September 16, 2020

“बिड कैपेसिटी स्कैम”

Indian Railways Head Quarters - Rail Bhawan, New Delhi.

“रिश्वत कैपेसिटी” के हिसाब से रेलवे में चल रहा “बिड कैपेसिटी” का खेल

सुरेश त्रिपाठी

रेलवे में कांट्रेक्ट वर्क कर रहे कुछ मझोले ठेकेदारों से प्राप्त जानकारी के अनुसार रेलवे में बड़े पैमाने पर बिड कैपेसिटी घोटाला किया जा रहा है और इसे जेवी में चल रहे ठेकेदार तथा संबंधित अधिकारी मिलकर छिपा रहे हैं।

उनका कहना है कि जब से टेंडर्स में बिड कैपेसिटी फार्मूला लगाया है, तब से कुछ ठेकेदार जेवी में चल रहे कार्यों की डिटेल्स टेंडर डॉक्यूमेंट्स में नहीं दिखा रहे हैं, जबकि यह टर्न ओवर में सम्मिलित होती है।

उनका कहना है कि बिड कैपेसिटी के लिए ठेकेदारों से एफिडेविट लिया जाना चाहिए कि जेवी (ज्वाइंट वेंचर) में चल रहे कार्य टेंडर डॉक्यूमेंट्स में लगाए गए हैं।

उनका यह भी कहना है कि जेवी में चल रहे कार्यों के बैंक स्टेटमेंट, पैन नंबर और जीएसटी नंबर भी टेंडर प्रस्ताव के साथ मांगे जाने चाहिए।

उन्होंने बताया कि आज स्थिति यह है कि गुणवत्तापूर्ण काम कम किया जा रहा है, सिर्फ जेवी का धंधा जोरों पर चल रहा है।

इसको नियंत्रित करने की कोशिश की जानी चाहिए, ताकि कार्य की गुणवत्ता से कोई समझौता न होने पाए।

उल्लेखनीय है कि ‘रेलसमाचार’ द्वारा इस विषय पर 5 मई 2019 को भी विस्तार से प्रकाश डाला गया था। पढ़ें, इससे संबंधित उक्त खबर –

Also Read: “जेवी फर्मों द्वारा रेलवे में सैकड़ों करोड़ का छुपा भ्रष्टाचार

उन्होंने बताया कि रेलवे सहित सभी पीएसयू में भी चीनी और अफगानिस्तानी कंपनियों के साथ जेवी का धंधा (घोटाला) चरम पर है।

उनका कहना है कि जेवी कंपनी में टैक्स चोरी से लेकर, घटिया निर्माण का खेल चल रहा है।

नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआई) हो या रेलवे, मेंटीनेंस पीरियड के दौरान जेवी कंपनी से किसी भी काम को व्यवस्थित ढ़ंग से करवाने में कोई भी सक्षम नहीं है।

“No one is able to get maintained the work from jv company during maintenance period.”

जानकारों का मानना है कि यह एक बहुत बड़ा मुद्दा है। यदि इस पर पीएमओ द्वारा कमेटी बनाकर जांच कराई जाए, तो यह 2जी से भी बड़ा स्कैम साबित हो सकता है।

उनका कहना है कि चाहे उत्तर रेलवे हो, या हो मध्य रेलवे अथवा कोई अन्य रेलवे, “बिड कैपेसिटी” का खेल, “रिश्वत कैपेसिटी” के हिसाब से चल रहा है।

जानकारों का यह भी कहना है कि जेवी के तहत किए जा रहे कार्यों की जानकारी कोई नहीं देता है।

कुछ कंपनियां तो सिर्फ जेवी के नाम का ही धंधा करने लगी हैं, जिसमें कुछ अधिकारी और कर्मचारी भी शामिल हैं

उनका कहना है कि थोड़े में यदि यह कहा जाए कि “वन टू का फोर और फोर टू का वन” का खेल हो रहा है।

किस प्रकार हो रहा है यह खेल?

यह खेल किस प्रकार हो रहा है? यह पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि जेवी कंपनी एडवांस पेमेंट ले लेती है। फिर जैसे-तैसे अमानक कार्य करके खड़ी होती है।

“JV member took advance payment, do under quality work and run away.”

जिम्मेदारी किसकी?

इसकी जिम्मेदारी किसकी है? यह पूछने पर उनका कहना था कि “किसी की नहीं!”

उनका कहना है कि “अधिकारी 3-4 साल तक काम को लटकाकर रखेंगे, फिर ट्रांसफर लेकर चलते बनेंगे। नया अधिकारी आएगा, कुछ ले-देकर पिछला कांट्रेक्ट क्लोज करेगा और नया टेंडर करके फिर उगाही करेगा।”

उन्होंने कहा कि यही खेल पिछले कुछ सालों से चल रहा है और आगे भी इसी तरह चलता रहेगा, यदि इस पर लगाम नहीं लगाई गई तो!

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