दक्षिण रेलवे मजदूर यूनियन : मान्यताप्राप्त ट्रेड यूनियन या माफिया?
दक्षिण रेलवे मजदूर यूनियन के विरोध में उतरे सभी अन्य संगठन
अधिकारियों का चरित्रहनन करके प्रशासन को ब्लैकमेल करती है यूनियन
यूनियन के पे-रोल पर रहने वाले अधिकारी देते हैं भ्रष्टाचार को बढ़ावा
एक पार्सल पोर्टर आज ढ़ाई हजार करोड़ का धन्नासेठ कैसे बन गया?
यूनियन की दादागीरी के चलते रेलवे बोर्ड के नियम नहीं लागू होते द. रे. में
यूनियन की मर्जी से ही होती है दक्षिण रेलवे में जीएम और पीएचओडी की पोस्टिंग?
सुरेश त्रिपाठी
दक्षिण रेलवे में पिछले करीब पंद्रह दिनों से मान्यताप्राप्त ट्रेड यूनियन ‘दक्षिण रेलवे मजदूर यूनियन’ और रेल प्रशासन के बीच काफी घमासान चल रहा है. रेल प्रशासन चाहता है कि उसके निर्धारित नियम-कानून के अनुसार ही जोनल रेलवे का कामकाज चलना चाहिए, जबकि द.रे.म.यू. का मानना है कि चूंकि वह मान्यताप्राप्त है, इसलिए वह जैसा कहेगी, या जैसा चाहेगी, वैसा ही होगा, क्योंकि भारतीय रेल अथवा अन्य 15 जोनों के नियम-कानून द. रे. पर लागू नहीं होते हैं. इस मामले में यूनियन का साथ यहां बीसों साल से बैठे मुख्य कार्मिक अधिकारी (सीपीओ), मुख्य परिचालन प्रबंधक (सीओएम) और वरिष्ठ उप-महाप्रबंधक (एसडीजीएम) जैसे कुछ अधिकारी भी दे रहे हैं, जो कि यूनियन की ‘एक्स्ट्रा पर्क्स’ पर रहते आए हैं? द. रे. में यूनियन और प्रशासन के बीच चल रही इस तमाम उठापटक पर ‘रेलवे समाचार’ की अब तक बहुत गहरे से नजर रही है.
मामला यह है कि ऐसा माना जाता है कि द.रे. में वह अधिकारी जीएम नहीं बन सकता है, या विभाग प्रमुख (पीएचओडी) बनकर नहीं बैठ सकता है, जिसे यूनियन नहीं चाहती है. इसका ज्वलंत उदाहरण लगभग चार साल पहले के. के. अटल की अंतिम समय में बदली गई पोस्टिंग थी. यही प्रयास मुख्य वाणिज्य प्रबंधक (सीसीएम) के पद पर अजीत सक्सेना की पोस्टिंग को लेकर किया गया. यूनियन नहीं चाहती थी कि अजीत सक्सेना की द. रे. के सीसीएम पद पर पोस्टिंग हो. जानकर बताते हैं कि यही वजह रही है कि करीब तीन महीनों तक उक्त पद खाली रहा, मगर अजीत सक्सेना की पोस्टिंग नहीं होने दी गई. अंततः जब उनकी पोस्टिंग नहीं रुक सकी, तो यूनियन ने उनके साथ सामंजस्य बैठाने के लिए अपने शीर्ष नेताओं का सहारा लिया.
बताते हैं कि सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाए रखने और सामंजस्यपूर्ण कार्य-व्यवहार के लिए शीर्ष नेताओं के कहने या हस्तक्षेप से सीसीएम ने यूनियन के महामंत्री को एक-दो बार अपनी तरफ से फोन कर लिया. जानकारों का कहना है कि सीसीएम श्री सक्सेना द्वारा कॉल कर लेने को यूनियन ने उनका अपने दबाव में आ जाना मान लिया और यूनियन की नौटंकी पुनः शुरू हो गई. उल्लेखनीय है कि इससे पहले चेन्नई मंडल के सीनियर डीसीएम वी. रविचंद्रन को यूनियन ने ही हटवाया था, उन्हें श्री सक्सेना ने सीसीएम का चार्ज लेने के तुरंत बाद पुनः उसी जगह पदस्थ करवाया, जिससे यूनियन की नाक पहले ही नीची हो गई थी. इसीलिए यूनियन नहीं चाहती थी कि श्री सक्सेना की पोस्टिंग द. रे. के सीसीएम पद पर हो.
