आखिर क्यों दयनीय है रेलवे की आर्थिक स्थिति!

East Central Railway: Poor track work in a new rail line project.

यह दयनीय स्थिति पूरी भारतीय रेल में व्याप्त है, प्रोजेक्ट्स का इम्प्लीमेंटेशन भले ही इरकॉन या आरवीएनएल कर रहा हो, अथवा डीएफसीआईएल, कोर या जोनल रेलों के निर्माण संगठनों द्वारा ही क्यों न किया जा रहा हो!

सुरेश त्रिपाठी

बेतरतीब प्लानिंग एवं बेहिसाब खर्च- पिछले कुछ वर्षों के दौरान ऐसा देखा गया है कि जितने भी नई रेल लाइनों के निर्माण कार्य हुए हैं, या अभी चल रहे हैं, प्रायः ऐसे सभी निर्माण कार्यों और ऐसी सभी जगहों और छोटे से छोटे स्टेशनों पर 4-5 लाइनों के लिए 24 कोच के हाई लेवल प्लेटफॉर्म बना दिए गए हैं। 6 फीट/12 फीट /20 फीट के फुट ओवरब्रिज (एफओबी) भी इसके साथ बनाए गए हैं। इसके अलावा भव्य स्टेशन बिल्डिंग्स का निर्माण भी कर दिया गया है।

100 किमी की नई रेल लाइन के किसी एक प्रोजेक्ट का यदि तुलनात्मक अध्ययन किया जाए, तो पता चलेगा कि उसमें फिजूल खर्च कितना हुआ है। 24 कोच के एक प्लेटफॉर्म की न्यूनतम लागत यदि 2 करोड़ रुपए मान ली जाए, तो दो प्लेटफार्म की लागत 4 करोड़ रुपए होती है। इसी तरह यद एक एफओबी की लागत 5 करोड़ रुपए और एक स्टेशन बिल्डिंग का खर्च 20 करोड़ रुपए आता है, तो इस तरह एक छोटा से स्टेशन के निर्माण पर कुल खर्च लगभग 29-30 करोड़ रुपए होता है।

इसी आधार पर यदि देखा जाए तो 100 किमी की नई रेल लाइन के एक प्रोजेक्ट में ऐसे कम से कम 10 रेलवे स्टेशनों का निर्माण किया जाता है। अतः ऐसे एक रेलवे प्रोजेक्ट की कुल न्यूनतम लागत 290 से 300 करोड़ रुपए तक पहुंच जाती है। ध्यान रहे यहां अत्यंत न्यूनतम लागत का अनुमान किया गया है, जबकि धरातल पर वास्तविकता इससे काफी अलग होती है।

इसी तरह एक स्टेशन पर सिग्नलिंग वर्क का न्यूनतम खर्च लगभग 20-25 करोड़ रुपए होता है। ऐसे में 10 स्टेशनों के लिए यह खर्च न्यूनतम 250 करोड़ रुपए हो जाता है। जितनी भी नई लाइनों का अभी हाल में सीआरएस सेंक्शन हुआ है, ट्रेन नहीं चलने से प्रायः इन सभी स्टेशनों पर लगाए गए ऐसे सभी इक्विपमेंट्स, चाहे ये एसएंडटी के हों या इलेक्ट्रिकल के हों, खराब (डेमेज) अथवा चोरी हो चुके हैं।

Poor Platform Surface Work and a heavy gap between the track and platform

ऐसे लगभग सभी प्लेटफार्मों की सतह खराब मिट्टी भराई (PF surface poor soil filling) के कारण धंस जाती है या धंस चुकी है। गुणवत्ताविहीन मेटीरियल के इस्तेमाल से बनाई गई ऐसी सभी भव्य स्टेशन बिल्डिंगों में जहां तहां दरारें पड़ चुकी होती हैं। कुछ वर्षों के बाद जब इन लाइनों या सेक्शनों पर नई ट्रेन चलाने की बात होती है, तो पुनः मरम्मत के नाम पर इन सभी कार्यों के लिए हरेक स्टेशन पर लगभग 5 से 10 करोड़ रुपए का अतिरिक्त खर्च करना पड़ता है।

अतः 100 किमी के नए निर्माण कार्य में ट्रेन चलने से पहले एक स्टेशन पर लगभग ₹550 करोड़ का फिजूल खर्च किया गया होता है। जबकि होना ये चाहिए कि जहां पर भी नई लाइन का प्रोजेक्ट चल रहा हो, सभी स्टेशनों को सिर्फ रेल लेवल प्लेटफार्म बनाकर चालू किया जाना चाहिए।

स्टेशन बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन भी छोटा और जरूरत के अनुसार होना चाहिए तथा बाद में जैसे-जैसे ट्रेनों की संख्या बढ़े, बाकी सुविधाएं बढ़ाई जानी चाहिए।

