मेरिट पर रेलवे बोर्ड का कोई तर्क स्वीकार करने योग्य नहीं -कैट
रेलवे बोर्ड और श्रमिक संगठनों के अवैध गठजोड़ को समाप्त करने की जरूरत है -कैट
रेलवे बोर्ड ने अपना रखा है बैक डोर एंट्री का छिछला, अफसोसजनक और कपटपूर्ण तरीका
कैट ने रे.बो. के आवेदन खारिज करते हुए उस पर दो-दो लाख रुपए की पेनाल्टी भी लगाई
जोधपुर : देश भर में रेलवे के खिलाफ अलग-अलग अदालतों में चल रहे कानूनी मामलों में चेयरमैन, रेलवे बोर्ड (सीआरबी) को पार्टी नहीं बनाए जाने और संबंधित मामलों से उनका नाम हटाने के लिए रेलवे बोर्ड की तरफ से आवेदन लगाए गए हैं. ऐसे दो आवेदन हाल ही में जोधपुर कैट में भी दिए गए थे. कैट ने सीआरबी का नाम तो नहीं हटाया, बल्कि उल्टा दो-दो लाख रुपए की पेनाल्टी अवश्य लगा दी.
कैट ने पूर्व में भीलवाड़ा में कार्यरत देवा एवं रामचंद्र नामक रेलकर्मियों की ओर से दायर प्रार्थना पत्रों की सुनवाई करते हुए ‘लार्सजेस स्कीम’ के लिए रेलवे बोर्ड को जिम्मेदार ठहराते हुए स्कीम को खारिज कर दिया था. इसके बाद महाप्रबंधक, उत्तर पश्चिम रेलवे मुख्यालय, जयपुर, चेयरमैन रेलवे बोर्ड और महाप्रबंधक (स्थापना) की ओर से दोनों ही प्रार्थना पत्रों में दिए गए फैसले से रेलवे बोर्ड का नाम हटाने के लिए रेलवे बोर्ड की ओर से कैट में आवेदन पत्र दिए दिए गए.
रेलवे बोर्ड के इन आवेदनों में तर्क दिया गया कि सीआरबी आवश्यक पक्षकार नहीं हैं तथा रेलवे ऐक्ट के तहत संबंधित जोनल महाप्रबंधक ही पर्याप्त है. यहां चेयरमैन, रेलवे बोर्ड को अभियोजित करने की जरूरत नहीं है. इसलिए इन आवेदनों में रेलवे बोर्ड और चेयरमैन, रेलवे बोर्ड का नाम हटाने का आग्रह किया गया था.
कैट ने रेलवे बोर्ड के उक्त दोनों आवेदन पत्रों को खारिज करते हुए कहा कि रेलवे बोर्ड ‘लार्सजेस स्कीम’ का क्रिएटर है और उसी ने इस स्कीम को बनाया एवं लागू किया है, इसलिए इस योजना की वैधानिकता साबित करने की प्राथमिक जिम्मेदारी भी रेलवे बोर्ड और सीआरबी की ही है. प्रशासनिक अधिकरण तथा अन्य कोर्ट के स्तर तक पिछले लंबे समय से विचाराधीन मामलों में महाप्रबंधक स्तर के अधिकारी ने भी ‘लार्सजैस स्कीम’ की वैधानिकता के बारे में कोई संतोषजनक जवाब दाखिल नहीं किया है.
कैट ने कहा कि मामला उनके खिलाफ जाने पर उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में जाने पर संबंधित अधिकारी यही कहते हैं कि उन्हें पक्ष रखने या जवाब देने का अवसर नहीं दिया गया. रेल अधिकारियों के साथ चर्चा करने पर पाया गया कि वर्ष 2004 से 2015 के बीच 13 लाख लोगों को रोजगार दिया गया, मगर इसमें 75 हजार कर्मचारी इस विधि विरुद्ध और असंवैधानिक स्कीम के जरिए बैक डोर एंट्री से आए. इस मामले में उच्च अदालतों से 43 फैसले आ चुके हैं, जो रेलवे बोर्ड को प्राप्त हुए हैं, मगर उच्च अदालतों के इन निर्णयों को रेलवे द्वारा समुचित ढ़ंग से लागू नहीं किया गया.
कैट की खंडपीठ ने न्याय व्यवस्था से जुड़े अधिकारियों से कहा कि उन पर ‘सत्यमेव जयते’ के ध्येय को कायम रखने की जिम्मेदारी है. इसके अलावा उन पर बेरोजगार, भूखे, असहाय तथा अपेक्षाकृत अधिक योग्यताधारियों का संरक्षण करने की भी जिम्मेदारी है. रेलवे बोर्ड और रेलवे के मान्यताप्राप्त श्रमिक संगठनों के अवैध गठजोड़ को समाप्त करने की जरूरत है. कैट की पीठ ने कहा कि मेरिट पर रेलवे बोर्ड का कोई तर्क स्वीकार करने योग्य नहीं है.
कैट ने कहा कि हमने पाया है कि रेलवे बोर्ड ने छिछला, अफसोसजनक और कपटपूर्ण तरीका अपना रखा है. कैट ने दोनों मामलों से रेलवे बोर्ड और सीआरबी का नाम हटाने से स्पष्ट इंकार करते हुए उनके आवेदन पत्रों को खारिज कर दिया और अधिकरण का समय खराब करने के लिए उन पर दो-दो लाख रुपए की पेनाल्टी (कॉस्ट) भी लगाई है. कैट ने यह कॉस्ट राजस्थान विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा कराने के आदेश भी दिए हैं.