हालांकि जानकारों का यह भी कहना है कि शुरू में तो जोनल शीर्ष प्रबंधन भी श्री सक्सेना की पोस्टिंग को लेकर असमंजस में था. परंतु अब उनकी ईमानदार, समर्पित और रेल-हित में अपनाई जा रही कार्य-प्रणाली को देखने के बाद वह भी उनके सहयोग में पूरी तरह से सामने आ गया है, जिससे यूनियन और उसका समर्थन करने वाले उपरोक्त ‘गुलाम’ अधिकारी काफी अचंभित हैं, क्योंकि इससे उपरोक्त अधिकारियों के अस्तित्व पर सवाल खड़ा हो गया है, जो कि पिछले कुछ महीनों से सीसीएम के पद पर अजीत सक्सेना की पोस्टिंग न होने देने के लिए लगातार यूनियन को भड़काते रहे हैं? बताते हैं कि उनकी यह भीतरघात अभी-भी जारी है, जिसकी परिणति पिछले 15-20 दिनों से यूनियन और सीसीएम के बीच एक-दूसरे पर वर्चस्व कायम करने की कोशिशों के रूप में सामने आ चुकी है. ज्ञातव्य है कि सीसीएम का पदभार ग्रहण करने बाद पिछले कुछ महीनों में ही श्री सक्सेना ने महाप्रबंधक के मार्गदर्शन में इमरजेंसी कोटे की करीब 18 से 20 हजार सीटें/बर्थें प्रति सप्ताह सर्वसामान्य और जरूरतमंद यात्रियों को उपलब्ध करवाई हैं. यह सीटें/बर्थें अब तक यूनियन के शीर्ष पदाधिकारी और सीपीओ, सीओएम और एसडीजीएम जैसे भ्रष्ट अधिकारी बेचते रहे हैं. इसके अलावा भी उन्होंने इतने कम समय में यात्रियों और रेल-हित के अन्य कई कार्य किए हैं, जिनकी अपेक्षा रेल प्रशासन से अब तक शायद किसी रेलयात्री ने नहीं की थी.
प्राप्त जानकारी के अनुसार चेन्नई मंडल में सीनियर डीसीएम ने हाल ही में 10-15 साल से एक ही जगह और एक ही बैच में काम कर रहे तमाम टीटीई एवं अन्य वाणिज्य स्टाफ का आवधिक तबादला (पीरियोडिकल ट्रांसफर) कर दिया था और बैचों की कुछ संख्या भी घटा दी थी. जैसा कि अपेक्षित था, यूनियन ने इसका विरोध किया और मामला सीसीएम तक पहुंच गया. सीसीएम श्री सक्सेना ने बैच संख्या तो पूर्ववत कर दी, मगर यूनियन का नियम नहीं माना. यूनियन का कहना (नियम) यह था कि बैच में काम कर रहे टिकट चेकिंग स्टाफ का बैच तो बदलेगा, मगर वह किसी न किसी बैच में ही रहेगा. यानि एक से दूसरे बैच में चला जाएगा. इसी प्रकार गाड़ियों में चलने वाला यात्री सुविधा (पैसेंजर एमिनिटी) का स्टाफ भी वहीं रहेगा, उसका भी सिर्फ रूट बदलेगा. यानि वह बैच में कभी काम करने नहीं आ सकता है. इसी तरह स्टेशन पर कार्यरत टीसी स्टाफ का प्लेटफार्म बदलेगा, स्टेशन नहीं. बुकिंग, गुड्स, पार्सल, आरक्षण आदि वर्गों के वाणिज्य स्टाफ की भी सिर्फ सीटें बदलेंगी, डिपो नहीं.
