September 2, 2019

जीएम के 8 पद खाली हैं, मगर पोस्टिंग का पता नहीं

कई महीनों से खाली पड़े जीएम के 6 पदों के लिए संबंधित अधिकारियों का इंटरव्यू रेलमंत्री ले चुके हैं. फिर इनकी पोस्टिंग के लिए किस बात का इंतजार हो रहा है? जीएम के पदों पर पोस्टिंग में की जा रही अनावश्यक देरी पर यह सवाल चर्चा का विषय है.

जबकि 16 जुलाई को ‘रेलसमाचार’ द्वारा पीएमओ को की गई एक ट्वीट के बाद आनन-फानन में अगले ही दिन मेंबर ट्रैफिक के पद पर पी. एस. मिश्रा और मेंबर ट्रैक्शन के पद पर राजेश तिवारी की पोस्टिंग हो जाने के बाद क्रमशः दक्षिण पूर्व रेलवे एवं उत्तर पश्चिम रेलवे के जीएम के दो पद और खाली हो चुके हैं.

तथापि, इस महीने के अंत में यानि 31 जुलाई को रेलवे बोर्ड में मेंबर स्टाफ, मेंबर/एसएंडटी और मेंबर स्टोर्स के तीन पद और खाली हो रहे हैं. इसके मतलब यह है कि इस महीने के खत्म होते ही जीएम के कुछ और पद खाली जाएंगे.

इस तरह रेलवे बोर्ड मेंबर्स और जीएम की पोस्टिंग में अनावश्यक विलंब किए जाने से जोनल रेलों और बोर्ड की कार्य-प्रणाली एवं प्रशासनिक कामकाज प्रभावित होता है, जबकि कार्यरत जीएम्स पर खाली पदों का अतिरिक्त कार्यभार देखने से दोहरा दबाव पड़ता है.

इनकी पोस्टिंग में सेटिंग-गेटिंग का जो कारोबार लालू यादव, ममता बनर्जी के समय में होता था, ऐसा लगता है कि वह अब भी चल रहा है. जो जितना ज्यादा लेनदेन की हामी भरेगा, उसे उतना अच्छा जोन मिलेगा, वरना उसे किसी कोने में डाल दिया जाता है.

अन्यथा बोर्ड मेंबर्स और जीएम्स के लिए ऐसे वरिष्ठ अधिकारियों का इंटरव्यू लेने का कोई औचित्य नहीं है!


पहली बार बोर्ड मेंबर्स ने लिया सही निर्णय

मैकेनिकल-इलेक्ट्रिकल की पूर्व स्थिति कायम करने के विषय पर सीआरबी पड़े अकेले

बोर्ड के 6 मेंबर मेंबर इंजीनियरिंग, मेंबर स्टाफ, मेंबर ट्रैफिक, मेंबर एसएंडटी, मेंबर स्टोर्स और वित्तायुक्त/रेलवेज ने वर्तमान स्थिति जारी रखने का समर्थन किया.

इंट्रेस्टेड पार्टी होने के नाते मेंबर रोलिंग स्टॉक और मेंबर ट्रैक्शन को वोटिंग से बाहर रखा गया था.
बोर्ड के इतिहास में शायद पहली बार कोई निर्णय लेने के लिए लोकतांत्रिक तरीका अपनाया गया. इस मामले में रेलमंत्री की भूमिका सराहनीय है.

गुरुवार, 18 जुलाई को फुल बोर्ड मीटिंग में मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल को अलग करने पर जब सभी बोर्ड मेंबर एकमत नहीं थे, तब सीआरबी के साथ इस अलगाव के पक्ष में रहने के बावजूद रेलमंत्री ने इस पर वोटिंग का प्रस्ताव रख दिया.

चूंकि मेंबर रोलिंग स्टॉक (एमआरएस) और मेंबर ट्रैक्शन (एमटीआर) अपने विभागों के पक्षकार थे, इसलिए उन्हें इस वोटिंग से बाहर रखा गया. वोटिंग में दोनों विभागों को अलग करने के पक्ष में सिर्फ सीआरबी का एकमात्र अकेला वोट रहा, जबकि उनके विपरीत 6 मेंबर्स ने वर्तमान प्रक्रिया जारी रखने के समर्थन में वोट किया.

इससे पहले लगभग चिल्लाकर विभागीय पक्ष रख रही एएमएल मंजू गुप्ता को रेलमंत्री ने यह कहकर चुप करा दिया कि ऐसे तो वह अपने ही विभाग का पक्ष कमजोर कर रही हैं. इस प्रकार इस विषय पर सीआरबी द्वारा गठित कमेटी की रिपोर्ट का अब कोई अर्थ नहीं रह गया है.


रेलवे के निगमीकरण के लिए अधिकारियों की बीमार मानसिकता जिम्मेदार

जीएम, बोर्ड मेंबर, सीआरबी बनने और इस उच्च स्तर पर पहुंचने के बाद भी जब ये वरिष्ठ अधिकारी कैडरिज्म उर्फ विभागवाद अथवा विभागीय बिरादरीवाद से मुक्त नहीं हो पाते हैं, तब रेलवे का भला कैसे हो सकता है! वर्तमान सहित तीन सीआरबी इस बिरादरीवाद के ज्वलंत उदाहरण हैं.

