April 7, 2019

रेलवे के वरिष्ठ डॉक्टर प्रशासनिक पद छोड़ने को तैयार नहीं

केंद्रीय कैबिनेट के निर्णय के बावजूद रेलवे डॉक्टरों का अड़ियल रुख

अन्य केंद्रीय मंत्रालयों द्वारा आर्डर जारी, डॉक्टरों को फील्ड में भेजा

डॉक्टरों को पड़ी कैट/रेलमंत्री की फटकार, फिर भी सुधरने को तैयार नहीं

विजय शंकर, ब्यूरो प्रमुख, गोरखपुर

रेल कर्मचारियों द्वारा अक्सर रेलवे के डॉक्टरों को पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर, जानवरों के डॉक्टर और बड़े रेल अधिकारियों के डॉक्टर की संज्ञा दी जाती है. तथापि उनके पास अन्य कोई विकल्प न होने के कारण मजबूरन उक्त संज्ञाओं से नवाजे जाने वाले रेलवे डॉक्टरों के पास ही झख मारकर उन्हें अपना इलाज करवाने जाना पड़ता है. रेलवे अस्पतालों की यह अमानवीय स्थिति इसलिए है, क्योंकि एक तरफ रेलवे के डॉक्टरों को बड़े रेल अधिकारियों और कई बड़े यूनियन पदाधिकारियों का पूरा संरक्षण प्राप्त है, क्योंकि उन्हें इन डॉक्टरों की घर-पहुंच मेडिकल सेवाएं उपलब्ध होती हैं. दूसरी तरफ पीरियोडिकल ट्रांसफर से मुक्त रेलवे के डॉक्टरों को किसी प्रकार का भय नहीं है. किसी कमर्चारी अथवा उसके परिजन की अकारण और असमय मौत का उन्हें कोई अफसोस नहीं होता है.

यही कारण है कि रेलवे के डॉक्टर न तो नवीनतम मेडिकल अनुसंधान से परिचित होते हैं और न ही इसमें उनकी कोई रुचि होती है, क्योंकि उनका मानना होता है कि उन्हें इंसानों का नहीं, बल्कि रेलकर्मी रूपी जानवरों का इलाज ही तो करना है, जिसके लिए मेडिकल फील्ड में होने वाले नवीनतम अनुसंधानों से परिचित होने की उन्हें कोई जरूरत नहीं है. तथापि वरिष्ठ स्तर के रेलवे डॉक्टर दवा कंपनियों के साथ मिलकर घटिया दवाईयों की खरीद और उनके द्वारा दिए जाने वाले प्रलोभनों तथा विदेश यात्राओं के लिए सदैव तत्पर रहते हैं. ऐसे में रेलवे के कुछ बैल-डॉक्टरों को उक्त प्रवंचनाओं का थोड़ा अतिरिक्त लाभ तब मिल गया, जब ‘अनुभवहीन’ मोदी सरकार ने वर्ष 2016 में सभी केंद्रीय मेडिकल सेवाओं से संबद्ध डॉक्टरों को पांच साल की सेवा-वृद्धि देने और मेडिकल फील्ड में बेरोजगारी बढ़ाने वाला एक अनावश्यक निर्णय लिया था.

सरकार के उक्त अनुभवहीन और अनावश्यक निर्णय से तब रेलवे के महानिदेशक, रेलवे अस्पताल सेवा (डीजी/आरएचएस) और जोनल रेलों के चीफ मेडिकल डायरेक्टर्स (सीएमडी) तथा केंद्रीय रेलवे अस्पतालों के मेडिकल डायरेक्टर्स (एमडी) जैसे उच्च प्रशासनिक पदों पर विराजमान रहे रेलवे के डॉक्टरों, जो कि अगले दो-चार दिनों अथवा दो-चार महीनों में रिटायर होने वाले थे, को मानो मन-मांगी मुराद मिल गई थी और उन्होंने उक्त पदों पर स्वयं को अगले पांच सालों तक सुरक्षित मानकर मनमाना व्यवहार करना शुरू कर दिया था. इसी दरम्यान उनसे ठीक नीचे के डॉक्टरों, जिनका प्रमोशन मोदी सरकार के उक्त बचकाने निर्णय के कारण अगले पांच साल तक के लिए लंबित हो गया था, ने विभिन्न फोरम में अपनी आवाज उठाई, जिसके चलते मोदी सरकार ने पुनः निर्णय लिया कि ऐसे सभी सरकारी डॉक्टरों, जिन्होंने 62 साल की आयु पूरी कर ली है, को अपने प्रशासनिक पदों का त्याग करके फील्ड में जाकर अपनी विशेषज्ञ सेवाएं मरीजों और मेडिकल छात्रों को देनी होंगी.

