August 26, 2020

“रोयेगा इंडिया, तभी आगे बढ़ेगा इंडिया!”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रेलमंत्री पीयूष गोयल

तलवे चाटो, हुक्म बजाओ, एक्सटेंशन/री-एंगेजमेंट पाओ!

सुरेश त्रिपाठी

“अगर तलवे चाटोगे, तो 60 के बाद भी एक्सटेंशन और री-एंगेजमेंट मिलेगा, वरना 50 की उम्र में ही नौकरी से निकाल बाहर कर दिए जाओगे!”

उपरोक्त आदेश का स्पष्ट संदेश रेलवे में सभी ग्रेड में ऊपर बैठे लोगों के लिए यही है, जिनकी नौकरी कम से कम 10 साल बची है।

रेल मंत्रालय ने 8 अगस्त 2019 के आदेश पर पुनः सख्ती से अमल करने के निर्देश सभी जोनल रेलों के जीएम्स को जारी किया है।

इस आदेश का स्पष्ट संदेश यह भी है कि सरकार ने एक झटके में “गुलामों” की एक फौज सुनिश्चित कर ली है।

इसी तरह की मनमानी करते हुए गत वर्ष 20-22 रेल अधिकारियों और निचले स्तर के भी काफी कर्मचारियों को रेलवे से चलता कर दिया गया था। तब कहीं किसी ने चूं तक नहीं किया था। रेल संगठनों ने भी सिर्फ अपने गाल बजाकर चुप्पी साध ली थी।

अब उनमें से एक अधिकारी ने अपने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करते हुए सीआरबी सहित कई उच्च अधिकारियों के खिलाफ एट्रोसिटी ऐक्ट में एफआईआर दर्ज कराई है। बाकी तो चुपचाप मुंह छिपाकर बैठ गए।

अब पुनः वही आजमाया हुआ तरीका इस्तेमाल करने की तैयारी है। इसमें नाजी-हिटलरशाही यह है कि सिर्फ दो-तीन हफ्ते का समय दिया जाता है कि जो कोई फांसी पर लटकाया जाने वाला है, वह चाहे तो अपनी सफाई में कुछ कह सकता है, मानना – न मानना “री-एंगेज्ड” के “विवेक”, जो कि मंत्री के चरणों में गिरवी रखा है, पर निर्भर करता है।

रेलवे बोर्ड की तोड़-फोड़, आईआरएमएस बनाने की जबरदस्ती, ट्रेन-१८ बनाने वाले इंजीनियर्स का कैरियर बरबाद करना, मेक इन इंडिया की शोशेबाजी, निजी ट्रेनें चलाने की जिद, रेलवे स्टेशनों को बेचने की जल्दबाजी, लाखों करोड़ पब्लिक फंड के निवेश से खड़ी हुई रेलवे उत्पादन इकाईयों का निगमीकरण/निजीकरण, 50/55 की उम्र में रिटायर कर देने की तैयारी, चुनिंदा हुक्म के गुलामों को एक्सटेंशन और री-एंगेजमेंट का लॉलीपॉप आदि-इत्यादि तौर-तरीकों का अपनाया जाना अपने-आप में यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि यह सब अपनी मनमानी और अपना खुद का भविष्य सुरक्षित करने के लिए पूरी रेल व्यवस्था को दबाव में लेकर ब्लैकमेल करने के लिए किया जा रहा है।

क्या नेताओं और मंत्रियों के लिए कोई उम्र सीमा और शैक्षिक योग्यता नहीं है? या नहीं निर्धारित होनी चाहिए?

सारी सीमाएं और नियम-कानून सिर्फ “कार्यपालिका” और सामान्य आदमी (जनता) के लिए ही क्यों हैं? और क्यों होने चाहिए?

चेतावनी —–

यह एक ऐसा आदेश है, जो ग्रुप ‘ए’ से लेकर ग्रुप ‘डी’ तक के लिए प्रभावी है और अधिकारी-कर्मचारी अब भी अगर एक साथ नहीं आते हैं, तो देश का चूल्हा तो बुझेगा ही, लाखों घरों का चूल्हा भी बुझ जाएगा। इस तरह देश को अराजकता के माहौल में ले जाने वालों को, इन लाखों-करोड़ों लोगों का साथ सहजता से मिल जाएगा, जिनमें से अधिकांश इसी सरकार की “अंधभक्ति” के शिकार होंगे।

संदेश यह भी है कि “स्वानों” की तरह आपस में लड़ते रहो अपने-अपने टुकड़े के लिए, जबकि यहां पूरे रेल के वजूद पर बन आई है!

इसीलिए पिछले 73 सालों में देश के किसी कोने तक समुचित जीवनावश्यक विकास नहीं पहुंच पाया। विकास सिर्फ राजनीतिक लोगों का हुआ, जिनकी न कोई फैक्ट्री लगी है, न कोई उद्योग, फिर भी देश की अस्सी प्रतिशत संपदा उन्हीं के पास सिमट गई है।

“रोयेगा-गिड़गिड़ाएगा इंडिया, क्या तभी आगे बढ़ेगा इंडिया!” पर क्या इस रोने और गिड़गिड़ाने से भी वर्तमान में इंडिया के आगे बढ़ पाने के कोई आसार नजर आ रहे हैं? पिछले 73 सालों से भी तो इंडियावासी रो-गिड़गिड़ा ही रहे हैं, पर क्या तब संभव हो पाया, जो अब हो जाएगा? इस तथ्य पर गंभीरता से विचार किया जाए।

यदि अब भी 13.50 लाख रेलकर्मियों सहित देश के सभी करीब 55 लाख केंद्रीय सरकारी कर्मचारी चुप रहते हैं और एकजुट होकर सरकार/मंत्रियों के इस तमाम तमाशे तथा मनमानी का डटकर विरोध करने के लिए सामने नहीं आते हैं, तो देश को बरबादी के कगार पर ढ़केलने में उनका भी संपूर्ण योगदान माना जाएगा। इसके लिए वे जनता को दोषी नहीं ठहरा सकते, क्योंकि एक, वह खुद “जनता” हैं, दूसरे, वही जनता की अगुवाई और प्रतिनिधित्व भी हमेशा आगे बढ़कर करते रहे हैं।