उत्पादन इकाईयों का निगमीकरण या निजीकरण – एक ही सिक्के के दो पहलू
भारतीय रेल और उत्पादन इकाईयों का निगमीकरण करने पर उतारू है सरकार
भूल जाना चाहिए बेरोजगार युवाओं को अब रेलवे में नौकरी पाने का सपना
ब्रिटिश रेलवे सहित अन्य देशों की निजी रेलों से सबक लेने को तैयार नहीं
देशवासियों, और खासकर बेरोजगार युवाओं को अब भारतीय रेल में नौकरी पाने का सपना एक बुरा ख्वाब समझकर भूल जाना होगा. रेलवे में केंद्र सरकार की अब कोई नई नियुक्तियां नहीं निकलने वाली हैं, क्योंकि केंद्र सरकार अब पूरी भारतीय रेल सहित इसकी सभी उत्पादन इकाईयों का निगमीकरण और निजीकरण करने पर उतारू हो गई है. भले ही सरकार और उसके रेलमंत्री संसद में जोर देकर कह रहे हैं कि रेलवे का निगमीकरण और निजीकरण नहीं होगा, परंतु देश के लाखों युवाओं सहित देशवासियों एवं 14 लाख रेलकर्मियों को उनकी बातों पर कोई भरोसा नहीं हो रहा है.
सरकार की इस कुटिल नीति से अब रेलवे की नौकरियों में आरक्षण का प्रश्न भी एक झटके में समाप्त हो जाएगा, क्योंकि ‘न तो नौ मन तेल होगा, और न ही राधा नाचेगी’ की तर्ज पर मोदी सरकार भारतीय रेल को निगमीकरण की पटरियों पर दौड़ाने वाली है, जिसका आखिरी स्टेशन सिर्फ ‘निजीकरण’ है.
‘निगमीकरण’ का मतलब है किसी संस्था को ‘निगम’ का रूप देना. सरकारी नियंत्रण के तहत उसके कार्यों को धीरे-धीरे निजी संस्थानों को सौंपते जाना, ताकि आगे चलकर जब वह निगम लाभ कमाने लगेगा, तब उसे किसी निजी बोलीदाता को बेचा जा सकेगा. वैसे भी कथित सरकारी नियंत्रण वाला कोई भी निगम अपना सारा काम ठेके पर निजी ठेकेदारों से ही करवाता है. ऐसे में बेरोजगार युवाओं को सरकारी-स्थाई नौकरी और उसकी सामाजिक सुरक्षाओं एवं सुविधाओं को हमेशा के लिए भूल जाना होगा.
सवाल यह है कि रेलवे में यह ‘निगमीकरण’ शब्द कहां से आया? असल में लोग रेलवे को जितना देखते-सुनते हैं, वह उससे कहीं बहुत बड़ा संस्थान है. लोगों को सिर्फ दौड़ती-भागती ट्रेनें दिखाई देती हैं, लेकिन यह सभी ट्रेनें सुचारु ढ़ंग से दौड़ती रहें, और पूरी व्यवस्था सुचारु रूप से चलती रहे, इसके लिए बड़े-बड़े कारखाने हैं, वर्कशॉप हैं, मेंटीनेंस की वृहद व्यवस्था है.
मोदी सरकार के दुबारा सत्ता में आते ही इन सारी व्यवस्थाओं को जो लगभग 162 सालों से अधिक समय पहले से काम करती आई है, उन्हें पूरी तरह हिलाकर रख दिया है. यह भूचाल रेल मंत्रालय द्वारा जारी वह ‘100 दिन का ऐक्शन प्लान’ है. इस प्लान के तहत रेलवे बोर्ड ने एक आदेश जारी कर कहा है कि, 1. चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स, आसनसोल. 2. इंटीग्रल कोच फैक्ट्री, चेन्नई. 3. डीजल रेल इंजन कारखाना, वाराणसी. 4. डीजल माडर्नाइजेशन वर्क्स, पटियाला. 5. रेल व्हील फैक्ट्री, बेंगलोर. 6. रेल कोच फैक्ट्री, कपूरथला. 7. माडर्न कोच फैक्ट्री, रायबरेली सहित कुछ अन्य उत्पादन इकाईयां अब ‘प्राइवेट कंपनी’ की तरह काम करेंगी.
