कानूनी पचड़ों से बचने के लिए रेलवे बोर्ड ने सुधारी 25 साल पुरानी गलती

रेलवे बोर्ड ने समाप्त किया सीनियर स्केल में पदोन्नति के अस्थाई नियम

पिछले 25 वर्षों से की जाती रही रेलवे बोर्ड के नोटिफिकेशन की गलत व्याख्या

सीनियर स्केल के सभी पद ग्रुप ‘ए’ के हैं, इन पर नहीं है ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों का हक

एक साजिश के तहत रेलवे ऐक्ट में मौजूद प्रावधान को ‘डायल्युट’ करने की कोशिश की गई

सुरेश त्रिपाठी

वर्तमान केंद्र सरकार की गाज गिरने तथा न्यायालयों की फटकार सुनने से पहले हीरेलवे बोर्ड के अधिकारियों ने रेलवे ऐक्टद्वारा पारित पदोन्नति वाले नियमों को वापस लागू कर दिया. केंद्रीय कैबिनेट की बिना किसी मंजूरी के पिछले 25 वर्षों तक सीनियर स्केल में पदोन्नति वाले नियमों में अस्थाई बदलाव कर पदोन्नतियां की जाती रही हैं. इससे पिछले करीब 25-26 वर्षों तक रेलवे को करोड़ों-अरबों रुपए के अतिरिक्त राजस्व का बोझ सहना पड़ा है.

रेलवे बोर्ड ने 11 अगस्त 2016 को एक अध्यादेश (नोटिफिकेशन सं. ई(जीपी)/ 2016/1/9) जारी कर सीनियर स्केल में प्रमोशन वाले अस्थाई बदलाव के नियमों को पूर्ववत लागू कर दिया है. इसकी पृष्ठभूमि वर्ष 1985 में तब आरम्भ हुई थी, जब रेलवे बोर्ड ने जूनियर से सीनियर स्केल में पदोन्नति के लिए एक कम्प्रिहैन्सिव गाइडलाइन्स जारी की थी. इन गाइडलाइन्स में बताया गया था कि सीनियर स्केल के सभी पद ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों के लिए हैं, चाहे वह डायरेक्ट रिक्रूट (सीधी भर्ती) हों या प्रमोटी. फलस्वरूप पदोन्नति के लिए वरीयता क्रम का निर्धारण किया गया.

वरीयता क्रम में सर्वप्रथम 4 वर्ष या अधिक की सेवा पूरी करने वाले ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों को वरीयता दी जाएगी. यदि 4 वर्ष वाला कोई ग्रुप ‘ए’ अधिकारी उपलब्ध नहीं है, तब सीनियर स्केल के रिक्त पदों पर 3 वर्ष की सेवा पूरी करने वाले ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों को सीनियर स्केल में एडहॉक (तदर्थ) पदोन्नति में वरीयता मिलेगी. यदि उक्त दोनों स्थितियां नहीं बनती हैं, और सीनियर स्केल में पद रिक्त है, तब ऐसी स्थिति में 3 वर्ष की न्यूनतम सेवा देने वाले ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों को सीनियर स्केल में एडहॉक पदोन्नति दी जा सकेगी.

(Based on Rly Board’s letter No. E(GP)85/1/48, dated 31.12.1985).

The precedence which is to be followed for making this kind of promotion as per above mentioned letters are:-

1. Group ‘A’ – Officers with 4 years & more service.

2. In absence of (1), Group ‘A’ – Officers with less than 4 years but more than 3 years of service.

3. In absence of (1) & (2) Group ‘B’ – Officers with 3 years and more service.

इसके साथ ही रेलवे ऐक्ट यह भी स्पष्ट करता है कि यह एडहॉक प्रमोशन अधिकतम एक साल के लिए किया जाएगा तथा प्रत्येक वर्ष ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों की उपलब्धता के आधार पर ही एडहॉक सीनियर स्केल के रिक्त पदों की गणना होगी. इसके बाद ही रिक्त पदों पर ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों को एडहॉक प्रमोशन दिया जा सकेगा.

Reference : IREC (Indian Railway Establishment Code) Vol-1/214 (quoted in the below)

214. Powers of General Managers in making officiating promotions – The General Manager may appoint..

a. A Group ‘C’ railway servant to officers in group ‘B’ cadre.

b. A Group ‘B’ officer to officiating in group ‘A’, senior scale as ad-hoc basis for a continuous period not exceeding more than one year on each occasion when circumstances warrant such course except to the posts of Security officers, Law officer, Hindi officer, Chemist and Metallurgist, Public Relations Officers and Superintendent (printing a stationery):

Railway Ministry’s decision –

“Group ‘B’ officers will be considered for ad-hoc promotion to senior scale when group ‘A’ (Junior Scale) officers with 3 years of service in junior scale are not available.”

