October 22, 2021

पांच मक्कारों का सुनियोजित षड्यंत्र

कोई संस्कृति समाप्त करनी है तो उससे उनके त्यौहार छीन लो। और यदि कोई त्यौहार समाप्त करना है, तो उससे बच्चों का रोमांच गायब कर दो। कितना महीन षड्यंत्र है? कितना साफ और दीर्घकालिक जाल बुना जाता है? #समझिए! दीपावली पर पटाखे बैन करने के षड्यंत्र की कहानी!

#पंचमक्कार – मीडिया, मार्क्सवादी, मिशनरीज, मुलाना और मैकाले – किस तरह से सुनियोजित कार्य करते हैं। आप इस लेख के माध्यम से जान पाएंगे। किस तरह इकोसिस्टम बड़ा लक्ष्य लेकर चलता है, यह आप जान पाएंगे। वे किस तरह 10-20 साल की योजना बनाकर कदम-कदम पर नैरेटिव सेट कर शनैःशनैः वार कर किले को ढ़हा देते हैं, ये आप जानेंगे। जिसमें वे आपको ही अपनी सेना बनाकर अपना कार्य करते हैं और आपको पता भी नहीं चलता!

पटाखों पर बैन की कहानी 2001 से शुरू होती है। जब एक याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि पटाखे केवल शाम 6 से 10 बजे तक मात्र चार घंटे के लिए फोड़े जाएं। साथ ही इसको लेकर जागरूकता फैलाने के लिए स्कूलों में बच्चों को बताया जाए। ये केवल एक सुझाव वाला निर्णय था, न कि पटाखे फोड़ने पर आपराधिक निर्णय। ध्यान रहे, सुझाव केवल दीपावली पर ही था, क्रिसमस और हैप्पी न्यू ईयर इस फैसले में नदारद थे। ये एक प्रकार से लिटमस टेस्ट था।

यह लिटमस टेस्ट सफल रहा, क्योंकि हिंदुओं ने कोई विरोध नहीं किया। हालांकि सुझाव किसी ने नहीं माना, लेकिन उसका विरोध भी नहीं किया। इससे इकोसिस्टम को बल मिला और 2005 में एक और याचिका लगी, जिसमें कोर्ट ने इस बार पटाखों को ध्वनि प्रदूषण से जोड़कर आपराधिक कृत्य बना दिया। अर्थात रात 10 बजे के बाद पटाखे फोड़ना आपराधिक कृत्य हो गया।

हिंदुओं ने तो भी विरोध नहीं किया। उधर स्कूलों के माध्यम से लगातार बच्चों के अंदर दीपावली के पटाखों से प्रदूषण ज्ञान दिया जाने लगा। बच्चे भी एक नैरेटिव हैं। दीपावली पर पटाखे बच्चों का ही आकर्षण होते हैं। अतः उन्हें ही टार्गेट किया गया। आपको याद हो तो 2005 से ही स्कूलों में अचानक से पटाखा ज्ञान शुरू हो गया था। बच्चे खुद बोलने लगे, पटाखे मत फोड़िये!

2010 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की स्थापना हुई, जिसे प्रदूषण और पर्यावरण ग्रीनरी के नाम पर केवल हिन्दू त्यौहार दिखाई दिए – दीपावली, होली, अमरनाथ पर ज्ञान – और फैसले देने वाला एजीटी क्रिसमस और नए साल पर सदैव मौन रहा।

असली खेल 2016 से शुरू हुआ। अब इस खेल में लाल घोड़े (लेफ्ट) हरे टिड्डों (एम) और सफेद बगुलों (मिशनरीज) के साथ नारंगी अर्थात भगवा भी शामिल हो गए। जी हां, सही पढ़ा आपने, नारंगी भी शामिल हो गए।

