डीआरएम के बाद जीएम पद की गरिमा को भी शर्मशार कर रहे आलोक कंसल !
जब तक चमचों/चाटुकारों की फौज को भी दंडित नहीं किया जाएगा, तब तक जीएम जैसे ताकतवर पद पर बैठे लोगों के बेलगाम संवेदनशून्य मानसिक विकार से उत्पन्न फूहड़ प्रदर्शनों का सिलसिला नहीं रुकेगा!
#AlokKansal, #GMWR & his wife #TanujaKansal
सुरेश त्रिपाठी
रेलमंत्री जी! आलोक कंसल जैसे महान प्रतिभासंपन्न जीएम्स (महाप्रबंधकों) से भरा पड़ा है आपका रेल महकमा। अब लगे हाथ आलोक कंसल साहब को भी सीआरबी बनने का मौका दे ही दीजिए। क्योंकि आपके रेल महकमे में योग्य अधिकारी हाशिये पर और निराशा के माहौल में ढ़केल दिए गए हैं, जबकि कंसल जैसे विकृत रास-रंग में डूबे खड़की बूढ़े जिस ऑर्गनाइजेशन की पतवार संभालेंगे, उसका तो ईश्वर ही मालिक होगा।
अब जब सिर्फ ईएसई (#ESE) से ही आईआरएमएस (#IRMS) का सेलेक्शन करने का राग छेड़ दिया गया है, तो अब आपके पास ऐसी नचनिया प्रतिभाओं की शायद ही कोई कमी रह जाएगी। कई वरिष्ठ रेल अधिकारियों का कहना है कि अगर रेलमंत्री और सीआरबी में थोड़ी सी भी शर्मोहया और नैतिकता बची है, तो इस संवेदनहीन फूहड़ नचनिया को तुरंत निलंबित करते हुए अविलंब जीएम पद से हटाने का प्रशासनिक साहस दिखाया जाए।
उनका कहना है कि जहां पूरे देश में कोरोनावायरस से हर गली-मोहल्ले में मातम पसरा हुआ है, और मुंबई महानगर इस मामले में भयानक दौर से गुजर रहा है, वहां इस नचनिया जीएम की ही रेलवे के कई कर्मचारी कोरोना के शिकार होकर अकाल काल-कलवित हो चुके हैं और यह जीएम पद की गरिमा को भूलकर तथा बेशर्म होकर “सावन की झड़ी” का राग अलापते हुए रास-रंग में डूबकर वीडियो बनवाने में लगा हुआ है।
एक यूनियन पदाधिकारी का कहना था कि जहां एक तरफ रेल कर्मचारियों के घरों/परिवारों में मातम, मायूसी और डर का माहौल है, हजारों कर्मचारी कोरोना संक्रमित हो चुके हैं, जबकि सैकड़ों रेलकर्मियों की मौत हो चुकी है, वहां ये जीएम “रोम के नीरो” से भी दस कदम आगे निकलकर अपनी भौंड़ी ऐय्याशी का निर्लज्ज और संवेदनशून्य तकनीकी कौशल का प्रदर्शन कर रहे हैं।
कई अधिकारियों और यूनियन पदाधिकारियों ने रेलमंत्री से सीधी मांग करते हुए कहा कि इनको तत्काल निलंबित करने के बाद इनकी कम से कम ब्रांच अफसर (बीओ) लेवल से भी जांच हो, तब इनके सामने कुबेर भी शायद छोटे पड़ जाएंगे।
उनका कहना था कि पूरे रेल महकमे में ये पति-पत्नी दोनों ही कुख्यात हैं। इनकी पत्नी के नाम से तो कई आईओडब्ल्यू/पीडब्ल्यूआई और डिप्टी लेवल तक के अफसरों की रूह कांपती है। कितने ही कर्मचारी इतने अपमानित हुए हैं कि उनके सामने आत्महत्या करने या नौकरी छोड़ने तक की नौबत आ गई। यदि यकीन न हो तो उत्तर रेलवे सहित ये जहां-जहां रहे हैं, वहां-वहां के इनके मातहतों से इस बात का वेरिफिकेशन करा लिया जाए।