रेलवे बोर्ड द्वारा पत्र सं. ई(जीपी)89/1/8 के माध्यम से दि. 17.04.1990 को जूनियर से सीनियर स्केल में प्रमोशन वाले नियम में अस्थाई रूप से बदलाव किया गया था. इसमें कहा गया था कि एडहॉक सीनियर स्केल में प्रमोशन देने के लिए 6 वर्ष की सेवा देने वाले ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों को वरीयता मिलेगी, जो कि 3 वर्ष की सेवा देने वाले ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों से ऊपर होगी. इसी के बाद से नए अस्थाई नियम के आधार पर ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों को सीनियर स्केल में एडहॉक प्रमोशन दिया जाने लगा था.

परंतु रेलवे बोर्ड द्वारा दि. 17.04.1990 को जारी किया गया उपरोक्त संख्यक पत्र स्पष्ट रूप से यह हिदायत देता है कि सीनियर स्केल के सभी पद ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों के लिए हैं. इन पदों पर ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों का कोई हक नहीं है, फिर चाहे वह एडहॉक ही क्यों न हों. इसमें ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों के लिए सीनियर स्केल में सुनिश्चित प्रमोशन की बात न कहकर ‘एड्जज्ड सूटेबल’ (Adjudged suitable) शब्द का प्रयोग किया गया था. संदर्भ के लिए प्रस्तुत है उक्त पैरा..

“It has now been decided by the Board, as temporary measure in the overall administrative interest, that in cases where a Group ‘A’ Junior Scale officers who is eligible for regular promotion to senior scale having completed 4 years service, is not available, group ‘B’ officers who have rendered not less than 6 years service in group ‘B’ and have been ‘adjudged suitable’ by a committee of HOD’s for appointment against senior scale vacancies, may be considered for ad-hoc promotion to senior scale.”

इस अस्थाई बदलाव वाले नियम का दुरुपयोग रोकने के लिए इस पत्र के पैरा-3 में यह भी स्पष्ट किया गया था कि सीनियर स्केल के उतने पदों को रिक्त रखना है, कि जब कोई ग्रुप ‘ए’ अधिकारी अपनी 4 साल की सेवा आने वाले एक वर्ष में पूरा करने वाला हो, तब उसे सीनियर स्केल में प्रमोशन दिया जा सके तथा ऐसी कोई भी परिस्थिति उत्पन्न नहीं करनी है कि ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों को मिला एडहॉक सीनियर स्केल का पद एक साल पूरा होने से पहले ही छोड़ना पड़े. देखें संदर्भित पैरा..

“While empanelling Group ‘B’ officers for ad-hoc promotion to Senior Scale, it shall henceforth be ensured that the criteria followed are such that there may be no reasonable likelihood of such officers not getting empanelled for regular promotion to group ‘A’ at a later date, by the DPC constituted by the UPSC. Further when promoting Group ‘B’ officers with 6 years service to senior scale, on ad-hoc basis, it shall be ensured that adequate number of vacancies in senior scale would be available for promotion of group ‘A’/Junior scale officers, would be completing 4 years of servicing within the next one year, so that there may be no reasonable chance of group ‘B’ officers having to be reverted, once they are promoted to Senior Scale even on ad-hoc basis.”

तत्पश्चात रेलवे बोर्ड द्वारा वर्ष 1990 के सीनियर स्केल में प्रमोशन वाले नियम में पत्र सं. ई(जीपी)89/1/8, दि. 22.08.1990 के माध्यम से एक जोड़-तोड़ के तहत दुबारा बदलाव किया गया. रेलवे बोर्ड ने इस बदलाव के माध्यम से सीनियर स्केल में प्रमोशन के नियम को और भी लचीला बना दिया. इसमें साजिशन और जानबूझकर दो प्रमुख बदलाव किए गए :-

1. ‘एड्जस्टेड सूटेबिलिटी’ के स्थान पर ‘प्रमोशन’ शब्द का प्रयोग किया गया.

2. अगले एक साल में ग्रुप ‘ए’ के 4 साल सेवा पूरा करने वाले ‘क्लॉज़’ को भी हटा दिया गया.

इस प्रकार एक सोची-समझी साजिश के तहत रेलवे बोर्ड द्वारा इस पत्र के माध्यम से रेलवे ऐक्ट में मौजूद प्रावधान को ‘डायल्युट’ करने की कोशिश की गई.

“While empanelling Group ‘B’ officers for ad-hoc promotion to Senior Scale, it shall henceforth be ensured that the criteria followed are such that there may be no reasonable likelihood of such officers not getting empanelled for regular promotion to group ‘A’ at a later date, by the DPC constituted by the UPSC. Further when promoting Group ‘B’ officers with 6 years service to senior scale, on ad-hoc basis, it shall be ensured that adequate number of vacancies in senior scale would be available for promotion of group ‘A’/Junior Scale officers to Senior Scale soon after they complete 4 years service, so that there may be no reasonable chance of group ‘B’ officers having to be reverted, once they are promoted to Senior Scale even on ad-hoc basis.”

