पूर्व मध्य रेलवे (ईसीआर) में वैसे तो ‘ऊपर’ के इनपुट और तत्कालीन कदाचारी पीसीओएम की अकर्मण्यता के चलते तीन युवा अधिकारियों की बलि चढ़ाए जाने और चांडाल चौकड़ी के भ्रष्ट कारनामों से वैसे ही पूरा वातावरण शर्मशार था, अब “चांडाल चौकड़ी” के उक्त कदाचारी सदस्य के रिटायरमेंट के बाद इस ‘चौकड़ी’ ने अपने मूल स्वभाव ‘चांडाल’ को बरकरार रखते हुए “तिकड़मबाज तिकड़ी” का रूप ले लिया है। इस ‘तिकड़ी’ के कारनामे न केवल बदस्तूर जारी हैं, बल्कि रेलवे को ‘तिख्ती’ पर लिटाने की ओर अग्रसर हैं, जबकि मलाई का भरपूर मजा लूट रहे महाप्रबंधक महोदय को इसकी करतूतों से कोई मतलब नहीं है।

कुछ फील्ड अधिकारियों का कहना है कि “पूर्व सीएओ एवं वर्तमान पीसीई बिना पैसे के एक दिन भी नहीं रह सकते। जिस तरह मछली पानी के बिना नहीं रह सकती उसी तरह यह अधिकारी बिना पैसे के एक दिन भी नहीं रह सकता है। वह कहते हैं कि एसएलटी के धंधे से आमद बंद होने के बाद अब कोई नया जुगाड़ होने तक ट्रांसफर पोस्टिंग की दूकान खोलकर उगाही का काम शुरू हो रहा है। एसएलटी स्कैम पर महाप्रबंधक और जोनल विजिलेंस की ओर से कोई कारवाई नहीं हो रही है, क्योंकि इस हमाम में सब नंगे है।”

अधिकारियों का कहना है कि रेलवे बोर्ड के स्तर पर ढुलमुल रवैया भी एसएलटी मामले को रफा-दफा करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। चारों ओर निराशा का माहौल है और लोगों का व्यवस्था में विश्वास घट रहा है। उनका कहना है कि पूर्व मध्य रेलवे निर्माण संगठन में अभी तक हुए सारे एसएलटी की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए तो वर्तमान पीसीई के कार्यकाल में हुए सारे एसएलटी भ्रष्टाचार की कहानी चीख-चीख कर बयान करेंगे।

उन्होंने कहा कि इससे पहले दाल में नमक जैसी चोरी होती थी, वह भी इक्का-दुक्का मामले में, लेकिन इस दुर्दांत अधिकारी के कार्यकाल में सारे एसएलटी में नमक में दाल जैसी डकैती हो रही थी। किसका हित है ऐसे दुर्दांत अधिकारी को संरक्षण देने में, या संपोषित करने में, यह तो शायद ऊपर वाले ही बेहतर जानते होंगे!

अधिकारी कहते हैं, “रेलवे का शीर्ष प्रबंधन – खान मार्केट स्कूल ऑफ मैनेजमेंट – के चंगुल में है और ऐसे बड़े भ्रष्टाचार के मामलों में उसकी चुप्पी कहें या संलिप्तता, वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी के ‘भ्रष्टाचार मुक्त भारत’ के सपने को संभवतः सपना ही बनाए रखना चाहता है। सरकार के स्तर पर कथनी और करनी में ऐसा विरोधाभास कभी नहीं देखा गया। रेलमंत्री जी पुराने अहसानों के तले दबे “सुधीर दृष्टि” से रेल प्रबंधन को रसातल में जाते हुए निहार रहे हैं!”

अधिकारी कहते हैं, अगर शीर्ष रेल प्रबंधन राष्ट्रहित को छोड़कर, मोदीजी के ‘भ्रष्टाचार मुक्त भारत’ के सपने को तोड़कर पुराने सीएओ और वर्तमान पीसीई के नमक का हक अदा करने पर अमादा है, तो किसी भी राष्ट्रीय स्तर के अखबार में एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दे, जिसमें यह लिखा हो कि “पुराने सीएओ और वर्तमान पीसीई द्वारा किए गए ₹270 करोड़ से अधिक के सारे एसएलटी अर्जेंट और केवल स्पेशल नेचर के कार्यों के लिए किए गए, और इन कार्यों को खुली निविदा (ओपन टेंडर) के माध्यम से किसी भी हालत में नहीं कराया जा सकता था। इससे रेलवे राजस्व की बचत हुई है और सारे कार्य शुरू में तय की गई समय सीमा के भीतर पूर्ण रूप से समाप्त किए जा चुके हैं! और इसके बाद उन सभी एसएलटी से संबंधित सारे कागजात अंतर विभागीय टिप्पणी, टेंडर के कागजात, टेंडर मिनिट्स, कार्य से संबंधित बिल इत्यादि दस्तावेज रेलवे बोर्ड की वेबसाइट पर सार्वजानिक कर दें, ताकि देश की जागरूक जनता रेल के दीमकों की कारस्तानी देख सके। सांच को आंच क्या!”