सरकार के उक्त निर्णय के विरुद्ध हालांकि अन्य केंद्रीय मंत्रालयों के डॉक्टरों ने अदालत का रुख किया या नहीं, इसकी समुचित जानकारी फिलहाल ‘रेल समाचार’ को नहीं मिल पाई है, तथापि रेलवे के कुछ मूढ़-धन्य वरिष्ठ डॉक्टरों ने इसके खिलाफ अवश्य अदालत का दरवाजा खटखटाया है. इनमें डीजी/आरएचएस, सीएमडी/उ.रे. सीएमडी/उ.म.रे. और सीएमडी/पूर्वोत्तर रेलवे सहित कुछ अन्य जोनल रेलों के भी सीएमडी शामिल हैं. बताते हैं कि इनमें से डीजी/आरएचएस और सीएमडी/उ.रे. कैट की प्रिंसिपल बेंच दिल्ली में, तो अन्य ने अपने क्षेत्र से संबंधित कैट में अपनी गुहार लगाई थी. इन सभी तथाकथित वरिष्ठ रेलवे डॉक्टरों को अदालत से न सिर्फ ठेंगा मिला, बल्कि अदालत ने सरकार के उक्त नीतिगत निर्णय में किसी प्रकार का हस्तक्षेप करने से मना करते हुए इन सभी को बैरंग लौटा दिया.

जानकारों का कहना है कि वर्तमान डीजी/आरएचएस हालांकि बेईमान नहीं बताए जाते हैं, मगर इसका तात्पर्य यह भी नहीं है कि उन्हें लगातार सर्वोच्च प्रशासनिक पद पर बने रहने दिया जाए. उनका कहना है कि जबकि यही बात सीएमडी/उ.रे., सीएमडी/उ.म.रे. और सीएमडी/पूर्वोत्तर रेलवे के बारे में दावे के साथ नहीं कही जा सकती है, क्योंकि इनके कथित भ्रष्ट कारनामे सर्वज्ञात रहे हैं. उनका कहना है कि इनके साथ ही कई अन्य सीएमडी और कुछ रेलवे डॉक्टर न सिर्फ अपने पेशे के साथ न्याय नहीं कर रहे हैं, बल्कि पेशे के अतिरिक्त डॉक्टरों की ट्रांसफर/पोस्टिंग में घालमेल और घटिया दवाईयों की भ्रष्टाचारपूर्ण खरीद जैसी कई अन्य नियम-विरुद्ध गतिविधियों में लिप्त होने के आरोप भी इनके खिलाफ रेलकर्मियों द्वारा लगाए जाते रहे हैं.

जहां एक तरफ अन्य सभी केंद्रीय मंत्रालयों ने सरकार के उक्त निर्णय पर अमल शुरू कर दिया है और वरिष्ठ प्रशासनिक पदों पर विराजमान अपने सभी संबंधित वरिष्ठ डॉक्टरों को फील्ड में भेजने के आर्डर भी जारी कर दिए हैं, वहीँ रेल मंत्रालय ने अब तक सरकार के उक्त निर्णय पर अमल नहीं किया है. यही नहीं, निर्णय पर अमल करने के बजाय रेलवे बोर्ड के कुछ अधिकारियों ने रेलवे के मूढ़-धन्य डॉक्टरों के साथ मिलकर सरकार के निर्णय को धता बताने की एक साजिश के तहत रेलवे के डॉक्टरों को उक्त निर्णय से छूट दिए जाने अथवा रेलवे में यथास्थिति बनाए रखने का एक प्रस्ताव बनाकर रेलमंत्री पीयूष गोयल के पास फाइल भेज दी थी.

