टीवी न्यूज ऐंकरों का फूफा और थैंकलेस भारतीय छात्र
सारे टीवी न्यूज चैनल यूक्रेन का ऐसे रोना रो रहे हैं जैसे वहां का नेता जेलेंस्की इनका फूफा लगता हो!
जबरदस्ती की अतिरेकी घुट्टी जनता को पिला रहे हैं, जबकि कोई नहीं देखना चाहता ये सब बकवास!
यूपी के विधानसभा चुनाव से जनता को भटकाने का मीडिया का यह खेल हो सकता है!
जबकि यह सर्वज्ञात तथ्य है कि यूक्रेन ने यूएन में भारत का हर बार विरोध किया था!
#EU #यूक्रेन #यूपीचुनाव
कुछ मीडिया भांड़ ऐसे बकवास कर रहे हैं मानो ये युद्ध विशेषज्ञ हों! गला फाड़-फाड़कर ऐसे चिल्ला रहे हैं जैसे इनसे बड़ा युद्ध का जानकार विश्व में कोई नहीं है।
इनमें कुछ मीडिया भांड यूक्रेन में फंसे कुछ भारतीय छात्रों को लेकर आपदा में भी अवसर तलाशने लिए हैं। इनके आगे देश की विदेश नीति मानो कुछ है ही नहीं!
ये मीडिया भांड़ सरकार को दोष ऐसे दे रहे हैं मानो इन छात्रों को भारत सरकार ने यूक्रेन में पढ़ने भेजा था!
जबकि सच ये भी है कि केवल मुफ्त घर वापसी के चक्कर में बहुत से छात्र भारत सरकार द्वारा समय रहते जारी की गई एडवाइजरी के बावजूद वहां रुके रहे, जबकि सबको पता है कि ये लोग धनाढ्य वर्ग से आते हैं और मोटी फीस देकर विदेशों में पढ़ने जाते हैं!
केवल टीवी चैनल ही नहीं, बकवास रिपोर्टिंग करने में प्रिंट मीडिया वाले भी पीछे नहीं हैं। “मुंबई से दून आने के लिए सरकार के स्तर से नहीं मिली मदद” शीर्षक वाली यह मूर्खतापूर्ण खबर पढ़ें, छात्रों को यूक्रेन से भारत वापस लाने की सारी व्यवस्था भारत सरकार ने की, तथापि देहरादून की ये लड़कियां सरकार की सारी मेहनत इसलिए व्यर्थ बता रही हैं, क्योंकि सरकार उन्हें यूक्रेन से मुंबई ले आई, मगर देहरादून (घर) तक ले जाकर नहीं छोड़ा।
यह हरामखोरी और अहसान फरामोशी तो होनी ही है, क्योंकि भारत की जनता को राष्ट्रवादी, निष्ठावान के बजाय मुफ्तखोर तथा थैंकलेस बनाने का श्रेय भी तो भारतीय राजनीति को ही जाता है!
@PMOIndia @narendramodi @DrSJaishankar
यह देश, बच्चों को शिक्षा के पर्याप्त अवसर क्यों नहीं दे पाता?
“रेलसमाचार” की कुछ आक्रोशपूर्ण उपरोक्त ओपीनियन पर वरिष्ठ साहित्यकार और सरकारों के सरोकारों से पूर्णतः जानकार पूर्व संयुक्त सचिव, रेल मंत्रालय, भारत सरकार प्रेमपाल शर्मा का कथन है कि “यूक्रेन का वर्तमान संकट हो या दो वर्ष पहले चीन का, हर बार विदेशों में पढ़ रहे छात्रों की समस्या उजागर हुई है। आपका कहना तो ठीक है कि वहां पढ़ने क्यों जाते हैं? और हकीकत भी यही है कि यह सब अमीर हैं।
वह यह भी कहते हैं, “ये छात्र डॉक्टरी की पढ़ाई कोई देश सेवा के लिए करने यूक्रेन नहीं गए! बल्कि भारत में डॉक्टरी के धंधे को चमकाने के लिए गए हैं, लेकिन उससे बड़ा सवाल यह है कि आखिर यह देश अपनी महान महान बातों.. नेहरू के गुणगान से लेकर मौजूदा सरकार के यशोगान तक.. अपने देश के बच्चों को शिक्षा के पर्याप्त अवसर क्यों नहीं दे पाता?”
वह कहते हैं कि “क्यों यहां की सरकारी संस्थाएं आरक्षण के गोल-गोल घेरे में बरबाद हो रही हैं, तो निजी संस्थाओं पर सरकार का कोई अंकुश नहीं है, और गुणवत्ता भी गायब है! केवल आत्मनिर्भर की रट, चाहे मोदी सरकार लगा रही हो या पहले इंदिरा गांधी ने लगाई हो, यह सरासर देश के लोगों को धोखा देना है।”
वह स्पष्ट कहते हैं कि “मुझे नहीं लगता कि मंत्रियों के वहां (यूक्रेन) जाने से समस्या सुलझाने में आसानी होगी, बल्कि इन मंत्रियों की देखरेख और आवभगत में हमारे दूतावास लग जाएंगे!”