उत्तर रेलवे निर्माण संगठन में करीब 400 करोड़ का घोटाला?
रिश्वत का खेल, कोई पास, कोई फेल, यही है मोदी जी का ‘विकास’?
रेलवे बोर्ड की अथॉरिटी को ताक पर रख जारी किया कटौती का आर्डर
किसी का काट दिया, किसी को दे दिया, किसी का अटका दिया भुगतान
सुरेश त्रिपाठी
उत्तर रेलवे के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी/निर्माण (सीएओ/सी) के पद पर बी. डी. गर्ग और पहले महाप्रबंधक/उ.रे. एवं बाद में मेंबर इंजीनियरिंग, रेलवे बोर्ड के पद पर वी. के. गुप्ता के रहते उत्तर रेलवे निर्माण संगठन में जितना घपला हुआ, और जितनी कामचोरी तथा रिश्वतखोरी हुई, उसकी मिसाल शायद पूरी भारतीय रेल में भी नहीं मिलेगी. जानकारों का कहना है कि यदि इन दोनों पूर्व वरिष्ठ रेल अधिकारियों के कार्यकाल के दौरान उत्तर रेलवे निर्माण संगठन में हुए सैकड़ों टेंडर्स की गहराई से छानबीन और जांच की जाए, तो यहां हजारों करोड़ रुपये का घोटाला उजागर हो सकता है.
जानकारों का कहना है कि कथित रूप से मोदी सरकार के समर्थक उपरोक्त दोनों पूर्व वरिष्ठ रेल अधिकारियों ने सरकार के कथित समर्थन की आड़ में यहां खूब मनमानी की. उनका कहना है कि पूर्व सीएओ/सी बी. डी. गर्ग ने रिश्वत का ऐसा खेल खेला था कि इसकी परतें यदि उघाड़ी जाएं, तो यहां हजारों करोड़ का घपला मिल सकता है. उन्होंने ‘रेल समाचार’ को बताया कि पूर्व जीएम/उ.रे. और पूर्व एमई/रे.बो. वी. के. गुप्ता एवं पूर्व सीएओ/सी/उ.रे. बी. डी. गर्ग जैसे कथित रूप से भ्रष्ट और कुटिल अधिकारियों की कार्य-शैली हमेशा दूसरों का हक मारने की रही है. इन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान यहां रिश्वत का ऐसा खेल खेला कि पक्षपात की सारी हदें पार कर दीं थीं.
जानकारों और कई भुक्तभोगी ठेकेदारों से ‘रेल समाचार’ को प्राप्त जानकारी के अनुसार पूर्व सीएओ/सी/उ.रे. बी. डी. गर्ग ने रेलवे बोर्ड की ‘अथॉरिटी’ को ताक पर रखकर यूएसओआर-2010 के चैप्टर-8 में दी गई एक्स्ट्रा हाइट का भुगतान अपने कई फेवरेट ठेकेदारों को किया, जो कि आज भी किया जा रहा है, जबकि कई ठेकेदारों को किए गए भुगतान की रिकवरी करवाई और कई ठेकेदारों को यह भुगतान देने से मना कर दिया गया. उल्लेखनीय है कि उसी चैप्टर में यह भी लिखा हुआ है कि ऐसा कोई भी आर्डर जारी करने का अधिकार सिर्फ रेलवे बोर्ड के पास है. तथापि इसकी अनदेखी करते हुए बी. डी. गर्ग ने उक्त आर्डर 14/17.08.2015 को जारी किया. यह अवैध आर्डर ‘रेल समाचार’ के पास सुरक्षित है.
जानकारों का कहना है कि बी. डी. गर्ग के रिश्वत के इस खेल में कई ठेकेदारों का हक मारा गया है, क्योंकि इसके तहत सभी ठेकेदारों के साथ समान व्यवहार नहीं किया गया. इससे ऑर्बिट्रेशन के मामलों में भारी वृद्धि हुई है, जो कि एक तरह से समय और पैसे की बरबादी के साथ ही मानव-संसाधन की भी बरबादी है. कई ठेकेदारों का तो यहां तक कहना है कि ऐसी कार्य-शैली को दूसरों का हक मारने के बराबर समझा जाए और इस पक्षपातपूर्ण व्यवहार के लिए सीवीसी जांच के साथ ही पूर्व सीएओ/सी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करके उन्हें जेल भेजा जाना चाहिए.
ठेकेदारों का यह भी कहना है कि मोदी राज में ऐसा पक्षपात करने की हिम्मत इस अधिकारी को कैसे मिली? उनका कहना है कि जो आर्डर बी. डी. गर्ग के कहने पर डिप्टी सीई/सी-2 मोहम्मद ईशा ने जारी किया, उस पर स्वयं बी. डी. गर्ग के कार्यकाल में भी उत्तर रेलवे निर्माण संगठन द्वारा सही तरीके से अमल नहीं किया गया. यहां तक कि जिस अधिकारी (डिप्टी सीई/सी-2) ने इसे जारी किया, उसने भी इस पर अमल नहीं किया, बल्कि इसको दरकिनार करके उसके द्वारा भी एक्स्ट्रा हाइट का भुगतान किया गया है और अभी भी किया जा रहा है.
