August 19, 2022

एडीआरएम पद पर एक्सटेंशन की नई कुप्रथा!

“आदेशानुसार पद विशेष पर जाकर ज्वाइन करो, या फिर वीआरएस लेकर घर जाओ!” अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए इन दो के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं होना चाहिए। जब तक इस तरह की प्रशासनिक और अनुशासनिक कड़ाई नहीं बरती जाएगी, तब तक न तो व्यवस्था सुधरेगी, न ही भ्रष्टाचार कम होगा!

ऐसा लगता है कि आजकल भारतीय रेल में एडीआरएम को धड़ल्ले से एक्सटेंशन देने की कुप्रथा चल पड़ी है, जो कि न केवल व्यवस्था के हित में नहीं है, बल्कि व्यवस्था में एक नए प्रकार के भ्रष्टाचार को जन्म दे रही है। हाल फिलहाल में ऐसा देखा गया है कि कुछ एडीआरएम को तीन-साढ़े तीन साल से लेकर चार साल का कार्यकाल भी हो जा रहा है। इसके पहले एडीआरएम का कार्यकाल डीआरएम के समान दो साल का हुआ करता था।

सोचने वाली बात यह है कि जब डीआरएम के कार्यकाल का एक्सटेंशन नहीं किया जाता है – कम से कम कागज पर तो नहीं होता – तब एडीआरएम का कार्यकाल एक्सटेंड क्यों किया जा रहा है? क्या इसके पीछे रेलवे बोर्ड लेवल पर कोई खेल खेला जा रहा है? जैसा कि सर्वज्ञात है कि एडीआरएम को बहुत सारे टेंडर एक्सेप्ट करने होते हैं। यह पोस्ट काफी सेंसिटिव नेचर की है। क्या यह रैकेट पूरी तरीके से एडीआरएम के कार्यकाल का एक्सटेंशन करवाने में काम कर रहा है?

जब रेलवे में एसएजी अधिकारियों की भरमार है, तब एडीआरएम में एक्सटेंशन क्यों होना चाहिए? रेलमंत्री एवं चेयरमैन सीईओ रेलवे बोर्ड को यह सोचना चाहिए कि ज्यादा से ज्यादा अधिकारियों को एडीआरएम जैसी महत्वपूर्ण पोस्ट पर दो साल के लिए पोस्टिंग किया जाए, जिससे उस अधिकारी को रेलवे के विभिन्न विभागों का नॉलेज मिल सके। इससे उसके इस कंट्रीब्यूशन से रेल व्यवस्था को बेहतर बनाने में आसानी होगी।

एडीआरएम का कार्यकाल दो साल रखने से व्यवस्था को दूसरा फायदा यह होगा कि टेंडर के मामलों में जो भ्रष्टाचार एडीआरएम लेवल पर किया जा रहा है, उसको बढ़ावा नहीं मिलेगा। रेलमंत्री एवं चेयरमैन सीईओ रेलवे बोर्ड पता नहीं इस तरह के पोस्टिंग आर्डर और इसके पीछे चल रहे रैकेट को समझ क्यों नहीं पा रहे हैं? इसे रोक क्यों नहीं रहे हैं? और इसे क्यों नजरअंदाज किया जा रहा है?

इसका परिणाम यह है कि मंडलों में फैले भ्रष्टाचार पर रोक नहीं लग पा रही है। लगता है रेल प्रशासन की रेलवे में फैले भ्रष्टाचार को रोकने की कोई मंशा ही नहीं है। इस स्थिति में रेलमंत्री को वस्तुस्थिति का स्वयं संज्ञान लेकर अविलंब निर्देश देना चाहिए कि एडीआरएम का कार्यकाल दो साल से अधिक बिल्कुल न हो! और इस पद पर जिस भी अधिकारी का कार्यकाल दो साल हो रहा है, उससे पहले ही वहां दूसरे अधिकारियों की पोस्टिंग कर दी जाए, जिससे यह खेल अधिक दिनों तक नहीं चल सके!

जानकारों का कहना है कि इस नए रैकेट के पीछे दो कारण हो सकते हैं। पहला यह कि कमाई का अवसर और कमाई में हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के बाद डीआरएम अथवा जीएम द्वारा अधिकारी विशेष के लिए एडीआरएम पद पर एक्सटेंशन की अनुशंसा रेलवे बोर्ड से की जा रही हो सकती है। दूसरा यह कि हो सकता है अधिकारीगण इस पद पर आना ही न चाहते हों।

उन्होंने इसका एक हल भी बताया है। उनका कहना है कि अधिकारियों को पद विशेष पर न जाने अथवा उससे इंकार करने का विकल्प ही नहीं दिया जाना चाहिए। उनके सामने केवल दो ही विकल्प होने चाहिए – पहला, आदेश के अनुसार पद विशेष पर जाकर ज्वाइन करो, या फिर दूसरा यह कि वीआरएस लेकर घर जाओ! उन्होंने कहा कि इन दो के अलावा अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए अन्य कोई विकल्प नहीं होना चाहिए। जब तक इस तरह की प्रशासनिक और अनुशासनिक कड़ाई नहीं बरती जाएगी, तब तक न तो व्यवस्था सुधरेगी, न ही भ्रष्टाचार कम होगा!

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी

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