ऐसा लगभग सभी जोनों में देखा गया है कि डबलिंग वर्क में छोटे से छोटे स्टेशन पर 25-30 करोड़ की बिल्डिंग का निर्माण कर दिया गया, जबकि ऐसे स्टेशनों पर प्रतिदिन की आमदनी ₹100 भी नहीं है। इस तरह का फिजूल खर्च पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे, उत्तर रेलवे, उत्तर पश्चिम रेलवे, मध्य रेलवे, पश्चिम मध्य रेलवे, पश्चिम रेलवे और उत्तर मध्य रेलवे सहित लगभग सभी जोनों में किया गया है। जबकि पूर्व मध्य रेलवे तो ऐसे काम के लिए अलग से कुख्यात ही है।

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ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि इस तरह की प्लानिंग करता कौन है? आखिर इस सबके पीछे वजह क्या है? इसका बहुत स्पष्ट कारण है- भ्रष्टाचार और अवैध धन उगाही।

नए रेलवे प्रोजेक्ट की जितनी ज्यादा लागत होगी, उतना ही ज्यादा ‘कट अमाउंट’ मिलेगा। यह राशि न सिर्फ नीचे से लेकर ऊपर तक वितरित होती है, बल्कि इसमें हर लेवल का अपना-अपना परसेंटेज भी तय होता है। यह करप्ट स्थिति पूरी भारतीय रेल में सभी जगह व्याप्त है, फिर चाहे प्रोजेक्ट इरकॉन बना रहा हो या आरवीएनएल, अथवा डीएफसीआईएल, कोर या जोनल रेलवे का निर्माण संगठन ही क्यों न बना रहा हो!

अब यदि ऐसे सभी प्रोजेक्ट्स की हाई लेवल स्वतंत्र ऑडिटिंग किसी इंडिपेंडेंट आर्गेनाईजेशन, चाहे सीएजी या सीबीआई से कराई जाए, पहली बात तो यह कि संबंधित अधिकारियों को इनमें से अधिकांश को पटाने में महारत हासिल है, क्योंकि इनको राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है। तथापि पूरी व्यवस्था अभी तक न तो चौपट हुई है और न ही करप्ट। अतः ऐसे सभी रेलवे प्रोजेक्ट्स की जांच करके दोषी एवं जिम्मेदार अधिकारियों पर कठोर कार्यवाही होनी चाहिए। रेलवे में जब तक ऐसा रवैया रहेगा, इसकी माली हालत कभी नहीं सुधर सकती! क्रमशः

ईडी/प्रोजेक्ट्स/रे.बो. ने सभी जोनल सीएओ/सी को पत्र लिखकर चेताया

ऐसी सभी रेल परियोजनाओं पर हो रहे अनियंत्रित एवं अनाप-शनाप खर्च ने अब रेलवे बोर्ड के भी कान खड़े कर दिए हैं। इस संदर्भ में सोमवार, 11 मई को रेलवे बोर्ड के कार्यकारी निदेशक/प्रोजेक्ट्स बी. के. गुप्ता ने सभी जोनल रेलों को एक पत्र लिखकर अगाह किया है कि बजटरी प्रावधान से ज्यादा खर्च को नियंत्रित किया जाए, वरना संबंधित अधिकारियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जाएगी।

‘रेलसमाचार’ द्वारा इस बारे में लगातार रेल प्रशासन का ध्यान आकर्षित किया जाता रहा है कि नई रेल लाइनों के निर्माण, गेज कन्वर्जन और डबलिंग वर्क्स में बजटरी प्रावधान के अतिरिक्त राशि खर्च की जा रही है। ठेकेदारों के बहाने खुद को उपकृत करने के लिए मिट्टी एवं बोल्डर की फर्जी मात्रा बढ़ाकर प्रोजेक्ट्स की लागत बढ़ाई जा रही है।

ईडी/प्रोजेक्ट्स/रे.बो. बी. के. गुप्ता ने सीधे सभी जोनल रेलों के मुख्य प्रशासनिक अधिकारियों (सीएओ/सी) को संबोधित करते हुए पत्र में कहा है कि रेलवे प्रोजेक्ट्स को पूरा करने के लिए जो कर्ज लिया गया है, रेलवे को उसका भारी व्याज भुगतना पड़ रहा है। अतः प्रस्तावित प्रोजेक्ट्स की विस्तारित अनुमानित लागत में किसी भी प्रकार के बदलाव को तुरंत प्रभाव से रद्द किया जाता है।

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उल्लेखनीय है कि रेलवे द्वारा हर साल नई रेल लाइनों के निर्माण और गेज कन्वर्जन तथा ब्राडगेज डबलिंग आदि बड़ी रेल परियोजनाओं पर हजारों करोड़ रुपए खर्च किए जाते हैं। ऐसी सभी योजनाओं का बजटरी प्रावधान किया जाता है, तथापि निहितस्वार्थवश संबंधित अधिकारियों द्वारा फर्जी अथवा अतिरिक्त आइटम जोड़कर योजनाओं की निर्धारित लागत बढ़ा दी जाती है। लागत बढ़ने का एक कारण योजनाओं का निर्धारित समय पर पूरा न होना भी है। क्रमशः