July 11, 2021

अश्विनी वैष्णव से उम्मीदें: कसौटी पर है उनकी तमाम योग्यता और विशेषज्ञता!

रेलवे बोर्ड का पुनर्गठन, जीएम/डीआरएम के कार्यों की मॉनिटरिंग और भ्रष्टाचार पर नकेल कसना नए रेलमंत्री के लिए होगी बड़ी चुनौती

पूर्व रेलमंत्री पीयूष गोयल ने भारतीय रेल को रसातल में पहुंचा दिया। यह भी सही है कि उनके कार्यकाल में उनके दो चंगू-मंगू सहित रेलवे का प्रबंधन करने वाले रेलवे बोर्ड के उच्चाधिकारियों की टीम ने खूब लूटमार मचाई।

कोविड-19 के दौरान रेलमंत्री सेल और रेलवे बोर्ड के कुछ अधिकारियों ने भ्रष्टाचार के न सिर्फ नये-नये रास्ते खोले, बल्कि नये-नये आयाम भी स्थापित किए।

रेलवे के पैसेंजर कोचों को आइसोलेशन वार्ड में बदलने की योजना तत्कालीन सीआरबी की मूर्खता की पराकाष्ठा थी, जिसके इसके नाम पर जमकर रेल राजस्व की लूट हुई।

क्या प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) इससे अनजान था? नहीं, बिल्कुल नहीं, सब कुछ सबको पता था! और यदि पता नहीं था, तो फिर नियंत्रण का औचित्य क्या है?

तय करें जिम्मेदारी, जवाबदेही और उत्तरदायित्व

जनता की गाढ़ी कमाई को इस तरह बरबाद करने के लिए अब जिम्मेदारी, जवाबदेही और उत्तरदायित्व तय करके संबंधितों के विरुद्ध दंड और कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।

नियमित गाड़ियों का संचालन कोरोना के नाम पर बंद किया गया और आज तक इसे बहाल नहीं किया गया। यातायात के अन्य साधन पूरे देश में पूरे वेग में चल रहे हैं, लेकिन रेलवे को इस दशा में ला दिया गया है कि सामान्य रेल यात्री का रेलवे से मोहभंग हो रहा है।

दिवालिया होने के कगार पर देश की लाइफलाइन

देश की धड़कन – लाइफलाइन ऑफ द नेशन – कही जाने वाली भारतीय रेल की यही खासियत है कि इसके माध्यम से सामान्य यात्री से लेकर प्रीमियम यात्री तक किफायती किराए पर यात्रा कर सकते हैं।

कोरोना और लॉकडाउन के दौरान – 23 मार्च 2020 से लेकर अब तक – यदि गुड्स ट्रैफिक का संचालन नहीं रहता, तो आज भारतीय रेल निश्चित रूप से दिवालिया हो जाती।

ट्रैफिक मैनेजमेंट बनाम इवेंट मैनेजमेंट

रेलवे का प्रमुख काम यातायात सेवा था/है, लेकिन पिछले कुछ सालों में न केवल रेल को बल्कि बोर्ड मेंबर्स सहित जीएम/डीआरएम सहित तमाम रेलकर्मियों को फालतू के इवेंट आयोजित करने वाली टीम बना दिया गया।

रेलवे के अधिकारी और कर्मचारी यातायात को बढ़ावा देना छोड़कर अन्य सभी गैरजरूरी कामों में लगा दिए गए।

पूर्व रेलमंत्री पीयूष गोयल ने चीजों को सुधारने का प्रयास अवश्य किया, मगर किसी भी चीज को सिरे तक नहीं पहुंचा पाए। एक तो उनका यह अहंकार – कि एक वही सर्वज्ञाता हैं, दूसरा यह कि उनके सलाहकार भ्रष्ट और निकम्मे होने से वह चीजों को सुधारने के बजाय उन्हें बिखेरने तथा बाद में समेट न पाने पर यह दर्शाने में लग जाते थे कि वह बहुत अच्छा कर रहे हैं। जबकि वास्तव में हो कुछ भी नहीं रहा होता था।

चीजें बिखेरने को रिफार्म बताते रहे पूर्व रेलमंत्री

यही कारण था कि पीयूष गोयल ने जो भी काम अर्थात उनके शब्दों में रिफार्म शुरू किया, उनमें से कोई भी एक काम या प्रोजेक्ट आज तक अपने अंतिम निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा। जैसे – रेलवे की 8 संगठित सेवाओं का पुनर्गठन/एकीकरण (आईआरएमएस), सुप्रीम कोर्ट से संगठित सेवा की मान्यता प्राप्त करने के बाद भी आईआरपीएफएस को अलग छोड़ देना, आईपीएस से डरकर डीजी/आरपीएफ की मनमानी पर चुप्पी, हाई स्पीड रेल, ट्रेन-18 अर्थात वंदे भारत ट्रेन प्रोजेक्ट की सफल विभागीय शुरुआत के बाद इसे निजी कंपनी को सौंप देना – निष्कर्ष शून्य, एल्यूमीनियम कोच निर्माण प्रोजेक्ट का अब तक कहीं अता-पता नहीं, रेलवे की उत्पादन इकाईयों का निगमीकरण, प्राइवेट ट्रेन ऑपरेशन इत्यादि।

ट्रेन-18 (वंदे भारत) प्रोजेक्ट को सफल बनाने वाले योग्य रेल अधिकारियों के साथ दगाबाजी और उनका कैरियर बरबाद करने वाला कृत्य पीयूष गोयल के खाते का सबसे बड़ा और निकृष्ट व्यवहार था।

उम्मीद अभी जिंदा है!

लेकिन उम्मीद अभी जिंदा है। प्रधानमंत्री द्वारा नया रेलमंत्री देने से अब अश्विनी वैष्णव से कुछ अच्छा करने की उम्मीद की जा रही है। करोड़ों दैनंदिन रेलयात्री और देश की सवा अरब से अधिक जनता उनकी तरफ बहुत आशा और उम्मीद भरी दृष्टि से देख रही है।

यह समय नए रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव की सभी प्रकार की योग्यताओं और विशेषताओं की कसौटी का है।

समय पर बोर्ड मेंबर, एएम, डीजी/सेफ्टी, डीजी/एचआर, जीएम और डीआरएम के पदों पर नियुक्ति तथा फिजूलखर्ची को रोकना नए रेलमंत्री के लिए बड़े टास्क हैं।

रेलवे बोर्ड का पुनर्गठन, जीएम और डीआरएम के भी कामों की मॉनिटरिंग तथा भ्रष्टाचार – विशेषकर पांच इंजीनियरिंग विभागों – पर नकेल कसना भी रेलमंत्री के लिए अत्यंत आवश्यक और चुनौती भरा काम होगा।

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी

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