भारतीय रेल की संपूर्ण सफाई व्यवस्था का थर्ड-पार्टी ऑडिट कराय जाए!
ईएनएचएम/डीएनएचएम सहित हजारों करोड़ की आउटसोर्सिंग की खुल गई पोल
स्वच्छता रैंकिंग में निचले से निचले पायदान पर फिसले लगभग सभी रेलवे स्टेशन
सुरेश त्रिपाठी
रेल मंत्रालय द्वारा क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया से कराए गए स्वच्छता सर्वेक्षण में इस बार 720 रेलवे स्टेशनों को शामिल किया गया था. राजस्थान की राजधानी जयपुर को सबसे स्वच्छ स्टेशन पाया गया. मापे गए स्वच्छता पैमाने में स्टेशन परिसर, अनारक्षित टिकट बुकिंग कार्यालय, स्टेशनों के प्रवेश/निकास द्वार, प्लेटफॉर्म, स्टाल और पब्लिक फीडबैक इत्यादि का समावेश प्रमुख रहा. परंतु इस बार की स्वच्छता सूची देखने से स्पष्ट है कि रेलवे स्टेशनों की साफ-सफाई में लगातार गिरावट दर्ज हो रही है. इसमें बड़े पैमाने पर हो रहा भ्रष्टाचार भी पिस्छ्ले दिनों मुरादाबाद मंडल में उजागर हुआ. जिस मंडुआडीह स्टेशन को ‘विश्व-स्तरीय’ स्टेशन कहकर प्रचारित किया गया, उसकी रैंकिंग रसातल में चली गई. ‘रेल समाचार’ द्वारा भी रेलवे में सफाई को लेकर की जा रही आउटसोर्सिंग और इसके दुष्परिणाम पर इससे पहले कई बार लिखा जा चुका है.
‘रेल समाचार’ का रेलमंत्री और रेल मंत्रालय से सवाल है कि दिल्ली में जहां राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सहित सभी केंद्रीय मंत्री और सांसद (पूर्व/वर्तमान दोनों) सभी बड़े लोग रहते हैं, और यह सभी लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्वच्छता मुहिम को पूरा करना चाहते हैं, इसके लिए सालाना अरबों रुपये की सार्वजनिक राशि खर्च की जा रही है, दिल्ली में रेलमंत्री, चेयरमैन, रेलवे बोर्ड और सभी बोर्ड मेंबर्स सहित रेलवे के सभी बड़े अधिकारी होने के बावजूद दिल्ली के 49 रेलवे स्टेशनों में से कोई भी एक स्टेशन स्वच्छता रैंकिंग पर टॉप-10 में क्यों नहीं है? नई दिल्ली स्टेशन 28वें, दिल्ली जंक्शन 390वें, हजरत निजामुद्दीन स्टेशन 241वें, दिल्ली कैंट 389वें, दिल्ली शाहदरा स्टेशन 378वें, दिल्ली सराय रोहिल्ला 474वें, तुगलकाबाद 419वें और आनंदविहार टर्मिनस 27वें पायदान पर है. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में स्थित स्टेशनों की स्वच्छता रैंकिंग में यदि लगातार गिरावट आ रही है, तो यह नेतृत्व और उसके मार्गदर्शन की कमी/खामी ही मानी जाएगी.
मुंबई के छह टर्मिनस स्टेशनों सहित कई उपनगरीय स्टेशनों पर प्रतिदिन होने वाली भीड़ झांसी, इलाहाबाद, लखनऊ, गोरखपुर, वाराणसी, पटना, जैसे जोनल मुख्यालय एवं मंडल मुख्यालय के बड़े स्टेशनों से भी ज्यादा होती है, तथापि मुंबई के स्टेशनों की साफ-सफाई उनसे बेहतर है. यह सही है कि जहां जैसे लोग होते हैं, वहां वैसी स्वच्छता होती है. जिन स्टेशनों की स्वच्छता रैंकिंग बेहतर आई है, वह स्थानीय संस्कृति, रहन-सहन और स्वच्छता के प्रति जन-जागरूकता की भागीदारी का परिणाम है, उसमें रेलवे का कोई योगदान नहीं है. उत्तर भारत के लोग यदि पान-गुटखा खाकर रेलवे स्टेशनों को गंदा करते हैं, तो वही लोग दिल्ली मेट्रो में पहुंचते ही सुधर जाते हैं. ऐसा इसलिए है कि दिल्ली मेट्रो में रख-रखाव और सुरक्षा पर काफी सख्ती बरती जाती है, कड़ा पहरा है. भारतीय रेल भी चाहे तो ऐसा संभव है, इसके लिए सिर्फ इच्छाशक्ति की दरकार है.
उत्तर मध्य रेलवे, इलाहाबाद मंडल के इलाहाबाद जंक्शन और कानपुर सेंट्रल स्टेशन की साफ-सफाई की साफ-सफाई में हो रहे भ्रष्टाचार और लापरवाही के संदर्भ में ‘रेल समाचार’ ने विस्तार से लिखा था. इलाहाबाद मंडल द्वारा उच्च स्तरीय साफ-सफाई के लिए यह कार्य कमर्शियल विभाग से हटाकर मैकेनिकल विभाग के अंतर्गत नव-गठित ईएनएचएम विंग को दे दिया गया था. मंडल के ‘प्रमुख कमाऊ’ स्टेशन ‘कानपुर सेंट्रल’ की रैंकिंग पिछली बार की तुलना में और गिरकर 267वें पायदान पर जा पहुंची है. इसी तरह इलाहबाद जंक्शन पिछली बार की 33वीं रैंकिंग से 49 पायदान फिसलकर वर्तमान में सीधे 82वें पायदान पर जा गिरा है. यही स्थिति गोरखपुर, वाराणसी कैंट, मंडुआडीह स्टेशनों की भी है.