पूर्व स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने दिल्ली के तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग को चिट्ठी लिखकर दीपावली पर पटाखे बैन करने की अपील की, लेकिन एलजी ने यह अपील ठुकरा दी। तब 2017 में तीन एनजीओ एक साथ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, जिसमें से एक एनजीओ “आवाज” भी था, जिसकी कर्ताधर्ता “सुमायरा अब्दुलाली थी। जहां तीनो एनजीओ ने दीपावली के पटाखों को ध्वनि और वायु प्रदूषण के लिए खतरनाक बताते हुए तत्काल प्रभाव से बैन करने की मांग की। इसमें तीनो एनजीओ की “आवाज” से आवाज मिलाई “केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड” ने। ध्यान रहे, केंद्र और राज्य सरकार दोनों ने सुप्रीम कोर्ट में पटाखे बैन करने वाली याचिका का विरोध नहीं किया। परिणामस्वरूप सुप्रीम कोर्ट ने पहला बड़ा निर्णय देते हुए दिल्ली में पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी।

लेकिन हिंदुओं ने तब भी कोई विरोध नहीं किया, बल्कि प्रदूषण के नाम पर समर्थन किया, क्योंकि तब कथित हिन्दू “जागरूक” हो चुके थे। उन्हें लगने लगा दिल्ली में प्रदूषण का एकमात्र कारण दीपावली के पटाखे हैं।

लिटमस टेस्ट में सफल होने के बाद पंचमक्कार 2018 में पुनः कोर्ट पहुंच गए। इस बार पटाखे फोड़ने पर ही बैन लगा दिया गया। लेकिन झुनझुने के रूप में ग्रीन पटाखे पकड़ा दिए। ये दूसरा लिटमस टेस्ट था।

इस बार छिटपुट विरोध हुआ, लेकिन तथाकथित जागरूक हिन्दू, जो आप ही थे, आप ही इकोसिस्टम की सेना बनकर पटाखे बैन करने के समर्थन पर उतर गए और विरोध करने वालों को कट्टर, गंवार, अनपढ़, जाहिल, पिछड़ी सोच, और न जाने क्या-क्या कहकर आपने ही उनकी आवाज को दबा दिया और आपको पता ही नहीं चला कि कब आपको इस्तेमाल किया गया।

धीरे-धीरे यह खेल मीडिया से लेकर सेलिब्रिटी तक पहुंच गया, जहां दीपावली के ऐन वक्त पहले अचानक से प्रकट होकर क्रिकेटर/बॉलीबुड क्रेकर ज्ञान देने लगे। मीडिया में लंबी-लंबी डिबेट्स कर ब्रेनवॉश किया गया कि दिल्ली गैस चेम्बर बन गई है, जिसका एकमात्र कारण दीपावली पर जलने वाले पटाखे हैं, जिन्हें यदि बैन नहीं किया गया, तो दीपावली के अगले दिन सब सांस से घुटकर मर जाएंगे।

हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला विज्ञापन करने के विरोध में लोकसभा सांसद अनंतकुमार हेगड़े द्वारा सिएट लिमिटेड के एमडी/सीईओ अनंत वर्धन गोयनका को लिखा गया पत्र।

2020 में तीसरा लिटमस टेस्ट किया गया और पटाखा बैन दिल्ली से बाहर निकलकर पूरे देश मे लागू किया गया, जिसमें एक और एनजीओ जुड़ा। इसने नवंबर 2020 में याचिका लगाई पटाखे बैन पर। इस एनजीओ का नाम था “इंडियन सोशल रिस्पांसिबिलिटी नेटवर्क”!

जब आप और गहराई में जाएंगे, तो पाएंगे ये एक राष्ट्रवादी एनजीओ है। इसमें नारंगी सांसद विनय सहस्त्रबुद्धे, 2019 चुनाव के नारंगी आईटी सेल वाले सदस्य और वर्तमान में नारंगी अध्यक्ष जे. पी. नड्डा जी की श्रीमती जी भी हैं। नतीजा ये रहा कि दिल्ली सहित पूरे देश में पटाखे दो घंटे के अतिरिक्त बैन हो गए और उल्लंघन करने पर पूरे देश में जगह-जगह कार्रवाईयां हुईं। इस बैन में सभी ने बराबर की भूमिका निभाई।