यह बात बिल्कुल सही है कि ऐसे एक नहीं कई अफसर रेल में भरे पड़े हैं, जो आने वाले समय में निश्चित तौर पर जीएम, सीआरबी मैटीरियल हैं, जिनकी एकमात्र प्रतिभा सिर्फ उनकी “एज प्रोफाइल” है। इसी प्रोफाइल के चलते आज बोर्ड मेंबर और सीआरबी बने बैठे लोग मौके पर मंत्री को उचित बात बताने के बजाय घिघिया रहे हैं।
इसीलिए ऐसे अफसरों को उनके मातहत शुरू से ही जीएम, बोर्ड मेंबर तथा सीआरबी के नजरिये से देखते हैं। यही कारण है कि मातहतों की यह फौज भविष्य के डर से इनके सारे आसुरी कृत्यों को नपुंसकों की तरह अथवा न चाहते हुए भी मजबूरी वश बर्दाश्त करती रहती है।
लेकिन कुछ अधिकारियों का कहना है कि कंसल से दुःखी पूरे जोन के अधिकारी यह जानते हैं कि इनका कोई कुछ नहीं करेगा, क्योकि यह रेलमंत्री की पसंद से ही पश्चिम रेलवे में जीएम बनकर आए हैं और मंत्री जी को यह हर तरह से खुश रखते हैं!
यह भी सर्वज्ञात है कि इसी शासनकाल में सुशासन बाबू और रेलमंत्री के जीरो टॉलरेंस की ये स्थिति थी कि डीआरएम के डिवीजनल इंस्पेक्शन के दौरान जब डीआरएम ने भरी गर्मी में टेंट के नीचे लंच कर लिया था, तो डीआरएम (रांची) का तबादला इसे ऐय्याशी मानते हुए कर दिया गया था और उनको चार्जशीट देने की भी तैयारी थी। इसी तरह के कई और उदाहरण भी देखने में आए थे।
ऐसे में यदि कंसल के मामले में रेलमंत्री कार्रवाही नहीं करते हैं, तो न सिर्फ यह कोरोना संक्रमण से लड़ रहे और मर रहे सैकड़ों रेल कर्मचारियों और अधिकारियों के जख्मों पर नमक रगड़ने जैसा होगा, बल्कि देश में कोरोना से सबसे बुरी तरह प्रभावित महाराष्ट्र और मुंबई की जनता का भी यह घोर अपमान होगा।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री को भी इसका संज्ञान लेना चाहिए और अगर उन्हें रेलमंत्री की तरह यह रचनात्मक प्रतिभा लगे, तो फिर उन्हें अपने “मन की बात” कार्यक्रम में इसकी प्रेरणास्प्रद चर्चा जरूर करनी चाहिए। तब हो सकता है कि इससे देश के करोड़ों बेरोजगार युवाओं को अपनी आर्थिक बदहाली को भुलाने में कुछ मदद हो सके।
प्रधानमंत्री जी को भी अब यह ज्ञात होना चाहिए कि कई जोनों में महीनों से महाप्रबंधकों के पद खाली पड़े हैं। जीएम पैनल भी इसीलिए लटकाकर रखा गया है, क्योंकि शायद आलोक कंसल जैसी महान प्रतिभा के धनी लोगों की खोज हो रही है, जिससे खुद भी ये रेलवे को लूटें, और लूटवाएं भी। जीएम पैनल में देर होने से कंसल की कैटेगरी वाले जीएम कई जोनों का अतिरिक्त प्रभार देख रहे हैं, जो कंसल से किसी भी मामले में कम नहीं हैं। शायद रेल मंत्रालय को भी यह शूट करता है कि दो-तीन जगह की उगाही अलग-अलग लोगों से न करवाकर एक ही के माध्यम से करवाई जा रही है। शायद यही वजह होगी या फिर रेल मंत्रालय का निजाम इतना काबिल और ज्ञानी है कि पिछले एक साल में भी वह जीएम पैनल फाइनल नहीं कर पाया, जिसके चलते कई वरिष्ठ योग्य अधिकारी ड्यू प्रमोशन पाए बगैर ही रिटायर हो गए, और कुछ रिटायर होने के कगार पर पहुंच गए हैं। यदि जीएम पैनल समय से फाइनल होता, और समय से जीएम्स की पोस्टिंग हो गई होती, तो जो ईमानदार अधिकारी थे, उनको