भारी बरसात के बावजूद अबाध है मुंबई लोकल
मुंबईकरों ने माना रेलवे और म्युनिसिपल प्रशासन का आभार
बरसों के बाद ऐसा देखने को मिला है कि पिछले चार दिनों से हो रही लगातार भारी बारिश के बावजूद मुंबई की उपनगरीय लोकल ट्रेनें लगातार चलती रही हैं। मुंबई-कल्याण के बीच में लाइन पर या मुंबई-पनवेल, मुंबई-अंधेरी, गोरेगांव की हर्बर लाइन पर कहीं भी जल का जमाव नहीं होने पाया।
इसके लिए मुंबई के डीआरएम तथा बीएमसी प्रशासन निश्चित तौर पर धन्यवाद के पात्र हैं। मुंबई लोकल में यात्रा करने वाले लाखों उपनगरीय यात्री इस हेतु मुंबई के दोनों मंडल रेल प्रबंधकों और उनके सभी ब्रांच अफसरों, रेलकर्मियों तथा बीएमसी एवं टीएमसी के अधिकारियों/कर्मचारियों आदि सभी का दिल से आभार व्यक्त कर रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि मुंबई लोकल अगर ठहर जाती है अर्थात डिस्लोकेशन होता है, तो रेलवे के करोड़ों रुपये के नुकसान के अलावा पूरी मुंबई का व्यापार, उद्योग सभी कुछ ठप्प हो जाता है। जो कि परोक्ष रूप से अंततः अरबों रुपये की क्षति के रूप में परिलक्षित होता है। इसके साथ ही न जाने कितने यात्री परेशान होते हैं। अनेकों लोग घायल हो जाते हैं। कई लोगों की ट्रैक पर चलने के कारण जानें भी चली जाती हैं।
यह जो सुधार उपरोक्त लोगों ने किया है, उम्मीद है कि पूरी बारिश भर मुंबईकरों को इसके अच्छे परिणाम देखने को मिलेंगे। दुर्दैव से अगर घनघोर बारिश और अरब सागर में ज्वार दोनों एक साथ न आए तो!
भारी बरसात के बावजूद मुंबई लोकल अबाध रही, तो इसका एक और महत्वपूर्ण कारण है। वह यह कि अब नई लोकल ट्रेनों का निचला हिस्सा थोड़ा ऊपर है। इसके कारण पटरी (रेल टेबल) के ऊपर तीन से चार इंच पानी होने पर भी लोकल ट्रेनें 40 किमी प्रति घंटे की गति से चल सकती हैं। छह इंच पानी होने पर 10 से 15 किमी प्रति घंटे से दौड़ सकती हैं।
इसके साथ ही रेलवे और म्यूनिसिपैलिटी ने जल जमाव वाली जगहों पर भारी पंपिंग स्टेशन स्थापित किए हैं, जिससे अगर समुद्र में ज्वार की स्थिति न रही, तो कितनी भी भारी बारिश हो, रेल पटरियों पर जल जमाव की स्थिति नहीं बनने पाएगी।
इसका अर्थ यह है कि रेल प्रशासन द्वारा लोकल ट्रेनों में तकनीकी सुधार और बृहन्मुंबई म्यूनिसिपल कारपोरेशन द्वारा नालों की साफ-सफाई में दिखाई गई सकारात्मक सक्रियता तथा जल जमाव वाले क्षेत्रों में किए गए उचित प्रबंधन का भी इसमें बड़ा योगदान है।
इसी तरह मुंबईकर उम्मीद करते हैं कि रेल पथ (पी-वे) की तरफ से भी इसी तरह के सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे, जिससे कि मड-पंपिंग और पटरी टूटने से होने वाले दुष्परिणामों से रेलवे और उपनगरीय यात्रियों को बचाया जा सके।
इस संबंध में बहुत ज्यादा बताने की आवश्यकता नहीं है। समझदार लोगों को इशारा ही पर्याप्त होता है। यह भी सही है कि मड-पंपिंग को 100% तो समाप्त नहीं किया जा सकता, और पटरी टूटने की घटनाओं को भी पहले से नहीं रोका जा सकता, लेकिन पी-वे के प्रयास से काफी हद तक यह घटनाएं कम अवश्य की जा सकती हैं। पी-वे इंजीनियरों को इस संबंध में क्या करना है, और मातहतों से क्या करवाना चाहिए, वे भली-भांति जानते हैं।
बहरहाल, मुंबईकर इस प्रतीक्षा में रहेंगे कि रेल एवं म्यूनिसिपल अथॉरिटीज उन्हें धन्यवाद प्रेषित करने और आभार मानने का अगला अवसर कब प्रदान करते हैं!
प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी
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