ठेकेदारों का कहना है कि कुछ अधिकारियों ने किए हुए कार्य का भुगतान कर दिया, जबकि कुछ ने भुगतान के बाद रिकवरी भी कर ली. कुछ ने उक्त भुगतान रोक दिया, कुछ ने कटौती कर दी. जबकि कुछ अधिकारियों द्वारा यह भुगतान आज भी किया जा रहा है. ऐसे में उक्त आर्डर का औचित्य क्या रह गया? उनका कहना है कि इस आर्डर का चक्कर सिर्फ रिश्वत खाने का रहा है. उन्होंने कहा कि बी. डी. गर्ग के उक्त आर्डर ने उत्तर रेलवे निर्माण संगठन में न सिर्फ अराजकता फैलाई है, बल्कि मोदी सरकार को बदनाम करने की साजिश भी की है.
उनका कहना है कि ‘सिस्टम इम्प्रूवमेंट’ के बजाय बी. डी. गर्ग के उक्त आर्डर ने भ्रष्टाचार कैसे किया जाए, ज्यादा रिश्वत कैसे कमाई जाए, ज्यादा रिश्वत खाने के नए रास्ते कैसे खोजे जाएं, चहेते ठेकेदारों को ज्यादा से ज्यादा से लाभ कैसे पहुंचाया जाए, मोदी सरकार के प्रति लोगों/ठेकेदारों के मन में दुर्भावना कैसे पैदा की जाए, इत्यादि चक्करों की जुगत में बी. डी. गर्ग और उनके कुछ खास चहेते अधिकारी लगे रहे हैं. उनका यह कु-कृत्य समानता अथवा बराबरी के नियम और मौलिक अधिकारों के विरुद्ध है.
जानकारों का कहना है कि यदि रेलवे बोर्ड भी अब अपनी अथॉरिटी को दरकिनार करके बी. डी. गर्ग के उक्त आर्डर को मान्यता देता है, और यदि उक्त आर्डर जेनुइन माना जाता है, तो एक तो यह कार्य कानूनन अवैध होगा, जबकि इस आर्डर के चलते उत्तर रेलवे निर्माण संगठन में अब तक लगभग 350 से 400 करोड़ रुपये का घपला हो चुका है. उनका कहना है कि सीबीआई, सीवीसी और रेलवे बोर्ड विजिलेंस द्वारा संयुक्त रूप से इस घोटाले की गहराई से जांच की जानी चाहिए और दोषियों के विरुद्ध सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए.
प्राप्त जानकरी के अनुसार जिन-जिन टेंडर्स में लोहे की सरिया अथवा लौह आइटम्स का इस्तेमाल हुआ है, उन टेंडर्स में एक्स्ट्रा हाइट के भुगतान का प्रावधान किया गया था, जिसमें बी. डी. गर्ग ने अपने उक्त आर्डर के माध्यम से बाद में पूरा घालमेल किया. उनके इस आर्डर के चलते बाद में भी उत्तर रेलवे के लगभग सभी मंडलों और निर्माण संगठन के टेंडर्स में एक्स्ट्रा हाइट का भुगतान किया गया है. जानकारों और कई ठेकेदारों का कहना है कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को ‘मौन-मोहन’ कहने वाले बी. डी. गर्ग की इस एक्स्ट्रा हाइट के भुगतान पर ‘मौन’ क्यों हैं?
जानकारों का यह भी कहना है कि जिस-जिस अधिकारी ने बी. डी. गर्ग के उक्त आर्डर के बाद एक्स्ट्रा हाइट का भुगतान किया है, उन सभी अधिकारियों की समस्त चल-अचल संपत्तियों की जांच अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए, क्योंकि उक्त आर्डर के बाद ही यह बदनाम ‘एक्स्ट्रा हाइट’ आइटम का विवाद सभी टेंडर्स में सामने आया है. उनका कहना है कि इस अवैध आर्डर के कारण ही कई अधिकारियों ने सीधे तौर पर एक्स्ट्रा हाइट के भुगतान का नियम विरुद्ध कार्य किया है. उनका सवाल यह भी है कि क्या कोई भी आर्डर विगत या पूर्ववर्ती अथवा पुराने कॉन्ट्रैक्ट्स पर कानूनी रूप से लागू हो सकता है? यदि नहीं, तो सीवीसी को इस मामले में अपनी वाच-डॉग की पूरी अथोरिटी के साथ निश्चित रूप से हस्तक्षेप करना चाहिए, क्योंकि कोई भी व्यक्ति अथवा सरकारी अधिकारी कानून से ऊपर नहीं हो सकता है. Continue..