मौका मिलता। लेकिन वे शायद मंत्री जी की डिजाइन में फिट नहीं बैठ रहे हैं। आज देश स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। आप भी और देश भी वंदे मातरम् का नारा लगा रहा है। लेकिन जिन्होंने “वंदे मातरम्” की भावना से काम कर देश को स्वदेशी “वंदे भारत” ट्रेन दिया, वे लोग हाशिये पर ढ़केल दिए गए हैं। जीएम पैनल अगर ईमानदारी से लागू होता, तो वे सब अभी जीएम बनकर रेलवे को नई ऊंचाई पर ले जा रहे होते। लेकिन उनको देश के हित में, रेल के हित में काम करने पर ठीक उसी तरह से उत्पीड़ित किया जा रहा है, जैसे कि उन्होंने वंदे भारत ट्रेन बनाकर कोई बहुत बड़ा देश विरोधी काम किया हो। लंबे कैरियर वालों को लटकाकर रखा गया है, जबकि जिनका कुछ भी दांव पर नहीं है और जो रिटायरमेंट के कगार पर हैं, वे दो-दो जोन का काम(?) संभाले हुए हैं। यह सबसे सेफ गेम है।वैसे जीएम लोग बिना किसी कार्यवाही के रिटायर हो जाएंगे और तब तक आलोक कंसल जैसे और लोग मिल भी जाएंगे या फिर अपने आप वरीयता में आ जाएंगे, जब ईमानदार और देश हित में काम करने वाले जीएम पैनल डिले होने के कारण अपने आप डिबार हो जाएंगे।
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नाचने-गाने, रास रचाने और पत्नी की उंगलियों तथा इशारों पर नाचने, उठने-बैठने-चलने के लिए मशहूर पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधक आलोक कंसल के कई रोमांटिक वीडियो पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रहे हैं। अब यह तो सर्वज्ञात ही है कि रेलवे के ऐसे उच्च पदों पर बैठे आलोक कंसल जैसे कुछ महानुभावों की यह कथित रोमांटिक नौटंकी अथवा भौंड़ेपन का बेशर्म प्रदर्शन या तो ऑफीसर्स क्लब के फंड – जो अधिकारियों के कंट्रीब्यूशन से जमा होता है – से होता है, या फिर अन्य कदाचारी माध्यमों से इसका इंतजाम किया जाता है।
रेलवे में आलोक कंसल जैसे महानुभावों की कोई कमी नहीं है। पहले भी कभी नहीं रही – अरुणेंद्र कुमार जैसे बीवी के गुलाम पहले भी रह चुके हैं – अभी भी है – कंसल के ही कैडर बिरादर उत्तर रेलवे की एक मजबूत कमाऊ पोस्ट पर आज भी मौजूद हैं – ऐसे सैंकड़ों उदाहरण हैं और ऐसा भी नहीं है कि इसमें किसी एक कैडर विशेष का ही एकाधिकार रहा हो। सभी कैडर में “आलोक कंसल” विद्यमान रहे हैं। इसी का परिणाम की आज रेलवे की लुटिया डूब रही है। फिर भी इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ रहा।
आलोक कंसल जैसे दरिद्र मानसिकता के लोगों को न पद की गरिमा का ख्याल है, न ही रेलवे की बदहाल होती जा रही आर्थिक स्थिति का। इन्हें तो पद पर रहते हुए सिर्फ अपनी जेबें भरने और जी-भरकर मौज-मस्ती करने की ही फिक्र रहती है। पद की गरिमा और रेलवे की हालत गई चूल्हे भाड़ में, क्योंकि इन्हें बखूबी मालूम होता है कि पद से हटने और रिटायर होने के बाद अपने खर्च पर यह मौज-मस्ती नहीं हो पाएगी, और रेलवे में फिर कोई कुत्ता भी इन्हें नहीं पूछेगा!
