October 31, 2019

“मुफ्त का चंदन, घिस मेरे नंदन..!!”

After all how much fund will be provided for HOD/PHODs’ flat renovation by the Railway!

आखिर अधिकारियों के आवासों के रेनोवेशन हेतु कितना फंड मुहैया कराएगा रेलवे? 

रेलवे की आर्थिक बदहाली का एक प्रमुख कारण है रेल अधिकारियों का मनमानी कामकाज

रेल अधिकारियों के आवासों के रखरखाव पर अब तक हुए खर्च का स्वतंत्र ऑडिट करवाया जाए!

Suresh Tripathi

One flat in Budhwar Park, Railway Officer’s Colony at Colaba, Mumbai is being renovated for last two months on war footing. Work is going on for renovating the entire flat by replacing floors, tiles, kichen, bathrooms cupboards etc.

Atleast 15+ persons are working around the clock. The entire lift has been kept in use for them. They always ensure that lift is kept open on 6 floor. The labour move material so carelessly. Today they have broken the entire looking glass of the lift. It is present picture of lift of that block!

रेल अधिकारियों के आवास बदलते रहते हैं। कभी अन्यत्र ट्रांसफर से, कभी प्रमोशन पर आने-जाने से, तो कभी उनकी पसंद से भी। परंतु इसका अर्थ यह नहीं हो सकता कि हर बार उनके आवासों के रंग-रोगन और पुनर्स्थापन (रेनोवेशन) में रेलवे द्वारा लाखों-करोड़ों रुपये खर्च किए जाएं! परंतु मुंबई के पॉस इलाके, कोलाबा स्थित मध्य रेलवे एवं पश्चिम रेलवे के अधिकारियों की पॉस कालोनी “बधवार पार्क” में ‘मुफ्त का चंदन, घिस मेरे नंदन’ वाला नजारा ही अक्सर नजर आता है।

अभी हाल ही में यहां एक अधिकारी को PHOD ब्लाक में एक फ्लैट आवंटित हुआ है। रेलवे सर्कल में चल रही चर्चा के अनुसार इस फ्लैट के रेनोवेशन में करीब एक करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। यही नहीं, चर्चा यह भी है कि जिस कलर की फ्लोरिंग टाइल्स मैडम ने बताई थीं, उससे कुछ ही भिन्न कलर की टाइल्स लगा दी गईं, जिसकी लागत करीब 28 लाख रुपये बताई जा रही है, इससे मैडम नाराज हो गईं, और सभी टाइल्स उखाड़ने तथा उनके बताए नए टाइल्स ही लगाने का आदेश दनदना दिया।

हालांकि चर्चा में जिस राशि का उल्लेख किया जा रहा है, वह अतिशयोक्तिपूर्ण है, और संबंधित अधिकारी ने भी इससे इंकार किया है। तथापि यह भी कहा जा रहा है कि अब तक के सभी बजटों से यह ज्यादा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार उक्त ब्लाक में सभी वरिष्ठ अधिकारियों (पीएचओडी) के ही आवास हैं। लगभग दो महीनों से जारी फ्लैट के रेनोवेशन और करीब 15-20 लेबर्स की लगातार आवाजाही से न सिर्फ सभी अधिकारियों को परेशानी हो रही है, बल्कि लिफ्ट को भी लेबर द्वारा ही ज्यादातर समय एंगेज रखने से उनकी यह परेशानी और ज्यादा बढ़ गई है।

बहरहाल, चूंकि यह वक्त लगभग सभी अधिकारियों पर आता है, इसलिए कोई भी अधिकारी अपना बहुत ज्यादा विरोध दर्ज नहीं करता है। परंतु जिस तरह का काम हो रहा है, उससे अन्य अधिकारियों को अवश्य ऐतराज है। बताते हैं कि पश्चिम रेलवे अपने अधिकारियों के ऐसे कार्यों के लिए ज्यादा दरियादिल है, जबकि मध्य रेलवे द्वारा ऐसे मामलों में अब तक काफी कंजूसी बरती जाती रही है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार शैलेन्द्र कुमार जब मुंबई सेंट्रल डिवीजन के डीआरएम बने थे, तब उन्होंने अपने आवंटित फ्लैट के रेनोवेशन में लगभग 30 लाख रुपये खर्च करके एक बेंचमार्क स्थापित कर दिया था। इसके बाद पश्चिम रेलवे के प्रिंसिपल सीएसटीई रहे दीपक बंसल, जो हाल ही में रिटायर हुए हैं, ने शैलेन्द्र कुमार के बेंचमार्क को तोड़ा, और करीब 45 लाख रुपये अपने फ्लैट के रेनोवेशन में खर्च किए थे।

तत्पश्चात श्री बंसल के भी इस बेंचमार्क को एमआरवीसी के सीएमडी रहे प्रभात सहाय ने तोड़ा और करीब 60 लाख खर्च किए। श्री सहाय हाल ही में रिटायर होकर पुणे शिफ्ट हुए हैं और वहां पुणे मेट्रो के प्रमुख बनाए गए हैं। बताते हैं कि श्री सहाय तो जाते-जाते कई कीमती वॉल पेंटिंग्स सहित अन्य तमाम सामान भी उठा ले गए। बताया गया कि उक्त पेंटिंग्स और अन्य सामान अन-एकाउंटेट था, जिसे ठेकेदारों से कहकर मंगवाया और लगवाया गया था।

खैर, पश्चिम रेलवे के एक और बड़े अधिकारी का ऐसा ही कारनामा सुनने में आया है। इन महाशय को पहले दूसरे पीएचओडी ब्लाक की तल मंजिल पर फ्लैट का आवंटन हुआ। जब तक उसका रेनोवेशन पूरा होता, तब तक इन्हें उसी ब्लाक की दूसरी मंजिल पर दूसरा और मनपसंद बड़ा फ्लैट आवंटित हो गया। ऐसे में उक्त दोनों फ्लैट्स का उद्धार हो गया और इस तरह तल मंजिल वाला बढ़िया रेनोवेटेड फ्लैट हाल ही में रिटायर हुए एक जीएम को छह माह के लिए मिल गया।

ऐसा नहीं है कि रेल अधिकारियों के आवासों के रेनोवेशन की यह अंधेरगर्दी सिर्फ मुंबई में ही हो रही है, बल्कि यह सभी जोनल रेलों की दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई इत्यादि हर बड़े शहरों में स्थित अधिकारी कालोनियों में हो रही है। इस तरह यदि देखा जाए तो इन फ्लैटों के बनने से लेकर अब तक इनके तथाकथित रंग-रोगन और रेनोवेशन में जितनी राशि खर्च की जा चुकी है, वह आज इनके बाजार भाव से भी कई गुना ज्यादा हो सकती है। अतः जरूरत इस बात की है कि ऐसी सभी अधिकारी कालोनियों के सभी फ्लैटों का स्वतंत्र ऑडिट करवाकर यह देखा जाना चाहिए कि अब तक उनके कथित रखरखाव पर आखिर कितना रेल राजस्व खर्च किया जा चुका है, क्योंकि रेलवे की बरबादी का यह भी एक प्रमुख कारण है।