ओ जाने वाले जरा होशियार.. यहां के हम हैं ठेकेदार..
अब तो बहुत सुभीता हो गया है। बैंक में बाबू ठेके पर, रेलवे में इंजन ड्राइवर ठेके पर, टीटीई ठेके पर, दफ्तर में ऑफिसर ठेके पर, चपरासी ठेके पर, कारखाने में मजदूर ठेके पर, तकनीकी अधिकारी ठेके पर। सफाई वाला ठेके पर। ठेके ही ठेके, एक बार मिल तो लें!
व्यंग्य: डाॅ रवीन्द्र कुमार
पहले ठेका शब्द एक प्रकार से अवांछित माना जाता था। ठेके से केवल एक अर्थ ध्यान में आता था, वह था – शराब का ठेका। ठेका खुला है, ठेका बन्द है। ठेके पर फलां को देखा। ठेका देशी शराब, सरकारी ठेका आदि आदि।
फिर आते हैं बिल्डिंग, पुल और सड़क बनाने वाले ठेके और उनके ठेकेदार। शराब के ठेके और ठेकेदारों से बढ़कर हैं ये बिल्डिंग, पुल और सड़क के ठेके और उनके ठेकेदार। ये वाले शराब वालों से सुपीरियर वाले माने जाते हैं, कारण कि शराब वाले तो इनके कारोबार के एक इनग्रेडियन्ट टाइप हैं, अन्य मसालों के साथ।
इससे भी सुपीरियर हैं सफारी सूट और टाई-सूट-बूट वाले ठेकेदार, जो इंग्लिश बोलते हैं। ‘फ्लाई’ करते हैं और सत्ता के गलियारों तथा पावर के आसपास मंडराते हैं। वे फलाने और ढ़ेकाने को अपनी जेब में, ब्रीफकेस में या सूटकेस में उतारने का दावा करते हैं और लबलबाता काॅन्फीडेंस रखते हैं। वे सदैव एक हल्की सी मुस्कान अपने होंठों पर तैराते रहते हैं। वे सामने वाले की बाॅडी लैंग्वेज पढ़ने में माहिर होते हैं। और लगभग लगभग सभी की रेट लिस्ट इनके पास रेडी रेकनर की तरह उंगलियों पर रहती है। इनके फैंसी डेजिग्नेशन होते हैं – चीफ पीआरओ, चीफ लायजन ऑफिसर, कंट्री हेड, आदि।
अब तो बहुत सुभीता हो गया है। बैंक में बाबू ठेके पर, रेलवे में इंजन ड्राइवर ठेके पर, टीटीई ठेके पर, दफ्तर में ऑफिसर ठेके पर, चपरासी ठेके पर, कारखाने में मजदूर ठेके पर, तकनीकी अधिकारी ठेके पर। सफाई वाला ठेके पर। ठेके ही ठेके, एक बार मिल तो लें!
देखने सुनने में भले प्रतीत हो इसके लिए संविदा पर, अनुबंध पर, निविदा पर, काॅन्ट्रेक्ट पर, और एसाइनमेंट बेस पर, अप्रेंटिसशिप आदि आदि आकर्षक नामकरण कर दिया गया है।
लेटेस्ट अब सेना के ठेके पर जाने के बाद बहुत आराम हो गया। दुश्मन का सिर लाओ तो इतना, दाहिना हाथ लाओ तो इतना, मूंछ लाओ तो इतना, दाढ़ी लाओ तो इतना, सबके अलग-अलग टेंडर भरे जाया करेंगे। जैसे ठेकेदारों के ग्रेडेशन होते हैं ए, बी, सी, ऐसे ही सेना के हुआ करेंगे। सील बंद निविदा आमंत्रित की जाया करेंगी। साउथ जोन, वेस्ट जोन, ईस्ट जोन, हिमालयन रेंज। यदि ये काम पहले हो जाता तो न सिकंदर घुसने पाता, न गजनी-गौरी आ पाते, न बाबर आता, न आज रोड और शहरों के नाम बदलने पड़ते। ठेकेदार ले-देकर सब संभाल लेते!
इस सब रेलमपेल में आप हमारे शाश्वत ठेकेदारों को मत भूल जाना। वे आदिकाल से हमारे समाज के, जीवन के हर क्षेत्र में दृष्टिगोचर होते हैं। वे हैं हमारे, आपके, सबके समाज के ठेकेदार एवं धर्म के ठेकेदार। वे अपनी ही काल्पनिक दुनियां में रहते हैं, और गाहे-बगाहे आपको भी उसमें चलने को, कभी मोटीवेट करते दीखते हैं, कभी मार-कुटाई करते। उनको आकाशवाणी होती रहती है। किसकी शादी रुकवानी है, किसकी करानी है, किसकी समाज के या धर्म के ठेकेदारों के बाई-लाॅज के अनुसार नहीं है, अतः तुड़वानी है। न टूटती हो, तो हाथ-पाँव तुड़वाकर ही अपना, समाज का और धर्म का पालन करना और कराना है।
बस अब सरकार और ठेके पर हो जाए तो संपूर्णता प्राप्त हो जाए।
ठेके पर, ठेके के लिए, ठेके द्वारा सरकार कालजयी सिद्ध होगी।
!! ठेकेदार एकता जिंदाबाद !!