यह भी सबको पता है कि डीआरएम/नागपुर/द.पू.म.रे. रहते हुए कंसल वहां भी रेलवे के काम को तरजीह देने के बजाय इसी तरह के रास-रंग में डूबे रहते थे। तब भी कुछ अधिकारियों ने इन्हें पद की गरिमा का हवाला दिया था। उन्होंने उस समय जिस बात की आशंका व्यक्त की थी, आज जीएम पद पर आसीन होकर कंसल उसे ही बखूबी अंजाम दे रहे हैं।
भीषण खतौली दुर्घटना के बाद इन्हें सीटीई/उ.रे. के पद से तत्काल शिफ्ट करके किसी फालतू जगह डालने के बजाए पूर्व मध्य रेलवे कंस्ट्रक्शन में डाला गया था, वहां भी इन्होंने कमीशनखोरी में कोई कसर नहीं छोड़ी थी और कुछ समय बाद ही पुनः उत्तर रेलवे वापस पहुंचने में कामयाब रहे थे। जहां से अब मंत्री की पसंद से उनके जूरिस्डिक्शन में पदस्थ होकर तन-मन-धन से पूरी सेवा करने में जुटे हैं।
रेलमंत्री यदि बोर्ड मेंबर्स और कुछ ईडी’ज की ही दिनचर्या देख लें, जिनके बंगलों में न सिर्फ बोर्ड की कैंटीन से खाना सप्लाई होता है, बल्कि वह छह-सात सौ रुपए प्रति बोतल का इंपोर्टेड पानी पीते रहे हैं। वह तो भला हो फाइनेंस विभाग का, जिसने इनके तमाम दबावों को दरकिनार करते हुए हाल ही में इनकी ये लक्जरियस नक्शेबाजी पर रोक लगा दी।
रेलमंत्री को जहां भ्रष्टाचार और निकम्मेपन पर अपना ध्यान केंद्रित करके ऐसी अय्याशियों पर हो रहे फालतू खर्चों पर नियंत्रण और निकम्मों-नचनियों को घर भेजना चाहिए था, वहां वह बेकार और अनावश्यक मुद्दों पर न सिर्फ अपना कीमती समय जाया कर रहे हैं, बल्कि अपनी क्षणिक कार्य-प्रणाली से रेलवे की बदनामी सहित सरकार की छवि को भी धूमिल होने से नहीं बचा पा रहे हैं।
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इसमें सिर्फ जीएम/पश्चिम रेलवे ही नहीं, जब तक उनके चमचों और चाटुकारों की फौज को भी दंडित नहीं किया जाएगा – जो जीएम्स के इस तरह के ऊल-जलूल कार्यों में बढ़-चढ़कर अपना योगदान देते हैं – तब तक जीएम जैसे ताकतवर पद पर बैठे लोगों के बेलगाम संवेदनशून्य मानसिक विकार से उत्पन्न फूहड़ प्रदर्शनों का सिलसिला नहीं रुकेगा।
कई अफसर और उनकी पत्नियां अपना काम और घर द्वार छोड़कर जीएम की चमचागीरी में कॉस्टिंग डायरेक्टर, क्रिएटिव डायरेक्टर, प्रोडक्शन मैनेजर, फ्लोर मैनेजर, सिनेमॅटोग्राफर आदि का ही काम करते-करते अपने को बहुत बड़ा फिल्म प्रोफेशनल समझने लगते हैं और बिना रेल का कोई काम किए, फील्ड में बिना पसीना बहाए, पूरे सेवाकाल में रेलवे की सारी सुख-सुविधाएं भोगते रहते हैं। कई तो यही सब करते-करते कब खुद डीआरएम, जीएम और सीआरबी बन जाते हैं, और बने भी हैं, पर किसी को इसका आजतक अहसास नहीं हुआ।
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इसमें कैमरा, साज-सज्जा आदि का प्रबंध करने वाले, ऑफीसर्स क्लबों के सेक्रेटरी, जीएम के सेक्रेटरी, महिला समितियों की सदस्य विभिन्न अधिकारियों की पत्नियों आदि की भी पहचान कर उन्हें कहीं किसी दूरस्थ रेलवे में भेजने से ही बहुसंख्यक ईमानदार, मेहनतकश, बिना माई-बाप के अधिकारियों-कर्मचारियों में एक सही संदेश जाएगा।