‘विभागवाद’ के चलते ट्रेन-18 के लक्ष्य को रेलवे बोर्ड ने लगाया पलीता
प्रधानमंत्री और रेलमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट को रेलवे बोर्ड ने दे दी तिलांजलि
बीएसएनएल की तर्ज पर किया जा रहा है निजी कंपनियों का हितसाधन
‘रोम’ जल रहा है, बांसुरी बजाने में मगन ‘नीरो’! भष्मासुर साबित हो रहा रेलवे बोर्ड!!
सुरेश त्रिपाठी
यह सर्वविदित है कि ‘मेक इन इंडिया’ के तहत शुरू हुआ ‘ट्रेन-18 प्रोजेक्ट’ इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल की लड़ाई के अंतर्गत ‘विभागवाद’ के चलते ही विवादों में है. इसका उत्पादन ठप पड़ा हुआ है. इससे कुछ घरेलू और विदेशी रेल कंपनियों का ही हितसाधन हो रहा है, जो नहीं चाहती हैं कि रेलवे के इंजीनियर इतने सस्ते में ट्रेनसेट बनाकर भारतीय रेल को लूटने का अवसर उनसे छीन लें. इस पर विजिलेंस जांच बैठाकर तीन साल में इसके 40 ट्रेनसेट तैयार करने के रेलमंत्री के दिए गए लक्ष्य को भी रेलवे बोर्ड ने पलीता लगा दिया है.
ऐसे में दक्षिण रेलवे के प्रिंसिपल चीफ मैकेनिकल इंजीनियर (पीसीएमई) शुभ्रांशु ने सोमवार, 19 अगस्त 2019 को ट्रेन-18 यानि ‘वंदे भारत एक्सप्रेस’ के विषय को लेकर चेयरमैन, रेलवे बोर्ड (सीआरबी) को जो पत्र लिखा है और उसमें उन्होंने जो मुद्दे उठाए हैं, उनका कोई उचित जवाब सीआरबी अथवा रेलवे बोर्ड के पास नहीं है.
‘ट्रेन-18’ के प्रोडक्शन से संबंधित स्थितियों की वास्तविकता को बयान करने वाली जो चिट्ठी शुभ्रांशु ने सीआरबी को लिखी है, उसका बड़ा मौजूं अनुवाद किसी रेल अधिकारी ने किया है. यह अनुवाद ‘रेलसमाचार’ को सोशल मीडिया से प्राप्त हुआ है. देखें इसकी बानगी-
अथ रेलम-पेल कथा……
मान लो कि विश्व-बाजार में दुनिया-जहान की एक चीज 350 रुपये में बिक रही है.
आपने वही चीज अपने घर में बना ली… शुद्ध देशी… स्वदेशी… और 10 लोगों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रोजगार भी दिया… आर एंड डी भी खुद ही किया… विदेशी मुद्रा भी बचाई… इसमें ‘मेक इन इंडिया’ भी हुआ… और पैसे लगे सिर्फ 97 रुपये…
मने आपने 350 रुपये की चीज 97 रुपये में बना ली… अब आपके साथ क्या होना चाहिए???
शाबाशी… वाहवाही… और इनाम-इकराम मिलना चाहिए न… एकाक ठो पुरस्कार कोई पदमसिरी टाइप मिलना चैये कि नई मिलना चैये… बोलो.. मिलना चैये कि नई मिलना चैये…
आईसीएफ ने सिर्फ 18 महीने के रिकॉर्ड समय में ट्रेन-18 बना डाली… सिर्फ बना ही नहीं डाली, बल्कि जीरो से शुरू करके बनाई… कोई पहले से चला आ रहा पुराना स्थापित प्रोडक्ट नहीं बनाया, बल्कि नई परिकल्पना, नया डिजाइन बनाया… रिसर्च किया… और फिर पहला पीस बनाया…
जब किसी प्रोडक्ट का पहला पीस बनाया जाता है, तो उसे ‘प्रोटोटाइप’ कहा जाता है… आमतौर पे पहला पीस ‘प्रोटोटाइप’ बहुत महंगा होता है… वो दो गुना, चार गुना, 100 गुना या 1000 गुना से ज्यादा महंगा भी हो सकता है… उसकी सफलता भी संदिग्ध होती है…
फिर जब वो समय की मार खा के सफल हो जाता है… दुनिया में उसकी स्वीकार्यता और मांग बढ़ती है, तो फिर उसका ‘औद्योगिक उत्पादन’ यानि ‘इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन’ होने लगता है… जब ‘लार्ज स्केल प्रोडक्शन’ यानि ‘बड़ी मात्रा में उत्पादन’ होता है, तब वो बेहद सस्ता हो जाता है…
दुनिया के हर प्रोडक्ट के साथ यही होता है…
परंतु आईसीएफ ने इन सभी स्थापित मान्यताओं के विपरीत अपना ‘प्रोटोटाइप’ ट्रेन-18 ट्रेनसेट सिर्फ 97 करोड़ रुपये में बना डाला… जो कि करीब 8 महीनों से सफलतापूर्वक दौड़ रहा है… इसमें अब तक कहीं कोई समस्या नहीं आई है…!