बताते हैं कि सीसीएम श्री सक्सेना ने यूनियन के यह नियम मानने से स्पष्ट इंकार कर दिया और कहा कि जो नियम पूरी भारतीय रेल और अन्य जोनल रेलों में लागू हैं, वही दक्षिण रेलवे में भी लागू होंगे, यूनियन के नियम मान्य नहीं हो सकते हैं. उल्लेखनीय है कि यूनियन की दादागीरी के चलते उपरोक्त समस्त स्टाफ सहित लगभग सभी विभागों में भी यही स्थिति है, जहां 20-20 सालों से कर्मचारी एक ही जगह, एक ही डिपो में कार्यरत हैं, क्योंकि उन्हें यूनियन का संरक्षण प्राप्त है. यदि किसी अधिकारी ने उन्हें वहां से दरबदर करने का प्रयास भी किया, तो उसे या तो यूनियन ने अपने तरीके से ‘समझा’ दिया, और यदि वह नहीं माना, तो किसी महिला को आगे करके उस पर शारीरिक शोषण का झूठा आरोप लगाकर उसे ठिकाने लगा दिया गया. बताते हैं कि ऐसे कई मामले विगत में होने के कारण आज तक दक्षिण रेलवे में किसी अधिकारी ने यूनियन से पंगा लेने की हिम्मत ही नहीं की. परिणामस्वरूप यूनियन की दादागीरी लगातार चलती रही, और उसके एक प्रमुख पदाधिकारी की जेब लगातार मोटी होती गई.
बताते हैं कि यूनियन का ही नियम बरकरार रखने के लिए यूनियन ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया, मगर जब महाप्रबंधक स्तर से भी उसे कोई उम्मीद दिखाई नहीं पड़ी, तो उन्होंने अजीत सक्सेना पर भी अपना पुराना हथियार (ब्रम्हास्त्र) आजमाने की कुत्सित कोशिश की. प्राप्त जानकारी के अनुसार श्री सक्सेना ने अपना मोबाइल नंबर सार्वजनिक किया हुआ है और अपने चैम्बर का दरवाजा खुला रखा है, जिससे स्टाफ अथवा यात्री, कोई भी कभी-भी उनसे बात कर सकता है, या पूर्वानुमति लेकर मिलने जा सकता है. गत सप्ताह जब श्री सक्सेना किसी विजिटर से अपने चैम्बर में चर्चा कर रहे थे, तभी बिना कोई पूर्व अनुमति लिए करीब 20-25 महिलाएं उनके चैम्बर में यह कहते हुए जबरन घुस गईं कि उन्हें उनसे बात करनी है. पता चला है कि श्री सक्सेना ने जब उनसे कुछ देर बाद आने को कहा, तो वह जोर-जोर से नारेबाजी करती हुई तुरंत बात करने पर जोर दिया और मिलने आए व्यक्ति को स्वयं ही बाहर जाने को कह दिया.
बताते हैं कि तब तक श्री सक्सेना को स्थिति की गंभीरता का कुछ-कुछ अंदाजा हो गया था, तभी उन्होंने कॉल करके अपनी एक महिला डिप्टी सीसीएम और अपने ओएसडी एवं पीए को अंदर बुलाया. उन्हें भी चैम्बर के बाहर खड़ी महिलाओं ने अंदर जाने से रोका. किसी तरह से जब डिप्टी सीसीएम अंदर पहुंची, तब पता चला कि उतनी ही महिलाएं चैम्बर के बाहर भी दरवाजा रोक कर खड़ी हैं, जितनी अंदर हैं. डिप्टी के अंदर पहुंचते ही और गुस्से में आ गई महिलाओं ने चैम्बर को भीतर से बंद कर लिया और गाली-गलौज करते हुए लगभग हमलावर हो गईं. तब डिप्टी की मदद से श्री सक्सेना ने सबसे पहले पुलिस को कॉल किया और वहां उपस्थित नारेबाजी तथा गाली-गलौज करती हुई सभी महिलाओं के फोटो लेने एवं वीडियो बनाने का आदेश दिया. बताते हैं कि जैसे ही पुलिस का नाम सुना और महिला डिप्टी, ओएसडी एवं पीए ने उनके फोटो और वीडियो लेना शुरू किया, अब तक एकदम तमतमाई हुई महिलाएं दुम दबाकर भाग खड़ी हुईं. अपना चेहरा छुपाकर सीसीएम कार्यालय से भाग रही उक्त महिलाओं के चित्र यहां बखूबी देखे जा सकते हैं.
