October 1, 2020

कार्यस्थल पर घरेलू हिंसा का दुष्प्रभाव: परिवहन यूनियनों द्वारा किया गया ताजा सर्वे

Indian Transport Unions brought together women leaders from all Zones and trained them.

निष्कर्ष: सर्वेक्षण में भाग लेने वाली 75% महिलाओं ने अपने जीवन काल में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से घरेलू हिंसा का अनुभव किया है

घरेलू हिंसा कार्यस्थल का एक बड़ा मुद्दा है! सरकार, नियोक्ता, यूनियन और सिविल सोसाइटी संगठन वगैरह घरेलू हिंसा के दुष्प्रभाव से निपटने के लिए मिलकर सक्रिय व्यवहार, समझौते और कानून को स्थापित करें!

प्रस्तुति: सुरेश त्रिपाठी

एक महत्वपूर्ण भारतीय अध्ययन में पता चला है कि घरेलू हिंसा कार्यस्थल पर महिलाओं का एक बड़ा मुद्दा है। अन्य भारतीय यूनियनों के साथ-साथ भारतीय परिवहन यूनियनों द्वारा किए गए अध्ययन से एक ऐसी रिपोर्ट सामने आई है, जिसका दृष्टिकोण अभूतपूर्व है। यह रिपोर्ट बताती है कि कैसे घरेलू हिंसा भारत में महिला श्रमिकों के कामकाजी जीवन को प्रभावित करती है और घरेलू हिंसा के कारण उनकी कार्य कुशलता पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है।

यह अध्ययन भारत में परिवहन तथा दूसरे क्षेत्रों के 15,561 मजदूरों के सर्वेक्षण के आंकड़ों के आधार पर, जिनमें से 98% महिलाएं थीं, इस विषय पर एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करता है कि भारत में कार्यस्थल पर घरेलू हिंसा का क्या प्रभाव पड़ता है।

They would prepare them before we reached there and give them context about the programme.

इस रिपोर्ट के परिणामों से पता चलता है कि कामकाजी महिलाओं के लिए घरेलू हिंसा बहुत बड़े स्तर पर एक समस्या है। साथ ही यह रिपोर्ट ये भी बताती है कि घरेलू हिंसा का दुष्प्रभाव सीधे कार्यस्थल तक किस तरह फैला हुआ है।

महाराष्ट्र की राज्य परिवहन कामगार संगठन (एमएसटीकेएस) की उपाध्यक्ष शीला नाइकवाडे का कहना है, “इस सर्वेक्षण में भाग लेने वाली 75% महिलाओं ने बताया कि उन्होंने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में अपने जीवनकाल में घरेलू हिंसा का अनुभव किया है। साथ ही 10 में से 9 महिलाओं ने ये भी बताया कि कैसे घरेलू हिंसा के व्यक्तिगत अनुभवों के कारण कार्यस्थल पर उनकी क्षमता कम हुई।”

उन्होंने कहा कि “इस अध्ययन ने पहले से चले आ रहे कलंक को हटाने तथा परिवहन एवं अन्य क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं के लिए घरेलू हिंसा के बारे में चर्चा शुरू करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। रिपोर्ट के परिणाम से यह स्पष्ट है कि घरेलू हिंसा कार्यस्थल का एक बड़ा मुद्दा है। समय आ गया है कि सरकारें, नियोक्ता, यूनियनें और सिविल सोसाइटी संगठन वगैरह घरेलू हिंसा के दुष्प्रभाव से निपटने के लिए सक्रिय व्यवहार, समझौते और कानून को स्थापित करें।”

श्रीमती नाइकवाडे ने आगे कहा, “इन परिणामों से इस विषय के बारे में जागरूकता बढ़नी चाहिए, विषाक्त पुरुषत्व के आसपास सामाजिक मानदंडों में परिवर्तन लाया जाना चाहिए। इसके साथ ही यह भी जरुरी है कि इसे नियोक्ता और व्यापार संघ की कार्रवाई के लिए उत्प्रेरक होना चाहिए। घरेलू हिंसा को खत्म करने तथा इसके प्रभावों को कम करने के लिए राष्ट्रीय कानून और दंड विधान में बदलाव किया जाना चाहिए।” 

Each one of us shared a strong relationship, positive approach and team bonding that kept us motivated to fight for this cause.

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज की हेल्पलाइन हैंडल ‘मला काय बोला चाइये’ को संभालने वाली प्रतिभा गजभिए का कहना है, “कोविड -19 महामारी के दौरान हमने देखा कि घरेलू हिंसा में अचानक बहुत बड़ा उछाल आया है, जिसके कारण कई महिलाओं ने सहायता के लिए हेल्पलाइन से संपर्क किया। ऐसे में यह रिपोर्ट बहुत ही महत्वपूर्ण समय पर आई है।”

इस रिपोर्ट में भारत में महिला श्रमिकों ने जिस घरेलू हिंसा के खतरनाक प्रचलन का जो अनुभव किया है, उस पर प्रकाश डाला गया है। साथ ही यह भी बताया गया है कि इस प्रचलन से श्रमिकों और उनके सहयोगियों पर कैसे हानिकारक प्रभाव पड़ते हैं। यह भी इस रिपोर्ट में है कि जो श्रमिक अपने नियोक्ताओं द्वारा दुर्व्यवहार की रिपोर्ट करते हैं उनके साथ कैसा भेदभाव होता है। इसे रोकने के लिए सरकार को पहल करने की जरुरत है। 

