सरकार परीक्षाओं में पारदर्शिता लाती क्यों नहीं? भ्रष्टाचार पर लगाम लगाती क्यों नहीं??
गड्ड-मड्ड सरकारी नीतियों, रेलवे सहित सरकारी क्षेत्र में फलते-फूलते और बढ़ते भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लगाने, सरकारी अधिकारियों की मनमानी और निरंकुशता से हैरान-परेशान देश के युवा वर्ग में सरकार के विरुद्ध पनप रहे असंतोष, और बढ़ती बेरोजगारी पर एक पाठक के तौर पर पटना के एक जागरूक व्यक्ति आशुतोष कुमार झा का दर्द आखिर छलककर शब्दों में व्यक्त हुआ है। देखें, वह क्या कहते हैं –
एक बात तो तय है कि आने वाले समय में सभी प्रकार के विभागों का विलय कर किसी एक या अनेक निजी कम्पनियों के हाथों में सौंप दिया जाएगा। शायद कुछ हद तक सरकार सही भी हो, लेकिन जिस प्रकार का भ्र्ष्टाचार अभी रेलवे सहित सरकार के अन्य विभागों में व्याप्त है और वही अब आरआरबी/आरआरसी में भी देखने को मिल रहा है, जो बिल्कुल चिन्तनीय है।
अब हर परीक्षा में 5 साल का समय लगता है। फिर कभी फोटो गलत, तो कभी फॉर्म रिजेक्ट, फिर ट्विटर कम्पैनिंग, फिर एग्जाम, फिर दो साल बाद रिजल्ट, फिर मनगढ़ंत नॉर्मलाइजेशन का कथित फॉर्मूला, भाई साहब ये सब पूर्व नियोजित नहीं तो क्या है!
मेरे ख्याल से –
1. या तो ये अधिकारी मनमानी कर कुछ भी कर देते हैं;
2. या रेलवे सहित तमाम सरकारी संस्थानों के निजीकरण से कुपित होकर मोदी सरकार को बदनाम करना चाहते हैं, खत्म करना चाहते हैं;
3. या ये भी हो सकता है कि मोदी जी के इशारे पर अब परीक्षा की प्रक्रिया को इतना जटिल बना देना चाहते हैं कि बच्चे सरकारी नौकरी से अपना मुंह मोड़ लें और हर क्षेत्र में निजीकरण का रास्ता साफ हो। यह सब बहुत दुःख की बात है;
4. आप सरकार में हैं और अपनी मनमानी करेंगे, ये कहाँ तक उचित है;
5. आप भले ही सरकारी नौकरी न दो, लेकिन निजी कम्पनी भी तो नहीं बढ़ा रहे हैं, जिससे युवाओं को रोजगार मिल सके;
6. सिर्फ एक सैमसंग या ऐसे ही कुछ अन्य विकल्पों के भरोसे क्या होगा;
7. साहब ये युवा भारत है, जहां 80% जनसंख्या युवा है, जिसमें अमूमन 50% बेरोजगार हैं, और ये सभी मिलकर सरकार की सत्ता को पल भर में पलट के रख देने की क्षमता रखते हैं, और हम नहीं चाहते कि मोदी सरकार को मुंह की खानी पड़े;
8. अतः मोदी जी से निवेदन है कि लगाम लगाईये अपने भ्रष्ट अधिकारियों पर, अपने पर, और पारदर्शिता लाइए इन सबमें!
-आशुतोष कुमार झा