‘तिकड़मबाज तिकड़ी’ का सदस्य – पीसीपीओ – जो कि बिहार सरकार में हुए पुस्तक घोटाले का संभावित मास्टर माइंड और मुख्य आरोपी है और अपनी जाति बिरादरी के एक-दो नेताओं और संबंधित अधिकारियों की मदद से विभागीय जांच को प्रभावित करा रहा है, ने अपने स्वजातीय ‘वसूली भाई’ को दानापुर में डीपीओ के पद पर भेजकर अपनी लूटपाट को कायम रखा हुआ है और आज भी इसके लिए वसूली कर रहा है। हालत यह है कि पैसा लेकर कुछ अधिकारियों को मंडल से मंडल में और सीधी भर्ती सीनियर आईआरपीएस ऑफिसर्स को मुख्यालय में बैठाकर कनिष्ठ अधिकारी, जो उसका पेट भरने में सक्षम हों, उनकी पोस्टिंग बाकी मंडलों में कर रहा है।

अधिकारियों का कहना है कि पीसीपीओ के आतंक से वरिष्ठ कार्मिक अधिकारी रेल छोड़ने के लिए मजबूर हो रहे हैं। कईयों ने तो अपना ट्रांसफर अन्यत्र करा लिया, क्योंकि कोई भी इसके पाप का भागी नहीं बनना चाह रहा है। पूर्व मध्य रेल के कार्मिक विभाग में बिना नजराना दिए, बिना चढ़ावा चढ़ाए, कुछ भी नहीं हो सकता, क्योंकि इस भ्रष्ट अधिकारी को केवल चढ़ावे की भाषा ही समझ में आती है।

इन तीनों में जाति के लिए जिहाद के स्तर तक जाने वाले पीएफए अर्थात ‘मुनीमजी’ एकमात्र आदर्श हैं। अपनी जाति का कल्याण और दूसरे का नुकसान मुनीमजी के लिए स्वजातीय अधिकारियों और कर्मचारियों के फायदे हेतु कुछ भी कर गुजरने का जज्बा उनको हवा, पानी और भोजन की तरह जीवित रहने के लिए आवश्यक है। ‘स्वजाति कल्याण’ के मामले में मुनीम जी पहले की ‘चांडाल चौकड़ी’ और अब ‘तिकड़मबाज तिकड़ी’ के लिए रोल मॉडल हैं, बाकी दोनों भी अपने विभागों में ‘मुनीम मॉडल’ लाना चाहते हैं लेकिन दुर्भाग्यवश उनके विभागों में उतने लोग हैं ही नहीं, तथापि जो भी हैं उनको ‘सेटल’ कर दिया गया है।

कई लोगों का कहना है कि पूर्व रेल राज्यमंत्री और वर्तमान एलजी के कार्यालय में जातीय जुगाड़ के माध्यम से कार्य करते हुए इसने कई अधिकारियों और कर्मचारियों से ट्रांसफर पोस्टिंग के मामलों में पैसे का भारी घालमेल किया था और उसी हिसाब में गड़बड़ी अथवा चालबाजी के कारण इसको हटा दिया गया था। फिर जातीय जुगाड़ से इसको रेलवे बोर्ड में बैठाया गया था। इस तथ्य की पुष्टि रेलवे बोर्ड के हमारे भरोसेमंद सूत्रों ने भी की है।

तत्पश्चात दिल्ली से भगाए जाने और पूर्व मध्य रेल में आने के बाद इसने अपने स्वजातीय अधिकारियों और कर्मचारियों के हित के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए और जिहाद के स्तर तक जाकर उनको मलाईदार एवं कमाऊ पदों पर बैठाया तथा संरक्षण दिया। इतना ही नहीं, अपनी जाति का मनोबल बढ़ाने के लिए इसने एक जाति विशेष के अधिकारियों और कर्मचारियों पर उत्पीड़न एवं प्रताड़ना की अति कर दी।

एक स्वजातीय सीनियर स्केल अधिकारी को सारे नियमों, परंपराओं को तोड़ते हुए दानापुर मंडल का वित्त अधिकारी बनाया और उसको दैनिक कार्यों में सपोर्ट करने के लिए एक और स्वजातीय ग्रुप ‘बी’ अधिकारी को हाजीपुर में उससे पहले से पदस्थ दूसरी जाति के अधिकारियों खासकर अनुसूचित जाति के अधिकारियों को दरकिनार कर दानापुर में उस चहेते के मातहत पोस्ट किया, क्योंकि मुनीम जी को दूसरी जाति के अधिकारियों पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है। हालांकि मुनीमजी की यह आकांक्षा अवश्य रहती है कि दूसरी जातियों के अधिकारी और कर्मचारी उस पर भरोसा करें!

