January 30, 2022

प्रमोशन में आरक्षण: सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों पर डाली मात्रात्मक आंकड़े जुटाने की जिम्मेदारी

Supreme Court of India

सरकार अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के पदों के निर्धारित प्रतिशत का पता लगाए और आरक्षण नीति पर पुनर्विचार करने हेतु एक निश्चित समयावधि तय करे! -सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिनिधित्व संबंधी वास्तविक आंकड़े जुटाए बिना अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) वर्ग के कर्मचारियों के लिए पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने के मानदंड में किसी प्रकार की छूट देने से शुक्रवार, 28 जनवरी 2022 को मना कर दिया।

न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बी. आर. गवई की पीठ ने कहा कि “राज्य प्रमोशन में आरक्षण देने से पहले वर्ग के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता पर मात्रात्मक आंकड़े जुटाने के लिए बाध्य हैं।”

न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव के नेतृत्व वाली खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा, “एम. नागराज (2006) और जरनैल सिंह (2018) के मामले में अदालत के फैसले के अनुसार राज्य मात्रात्मक डाटा एकत्र करने के लिए बाध्य हैं। संपूर्ण सेवा के लिए प्रत्येक श्रेणी के पदों के लिए डाटा का संग्रह होना चाहिए।”

पीठ ने एकमत से कहा कि केंद्र सरकार को अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति वर्ग के पदों के निर्धारित प्रतिशत का पता लगाना चाहिए और उसके बाद आरक्षण नीति पर पुनर्विचार करने हेतु एक निश्चित समयावधि तय करनी चाहिए।

पीठ ने कहा, “अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए अपर्याप्त प्रतिनिधित्व की समीक्षा की जानी चाहिए। समीक्षा की एक उचित अवधि तय होनी चाहिए। इस समयावधि को तय करने की जिम्मेदारी सरकार पर छोड़ी जाती है।”

फैसले में कहा गया है कि “प्रमोशनल पदों पर आरक्षित वर्ग के प्रतिनिधित्व की कमी का आकलन राज्यों पर छोड़ दिया जाना चाहिए।”

जानकारों और कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि “सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय अत्यंत महत्वपूर्ण है। तथापि सर्वोच्च न्यायालय ने वर्तमान जाति आधारित आरक्षण व्यवस्था की समीक्षा के लिए समयावधि तय करने का आदेश दिया है, वहीं इसके प्रतिनिधत्व के मात्रात्मक आंकड़े जुटाने की प्रक्रिया भी अपनी देखरेख में करवाना चाहिए था, क्योंकि केंद्र और राज्यों पर छोड़ी गई इस जिम्मेदारी का एक तरफ अब तक जितना राजनीतिक दुरुपयोग हुआ है, और इससे सामान्य वर्ग के लोगों की जितनी हानि हो चुकी है, उसका आकलन किया जाना लगभग असंभव है, वहीं दूसरी तरफ पिछले कई दशकों से चल रही वोटबैंक और जातिवादी राजनीति के चलते केंद्र सरकार चाहे भी तो क्षेत्रीय दलों के आगे उसकी चलने वाली नहीं है। ऐसे में सामान्य वर्ग का असीमित नुकसान होना तय है, क्योंकि वह नेतृत्वविहीन हो चुका है।”

इसके अलावा, कुछ विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि “अब समय आ गया है कि जाति आधारित वर्तमान आरक्षण व्यवस्था पर पुनर्विचार किया जाए। प्रमोशन में आरक्षण की दोहरी व्यवस्था से समाज एवं सरकारी व्यवस्था में घोर असंतोष व्याप्त है। सुप्रीम कोर्ट के मार्गदर्शन में यह व्यवस्था समाज के केवल आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए होनी चाहिए, क्योंकि वर्तमान आरक्षण व्यवस्था के चलते जहां कुछ खास लोगों को लगातार अनुचित लाभ मिल रहा है, वहीं बहुसंख्यक समाज को तोड़ने, खांचों में बांटने का प्रयास ज्यादा हुआ है।”

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