इसके परिणामस्वरूप समय बीतने के साथ रेलवे बोर्ड के सामने निम्नलिखित चुनौतियां आने लगीं..

1. यदि रेलवे ऐक्ट यह कहता है कि सीनियर स्केल के पद सिर्फ ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों के लिए हैं, तो उसमें अस्थाई बदलाव कर 6 वर्ष वाले ‘क्लॉज़’ को क्यों जोड़ा गया था? कोई भी अस्थाई नियम 2-4 वर्ष के लिए बनाए जाते हैं, परंतु रेलवे ऐक्ट में बिना बदलाव किए ही 25 वर्षों तक इस अस्थाई नियम को जारी रखा गया, जो किसी भी सरकारी तंत्र के लिए अनुचित और असंवैधानिक है. उल्लेखनीय है कि रेलवे ऐक्ट में बदलाव विधेयक के माध्यम से सिर्फ संसद द्वारा ही किया जा सकता है.

2. दूसरी चुनौती यह आने लगी थी कि लचीला नियम होने की वजह से जोनल रेलवे इसका दुरुपयोग करने लगे थे. जबकि यह नियम स्पष्ट कहता है कि को ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों के लिए सीनियर स्केल के पर्याप्त रिक्त पद रखना है, ताकि चार साल की सर्विस पूरी होते ही उनको प्रमोशन मिल सके. परंतु ऐसा नहीं हुआ. कई ऐसे जोनल रेलवे हैं, जहां ग्रुप ‘ए’ अधिकारी 5 वर्ष की सेवा पूरी कर चुके हैं, फिर भी उनको प्रमोशन नहीं दिया जा रहा है. इसके साथ ही ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों को एडहॉक सीनियर स्केल के पदों पर कंटिन्यु किया जा रहा है, जो कि अत्यंत अशोभनीय है.

आरटीआई से प्राप्त जानकारी के माध्यम से इस अस्थाई नियम के दुरुपयोग को आसानी से समझा जा सकता है..

वर्ष 2015 में पूर्व मध्य रेलवे के सिग्नल एवं दूरसंचार विभाग में 4 ऐसे ग्रुप ‘ए’ अधिकारी थे, जो 4 साल की सर्विस पूरी कर चुके थे, फिर भी उन्हें सीनियर स्केल में प्रमोशन नहीं दिया गया था. उसी दौरान 22 ऐसे ग्रुप ‘बी’ अधिकारी थे, जो एडहॉक सीनियर स्केल पर कार्यरत थे. इस प्रकार एक साथ दो नियमों का उल्लंघन किया गया. पहला यह कि ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों के लिए सीनियर स्केल का पद रिक्त नहीं रखा गया. दूसरा यह कि किसी भी ग्रुप ‘बी’ अधिकारी को रिवर्ट या बैक नहीं किया गया, जिससे पूरी तरह से नियमों की अनदेखी की गई.

3. जब रेलवे ऐक्ट यह कहता है कि जनरल मैनेजर द्वारा एडहॉक सीनियर स्केल के पदों की पुनरीक्षा (रिव्यु) प्रत्येक वर्ष होनी है, जबकि वास्तव में ऐसा नहीं किया जाता है, जिसको एडहॉक सीनियर स्केल मिल जाता है, उसको किसी न किसी तरह डिपाजिट वर्क के फंड का इस्तेमाल करके प्रमोशन जारी रखा जाता है. दूसरी तरफ ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों को 4-5 सालों के बाद भी सीनियर स्केल के पदों पर प्रमोशन नहीं मिल पाता है. अर्थात् 25 वर्षों तक डिपाजिट वर्क के फंड का इस्तेमाल होता रहा है, जो कि रेलवे के खजाने पर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए का अतिरिक्त बोझ बना हुआ चला आ रहा है.

4. अब रेलवे बोर्ड को लगने लगा कि धीरे-धीरे अधिकारियों के ज्ञापन बढ़ते जा रहे हैं. इसके फलस्वरूप अदालती मामले भी बढ़ते चले जाएंगे, जिससे सरकार और अदालतों को जबाव देना भारी पड़ सकता है.

5. रेलवे बोर्ड को यह भी लगने लगा कि ऐसे ज्ञापनों के बढ़ने से कई जनहित याचिकाएं (पीआईएल) भी दायर होने की संभावना बन सकती है, क्योंकि 25 वर्षों से चली आ रही इन भ्रष्टाचारपूर्ण अस्थाई और लचीले नियमों की जानकारी यदि सार्वजनिक हो गई, तो यह मामला उछल सकता है, जिससे रेल प्रशासन की भारी किरकीरी हो सकती थी.