अब कमाल की बात ये है कि हमारे रेलवे बोर्ड ने ऐसी नायब उपलब्धि पे भी ‘शाबाशी’ देने के बजाय बनाने वालों पे ही विजिलेंस की जांच बैठा दी है…
अब इस जांच के बिंदु क्या हैं??? देखें-
1. ट्रेन में लगे बिजली के कल-पुर्जे सप्लाई करने वाली भारतीय कंपनी को लाभ पहुंचाने के लिए ‘बम्बार्डियर’ और ‘सीमेंस’ जैसी विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को नजरअंदाज किया गया.
2. आरडीएसओ के मानकों की अवहेलना की गई और आरडीएसओ से क्लियरेंस नहीं ली गई.
इसके जवाब में रेलवे के एक बड़े अधिकारी और ट्रेन-18 के प्रोडक्शन से जुड़े रहे आईसीएफ के पीसीएमई.. बोले तो इंटीग्रल कोच फैक्ट्री के प्रिंसिपल चीफ मैकेनिकल इंजीनियर श्री शुभ्रांशु ने चेयरमैन, रेलवे बोर्ड को एक पत्र लिख के स्पष्ट किया है कि बिजली के कल-पुर्जे खरीदने के लिए ‘ओपन टेंडर’ कराया गया था और उसमें एल-1 अर्थात लोयेस्ट-1 यानि सबसे कम पैसे की बोली लगाने वाली भारतीय कंपनी को ठेका दिया गया. ठेका देने से पहले बम्बार्डियर और सीमेंस जैसी तमाम कंपनियों को खुद फोन कर आमंत्रित किया कि अगर इससे भी सस्ता दे के ठेका ले सकते हो, तो ले लो… ये ऑफर मैं आपको लेमैंस के रूप दे रहा हूं.. ये मैं आम भाषा में समझा रहा हूं… वैसे तकनीकी भाषा में इसे ‘काउंटर ऑफर’ कहते हैं…!
अंततः एल-1 यानि लोयेस्ट-1 यानि सबसे कम पैसे की बोली लगाने वाली भारतीय कंपनी को ठेका मिला.
अब जहां तक आरडीएसओ के एक विभाग विशेष से क्लियरेंस न लिए जाने की बात है, तो उस पे शुभ्रांशु जी कहते हैं कि अपने इस ‘सफेद हाथी’ से कहो कि सुधर जाए… क्योंकि इसका सिर्फ एक काम रह गया है… कि ये केवल ढ़ेर सारी लीद कर सकता है…!!
उनके शब्दों में आरडीएसओ की ‘स्पेसिफिकेशन’ उनकी ‘अनमैनुफैक्चरेबल विश लिस्ट’ हैं… अर्थात ‘जमीनी वास्तविकता से परे हवाई उड़ान वाली शर्तें हैं’…
आरडीएसओ आमतौर पे ऐसी ‘स्पेसिफिकेशन’ सिर्फ संबंधित पार्टियों से पैसा वसूलने के लिए लगाता है और अभी हाल ही में आरडीएसओ के एक अधिकारी को घूस लेते सीबीआई ने रंगेहाथों पकड़ा है.
शुभ्रांशु जी पत्र में लिखते हैं कि आरडीएसओ की एक-एक अप्रूवल लेने में दो-दो, तीन-तीन साल लग जाते हैं..
