सिविल सर्विस डायरी: जीवट, धैर्य और संघर्ष की अनूठी प्रतिमूर्तियां
“वही लोकतंत्र काम करता है, जिस पर लोक का सही नैतिक दबाव होता है। अगर लोक का दबाव गलत कामों के लिए हो, तो यह बेचारे अफसर उर्फ बाबू कहां तक लड़ सकते हैं!”
प्रेमपाल शर्मा
रेहड़ी वाले की बेटी, और इतना बड़ा सपना!!!
इस बार उसे बहुत अच्छी रैंक मिली है। मनमाफिक कैडर भी मिल जाएगा। लेकिन क्या यह मंजिल इतनी आसान थी? राजस्थान की रहने वाली दुबली पतली मानो कई रोज से खाना ही नहीं मिला हो! वेशभूषा निपट कस्बाई !
एक छोटे शहर से इंजीनियरिंग किया और उसके बाद मुंबई आईआईटी से पढ़ाई गणित में। यूपीएससी में भी वैकल्पिक विषय रखा गणित। सन 2021 में जब सामना हुआ, तब वह बेहद बीमार थी।
लॉकडाउन के घमासान के बीच वे इंटरव्यू के आखिरी दिन थे। हो सकता है बीमारी की वजह से उसने तारीख बदलवाई हो! बावजूद बीमारी के उसके जवाब लाजवाब थे ! बायोडाटा भी उतना ही रोमांचक, अनूठा।
पिता के व्यवसाय के आगे लिखा था “हॉकर”! अंग्रेजी में एक सदस्य ने पूछा क्या करते हैं? उत्तर था – रेहड़ी लगाते हैं। सदस्य रेहड़ी का अर्थ नहीं समझ पाए गैर हिंदी प्रांत से होने के कारण। यानि वे जो रेहड़ी पर घूम-घूमकर कभी फल, तो कभी भुट्टे बेचते हैं… और बेटी का इतना बड़ा सपना!!!
सभी की आंखें चौड़ी होने लगीं। उतनी ही अनूठी बात थी – “हॉबी” उर्फ आपकी रुचियों का कॉलम। “टॉकिंग टू स्ट्रेंजर्स” यानि अजनबी लोगों से बात करना।
ऐसी हॉबी के आगे पुरानी पीढ़ी के सिविल सर्वेंट्स भी पशोपेश में पड़ जाते हैं।
ऐसा क्यों!? क्योंकि मुझे नए-नए किस्से, कहानी, उनके जीवन को जानना अच्छा लगता है! जैसे पैदल चलते-चलते कोई साथ जा रहा हो… कहीं बस में यात्रा कर रही हूं, या ट्रेन में यात्रा कर रही हूं, कहीं भी कोई भी लेकिन ज्यादातर महिलाओं से या फिर बुजुर्ग लोगों से… अनजाने लोगों से बात करने में थोड़ा डर भी तो लगता है! न जाने कोई क्या समझे…
पता लगा इंटरव्यू वाले दिनों तक बीमारी की वजह से उसके चेहरे पर पीलापन था। पिछले वर्ष कोई खबर नहीं मिली लेकिन इस बार नाम देखकर बहुत तसल्ली हुई। निश्चित रूप से गणित में उसने बहुत अच्छा किया होगा और यह सब यूपीएससी जैसी ईमानदार पारदर्शी संस्था के होने से संभव होता है।
इंटरव्यू के केवल 275 नंबर होते हैं, और मुख्य परीक्षा के 1700 (200 निबंध, 1000 सामान्य ज्ञान उर्फ जनरल स्टडीज और 500 का वैकल्पिक विषय) अगर आप में दमखम है, तो इंटरव्यू में कुछ कम भी मिलेंगे तब भी आप अपनी प्रतिभा के बूते सफल होते हैं। हेराफेरी का आरोप बार-बर फेल होने वाले भी नहीं लगाते। कुछ भारतीय भाषाओं के प्रति दुर्भावना के संकेत जरूर मिलते हैं, लेकिन वह प्रसंग अगली डायरी में।
(इसीलिए पिछले वर्ष टॉपर को कम नंबर देने को उनके ओबीसी से जोड़ा गया तो दिल्ली में बैठे उन बुद्धिजीवियों पर तरस ज्यादा आया, जो रात-दिन जाति के चौखटों से बाहर ही नहीं निकलते।)
इंटरव्यू के नंबरों को भी कोठारी समिति की अनुशंसाओं को वर्ष 1979 में लागू करते समय कम रखा गया है। उससे पहले साक्षात्कार के नंबर बहुत ज्यादा होते थे और वह चुनाव/सेलेक्शन के खेल को बदल सकते थे। इसीलिए मौजूदा सरकार ने भी क्लास-वन की नौकरियों को छोड़कर केंद्र सरकार की सभी नौकरियों से साक्षात्कार खत्म कर दिए हैं।
अगर बचे है, तो केवल केंद्रीय विश्वविद्यालय, जो शत-प्रतिशत साक्षात्कार से ही भर्ती का गोरखधंधा करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी साक्षात्कार के नंबरों को 15% के आसपास रखने के निर्णय दिए हैं।
ऐसी संस्थाओं के बूते कभी पटना के मोची का लड़का, कभी भरतपुर के मजदूर की बेटी, तो कभी त्रिलोकपुरी के जमादार की बेटी प्रशासनिक सेवाओं में अब्बल आती रही हैं!….और हम सब मिलकर इसीलिए यूपीएससी की सड़क को नमन करते हैं।
क्या ऐसे बच्चे दिल्ली विश्वविद्यालय समेत केंद्रीय विश्वविद्यालय में – कॉलेज में नौकरी पा सकते हैं? जेएनयू में पा सकते हैं? अपने पड़ोस के गांव-कस्बे में नौकरी पा सकते हैं? जब तक कि इंटरव्यू बोर्ड के लिए किसी राजनीतिक संगठन की चापलूसी न करें; वर्षों तक अपने गाइड के घर सब्जी, दूध… न पहुंचाते रहें या उनके घरों पर घरेलू काम में हाथ न बटाएं!
