September 3, 2019

इलेक्ट्रिक लोको शेड, इटारसी से बाहर चला गया खुला इंजन

पश्चिम मध्य रेलवे के अंतर्गत इटारसी स्थित इलेक्ट्रिक लोको शेड का मुख्य द्वार

संरक्षा/सुरक्षा में हुई भारी चूक और लापरवाही को छिपाया गया

रौब झाड़ने और मनमानी करने के लिए पहचाने जाने लगे हैं अधिकारी

SrDEE वांछित खरे का अवांछित जवाब, यह कोई नई बात नहीं है, कोई लापरवाही नहीं हुई

सुरेश त्रिपाठी

शनिवार, 24 अगस्त 2019 को विधुत लोको शेड, इटारसी में एक धामाकेदार काम हुआ. ईश्वर की मेहरबानी से इससे कोई भयंकर हादसा अथवा कोई भीषण रेल दुर्घटना नहीं हुई, यह भारतीय रेल के लिए एक अनोखा करिश्मा था अथवा संबंधित रेल अधिकारियों और कर्मचारियों का सौभाग्य, यह भी ईश्वर ही जान सकता है.

बहरहाल, शनिवार को जो हुआ, वह कुछ इस प्रकार है- लेकिन उससे पहले इस लोको शेड में जो हो रहा है, जिस कारण ऐसे हादसे हो रहे हैं, उस पर एक नजर डाल लेते हैं–

इलेक्ट्रिक लोको शेड, इटारसी में लगभग तीन महीने पहले ही एक नए मुखिया आए हैं, जिनकी उम्र अभी सिर्फ 31 वर्ष है, यह उनकी पहली और नई पोस्टिंग है, इसलिए नया-नया जोश और रुतबा है, शायद इसीलिए वह कुछ ज्यादा ही ताव खा रहे हैं.

रोज पूरे दिन में 6-7 घंटे पोजीशन लेना ओर मीटिंग करना, बस उनका यही एक काम है. इसके अलावा ये दिखाना कि इससे पहले यहां सब कुछ जीरो था, कुछ नहीं हो रहा था, अब काम करो, एकाएक सब नए तरीके से, चाहे कोई समझ पाए या नहीं, बस करो..

यदि सारा परिवर्तन सामान्य ढ़ंग और धीरे-धीरे होता, तो भी ठीक था. कर्मचारी यहां अचानक हो रहे तमाम परिवर्तन समझ नहीं पा रहे हैं, ऊपर से मातहतों की उम्र और सेवाकाल का कोई लिहाज किए बिना सबकी, सबके सामने रोज बेइज्जती करना, साहब का विशेष शगल बन गया है.

इससे दहशत में आए तमाम कर्मचारी सिक करने लगे और कई रिटायरमेंट लेने की सोचने लगे हैं.

इतने दबाव के अलावा भी अभी शेड के कर्मचारियों और अन्य अधिकारियों को कई अन्य कड़ी मानसिक यातनाओं एवं परीक्षाओं से गुजरना पड़ रहा है.

उन्हें लगभग हर बात पर साहब के कटु शब्द सुनने पड़ रहे हैं.. जैसे आप गुलाम हो.. कामचोर हो, कोई एक काम भी ढ़ंग से करना नहीं आता.. कहां हो, तुरंत आओ.. बस एक ही फरमान..!

और जब कर्मचारी वहां पहुंच जाए, तो तीन घंटे तक बात नहीं करना, खड़े रहो, न बैठने को कहना, न ही कोई बात करना, फिर वह कर्मचारी चाहे कितनी भी उम्र का क्यों न हो..

शनिवार, 24 अगस्त को इटारसी इलेक्ट्रिक लोको शेड में दो इंजन थे, जिनके नंबर क्रमशः 25046 और 25048 थे.

इसमें से एक इंजन (नं. 25046) बाहर लाइन पर जाने के लिए तैयार था और दूसरा इंजन (नं. 25048) रिपेयर होना था, और उसे खोला जाना था.

संबंधित एसएसई ने एक नए ट्रेनी को निर्देशित किया कि जो इंजन रिपेयर के लिए आया है, उस इंजन को खोल दो. यानि एसएसई ने इंजन नं. 25048 को खोलने के लिए कहा था.

परंतु वह ट्रेनी, इंजन नं. 25048 को खोलने और ट्राली से अलग करने के बजाय दूसरे तैयार (रेडी) इंजन नं. 25046 को खोल आया.

अब खुला हुआ इंजन नं. 25046 शेड से बाहर चला गया. उसने इटारसी से भोपाल इंटरसिटी में इटारसी से वर्किंग करता हुआ भोपाल पहुंचा. वहां से सुबह जनशताब्दी में काम करता हुआ वापस इटारसी आ गया.

फिर रविवार की शाम को इटारसी से भुसावल जाने के लिए ट्रेन में लग रहा था..