जबकि शायद ही ऐसा कोई बोर्ड मेंबर और जीएम होगा, जो इस ‘मानसिक बीमारी’ से मुक्त हो. वैसे तो इनकी कोई गिनती उपलब्ध नहीं है, परंतु ‘रेलसमाचार’ को कुछ ऐसे नाम मालूम हैं, जिन्होंने इन पदों पर बैठने के बाद रेलवे का भला तो कतई नहीं किया. IRPS का मेंबर स्टाफ के पद पर दावा तो उचित था, परंतु बहती गंगा में हाथ धोने की तर्ज पर मेंबर/एसएंडटी एवं मेंबर/मैटीरियल मैनेजमेंट के रूप में क्रमशः IRSSE और IRSS का भी उल्लू सीधा होने के पीछे विभागवाद ही सबसे बड़ी वजह रहा है.

रेल अधिकारियों की इसी ‘बीमार मानसिकता’ ने आज रेलवे जैसी महान संस्था को निगमीकरण के बहाने निजीकरण के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है. इसके टुकड़े होने के लिए अधिकारियों का विभागवाद ही जिम्मेदार है. जब स्वयं सीआरबी निष्पक्ष नहीं हो, तब इसकी सीख नीचे के दूसरे (बोर्ड मेंबर) और तीसरे (जीएम) पायदान पर कैसे दी जा सकती है?

संदर्भ: रेलवे बोर्ड पत्र संख्या 2019(O&M)/8/3, दि.18.07.2019, कैडर कंट्रोल/मैनपावर मैनेजमेंट ऑफ मैकेनिकल एंड इलेक्ट्रिकल स्टाफ.


Latest Story of #IRTS #Fraternity

Sandeep Silas an Senior IRTS’s Vigilance status not being updated since March 2019 and will not be updated till September 2019, so that he couldn’t become Additional Member and compete with present Secretary, Railway Board Sushant Kumar Mishra.

https://twitter.com/RailSamachar/status/1151605603153768448?s=19

On date as per Official record, Sandeep Silas is facing judicial trial on basis of former minister for railways Suresh Prabhu’s whimsical sanction of prosecution, which had been quashed by Delhi High Court long time back and opposed by CVC but even Railway Administration is sitting quiet, not taking any appropriate decision.

https://twitter.com/RailSamachar/status/1151609004134555648?s=19


Vacancies available for Retired Group ‘B’ officers in @Central_Railway
अब PHODs, HODs, DRM, GM और Railway Board Member की भी ऐसी वैकेंसी निकाली जानी चाहिए, क्योंकि अब इन पदों पर भी पदोन्नति करने की कोई जरूरत नहीं रह गई है.
रिएंगेजमेंट की गलत एवं अविचारित नीति से नई नौकरियां खा गई सरकार!
https://twitter.com/RailSamachar/status/1149279607071182849?s=19


CBI raids 6 officials of Northeast Frontier Railway (Construction) headquarters & their residences

CBI officials on Thursday raided 14 locations in Guwahati in connections with one Rs 158 crore scam in the Northeast Frontier Railway (Construction) headquarters in Maligaon.

Sources informed that CBI on Thursday raided offices, official quarters and private residences of six NF Railway officials, who were directly involved in the scam.

Acting on a report, the CBI registered a suo-moto case (No. 06/2019) against six officials of NF Railway (Construction), who were directly involved in swindling of over Rs 158 crores of public money.

The NF Railway (Construction) is responsible for implementation of all construction works in the eight states of northeast India, parts of West Bengal and Bihar.

Sources said, Dilip Borah, who is a senior public relations officer of the NF Railway is the prime accused in the case.

https://twitter.com/RailSamachar/status/1149420865542508544?s=19


रेलवे बोर्ड ने प्लेटफार्म वेंडिंग हेतु Commercial Circular No. 52/2018 के अंतर्गत दि. 08.09.18 को जारी कैटरिंग पालिसी 2017 के रिवाइज पैरा 6.4 में यह कहीं नहीं कहा है कि “रेलवे प्लेटफार्म पर स्थित सभी स्टेटिक यूनिट्स के लिए एक्स्ट्रा वेंडर्स की अनुमति लेना अनिवार्य है.”
परंतु WCR में इसके लिए ऐसी सभी स्टेटिक कैटरिंग यूनिट्स पर अतिरिक्त वेंडर्स “मैंडेटरी” बना दिया गया है, यानि बोर्ड के दिशा-निर्देशों को सीधे दरकिनार करके एक्स्ट्रा वेंडर थोपे गए हैं. यह जबरदस्ती स्वीकार न करने पर उनके वर्तमान वेंडर्स की अगली मेडिकल अनुमति नहीं दिए जाने और आरपीएफ द्वारा परेशान करने की भी धमकी दी गई है, जबकि अन्य जोनल रेलों/मंडलों से इस तरह की कोई शिकायत अब तक नहीं मिली है.
सवाल यह पूछा जा रहा है कि क्या रेलवे बोर्ड की निर्धारित नीति से कोई एक रेलवे या डिवीजन अलग जाकर अपनी नीति निर्धारण कर सकता है?
जबकि बोर्ड के निर्देश का निहितार्थ यह है कि जिस खानपान यूनिट को जरूरत हो, या जो अतिरिक्त वेंडर्स की मांग करे, उसे उतने वेंडर्स की अनुमति तय लाइसेंस फीस का औसत जमा करने के बाद दे दी जाए. जानकारों का मानना है कि सिद्धांतत: यही होना भी चाहिए, मगर यदि प.म.रे. में इसके लिए जबरदस्ती की जा रही है, तो यह नियमत: गलत है. रेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) को इस मामले में अविलंब अपना स्पष्टीकरण जारी करना चाहिए.
https://twitter.com/RailSamachar/status/1151273246265761793?s=19