वाचडॉग की भूमिका में अक्षम साबित हो रहा सीवीसी
तीन साल में रेलवे पर दर्ज हुए भ्रष्टाचार के 18,600 मामले
भ्रष्टाचार के 6,121 मामलों के साथ उत्तर रेलवे सबसे टॉप पर
भ्रष्ट रेलकर्मियों/अधिकारियों को प्राप्त है रेलमंत्री और राजनेताओं का संरक्षण
अनुचित राजनीतिक हस्तक्षेप है सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार का मुख्य कारण
रेलवे में भ्रष्टाचार का प्रमुख कारण हैं बीसों साल से एक ही जगह जमे अधिकारी
भ्रष्टाचार और कदाचार रोकने के लिए सीवीसी ने अपने स्तर पर कुछ नहीं किया
राजनीतिक हस्तक्षेप सहित बढ़ते भ्रष्टाचार के लिए सीवीसी भी समान रूप से दोषी
सुरेश त्रिपाठी
पिछले चार वर्षों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगभग हर मंच से यही दोहराते रहे हैं कि भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति पर उनकी सरकार अमल कर रही है. उनके ‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’ वाले सर्वाधिक प्रसिद्द हुए जुमले ने तो पूरे देश में राजनीतिक रूप अख्तियार कर लिया है. परंतु उनके इसी राजनीतिक जुमले की आड़ में तमाम सरकारी बाबू लोग अपनी जेबें गरम करते रहे और उनके मंत्रीगण उनकी जुमलेबाजी का प्रचार-प्रसार करने में एक-दूसरे से होड़ लगाते रहे हैं. उनका रेलवे महकमा इस दरम्यान भ्रष्टाचार में सबसे टॉप पर रहा है, जहां सिर्फ पिछले तीन वर्षों के दौरान भ्रष्ट रेलकर्मियों और रेल अधिकारियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार के कुल 18,600 मामले केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) में दर्ज हुए हैं.
इनमें से 6,121 मामलों के साथ उत्तर रेलवे सबसे टॉप पर है. भ्रष्टाचार के कुल 1,955 मामलों के साथ दक्षिण रेलवे दूसरे स्थान पर है. यह सभी आंकड़े पिछले हप्ते संसद के समक्ष प्रस्तुत की गई सीवीसी की रिपोर्ट में दिए गए हैं. तथापि प्रधानमंत्री अथवा पिछले चार वर्षों में हुए उनके तीन रेलमंत्रियों में से किसी ने भी इन भ्रष्ट रेलकर्मियों और अधिकारियों के खिलाफ कोई कारगर कार्रवाई नहीं की है. उल्लेखनीय है कि वर्ष 2016-17 में रेलवे पर भ्रष्टाचार के कुल 11,200 मामले दर्ज हुए थे, तब भी इस मामले में रेलवे महकमा ही टॉप पर था.
जानकारों का मानना है कि रेलवे की आतंरिक व्यवस्था लगभग फेल हो चुकी है. वित्तीय अनुशासन के औचित्य का सिद्धांत कहां बिला गया है, किसी को पता नहीं है. उनका कहना है कि रेलवे का प्रशासनिक नियंत्रण और सामान्य अनुशासन भी राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण पूरी तरह से चरमरा रहा है. यहां तक कि इसके कारण सर्वोच्च अधिकारी के आदेश का अनुपालन भी नहीं हो पा रहा है. उन्होंने कहा कि पिछले चार सालों के दौरान जिस किसी भ्रष्ट अधिकारी के विरुद्ध रेल प्रशासन ने कोई भी कार्रवाई करने का कदम उठाया, संबंधित भ्रष्ट अधिकारी किसी न किसी केंद्रीय मंत्री अथवा किसी राज्य के मुख्यमंत्री का वसीला लाकर रेलमंत्री के माध्यम से अपने विरुद्ध होने वाली कार्रवाई को फौरन रद्द कराने में सफल रहा.