मुख्य निष्कर्ष:

• 47% उत्तरदाताओं ने घरेलू हिंसा का प्रत्यक्ष अनुभव साझा किया।

• 24% उत्तरदाताओं ने पिछले 12 महीनों में सहन की गई घरेलू हिंसा के प्रत्यक्ष अनुभव के बारे में बताया।

• 26% उत्तरदाताओं ने बताया कि वे कार्यस्थल पर ऐसे लोगों को जानते थे, जिन्होंने घरेलू हिंसा का अनुभव किया था।

• 92% उत्तरदाताओं का कहना था कि घरेलू हिंसा के अनुभवों ने उनके काम करने की क्षमता को कम किया।

• 77% उत्तरदाताओं ने बताया कि घरेलू हिंसा के अपने अनुभवों की रिपोर्ट करने के बाद उनके नियोक्ताओं ने उनके साथ भेदभाव किया।

• 23% उत्तरदाताओं ने बताया कि घरेलू हिंसा के साथ अपने अनुभवों के कारण उन्हें अपनी नौकरी खोनी पड़ी।

• 74% उत्तरदाताओं ने बताया कि कार्यस्थल में सहयोग – जैसे कि भुगतान वाली छुट्टी, शिक्षा, प्रशिक्षण तथा सुरक्षा जैसी नीतियां – श्रमिकों के काम के जीवन पर घरेलू हिंसा के प्रभाव को घटा सकते हैं।

• 87% उत्तरदाताओं ने बताया कि सरकारों को घरेलू हिंसा को रोकने और उनसे निपटने के लिए कड़े कानून लागू करना चाहिए।

यूनियनों ने भी शिक्षा, स्वास्थ्य कार्यकर्ता, घरेलू कामगार और निर्माण/दिहाड़ी मजदूर इत्यादि के द्वारा एक महत्वपूर्ण अध्ययन किया। वर्क यूनिवर्सिटी और अंतर्राष्ट्रीय परिवहन कर्मचारी महासंघ (आईटीएफ) में घरेलू हिंसा के संबंध में पश्चिमी विश्वविद्यालय में अनुसंधान और शिक्षा का केंद्र (सीआरईवीएडब्ल्यूसी) के शोधकर्ताओं द्वारा इस सर्वे में सहयोग दिया गया है।

“आईटीएफ को भारत में महिला यूनियन नेताओं पर बहुत गर्व है, जिन्होंने इस काम की पहल की है। इस अध्ययन से पता चलता है कि इसमें कोई संदेह नहीं कि कई कामकाजी महिलाओं के लिए घरेलू हिंसा परिवहन उद्योग में एक समस्या है। आईटीएफ के महासचिव स्टीफन कॉटन ने कहा कि इसकी जो संख्या है वह चिंता करने वाली है और कार्यस्थल पर इसकी वजह से जो हिंसा होती है, वह भी बहुत व्यापक है।

उन्होंने कहा, “वैश्विक व्यापार संघ आंदोलन में शामिल अपने सभी भाई-बहनों और दोस्तों से हम कहना चाहते हैं कि हमें घरेलू हिंसा को पहचानना और उससे निपटने को प्राथमिकता देनी होगी। यह संघ का एक मुद्दा है, यह कार्यस्थल का एक मुद्दा है, और हमें जागरूकता बढ़ाने तथा महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने के अभियान को जारी रखना चाहिए।”

कॉटन ने आगे कहा, “सरकारों और नियोक्ताओं के लिए यह एक चुनौती है कि वह उन हजारों महिलाओं की बात को सुनें, जिन्होंने इस सर्वेक्षण में अपनी समस्या बताई है और यूनियनों तथा सिविल सोसायटी के साथ मिलकर उन समस्याओं से उन्हें मुक्ति दिलाने के लिए हम सब लोग मिलकर काम करें।”

#Women_Transport_Workers, Domestic Violence Report, Nov’19-April’20

भारतीय संघों का गठबंधन जिन्होंने शोध किया:

• महाराष्ट्र राज्य परिवहन कामगार संगठन (#MSTKS)

• ऑल इंडिया रेलवेमेंस फेडरेशन (#AIRF)

• नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवेमेन (#NFIR)

• मुंबई पोर्ट ट्रस्ट, डॉक एंड जनरल इम्प्लॉइज यूनियन (#BPT, #DGEU)

• नेशनल यूनियन ऑफ सीफर्स ऑफ इंडिया (#NUSI)

• मद्रास पोर्ट ट्रस्ट कर्मचारी संघ (#MPTKS)

अनुसंधान में सहयोग:

• वेस्टर्न यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर रिसर्च एंड स्टडी (#CRVAWC)

• वर्क नेटवर्क पर घरेलू हिंसा

• अंतर्राष्ट्रीय परिवहन कर्मचारी महासंघ (#ITF)