लेकिन चूंकि उद्देश्य प्रदूषण या पर्यावरण कम, बल्कि दीपावली की परंपरा को पूर्णतः खत्म करना था। अतः दो घंटे की ग्रीन पटाखों की छूट भी चुभ रही थी। इस बार उसे भी खत्म कर दिया गया। कुतर्क दिया गया कि भगवान राम के समय पटाखे नहीं थे। जबकि जरूरी नहीं कि परंपराएं मूल से निकलें। परंपराएं बाद में भी जुड़कर सदियों से चलकर त्योहार का मूल हिस्सा बन जाती हैं, जैसे क्रिसमस में क्रिसमस ट्री और अजान में लाउडस्पीकर, जो मूल समय में नही थे। लेकिन वहां कोई कुतर्क नहीं करता।

यही है वामपंथ की ताकत जो आपका ब्रेनवाश कर आपको जॉम्बी बना देती है। जहां आप जिस डाली पर बैठे हो, उसे ही काटकर, अर्थात अपने ही मूल्यों को समाप्त कर, गर्व महसूस करते हो।

यही है नैरेटिव की ताकत, जहां दीपावली का प्रदूषण चुनावी मुद्दा बन गया। जबकि पटाखे प्रदूषण के मुख्य कारकों में टॉप 10 में भी नहीं हैं, आईआईटी रिसर्च इस बात का प्रमाण है। लेकिन हर पार्टी चुनाव जीतने के लिए दीपावली पटाखे बैन के समर्थन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगी। ध्यान रहे, मुद्दा केवल दीपावली के पटाखे बने, क्रिसमस और नया साल नहीं।

यही पंचमक्कारों की ताकत है। हालत ये है कि अब राजस्थान, दिल्ली जैसे राज्य बिना कोर्ट के आदेश के बिना मंथन, बिना बैठक, विचार-विमर्श दीपावली पर खुद ही पटाखे बैन करने लगे हैं, जैसे कोई धारा 144 जैसा रूटीन आदेश हो, लेकिन ये राज्य क्रिसमस न्यू ईयर पर चुप रहते हैं।

ये हालत तब है जब राजस्थान में प्रदूषण मुद्दा नहीं है और हिन्दू 90% हैं। अब दीपावली में पटाखे बैन करने के लिए हर साल कोर्ट जाने की भी जरूरत नहीं है। राज्य खुद ये करने लगे, क्योंकि आपने उन्हें बल दिया।

निश्चित रूप से प्रदूषण चिंता का विषय है, लेकिन उसका कारण पटाखे नहीं हैं। और जो मुख्य कारण है, उन्हें पटाखे बैन कर कर्तव्यों से इतिश्री कर ली जाती है। यदि सच में दिल्ली बचानी है, तो पटाखे बैन की नौटंकी छोड़कर एनजीओ सरकारें और विपक्ष तथा कोर्ट को प्रदूषण के मुख्य कारकों को बैन करना होगा।

पूर्वांचली बधाई के पात्र हैं, जिन्होंने छठ पूजा नैरेटिव बनने से पहले भारी विरोध कर इसे बचा लिया, वरना अगला टार्गेट छठपूजा ही थी। ध्यान रहे, कोई आपके साथ नहीं खड़ा होगा, जब तक आप स्वयं अपने साथ नहीं खड़े हैं।

दीपावली से उसका मुख्य आकर्षण पटाखा खत्म करने के लिए, बच्चों के हाथों से फुलझड़ी छीनने के लिए सब जिम्मेदार हैं। पंचमक्कारों से लेकर नारंगी भी, और आप स्वयं भी, क्योंकि आप मौन रहे। पंचमक्कार नैरेटिव ने होली से रंग, दीपावली से पटाखे, दशहरे से रामलीला, जन्माष्टमी से दही हंडी छीन ली, या छिनने के कगार पर है!

सब मिले हुए हैं….

#नोट: इसमें सिब्बल की कहानी शामिल नहीं है। उस पर बहुत लिखा जा चुका है.। यहां केवल मूल समस्या बताने का प्रयास किया गया है। लेख को छोटा रखने के लिए केवल मुख्य तथ्यों को संक्षेप में रखा गया है। कुछ विषय छूट गए होंगे या तथ्यों में कुछ अंतर हो सकता है। यहां लेखक का मुख्य उद्देश्य केवल आपको नैरेटिव और इस खेल से परिचित करवाना है, न कि किसी पर दोषारोपण करना!

#सोशल _मीडिया से साभार!

#Save_Your_Festival

#NGO #PanchMakkar #Media #Markswadi #Mishnaries #Mulana #Macaulay