जबकि हमने ट्रेन-18 सिर्फ 18 महीने में रिसर्च और डिजाइन कर, डेवलप कर, डिलीवर भी कर दी है… ‘डिलीवरी मस्ट टेक प्रेसीडेंस ओवर प्रोसीजर’ यानि कि प्रक्रिया से पहले डिलीवरी जरूरी और महत्वपूर्ण है… आरडीएसओ को अपनी कार्य-संस्कृति और अपना रवैया बदलना चाहिए..
उन्होंने रेलवे बोर्ड से पूछा है कि वह बताए, अल्स्टॉम (मधेपुरा), 9000 हॉर्स पॉवर इंजन और 200 केएमपीएच वाले इंजन के साथ क्या हुआ? इसी प्रकार डीजल से इलेक्ट्रिक में कन्वर्ट होने वाले डीएलडब्ल्यू इंजन के साथ क्या हुआ?
ये सभी प्रोजेक्ट अपने समय से बहुत पीछे चल रहे हैं… जबकि ट्रेन-18 अपने समय से बहुत आगे चल रही थी, जिसे आपने विजिलेंस जांच बैठा के उसके पांवों में बेड़ियां डाल दी हैं… कहां तो 3 साल में 40 रेक बनाने का सपना था, कहां आपकी इस विजिलेंस जांच के कारण आज तक तीसरा रेक भी नहीं बन सका है…
इसके अंत में बहुत स्पष्ट शब्दों में लिखा है-
वी. के. यादव जी, रेल के भस्मासुर मत बनो !
ऐ शहंशाह नीरो पीयूष गोयल, कहां सोये हुए हो???
यहां एक भस्मासुर ‘रेल’ रूपी ‘रोम’ फूंके दे रहा है!!
दक्षिण रेलवे में ठेकों के भुगतान को लेकर उठा विवाद
इसके अलावा साफ-सफाई के ठेकों के भुगतान को लेकर उठे ताजा विवाद के लिए दक्षिण रेलवे के कार्यवाहक महाप्रबंधक और तथाकथित ईमानदार प्रमुख वित्त सलाहकार (पीएफए/द.रे.) की लापरवाही के कारण दक्षिण रेलवे में ईएनएचएम और ओबीएचएस का भुगतान रुका. परंतु इस पर की गई पहल के लिए शुभ्रांशु को बलि का बकरा बनाया गया, जबकि उन्होंने जो कुछ भी लिखा-पढ़ी की, वह महाप्रबंधक/द.रे. के कहने पर की थी.
शुभ्रांशु ने कैट में दिया तबादले को चुनौती
प्राप्त ताजा जानकारी के अनुसार शुभ्रांशु की दलीलों का कोई जवाब रेलवे बोर्ड अथवा सीआरबी के पास नहीं है. ज्ञातव्य है कि रेलवे बोर्ड ने अब पुनः उनका तबादला पीसीएमई/द.रे. से व्हील एंड एक्सेल प्लांट, बेला, बिहार के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी (सीएओ) के पद पर कर दिया है. पिछले दो-ढ़ाई साल के अंदर उनके तीन तबादलों के औचित्य को भी उचित ठहराने में रेलवे बोर्ड नाकाम है. ऐसे में उन्होंने अपने ताजा तबादले को कैट में चुनौती दी है. जहां पहली सुनवाई में कोई उचित समाधानकारक जवाब न दे पाने के कारण रेलवे बोर्ड ने किसी तरह अगली तारीख ले ली है.
पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर शुभ्रांशु का उत्पीड़न
इस पूरे मामले में एक बात पूरी तरह से स्पष्ट है कि सेक्रेटरी/डीओपीटी आदि को कथित रूप से चिट्ठियां लिखने और लिखवाने के लिए शुभ्रांशु को जिम्मेदार मानकर रेलवे बोर्ड उनका उत्पीड़न करने पर उतारू है. इसके अलावा वैकेंसी के अनुसार जीएम पोस्टिंग न देने और उनके बोर्ड मेंबर एवं सीआरबी बनने की राह में रोड़े अटकाने के एक प्रयास के रूप में भी इस तमाम तिकड़मबाजी को देखा जा रहा है.