उल्लेखनीय है कि कानपुर सेंट्रल स्टेशन पर ईएनएचएम विंग द्वारा ग्वालियर स्थित फर्म को यांत्रिकी साफ-सफाई का ठेका दे तो दिया गया, लेकिन यह सुनिश्चित नहीं किया गया कि ठेकेदार द्वारा अनुबंध की शर्तों का पालन किया जा रहा है या नहीं. इसी बीच ग्वालियर की इस कांट्रेक्ट फर्म ने इस ठेके को नियम विरुद्ध एक अन्य स्थानीय फर्म को सब्लेट कर दिया और बदले में बतौर मुनाफा मोटी रकम वसूल कर ली. कमोबेस यही स्थिति लगभग सभी बड़े स्टेशनों की है, जहां सफाई ठेका तो किसी बड़ी फर्म ने लिया है, मगर उसे उन्होंने एक या दो अन्य फर्मों को सब्लेट कर दिया है, वह भी अधिकृत विभागीय पूर्व अनुमति के बिना.
अब ऐसी स्थिति में जब निचोड़कर चूसा हुआ आदमी अपना खर्चा वसूलेगा तब वह तो दुगुना-तिगुना ही वसूलेगा. इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि कानपुर सेंट्रल पर प्रतिदिन 262 की जगह 100 से 150 तक प्राइवेट सफाई कर्मी लगाए जाने लगे. इस प्रकार बाकी बचे कर्मियों का मिनिमम भुगतान का बंटवारा आपस में उच्च स्तर से लेकर नीचे के स्तर तक होने लगा और सीएचआई एवं सीनियर डीईएनएचएम द्वारा दिखावे के लिए कभी नुक्कड़ नाटक, तो कभी श्रमदान और भी न जाने क्या-क्या तमाशे किए गए, लेकिन झूठ के पांव नहीं होते! यही हाल बाकी स्टेशनों का भी हो रहा है.
यह सिर्फ एक स्टेशन का उदाहरण है, जिसकी सफाई वाणिज्य विभाग से हटाकर यांत्रिक विभाग को दी गई थी. इससे पहले यही सफाई ठेका समान अवधि के लिए करीब ढ़ाई से तीन करोड़ के दरम्यान हुआ करता था, जिसकी यह न्यूनतम राशि अब बढ़कर 14-15 करोड़ हो गई है. इसमें सिर्फ लिखित रूप से ‘यांत्रिक सफाई’ और ‘निजी सफाई कर्मियों की संख्या’ बढ़ी है, जिसका कार्य-रूप में कोई स्थान नहीं है, बाकी अन्य कोई जमीनी परिवर्तन नहीं हुआ है. यही समान स्थिति इलाहाबाद जंक्शन स्टेशन के सफाई ठेके की भी है.
बाकी इस मामले में भुगतान न कर पाने की स्थिति में दिवालिया घोषित होने का दक्षिण रेलवे का हाल तो अब पूरी भारतीय रेल को पता है ही, जहां न सिर्फ बेनामी ईएनएचएम ठेके होने की चर्चा है, बल्कि इसके पीछे माफिया यूनियन का हाथ होने की भी बात कही जा रही है. कहने का तात्पर्य यह है कि अनाप-शनाप लागत बढ़ाकर दिए गए सफाई ठेकों का कोई लाभ भारतीय रेल को नहीं मिला है और यह सारी तिकड़म एक लूट-तंत्र में बदलकर रह गई है.
इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि मेडिकल विभाग से होते हुए वाणिज्य विभाग द्वारा सही ढ़ंग से साफ-सफाई का कार्य नहीं कराने के कारण ही अथवा यह कहा जाए कि भ्रष्टाचार के दलदल में धंसकर फेल हो जाने के कारण ही मशीनीकृत व्यवस्था से साफ-सफाई कराने के लिए मैकेनिकल विभाग के अंतर्गत एक नई विंग ‘ईएनएचएम’ की शुरुआत हुई, लेकिन कुछ जगहों पर हुए भयानक भ्रष्टाचार के कारण इस पूरी व्यवस्था पर अब सवाल उठने लगे हैं कि इतनी भारी-भरकम राशि खर्च करके भी यदि परिणाम सकारात्मक नहीं आ पाए हैं, तो इस नई विंग का फायदा क्या हुआ?
सच्चाई यह है कि इसके लिए जिम्मेदार लोगों पर उचित कार्यवाही नहीं होने के कारण ही स्वास्थ्य निरीक्षकों द्वारा बड़े पैमाने पर लूट-खसोट की जाने लगी और अब उसका परिणाम सामने है. वास्तव में भारतीय रेल की संपूर्ण सफाई व्यवस्था का थर्ड-पार्टी ऑडिट कराए जाने की जरूरत है.