जानकारों ने इस संदर्भ में दक्षिण पूर्व रेलवे के जेएजी स्तर के एक भ्रष्ट ऑपरेटिंग अधिकारी और दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के महाप्रबंधक का उदाहारण भी दिया है. उनका कहना था कि दक्षिण पूर्व रेलवे के उक्त ऑपरेटिंग अधिकारी का तबादला रेलवे के टॉप बॉस के आदेश पर किया गया था. परंतु सर्वप्रथम तो उसे एक महीने तक रिलीव ही नहीं होने दिया गया. जब काफी दबाव के चलते उसे अंततः किसी तरह रिलीव कराया गया तो वह मात्र दस दिन के अंदर अपना तबादला रद्द कराकर रेलवे के टॉप बॉस को मुंह चिढ़ाते हुए उसी जगह उसी रेलवे में बैठ गया और टॉप बॉस उसका कुछ नहीं कर पाए. यह करिश्मा राजनीतिक दबाव में रेलमंत्री के कहने पर हुआ. इसी तरह विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि जब भ्रष्टाचार के प्रमाणित तथ्यों के आधार पर दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के महाप्रबंधक को टॉप बॉस तुरंत अन्यत्र शिफ्ट करने जा रहे थे, तब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के कहने पर रेलमंत्री ने उनकी शिफ्टिंग को रद्द कर दिया. इस तरह भ्रष्टाचार को रोकने और वित्तीय अनुशासन कायम करने के यत्किंचित प्रयासों को राजनीतिक लबाड़ीपन के चलते बेकार कर दिया गया.
जानकारों का तो यहां तक कहना है कि जिस तरह दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के वर्तमान महाप्रबंधक सहित यहां पिछले चार-पांच सालों में हुए तीन भ्रष्ट महाप्रबंधकों को छत्तीसगढ़ के तथाकथित ईमानदार मख्यमंत्री अथवा अन्य राजनेताओं का संपूर्ण संरक्षण प्राप्त रहा है, उसी तरह उत्तर रेलवे के कदाचारी पूर्व प्रिंसिपल सीसीएम को केंद्रीय गृहमंत्री का पूरा संरक्षण प्राप्त है? उनका कहना है कि जिस तरह शेयर बाजार में कभी अंदरूनी जोड़तोड़ करके शेयरों के भाव बढ़ाए जाते थे, ठीक उसी तरह रेलवे में निर्माण कार्यों की लागत बढ़ाई जाती है. इसका एक उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि बिलासपुर मंडल, दक्षिण पूर्व रेलवे में हसदेव नदी पर बने रेलवे पुल के चार डैमेज खंभों की मरम्मत का जो कार्य 5-6 करोड़ में होना चाहिए था, भ्रष्टाचार के चलते ही यह कार्य सवा दस करोड़ में दिया गया है. (इस मामले की विस्तृत रिपोर्ट जल्दी ही ‘रेलवे समाचार’ में प्रकाशित की जाएगी.)
जानकारों ने बताया कि इसी तरह पूर्व मध्य रेलवे में वित्तीय वर्ष के अंतिम महीने मार्च के पहले हप्ते में पदस्थ हुए प्रमुख मुख्य सिग्नल एवं दूरसंचार अभियंता (प्रिंसिपल सीएसटीई) ने एक जेएजी सीधी भर्ती अधिकारी को बिना महाप्रबंधक की पूर्व अनुमति लिए ही एक भ्रष्ट प्रमोटी अधिकारी से बदल दिया और इसके जरिए करीब 50-60 करोड़ रुपये के फाइनल बिल साइन करा लिया. अज्ञात स्रोतों से जब इस अनुचित बदलाव की जानकारी महाप्रबंधक को मिली तो उन्होंने सुबह की कांफ्रेंस में ही प्रिंसिपल सीएसटीई को अन्य सभी विभागीय प्रमुखों के सामने झाड़ लगा दी और उक्त बदलाव को पूर्ववत करने का आदेश दिया. बताते हैं कि जीएम के आदेश पर अमल तो किया गया, मगर दूसरे ही दिन पुनः उक्त सीधी भर्ती अधिकारी का ट्रांसफर प्रस्तावित करके प्रिंसिपल सीपीओ के पास फाइल इस अनुशंसा के साथ भेज दी कि जीएम की संस्तुति लेकर ट्रांसफर कर दिया जाए.