प्रधानमंत्री और रेलमंत्री का है ड्रीम प्रोजेक्ट ट्रेन-18
जबकि ट्रेन-18 जैसा नायब, सुंदर, सस्ता, टिकाऊ प्रोडक्ट देने के लिए प्रधानमंत्री तक ने उनसे हाथ मिलाकर उन्हें और उनकी पूरी टीम को बधाई दी थी. रेलमंत्री ने भी उनकी इच्छानुसार कम समय में बेहतरीन उत्पाद देने के लिए पूरी टीम की तारीफ तमाम सोशल मीडिया पर की थी और तीन साल में इसके 40 रेक बनाने का लक्ष्य देकर आज तक कर रहे हैं. ऐसे में शुभ्रांशु के इस उत्पीड़न पर भारी आश्चर्य व्यक्त किया जा रहा है.
नाकाबिल और ना-लायक लोग शीर्ष पर हैं विराजमान
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि जो कभी एक डिवीजन नहीं संभाल पाए थे और जिन्हें डीआरएम के कार्यकाल के बीच में ही मुख्यालय में शिफ्ट कर दिया गया था, ऐसे ‘नाकाबिल’ अधिकारी सिर्फ अपनी ‘एज-प्रोफाइल’ की बदौलत जीएम बनकर आज दो-दो रेलवे जोन संभाल रहे हैं. इसके अलावा जो लोग अपनी पूरी रेलसेवा के दौरान मात्र दो-चार साल ही रेलवे में काम करने के अलावा लगातार तथाकथित फॉरेन पोस्टिंग में रहकर इधर-उधर मौज करते रहे, वे आज भारतीय रेल के शीर्ष पर विराजमान हैं. इसी के परिणामस्वरूप कोई भी वाजिब प्रशासनिक निर्णय नहीं हो पा रहे हैं. फलस्वरूप चार वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा उन्हें डीआरएम न बनाए जाने के खिलाफ कैट में दाखिल मुकदमों में रेलवे बोर्ड को अदालती आदेशों की अवहेलना और मानहानि का सामना करना पड़ रहा है.
बीएसएनएल की तर्ज पर रेलवे का भी भट्ठा बैठा रहे अधिकारी
ऐसे में भारतीय रेल की दुर्गति होनी ही है. भारतीय रेल की यही सबसे बड़ी विडंबना है. यही कारण है कि आज पूरी भारतीय रेल का ऑपरेटिंग रेश्यो 120-130 के आसपास चल रहा है और रेलवे की लुटिया डूब रही है. निजी कंपनियों के साथ मिलकर शीर्ष पर बैठे कुछ रेल अधिकारी रेलवे को जमकर लूट रहे हैं. जिस तरह बीएसएनएल के अधिकारियों ने निजी मोबाइल ऑपरेटरों के साथ मिलकर बीएसएनएल का भट्ठा बैठा दिया, ठीक उसी प्रकार रेलवे के अधिकारी भी निजी कंपनियों का हितसाधन करके भारतीय रेल की बधिया बैठाने में लगे हुए हैं. यह एक जमीनी सच्चाई है कि जहां शीर्ष पर जुगाड़ पोस्टिंग्स और भारी भ्रष्टाचार का बोलबाला है, वहीं नीचे स्तर पर कारखानों में आवश्यक कल-पुर्जे और मरम्मत का जरूरी सामान भी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है.
महीनों से 9 जीएम की पोस्टें खाली पड़ी हैं, मगर रेलवे बोर्ड को इनकी पोस्टिंग करने की फुर्सत नहीं है. ऐसे में महीनों से लंबित इन जीएम-पोस्टिंग्स में भारी कदाचार का संकेत मिल रहा है. रेलवे में चौतरफा भ्रष्टाचार का बोलबाला है. जो भी शीर्ष पर आता है, उसे सिर्फ अपना कैडर ही सबसे सक्षम दिखाई देता है. ऐसे में रेलवे के विकास की चिंता आज शीर्ष पर बैठे कुछेक वरिष्ठों को छोड़कर किसी को नहीं है. वर्चस्व की इस लड़ाई में जीएम पोस्टिंग को लेकर हो रही जोड़तोड़ और तिकड़मबाजी से रेलवे में ‘विभागवाद’ चरम पर पहुंच गया है. रेलवे बोर्ड में अधिकारियों के बीच दो-फाड़ चल रही है. कई अन्य अधिकारियों ने भी भेदभाव को लेकर डीओपीटी एवं पीएमओ को चिट्ठी लिखी है. ऐसे में भारतीय रेल का बंटाधार होना निश्चित है.