अधिकारी बताते हैं कि एक और छंटा हुआ भ्रष्ट अधिकारी, जो जूनियर स्केल से ही बिना पैसे के कुछ नहीं करता था, जिसको रेलवे बोर्ड ने पूर्व मध्य रेल, हाजीपुर से हटाकर पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे, गुवाहाटी भगाया था, मुनीमजी ने तत्कालीन स्वजातीय एएम/रेलवे बोर्ड के साथ षड्यंत्र कर उस महाभ्रष्ट अधिकारी की घर वापसी कराई और उसको कमाऊ मलाईदार स्टोर बिल का हेड बनाया, जहां एक स्वजातीय ग्रुप ‘बी’ अधिकारी सपोर्ट सिस्टम के रूप में पहले से ही तैनात था।

वह कहते हैं, मुनीम जी के दोनों ही स्वजातीय जेएजी (दो ही तो हैं) लेखा अधिकारी बिना सपोर्ट सिस्टम, वह भी स्वजातीय सपोर्ट सिस्टम के बिना, कुछ नहीं कर सकते, और सबसे बड़ी बात – इन दोनों महानुभाव को दामाद जैसी इज्जत और इनके रेगुलर काम यानि मुनाफा वसूली पर पर्दा डालने के लिए मुनीम जी ने जी-तोड़ मेहनत की और अभी भी कर रहे हैं, ताकि जग-हंसाई न हो। इतने परिश्रम के बाद भी जैसे मल पानी में ऊपर आ जाता है, उसी तरह इन दोनों की अक्षमता भी ऊपर आती रही है।

मुनीम जी का वसूली एजेंट स्वजातीय एएफए, जो कि मुनीम जी के वरदहस्त और पुराने स्वजातीय सीएओ की कृपा से लेखा निर्माण संगठन का स्वयम्भू बन बैठा है, और हो भी क्यों न, मुनीम जी का पालतू कारिंदा होने के नाते उसकी वसूली का जिम्मा उसके कंधों पर ही तो है। लेखा विभाग के वरिष्ठ अधिकारी भी इस ‘वसूलीनाथ’ के सामने नतमस्तक होकर ही मुनीम जी के दरबार में अपनी हाजिरी लगाते हैं और फरियाद पहुंचाते हैं।

मुनीम जी ने बिना किसी अपवाद के सभी स्वजातीय अधिकारियों को उनकी मन-पसंद मलाईदार कमाऊ पोस्टों पर बैठा रखा है, और मुनीम जी के दो साल से अधिक कार्यकाल की यही सबसे बड़ी उपलब्धि रही है। अत्यंत मासूम मुनीम जी जाति के आगे सोच ही नहीं पाते हैं, चाहे वो पर्सनल मैटर हो या प्रोफेशनल मैटर। जातिगत आधार पर संचिकाओं का निष्पादन मुनीम जी को एक अलग पहचान देता है।

अधिकारियों का कहना है कि पूर्व मध्य रेलवे फंड की अफरा-तफरी और जातिगत भ्रष्टाचार के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है और यह सब महाप्रबंधक महोदय की जानकारी में होने के बावजूद ‘तिकड़ी’ के डर से वह कुछ भी करने में अक्षम हैं। एसएलटी की मलाई का मजा भी उनके जमीर को संभवतः इस ‘तिकड़ी’ के विरोध में जाने से रोक रहा है। महाप्रबंधक की बदनामी के पीछे भी यही चांडाल चौकड़ी थी, जो अब ‘तिकड़ी’ में बदल गई है।

अनुपम शर्मा, महाप्रबंधक, पूर्व मध्य रेलवे

आखिर ऐसे विभाग प्रमुखों (एसएजी/एचएजी), जिनका दो साल से अधिक का कार्यकाल पूरा हो चुका है, रेल प्रशासन और रेलवे बोर्ड को उन्हें अन्य जोनल रेलों में भेजने अथवा इंटरचेंज तथा रोटेशन पॉलिसी पर अमल करने में क्या दिक्कत है? शीर्ष रेल प्रबंधन इस सवाल का जवाब देने से अथवा इस पर पुख्ता कदम उठाने से क्यों कतरा रहा है? अगर कोई सीनियर अधिकारी पूर्व मध्य रेलवे या अन्य जोनल रेलवे में नहीं जाना चाहता है, तो उन कारणों की समीक्षा होनी चाहिए, लेकिन लंबे समय से एक ही जगह एक ही शहर और एक ही रेलवे में जमे सेंधमार, डकैत और जतान्ध अधिकारियों से रेलवे को अविलंब मुक्ति दिलाई जाए। यही अंतिम इच्छा व्यक्त की है कामकाजी, परिश्रमी और रेल के लिए समर्पित रेलकर्मियों एवं अधिकारियों ने! उम्मीद की जाती है कि शीर्ष रेल प्रबंधन उनकी इस ‘अंतिम इच्छा’ का मान रखेगा!

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी

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