जानकारों का कहना है कि 50-60 करोड़ रुपये के फाइनल बिल साइन कराए जाने का मतलब यह है कि इससे संबंधित अधिकारी को आपातकालीन पांच प्रतिशत कमीशन के साथ बैठे-बैठाए लाखों का फायदा तुरंत मिल गया. उन्होंने कहा कि आपातकालीन कमीशन का भी मतलब यह है कि जहां वित्तीय वर्ष की अंतिम तिमाही में फंड की कमी दिखाकर अथवा एडजस्टमेंट के बहाने सभी ठेकेदारों के भुगतान रेलवे द्वारा रोक दिए जाते हैं, वहां ऐसे भुगतान करने पर ठेकेदार को ज्यादा कमीशन देना पड़ता है.
दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे में ही भ्रष्टाचार का एक और उदाहारण देते हुए जानकारों ने ‘रेलवे समाचार’ को बताया कि यहां सीएसटीई/कंस्ट्रक्शन, जो कि करीब 6 सालों से इसी एक ही पद पर पदस्थ हैं, 100-100 करोड़ से ज्यादा के कई टेंडर किए जाने की जल्दी में हैं, जबकि बताते हैं कि उक्त निर्माण कार्यों के लिए अब तक न तो जमीन का संपादन हुआ है और न ही जमीनी सर्वे का कहीं अता-पता है. उन्होंने बताया कि इसी तरह सीएसटीई/कंस्ट्रक्शन/द.पू.म.रे. ने मीटर गेज से ब्रॉड गेज में परिवर्तित हो रही नागपुर-छिंदवाडा लाइन में बिना उचित अप्रूवल के ही एसएंडटी का वह सिस्टम लगा दिया है, जिसका इस्तेमाल आगे 10-15 वर्षों तक नहीं होने वाला है. इसके अलावा भारी कमीशन के लालच में तमाम ऐसी तकनीकी चीजें और सामान उनके द्वारा एडवांस में खरीद लिया गया है, जिसका कोई उपयोग हर दिन बदलती तकनीक के जमाने में काफी लंबे समय तक भी नहीं होने वाला है. (इस मामले की भी विस्तृत रिपोर्ट शीघ्र ही ‘रेलवे समाचार’ द्वारा प्रकाशित की जाएगी.)
जानकारों का कहना है कि इसी तरह इंजीनियरिंग, मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, एसएंडटी और स्टोर्स में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हो रहा है. जोनों और मंडलों तक इतने ज्यादा वित्तीय अधिकार और वित्त झोंक दिया गया है कि वह अब ट्रैक के किनारे की फालतू नालियां बनाकर नाले में बहाया जा रहा है. जबकि सर्वाधिक बदतर हालत का शिकार रेलवे की तमाम लोडिंग साइडिंग की तरफ किसी का ध्यान नहीं है, जहां से रेलवे को करोड़ों-अरबों रुपये का सालाना राजस्व प्राप्त होता है. उनका कहना है कि आश्चर्य इस बात का है कि जिस दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे को सीवीसी की भ्रष्टाचार सूची में सबसे ऊपर होना चाहिए था, उसका उक्त सूची में कहीं वर्गीकरण नहीं है.
