भारतीय रेल की दिनों-दिन बिगड़ती स्थिति
ऐसा लगता है कि सरकार खुद जानबूझकर ऐसी स्थितियां पैदा कर रही है कि जिससे भारतीय रेल खुद-ब-खुद डूब जाए और उसे निजी कंपनियों के हाथों में सौंपने का रास्ता आसान हो जाए!
सुरेश त्रिपाठी
एक बार फिर सीएजी के सामने रेलवे ने गलत आंकड़ा पेश किया है। 2019-20 के ऑपरेटिंग रेशियो 101 की जगह 97 दिखाया गया। आंतरिक राजस्व बढ़ाने का कोई उपाय नहीं दिखाई दे रहा है। रेल महकमा अपने राजस्व को बढ़ाने में लगा रहा।
इतनी बड़ी मैनपॉवर होने के बाद भी हर काम को आउटसोर्सिंग के माध्यम से कराने का प्रयास किया जा रहा है। इसका सबसे बड़ा दुष्परिणाम स्टेशनों और अन्य यूनिटों की साफ-सफाई विभागीय सफाई कर्मियों की पर्याप्त उपलब्धता के बावजूद भी कॉन्ट्रैक्ट पर दे दिया गया।
ईएनएचएम सफेद हाथी साबित हो रहा है। इसका काम केवल क्लीनिंग कॉन्ट्रैक्ट के टेंडर अवॉर्ड कराना और फिर ठेकेदार से सीधा हिस्सा लेना ही रह गया है। बाकी दोहन का काम स्टेशन या यूनिट के मुखिया और हेल्थ इंसेक्टर के द्वारा की जाती है।
अब जहां तक रही बात साफ सफाई के बेहतर परिणाम की तो बढ़िया से इवेंट करके दो-चार फोटो और वीडियो अपलोड करके काम इतिश्री हो जाता है। अगर आधुनिक मशीनें और पर्याप्त संसाधन विभागीय कर्मियों को उपलब्ध कराए जाते, तो साफ-सफाई का काम विभागीय स्तर पर ही और बेहतर हो सकता था। इसकी लागत भी कम होती। लेकिन तब कमीशन नहीं मिलता?
बात सिर्फ ईएनएचएम तक ही सीमित नहीं है, इंजीनियरिंग, सिग्नल, मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, मेडिकल, स्टोर इत्यादि न जाने कितने विभाग हैं जिन्होंने ऐसे-ऐसे भारी भरकम टेंडर अवॉर्ड किए जिससे रेलवे का दिवाला निकल गया और निकल रहा है, लेकिन रेल प्रबंधन के कान पर जूं तक नहीं रेंगी, क्योंकि उनका हिस्सा तो मिल ही रहा है।
पिछले कुछ वर्षों में रेल परिचालन का अनुपात-
2010-11: 94.59%
2011-12: 94.85%
2012-13: 90.19%
2013-14: 93.6%
2014-15: 81.27%
2015-16: 90.49%
2016-17: 96.5%
2017-18: 98.44%
2019-20: 101% (यह कंफर्म नहीं किया जा सका है)
स्वाभाविक है कि अच्छे दिन का वादा करके सत्ता में आए लोगों के कार्यकाल में लगातार संचालन खर्च बढ़ता गया है। रेल आय का प्रमुख स्रोत मालभाड़ा रहा है। इसके बाद यात्री यातायात आय, जो कि यातायात विभाग (वाणिज्य और परिचालन) के अंतर्गत आता है, लगभग नगण्य है।
अब जरा हकीकत देखें – रेलवे माल गोदामों की जर्जर हालत देख लें, जहां पर कस्टमर को पीने का पानी तक उपलब्ध नहीं है। व्यापारियों को सुविधा के नाम पर ठेंगा दिखाया जाता है। ऐसे में ज्यादातर व्यापारी अपना माल रेलवे से भेजने के लिए आसानी से तैयार नहीं होते हैं।
सरकार ने रेलवे को फायदे में दिखाने के लिए संसद में गलत तरीके से रिपोर्ट प्रस्तुत किया और परिचालन रेश्यो में हेराफेरी भी की गई। वर्ष 2018-19 का रेश्यो 97.27 दिखाया गया, जबकि हकीकत में रेश्यो 102 फीसदी था।
रेलवे ने एनटीपीसी और कांकोर से भविष्य में मिलने वाला 8351 करोड़ का मालभाड़ा भी 2018-19 की आय में जोड़ दिया। आप यूं कह सकते हैं कि कमाई और रिटर्न्स के हिसाब से भारतीय रेल पिछले 10 वर्षों में सबसे बुरे दौर से गुजर रही है।
यह साल तो वैसे भी कोरोना संक्रमण के कारण घाटे में जा रहा है। 25 मार्च से बंद नियमित यात्री गाड़ियां अभी भी पूरे वेग से नहीं चल रही हैं। यातायात आय में पिछले साल की तुलना में करीब 60 प्रतिशत की कमी आई है।
हालांकि लागत घटाने के अन्य उपाय भी किए जा रहे हैं। साथ ही खर्चीली मदों की समीक्षा करने और उन्हें बंद करने का भी प्रयास किया जा रहा है। नए रेल प्रोजेक्ट पहले ही बंद किए जा चुके हैं। कर्मचारियों के टीए को कड़ाई से नियंत्रित किया जा रहा है।
डीए/आरए को पहले ही डेढ़ साल तक स्थगित कर दिया गया है। औवर टाइम पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है। 30 साल सेवा अथवा 50/55 की आयु वर्ग के कर्मियों का पूरा सर्विस रिकॉर्ड खंगाला जा रहा है जिससे कि उन्हें सेवा समाप्त करके घर बैठाया जा सके।
इस प्रकार आंतरिक खर्च पर कड़ी निगरानी रखकर उसे नियंत्रित करने का प्रयास किया जा रहा है। तथापि करप्शन यानि भ्रष्टाचार पर कोई नियंत्रण नहीं है। यह बदस्तूर जारी है।
अभी जब कुछ यात्री गाड़ियों का संचालन हो रहा है, तब भी मालगाड़ियों का संचालन पूरे फार्म में हो रहा है, परंतु गुड्स/पार्सल में जितना भ्रष्टाचार है, यदि उसे आधा भी नियंत्रित करके गुड्स शेडों की हालत सुधार दी जाए, तब माल ट्रैफिक को दोगुना किया जा सकता है।
जिस कार्य के टेंडर की लागत पहले दो-तीन करोड़ हुआ करती थी, वह अब बढ़कर 15-20 करोड़ तक जा पहुंची है, तथापि कार्य की गुणवत्ता में कोई सुधार नजर नहीं आ रहा है। विभागीय स्तर पर ईएनएचएम में करीब 30-35 हजार करोड़ रुपये का घोटाला होने की सुगबुगाहट तेजी से हो रही है। क्रमशः
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