इसी बीच शेड में रविवार को जब स्टाफ इंजन पर काम करने पहुंचा, तो उसे इंजन अनलॉक नहीं मिला. उसने सुपरवाइजर को शिकायत की, सुपरवाइजर ने आश्चर्य मिश्रित स्वर में कहा, नहीं.. नहीं.. ऐसा कैसे हो सकता है.. वह इंजन तो कल खुल गया है..

फिर सुपरवाइजर/इंचार्ज ने एसएसई अबरार से पूछा, तो उन्होंने भी यही कहा कि इंजन खुला हुआ है.

फिर दोनों एसएसई ने स्पॉट पर जाकर देखा, तो उनके होश उड़ गए कि जिस इंजन को खोलना था, वह तो यहीं खड़ा है.

इसका मतलब यह था कि रेडी इंजन खुला हुआ शेड से बाहर लाइन पर चला गया. अब सबको जबरदस्त झटका लगा.

फौरन बाहर गए, इंजन का पता किया गया, तो ज्ञात हुआ कि इंजन तो 190 किमी रन कर चुका है और 450 किमी आगे जाने की तैयारी में है.

तुरंत उस इंजन को रोका गया और आनन-फानन उसे शेड में वापस बुलाया गया.

इस तरह ईश्वर की कृपा से कम से कम एक बड़ा हादसा बचा और सैकड़ों लोगों की जान भी बची. ऊपर से इस घोर लापरवाही और संरक्षा में हुई भयानक चूक और भीषण लापरवाही को छुपाया गया.

इस खबर की पुष्टि के लिए जब ‘रेलसमाचार’ ने इस विषय पर इलेक्ट्रिक लोको शेड, इटारसी के सीनियर डीईई वांछित खरे से संपर्क किया, तो सर्वप्रथम उनका ‘अवांछित’ जवाब था कि यह कोई ऐसी बड़ी घटना नहीं थी कि इस पर इतना बड़ा हंगामा खड़ा किया जाए. इस पर जब उनसे यह कहा गया कि क्या उनके कहने का मतलब यह है कि यह घटना महत्वहीन है और इसमें किसी भी प्रकार से रेल संरक्षा की अनदेखी नहीं हुई है.. तो उनका जवाब हां में था. उन्होंने कहा कि इसमें संरक्षा की कोई अनदेखी नहीं हुई.

इस पर जब पुनः उनसे यह कहा गया कि एक खुला हुआ इंजन शेड से बाहर चला जाता है, और 190 किमी. चल जाता है, फिर 450 किमी. आगे भुसावल जाने के लिए भी तैयार होता है, ऐसे में भी वह यह मानते हैं कि इससे रेलयात्रियों की संरक्षा और सुरक्षा को कोई खतरा नहीं था, इसमें कोई लापरवाही या चूक नहीं हुई? इस पर उन्होंने यह कहते हुए बात खत्म कर दी कि इस बारे में भोपाल के जनसंपर्क अधिकारी से बात करें, वह मीडिया से बात करने के लिए अधिकृत नहीं हैं.

तत्पश्चात जब जनसंपर्क अधिकारी, भोपाल आई. ए. सिद्दीकी से संपर्क किया गया और उन्हें उपरोक्त घटना की पृष्ठभूमि बताते हुए उसके संदर्भ में जानकारी मांगी गई, तो पता चला कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. श्री सिद्दीकी ने स्पष्ट रूप से कहा कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं है, यदि ऐसी कोई घटना हुई है, तो वह संबंधित अधिकारी से पूरी जानकारी लेने के बाद ही कोई जवाब दे पाएंगे.

पिछले कुछ समय से यह देखने में आ रहा है कि नए-नए रंगरूट बने कुछ रेल अधिकारी अपने पजामे से बाहर जाकर व्यवहार कर रहे हैं. उन्हें न तो स्थापित नियमों, परंपराओं और समुचित कार्य-व्यवहार की समझ है, और न ही उनकी कार्य-प्रणाली से उनके मातहत संतुष्ट हैं. वह सिर्फ अपने मातहतों पर रौब झाड़ने और मनमानी करने के लिए जाने जाते हैं. शेड या कारखाने में समुचित रिपेयरिंग मटीरियल है, या नहीं है, इससे उन्हें कोई मतलब नहीं, उन्हें सिर्फ प्रोडक्शन से मतलब रहता है.

इसीलिए न सिर्फ शेड से निकलने के तुरंत बाद अथवा अगले कुछ ही दिनों में कई इंजन और कोच फेल हो रहे हैं, बल्कि रेल संरक्षा और सुरक्षा की भी धज्जियां उड़ी हुई लगातार देखी जा रही हैं. कुछ समय पहले इटारसी स्टेशन पर हुए भयानक अग्निकांड और उससे पहले सेंट्रल केबिन के जलकर खाक हो जाने की भीषण घटनाओं के मद्देनजर जोनल रेल प्रशासन और रेलवे बोर्ड को इस विषय पर अविलंब समुचित ध्यान देने की आवश्यकता है.