यूपीएससी जैसी संस्थाओं का यही संदेश दूर देहात के गांव आदिवासी क्षेत्रों, केरल से लेकर मणिपुर, कश्मीर के नौजवानों में लोकतंत्र और ईमानदारी के प्रति आस्था पैदा करता है!
दोस्तो आपके उठे हाथों, प्रश्न और हिकारत को मैं अच्छी तरह समझ रहा हूं कि उसके बाद वे हाकम क्या करते हैं???… उसके बाद अगर राजनीति, आपका समाज, आपकी व्यवस्था, सिफारशी, चापलूस टट्टू उनको कुछ नहीं करने देते, तो यह देश का अपमान तो है ही, इन नौजवानों की जिजीविषा, इनके संघर्ष का भी अपमान है।
संतुलित जवाब, लाजवाब!
एक और ऐसी ही अनूठी प्रतिमूर्ति याद आ रही है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की एक मुस्लिम लड़की लगभग हांफते हुए इंटरव्यू बोर्ड के सामने थी। बस से 5 घंटे की यात्रा करके आई थी। गर्मियों के दिन इसलिए कपड़े भी मेले कुचले हो गए थे। पसीने से तरबतर। लेकिन जवाब लाजवाब!
पता लगा उसने पंजाब से इंजीनियरिंग की और फिर सिविल सेवा का मन बनाया। क्यों??? घरवाले बिल्कुल पढ़ने के खिलाफ थे, बहुत मुश्किल से इंजीनियरिंग कॉलेज तक जा पाई और उसके बाद वे सब शादी करने की फिराक में थे। मैंने प्राइवेट नौकरी तो घर से दूर रहने के लिए कर ली, लेकिन मन यूपीएससी की तरफ ही रहा।…
सबरीमाला, तीन तलाक, जेएनयू, जामिया विवाद से लेकर हर मोर्चे पर बहुत संतुलित जवाब और समझ… दकियानूसी भारतीय समाज की बेटियों को कितने पहाड़ों को लांघना होता है!!? पिछले वर्ष वह भी बहुत ऊंचे रैंक से सफल हुई! सलाम ! सलाम !! सलाम !!!
प्रेरणादाई सफलता!
इस वर्ष दिल्ली से सटे और उत्तर प्रदेश के जिले की एक महिला की कहानी भी उतनी ही प्रेरणादायक है। एक व्यवसाई की बेटी की शादी एक पैसे वाले से होती है और अंत में दुखद प्रताड़ना से गुजर कर तलाक। 8 साल के बाद एक बेटी को अपने पास रखते हुए वह यूपीएससी की तरफ देखती है, और इस बार बहुत-बहुत चमकीले अंकों से सफल होती है।
ऐसी दर्जनों मिसालें हैं, जो इस देश की बेटियों में दम भरती हैं।… सभी का दिल से अभिनंदन!!!
बड़ी प्रसिद्ध उक्ति है, “वही लोकतंत्र काम करता है, जिस पर लोक का सही नैतिक दबाव होता है। अगर लोक का दबाव गलत कामों के लिए हो, तो यह बेचारे अफसर उर्फ बाबू कहां तक लड़ सकते हैं!”
उत्तर-दक्षिण का ही अंतर देख लीजिए! बार-बार की रिपोर्टें बताती हैं कि राजनीतिक हस्तक्षेप दक्षिण के राज्यों में उतना ज्यादा नहीं है, और न ही उतना अनैतिक, जितना गंगा घाटी यानि बिहार यूपी और इधर के राज्यों में है!
एक और सबक जो इन अनूठी प्रतिमूर्तियों से मिलता है, वह है कि अगर यूपीएससी जैसी संस्थाएं, भर्ती बोर्ड, विश्वविद्यालय, स्कूल कालेज और सभी जगह काम करें, तो 21वीं सदी का भारत बदल सकता है!
अपने दिल और दिमाग सहित अतीत को भी खंगालते हुए जवाब दीजिए कि क्या आप ऐसा चाहते हैं? या आप भी ऐसी अनैतिक हरकतों से गुजरते रहे हैं और दोष संघर्ष की इन अनूठी प्रतिमूर्तियों को देते हैं!! ……जारी
प्रेमपाल शर्मा, दिल्ली: 2 जून 2022.
संपर्क: 99713 99046