माटुंगा कारखाने में फाउंडेशन के बिना चल रही ड्रिलिंग मशीन!
मशीन और रेलकर्मियों की संरक्षा-सुरक्षा खतरे में, मूढ़ डिप्टी सीईई/विद्युत जनरल का दिमाग आसमान में!
मध्य रेलवे के माटुंगा कारखाने की स्थापना 1915 में हुई थी। इस कारखाने की सॉ-मिल या चिराई खाता, मशीन शॉप आदि की गिनती कभी भारतीय रेल की सबसे बड़ी और आधुनिक यंत्रशाला के रूप में होती थी। वर्तमान में माटुंगा कारखाने में एलएचबी कोच मेनटेनेंस के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च करके आधुनिक मशीनें स्थापित की जा रही हैं। इसके साथ ही इंफ्रास्ट्रक्चर, जैसे शेड, बिल्डिंग, फ्लोरिंग इत्यादि का नवनिर्माण या पुनर्वसन किया जा रहा है।
किसी भी कारखाने में किसी भी भारी मशीन को एक व्यवस्थित फाउंडेशन पर मजबूती से फिक्स किया हुआ देखा जाता है। माटुंगा कारखाने में भी 1915 से लेकर अब तक मशीनों के फाउंडेशन निर्माण पर करोड़ों रुपये खर्च किए गए होंगे, किंतु अब यहां डिप्टी सीईई/ई-जी जैसे कुछ मूढ़धन्य अधिकारी हैं, जो न केवल स्वयं को सभी निर्धारित नियम और प्रक्रिया से ऊपर समझते हैं, बल्कि सबसे ज्यादा ज्ञानी होने के मुगालते में रहते हैं।
संलग्न फोटो और वीडियो 1954 में निर्मित एक हैवी ड्यूटी वर्टिकल ड्रिलिंग मशीन की हैं, जिसे आजकल माटुंगा कारखाना के तथाकथित सृजनशील अधिकारी – डिप्टी सीईई/विद्युत जनरल – ने विस्थापित स्थान पर बिना फाउंडेशन के टेंपरेरी विद्युत कनेक्शन करवाकर चलाने का करिश्मा किया है।
ऐसे में फाउंडेशन की जरूरत पर एक गंभीर सवाल खड़ा हो गया है। यदि फाउंडेशन जरूरी नहीं है, तो करोड़ों की बरबादी क्यों की गई और अभी भी क्यों की जा रही है? और यदि आवश्यक है, तो यह लापरवाही क्यों हो रही है? मशीन और वर्कमैन की संरक्षा-सुरक्षा से खिलवाड़ क्यों किया जा रहा है? नियम और प्रक्रिया को ताक पर क्यों रखा गया?
मशीन फाउंडेशन क्या है? इसकी जरूरत क्यों है?
स्थापित प्रणाली के अनुसार मशीन की नींव अर्थात फाउंडेशन न्यूनतम रखरखाव आवश्यकताओं के साथ मशीनरी को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करती है। एक अप्रत्याशित कंपन मशीन के घटकों, जमीन के सेटलमेंट, नींव की संरचनात्मक अखंडता और अन्य मशीनों या उससे सटे काम करने वाले रेलकर्मियों के लिए अत्यंत हानिकारक हो सकता है।
यदि कंपन (वायब्रेशन) अत्यधिक और बेकाबू हो जाता है, तो मशीन को बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। ऐसा न करने पर मशीन के घटकों की फटिग फेल्योर के परिणामस्वरूप कोई भयावह दुर्घटना हो सकती है। इससे बचने के लिए, सर्विसेबिलिटी लिमिट का ध्यान रखते हुए कंपन नियंत्रण हेतु उचित एवं मजबूत फाउंडेशन बनाकर उस पर मशीन को मजबूती के साथ स्थापित करके मशीन और मानव को सुरक्षित किया जाता है। अत: ऑपरेशनल और मानवीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से मशीन की मजबूत फाउंडेशन पर दृढ़तापूर्वक फिक्सिंग अनिवार्य रूप से आवश्यक होती है।
इसके साथ ही बिना फाउंडेशन के चलाई जा रही किसी साधारण मशीन में जब असाधारण कंपन स्वाभाविक रूप से होता है। तब माटुंगा कारखाने की इस अत्यंत हैवी वर्टिकल ड्रिलिंग मशीन में होने वाले वाईब्रेशन का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। ऐसे में न तो ड्रिलिंग सही होगी, और न ही ऐसे में गुणवत्तापूर्ण जॉब होना संभव है। तब सभी निर्धारित नियम-प्रक्रिया को दरकिनार कर किस आधार पर डिप्टी सीईई/ई-जी ने अपनी एक्सपर्टाइज का प्रदर्शन किया?