ऐसे सभी तथ्यों पर गहन मंथन करने के पश्चात् रेलवे बोर्ड के संबंधित अधिकारियों को लगा कि इन सारी मुश्किलों से बचने का एक ही उत्तम रास्ता यही है कि अस्थाई बदलाव वाले ‘क्लॉज़’ को हटाकर 1985 वाले पूर्ववत नियम को यथावत रख दिया जाए. इसी की घोषणा रेलवे बोर्ड ने 11 अगस्त 2016 के उपरोक्त नोटिफिकेशन के माध्यम से की है.

इस परिप्रेक्ष्य में एक चिंता का विषय यह भी है कि रेलवे के वैधानिक नियमों में जानबूझकर छेड़छाड़ किया जाना कहां तक उचित है, जबकि वर्तमान जागरूक समाज में प्रत्येक क्लॉज़ और कानूनी पहलुओं सहित अदालती कामकाज की जानकारी लगभग प्रत्येक सरकारी कर्मचारी को है. इस परिस्थिति में अस्थाई नियम बनाना और उन्हें पचीसों वर्ष तक जारी रखना कितना तर्कसंगत है?

एक तरफ ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों को उनका अधिकार नहीं दिया जाना और वहीं दूसरी तरफ बिना किसी पूर्व सूचना के ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों को दी जाने वाली सुविधा को वापस ले लिया जाना कैसे वाजिब कहा जा सकता है. यह कितना न्यायसंगत है?

इसका मान-अपमान तो दोनों वर्गों से जुड़ा हुआ है. रेलवे बोर्ड को अब अपनी स्थापना में कुछ इस तरह का प्रावधान करना पड़ेगा कि ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों में भेदभाव की भावना उत्पन्न न हो, क्योंकि यदि ऐसा होता है, तो उसका प्रतिकूल प्रभाव रेलवे की उत्पादकता पर पड़ेगा. पिछले साल रेलवे के कार्य-कलापों को काफी सराहा गया था और सभी मंत्रालयों में यह दूसरे स्थान पर रहा था. कुछ ऐसी ही कार्य-संस्कृति बनी रहे, इस बात पर रेलवे बोर्ड को अवश्य ध्यान देना होगा.

हालांकि रेलवे बोर्ड द्वारा वर्षों बाद सुधारी गई अपनी इस भीषण और भ्रष्टाचारपूर्ण गलती पर ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों के शीर्ष संगठन ‘इरपोफ’ सहित सभी जोनल प्रमोटी संगठनों के पदाधिकारियों ने भी अपना विरोध दर्ज कराया है. इस संबंध में कई ग्रुप ‘बी’ अधिकारियों सहित इरपोफ के पदाधिकारियों ने भी चिंता जताते हुए कहा है कि रेलवे बोर्ड द्वारा उनके साथ पक्षपात किया जा रहा है. उन्होंने रेलमंत्री तक भी इसकी गुहार लगाई है. जबकि ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों के शीर्ष संगठन एफआरओए के वर्तमान पदाधिकारियों सहित कई पूर्व पदाधिकारियों और तमाम वरिष्ठ ग्रुप ‘ए’ अधिकारियों का कहना है कि रेलवे बोर्ड ने अपनी वर्षों पुरानी गलती को सुधार कर न्यायपूर्ण आचरण किया है. बहरहाल, अधिकार और वर्चस्व की यह लड़ाई फिलहाल जारी रहने वाली है, क्योंकि रेलवे बोर्ड द्वारा वर्षों बाद सुधारी गई इस गलती से कई कानूनी और अदालती मामले खड़े होने वाले हैं.

इस संबंध में ‘रेलवे समाचार’ का मानना है कि दि. 17.04.1990 के नोटिफिकेशन में दिए गए संदर्भों का गलत मतलब निकालने वाले और जोनल रेलों में उसको गलत तरीके से लागू करने वाले संबंधित अधिकारियों के विरुद्ध जांच करके उचित विभागीय कार्रवाई की जानी चाहिए. इसके साथ ही रेलवे बोर्ड स्तर पर भी ऐसी ही जांच और कार्रवाई होनी चाहिए, क्योंकि जब संबंधित बोर्ड अधिकारियों को यह बखूबी ज्ञात था कि रेलवे ऐक्ट में कोई भी बदलाव संसद के माध्यम से ही संभव है, तब उन्होंने सिर्फ एक सामान्य पत्र जारी कर पदोन्नतियों में इतना बड़ा घालमेल करके पिछले 25-26 वर्षों के दौरान देश के कीमती खजाने को करोड़ों रुपए का नुकसान पहुंचाया है.