बहरहाल, उपरोक्त कुछ मामले तो रेलवे में व्याप्त भ्रष्टाचार के किंचित नमूने मात्र हैं. जहां बायो टॉयलेट के नाम पर सिर्फ एक लोहे का बना चौकोर डब्बा लगाने के लिए भी संबंधित फर्म या ठेकेदार को पांच हजार रुपये प्रति डब्बा रिश्वत रेलकर्मियों और अधिकारियों के बीच बांटनी पड़ रही हो, वहां यह तथाकथित बायो-टॉयलेट बजबजाएंगे नहीं तो क्या होगा? जहां एसी कोच मेंटीनेंस और साफ-सफाई के ठेकों में बड़े पैमाने पर रेल राजस्व की भारी लुट मची हो, वहां प्रधानमंत्री का ‘स्वच्छ भारत, स्वच्छ रेल’ का सपना तभी साकार हो सकता है, जब प्रधानमंत्री राजनीतिक हस्तक्षेप के जरिए भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले राजनेताओं को राजनीतिक नैतिकता और शुचिता का पाठ पढ़ाते हुए उन्हें राजनीतिक वनवास पर भेजने का दुस्साहस दिखाएंगे.
इसके अलावा जो सीवीसी भ्रष्टाचार के मामले में रेलवे महकमे को सर्वाधिक मामलों सहित सर्वाधिक भ्रष्ट साबित कर रहा है, उस सीवीसी ने रेलवे सहित तमाम केंद्रीय मंत्रालयों में व्याप्त इस भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने के लिए अपनी तरफ से कुछ नहीं किया है. सीवीसी सभी केंद्रीय मंत्रालयों, विभागों, सरकारी उपक्रमों इत्यादि में कदाचार को रोकने तथा सरकारी नीतियों और दिशा-निर्देशों को लागू करने-करवाने के लिए प्रमुख ‘वाचडॉग’ संस्था है. ऐसे में सीवीसी ने पिछले 20-25 वर्षों में यह देखने और जांचने की जहमत तक नहीं उठाई कि आवधिक तबादलों को लेकर जारी किए गए उसके दिशा-निर्देशों को रेलवे में जमीनी स्तर पर लागू किया जा रहा है या नहीं. यही हाल उसका सरकारी बैंकों और अन्य केंद्रीय मंत्रालयों को लेकर भी रहा है. सरकारी महकमो में कदाचार और भ्रष्टाचार के लिए जितना राजनीतिक हस्तक्षेप को दोषी ठहराया जाना चाहिए, उतना ही सीवीसी भी इसके लिए जिम्मेदार है. भ्रष्टाचार रोकने के लिए जिम्मेदार जिस संवैधानिक संस्था का प्रमुख खुद संदेह के घेरे में हो, वह संस्था अपनी भूमिका का निर्वाह उचित तरीके से कैसे कर सकती है?
पीएनबी घोटाले के बाद इसी सीवीसी ने सभी सरकारी बैंकों में प्रत्येक तीन साल में अधिकारियों और प्रत्येक चार साल में कर्मचारियों के निश्चित दरबदर के आदेश जारी किए हैं. परंतु रेलवे सहित अन्य तमाम केंद्रीय मंत्रालयों एवं विभागों तथा सरकारी उपक्रमों के लिए उसके यह आदेश अब तक नहीं आए हैं. इस प्रमुख वाचडॉग संस्था की इसी कोताही या लापरवाही के कारण सिर्फ रेलवे में ही बीसों साल से तमाम अधिकारी और कर्मचारी एक ही जगह विराजमान हैं, जो कि रेलवे में प्रत्येक स्तर पर भ्रष्टाचार का प्रमुख कारण हैं. इसके साथ ही रेलवे का नया निजाम भी इसके लिए उतना ही दोषी है, जिसे शुरू में ही प्रधानमंत्री की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की घोषणा के बाद ‘रेलवे समाचार’ ने खुद यह कहा था कि रेलवे में यदि भ्रष्टाचार पर काबू पाना है, तो बिना किसी भेदभाव के सीवीसी की गाइडलाइंस को लागू किया जाए. परंतु रेल मंत्रालय का वर्तमान निजाम भी उस पर अमल करने के बजाय सिर्फ लोकलुभावन पत्राचार और प्रचार-प्रसार में ही रमा रह गया.