रेलवे बोर्ड के इस आदेश से उपरोक्त सभी उत्पादन इकाईयों में तैनात सभी रेल कर्मचारी सरकारी सेवा में न होकर निजी कंपनी के जैसे कर्मचारी बन जाएंगे. यही नहीं, अब यहां भारतीय रेल के महाप्रबंधक की जगह प्राइवेट कंपनी के चेयरमैन एंड मैनेजिंग डायरेक्टर (सीएमडी) या चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर (सीईओ) बैठेंगे.
रेलवे बोर्ड ने अगले 100 दिन के ऐक्शन प्लान में अपनी सभी उत्पादन इकाईयों को एक कंपनी के अधीन करने का प्रस्ताव किया है. प्रस्ताव के मुताबिक सभी उत्पादन इकाईयां ‘स्वतंत्र लाभ इकाई’ के रूप में काम करेंगी और भारतीय रेल की नई इकाई के सीएमडी को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगी. इस तरह रेलवे बोर्ड ने उक्त सातों उत्पादन इकाईयों को भारतीय रेल की नई इकाई ‘इंडियन रेलवे रोलिंग स्टॉक कंपनी’ कंपनी के अधीन लाने का निर्णय लिया गया है.
अभी तक इन उत्पादन इकाईयों के सभी कर्मचारी भारतीय रेल के कर्मचारी माने जाते हैं. इन पर ‘रेल सेवा अधिनियम’ लागू होता है. इन सभी कर्मचारियों को ‘केंद्रीय कर्मचारी’ माना जाता है. उत्पादन इकाईयों का सर्वेसर्वा महाप्रबंधक (जीएम) होता है, जो कि चेयरमैन, रेलवे बोर्ड को रिपोर्ट करता है.
लेकिन निगमीकरण के बाद जीएम की जगह सीईओ की तैनाती होगी, वह सीएमडी को रिपोर्ट करेगा. ग्रुप ‘सी’ और ‘डी’ का कोई भी कर्मचारी भारतीय रेल का हिस्सा नहीं होगा, बल्कि वह ‘निगम’ के कर्मचारी कहलाएंगे. उन पर रेलसेवा अधिनियम लागू नहीं होगा, बल्कि ‘निगम’ जो ‘नियम’ बनाएगा, वह उन पर लागू होगा. कर्मचारियों के लिए अलग से वेतन आयोग गठित होगा और कांट्रैक्ट पर काम होगा. इन कर्मचारियों को केंद्रीय सरकार की सुविधाएं नहीं मिलेंगी, सेवा शर्ते भी बदल जाएंगी, नए आने वाले कर्मचारियों के लिए वेतनमान और वेतन ढ़ांचा भी बदल जाएगा.
उपरोक्त स्थित से यह साफ दिख रहा है कि केंद्र सरकार की मंशा जल्दी ही रेलवे को भी एयर इंडिया, एचएएल, बीएसएनएल की तर्ज पर निगम बनाने की नजर आ रही है. ऐसे में कुछ सालों बाद आज वेतन देने को मोहताज बीएसएनएल जैसी बदतर स्थिति में रेलवे भी न आ जाए, इसकी आशंका 14 लाख रेलकर्मियों को अभी से सता रही है.
पिछले दिनों बीएसएनएल अपने कर्मचारियों को वेतन न दे पाने के लिए चर्चा में रहा है. ऐसे में यह भी ध्यान देने वाली बात है कि केंद्र सरकार ने अपने दूरसंचार विभाग को निगम का रूप देकर जब बीएसएनएल की स्थापना की थी, तब वहां सिर्फ 1.70 लाख कर्मचारियों का प्रश्न था, जबकि यहां रेलवे में उसके कम से कम सात-आठ गुना ज्यादा यानि 14 लाख कर्मचारी काम कर रहे हैं.
पहले ही निजीकरण के कार्यक्रम के परिणामस्वरूप अब तक भारतीय रेल में लाखों नौकरियां खत्म की जा चुकी हैं. अगर निगमीकरण के रास्ते पर आगे बढ़ा गया, तो रेलवे में नौकरी तो मिलेगी, लेकिन वह सरकारी नहीं, बल्कि निजी ठेकेदारों की होगी. रेलवे का निगमीकरण अथवा निजीकरण, यह एक ही नीति के दो चेहरे हैं. ब्रिटेन का उदाहरण सामने है.