प्राप्त जानकारी के अनुसार माटुंगा कारखाने में डिप्टी सीईई/ई-जी के उपरोक्त मूढ़तापूर्ण कार्य-निर्णय पर वहां कार्यरत रेलकर्मियों सहित यूनियन प्रतिनिधियों ने भी सवाल उठाए थे। परंतु डिप्टी सीईई/ई-जी ने अपनी मूढ़ता के सामने किसी की भी परवाह नहीं की।
इस संबंध में जब #RailSamachar ने डिप्टी सीईई/ई-जी बी. के. सिंह को फोन करके उनका पक्ष जानने का प्रयास किया, तब उनका कहना था, “हां, मैंने बिना फाउंडेशन के मशीन चालू करने की अनुमति दी है और मैंने ही उसमें टेंपरेरी विद्युत कनेक्शन करवाया है।”
इस पर जब उनसे यह पूछा गया कि “आपके इस नियम विरुद्ध निर्णय से क्या उस मशीन पर काम करने वाले कर्मचारियों सहित उक्त मशीन की सुरक्षा और संरक्षा खतरे में नहीं है? ऐसा करके क्या आपने मशीन और वर्कमैन दोनों की सुरक्षा को खतरे में नहीं डाला है? ऐसे में अगर कोई दुर्घटना होती है, तो उसके लिए जिम्मेदार कौन होगा?”
इस पर डिप्टी सीईई/ई-जी का पुनः जो मूर्खतापूर्ण जवाब था, उसका कुल मिलाकर अर्थ यह है कि “किसी की सुरक्षा या संरक्षा खतरे में नहीं है। यहां कोई आसमान नहीं फट पड़ रहा है। जो भी होगा, वह हम देख लेंगे।”
तत्पश्चात इस विषय पर मुख्य कारखाना प्रबंधक अंजली सिन्हा से जब बात की गई, तो उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी। तथापि उन्होंने कहा कि वे इस बारे में अभी पता करवाती हैं, और अगर ऐसा हुआ है, तो यह गलत है, सुरक्षा और संरक्षा के साथ किसी भी स्तर पर समझौता नहीं किया जाएगा।
ऐसा लगता है कि माटुंगा कारखाना में फाउंडेशन के बिना हैवी ड्यूटी वर्टिकल ड्रिलिंग मशीन को चलाने की अनुमति देना बुद्धिमानी या सृजनशीलता नहीं, बल्कि यह संबंधित अधिकारी की स्वैच्छाचारिता, मनमानी और मूर्खतापूर्ण कदम है, जिसे तत्काल रोका जाना आवश्यक है। अन्यथा किसी दुर्घटना से कारखाने में व्यापक जानमाल की हानि हो सकती है। इसके साथ ही लापरवाही और मनमानी करने वाले अधिकारी के खिलाफ सख्त कार्यवाही होनी चाहिए, ताकि फिर कोई किसी मशीन या रेलकर्मी की संरक्षा-सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने की हिमाकत नहीं करे।
नोट: प्राप्त ताजा जानकारी के अनुसार सीडब्ल्यूएम के निर्देश पर उक्त ड्रिलिंग मशीन को तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया गया है और अब उसे प्रॉपर फाउंडेशन पर स्थापित करने के बाद ही शुरू करने का सख्त निर्देश सीडब्ल्यूएम ने दिया गया है।
क्रमशः – डिप्टी सीईई/ई-जी के लबाड़ीपन के चलते माटुंगा कारखाने में महिला कर्मियों का उत्पीड़न और अन्य अनियमितताएं!
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