रेलवे बोर्ड के विश्वसनीय सूत्रों ने ‘रेल समाचार’ को बताया कि उक्त प्रस्ताव के माध्यम से डॉक्टरों की साजिश यह थी कि तमाम फाइलों के दबाव में रेलमंत्री से उक्त फाइल पर भी धुप्पल में साइन करा लिए जाएं. सूत्रों का कहना है कि वह तो अच्छा हुआ कि रेलमंत्री के संज्ञान में पूरा मामला आ गया, क्योंकि बतौर रेलमंत्री और वित्तमंत्री वह भी कैबिनेट के उक्त महत्वपूर्ण निर्णय में शामिल थे. अतः वह कैबिनेट के निर्णय के विरुद्ध जाने का दुस्साहस नहीं कर सकते थे. सूत्रों का कहना है कि रेलवे बोर्ड की उक्त साजिश के संज्ञान में आते ही रेलमंत्री का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया और उन्होंने न सिर्फ उक्त फाइल ज्यों की त्यों लौटा दी, बल्कि बोर्ड के सभी संबंधित अधिकारियों को अपने चैम्बर में तत्काल तलब करके उनकी जमकर क्लास भी ली और जबरदस्त फटकार भी लगाई.

सूत्रों का कहना है कि रेलमंत्री की इस फटकार के बाद अब वरिष्ठ प्रशासनिक पदों पर बैठे रेलवे के तथाकथित विशेषज्ञ डॉक्टरों के पास अपने उक्त पदों को छोड़ने और फील्ड में बैठकर अपने जूनियर्स का आदेश पालन करने के सिवा अन्य कोई चारा नहीं रह गया है. यही स्थिति रेलवे बोर्ड की भी हो गई है. सूत्रों का यह भी कहना है कि रेलमंत्री की इस फटकार के बाद अब रेलवे बोर्ड के भी किसी अधिकारी की इतनी हिम्मत नहीं रह गई है कि वह दुबारा ऐसा कोई प्रस्ताव रेलमंत्री के पास भेजने की हिमाकत कर सके. उनका यह भी कहना है कि जिस मोदी सरकार ने इन मूढ़-धन्य डॉक्टरों को पांच साल की सेवा-वृद्धि का अनचाहा और अनावश्यक तोहफा दिया, यह उसी के निर्णय के विरुद्ध जाकर अपनी हेकड़ी दिखा रहे हैं. यह किसी अहसान-फरामोशी से कतई कम नहीं है.

केंद्रीय कैबिनेट द्वारा लिया गया निर्णय निम्नवत है:

The Union Cabinet chaired by Prime Minister Narendra Modi has approved the Strengthening of teaching, patient/clinical care and public health programme implementation – Shifting of more experienced doctors belonging to Central Government and Central government entities to teaching/ clinical/Public Health Programme implementation activities.

The approval seeks to ensure that the doctors belonging to Central Health Service (CHS) and of other Ministries/Departments/entities of the Central Government, after attaining the age of 62 years, work exclusively in their respective fields of clinical expertise. This would be done by amending the decision of the Union Cabinet taken in its meeting held on 15.06.2016 for removal of difficulties experienced in the effective implementation of this decision.

Major Impact: This will result in capacity building and leadership development of more Central Government doctors besides the availability of more experienced doctors for medical education, clinical/patient care services and for implementation of national health programmes.

Beneficiaries: The decision will make available more experienced doctors for patient/clinical care, medical teaching activities and implementation of National Health Programmes etc., which is likely to benefit society at large. The benefits of this proposal will percolate down the line throughout the country.

Background: In order to tackle the problem of shortage of doctors, low joining and high attrition rate in Central Health Service, Union Cabinet in its meeting held on 15.06.2016, approved an increase in age of superannuation of doctors of the Central Health Service to 65 years.

Subsequently, in its meeting held on 27.09.2017, the Union Cabinet increased the age of superannuation of doctors working in various other Ministries/Departments including those of Indian Railways, AYUSH, Central Universities and NTs, etc. to 65 years. It is, however, felt that there is a need to make available the services of senior doctors above the age of 62 years for core medical profession, such as, clinical/patient care/ teaching in medical colleges/implementation​​ of health programmes, Public Health programmes and functions, etc.

प्रस्तुति : सुरेश त्रिपाठी