चरित्रहनन की कुत्सित कोशिश और कार्यालयीन शांति भंग करने तथा जबरन कार्यालय में घुसने आदि के आरोप में श्री सक्सेना की शिकायत पर पुलिस ने अन्य के साथ 9 महिलाओं के खिलाफ नामजद मामला दर्ज किया है. बताते हैं कि इसके बाद जैसे ही सीसीएम द्वारा पुलिस में लिखित नामजद शिकायत दर्ज कराए जाने का पता चला, वैसे ही एक महिला भी दुर्व्यवहार किए जाने की शिकायत लेकर सीसीएम के खिलाफ मामला दर्ज कराने पुलिस के पास पहुंच गई. हालांकि पुलिस ने पहले इस बारे में ठीक से सोच-विचार कर लेने की बात कहकर उसे वापस कर दिया. दूसरे दिन सभी स्थानीय अखबारों ने यूनियन द्वारा एक ईमानदार अधिकारी (सीसीएम) को झूठे मामले में फंसाकर उसका चरित्रहनन करने और रेल प्रशासन को अपने जूते की नोक पर रखने के लिए बड़ी-बड़ी खबरें प्रकाशित होते ही यूनियन के हाथ-पांव फूल गए. (देखें स्थानीय अखबारों में प्रकाशित खबरों का कोलाज)
एक तरफ यूनियन (एसआरएमयू) ने जहां सीसीएम या रेल प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करते हुए जोनल मुख्यालय सहित सभी मंडल मुख्यालयों पर रेलकर्मियों का मोर्चा निकाला, वहीं उसकी सभी विरोधी यूनियनों ने उसके खिलाफ और सीसीएम एवं रेल प्रशासन के समर्थन में मुख्यालय पर संयुक्त मोर्चा निकालकर रेल प्रशासन को ठेंगे पर रखने और महिलाकर्मियों का बेजा इस्तेमाल करके उनके द्वारा अधिकारियों पर झूठे शारीरिक शोषण का आरोप लगावाकर उनको ब्लैकमेल करने वाली एसआरएमयू की मान्यता रद्द किए जाने की मांग कर दी. इन संगठनों में दक्षिण रेलवे एम्प्लाइज यूनियन (डीआरईयू), ऑल इंडिया एससी/एसटी रेलवे एम्प्लाइज एसोसिएशन, ऑल इंडिया ओबीसी रेलवे एम्प्लाइज एसोसिएशन, ऑल इंडिया कंट्रोलर्स एसोसिएशन और ऑल इंडिया स्टेशन मास्टर्स एसोसिएशन आदि प्रमुख रूप से शामिल थीं. इन संगठनों के इस मोर्चे में हजारों की संख्या में रेलकर्मी और अधिकारीगण रेल प्रशासन एवं सीसीएम के पक्ष में उपस्थित थे.
जिन 9 महिलाओं के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज की गई थी, उन्हें घटना के दूसरे दिन ही मंडल प्रशासन ने निलंबित कर दिया. पुलिस जांच, निलंबन और मीडिया में चारों तरफ हो रही बदनामी से घबराकर जो महिला पुलिस में सीसीएम के खिलाफ दुर्व्यवहार की फर्जी शिकायत करने गई थी, पता चला है कि उसे उसके पति ने घर से दुत्कार दिया है. बताते हैं कि उक्त महिला ने अपनी सहयोगियों और पुलिस से भी यह स्वीकार कर लिया है कि यूनियन ने ही उससे यह गलत काम करने के लिए कहा था. बताते हैं कि उसने यह भी कहा है कि उससे सीसीएम के खिलाफ की जाने वाली शिकायत के अंतिम पेज पर यूनियन के शीर्ष पदाधिकारी द्वारा हस्ताक्षर लिए गए थे. उसे यह नहीं बताया गया था कि उक्त शिकायत में क्या लिखा गया है. पता चला है कि उसने इसी बीच रो-रोकर जो बातें अपनी सहयोगियों से कही हैं, उसकी ऑडियो रिकॉर्डिंग की व्हाट्सऐप पर घूम रही है. स्थानीय अखबारों में भी ऐसी ही खबरें प्रकाशित हुई हैं. यह भी पता चला है कि विरोधी उपरोक्त संगठनों ने संयुक्त रूप से इस बारे में वीडियो एवं ऑडियो सीडी रेलवे बोर्ड को भी भेजी है.
इसके अलावा पीरियोडिकल ट्रांसफर के बाद एक जगह से दूसरी जगह ट्रांसफर हो चुके टिकट चेकिंग स्टाफ के करीब 42 कर्मचारी दूसरी जगह ड्यूटी ज्वाइन करने के बजाय लगभग दो-ढ़ाई महीने से अनुपस्थिति रहे, मगर यूनियन की शह पर न सिर्फ उन्हें इस दौरान रसीद बुक (ईएफटी) जारी की जाती रही, बल्कि वह यूनियन के इस आश्वासन पर यात्रियों से पेनाल्टी भी वसूलकर स्वयं को ऑन-ड्यूटी जताते रहे कि किसी भी स्थिति में यूनियन उनका कोई नुकसान नहीं होने देगी. यूनियन की दादागीरी और दीदादिलेरी की हद यह है कि उसने इस मुद्दे को जीएम पीएनएम में अपना एक महत्वपूर्ण मुद्दा भी बना दिया. यही नहीं, यूनियन ने प्रशासन से लिखित में यह भी कहा कि जो हर्जाना इन टिकट चेकिंग कर्मचारियों ने वसूल किया है, उसे सम्बंधित यात्रियों को वापस करके इसकी सूचना उसे (यूनियन को) दी जाए.
बताते हैं कि जब इस मुद्दे पर यूनियन को जवाब देने के लिए सम्बंधित फाइल सीसीएम अजीत सक्सेना के पास पहुंची, तो उन्होंने जीएम को बताया कि यह एक बहुत बड़ा आपराधिक मामला है, अब यह पुलिस केस तो है ही, इसके अलावा उक्त राशि को न तो रेलवे के खाते में जमा किया जा सकता है, यदि किया गया है, तो यह उससे भी ज्यादा गंभीर आपराधिक मामला बन गया है, और न ही इसे यात्रियों को वापस किया जा सकता है, क्योंकि यात्रियों ने तो तब दंड भरा है, जब वह बिना टिकट पकडे गए थे. हालांकि बताते हैं कि फिलहाल यह मामला पुलिस को नहीं भेजा गया है, तथापि इसे भी पुलिस में भेज दिए जाने के डर से सहमी हुई यूनियन ने उससे पहले ही सीसीएम का चरित्रहनन करके कई पूर्व अधिकारियों की ही तरह उनका भी वहां से तबादला करा देने की कुत्सित साजिश रच डाली.
जानकारों का कहना है कि जिन 9 महिलाओं के खिलाफ पुलिस में नामजद शिकायत दर्ज कराई गई है, उनमें से 3 महिलाएं वह हैं, जो विगत में बार-बार अधिकारियों के खिलाफ शारीरिक शोषण और दुर्व्यवहार का फर्जी आरोप लगाकर उन्हें चेन्नई से बाहर ट्रांसफर कराने में यूनियन की सबसे बड़ी मददगार रही हैं. पता चला है कि इनमें से सात महिलाओं ने लिखित रूप से यह कहकर प्रशासन से माफी मांग ली है कि उनको गुम