भ्रष्टाचार-रहित भारतीय रेल का ढ़ोल पीटना बंद करें रेलमंत्री और रेलवे बोर्ड!
‘नायर’ में जारी है भ्रष्टचार/कदाचार का नंगा नाच, रेलवे बोर्ड बना मूकदर्शक
विजिटिंग लेक्चरर्स से ही कोर्ष कराना है, तो क्यों नियुक्त हैं पचीसों प्रोफेसर?
सुरेश त्रिपाठी
वड़ोदरा स्थित भारतीय रेल राष्ट्रीय अकादमी (नायर) में सभी प्रोफेसर/ऑफिसर्स द्वारा रेलवे बोर्ड के नियमों का खुला उल्लंघन किया जा रहा है. इसके अंतर्गत नायर में नियुक्त प्रोफेसर्स या अधिकारियों द्वारा खुद लेक्चर लेने के बजाय आगंतुक व्याख्याता (विजिटिंग लेक्चरर) द्वारा कोर्स आयोजित किए जा रहे हैं. इस प्रकार रेलवे राजस्व को लाखों रुपये का नुकसान पहुंचाया जा रहा है तथा जनता की मेहनत की कमाई की खुली लूट की जा रही है.
रेलवे बोर्ड के पत्र आरबीई/193/09 के अनुसार एक कोर्स में कुल व्याख्यान के 15% विजिटिंग लेक्चरर बुलाए जा सकते हैं, लेकिन नायर में सभी प्रोफेसर/ऑफिसर्स द्वारा रेलवे नियमों का खुला उल्लंघन किया जा रहा है और कुल व्याख्यान के 15% से ज्यादा विजिटिंग लेक्चरर बुलाए जा रहें हैं. इन विजिटिंग लेक्चरर्स को न केवल मानदेय का भुगतान किया जा रहा है, बल्कि रेलवे नियमों का खुला उल्लंघन करके हवाई यात्रा की सुविधा भी प्रदान की जा रही है.
रेलवे बोर्ड के पत्र आरबीई/61/2018 के अनुसार दिल्ली से मुंबई तक रेल से आसान यात्रा सुविधा उपलब्ध है. जानकारों का कहना है कि इस मार्ग पर हवाई यात्रा उपलब्ध कराए जाने का कोई औचित्य नहीं है. यदि इसके बावजूद विजिटिंग लेक्चरर्स को रेलवे नियमों का खुला उल्लंघन करके हवाई यात्रा सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है, ऐसे में रेलवे बोर्ड द्वारा संबंधितों की जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए. परंतु विजिलेंस को सुशुप्तावस्था में रखकर रेलवे बोर्ड भ्रष्टाचार एवं कदाचार के हर मामले में भारी कोताही बरत रहा है.
जानकारों का यह भी कहना है कि नायर के सभी प्रोफेसर/ऑफिसर्स को भी वड़ोदरा से दिल्ली के लिए हवाई यात्रा उपलब्ध कराए जाने का भी कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि यहां से शाम के 9-9.30 बजे से ही राजधानी एक्सप्रेस सहित कई अनुकूल ट्रेन सुविधाएं उपलब्ध हैं, जो सुबह-सुबह ही दिल्ली पहुंचा देती हैं. लेकिन इन सभी प्रोफेसर्स को रेलवे में सर्विस करने के बाबजूद रेलवे की राजधानी जैसी लक्झरी ट्रेन की यात्रा रास नहीं आती है. व्यक्तिगत स्टेटस सिंबल के लिए यहां रेलवे बोर्ड के तमाम नियमों का खुला उल्लंघन करके सभी प्रोफेसर/ऑफिसर्स को हवाई यात्रा सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार नायर में लगभग पांच कोर्स रोज चलते हैं. प्रति दो घंटे का एक लेक्चर होता है. इस प्रकार यहां रोजाना कुल पंद्रह लेक्चर होते हैं. ऐसे में जानकारों का मानना है कि यहां 25 प्रोफेसर रखने का भी कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि एक प्रोफेसर का एक लेक्चर भी यहां रोजाना नहीं होता है और ज्यादातर कोर्स तो विजिटिंग लेक्चरर्स द्वारा चलाए जा रहे हैं. जानकारों का कहना है कि यहां 25 प्रोफेसर के पद रखे जाने की समीक्षा करने की तुरंत जरुरत है.
मिली जानकारी के मुताबिक नायर में एक-एक विभाग के तीन से चार प्रोफेसर हैं. जैसे लेखा विभाग के तीन प्रोफेसर हैं. कार्मिक विभाग के चार प्रोफेसर और यांत्रिक विभाग के भी चार प्रोफेसर हैं. इसी प्रकार यातायात विभाग में तीन प्रोफेसर हैं. इसी प्रकार से अन्य विभागों में भी तीन से चार प्रोफेसर हैं. तथापि इनमें से शायद ही कभी कोई प्रोफेसर लेक्चर लेता है. ऐसे में यहां एक-एक विभाग में तीन से चार प्रोफेसर पदस्थ होने का कोई औचित्य नहीं है. जानकारों का कहना है कि जब यहां नियुक्त/पदस्थ किसी अधिकारी को क्लास लेनी ही नहीं है और सभी क्लास विजिटिंग लेक्चर्स से ही चलानी हैं, तो मात्र एक विभाग प्रमुख की नियुक्ति से यह सारी प्रक्रिया चलाई जा सकती है. अतः उनका मानना है कि यहां नियुक्त 25 प्रोफेसर्स के पदों की तुरंत समीक्षा करके उन्हें घटाया जाना चाहिए.
प्राप्त जानकारी के अनुसार कोर्स नं. 2017-01/19, जिसके पाठ्यक्रम निदेशक प्रोफेसर लेखा प्रबंधक हैं, इसमें 12 लेक्चर्स में से 8 लेक्चर्स विजिटिंग लेक्चरर्स द्वारा कराए जा रहे हैं. कुल लेक्चर्स के 67% लेक्चर विजिटिंग लेक्चरर्स से कराए जा रहे हैं. ऐसे में यहां लेखा विभाग के तीन प्रोफेसर की नियुक्ति औचित्य क्या है? मजे की बात यह है कि यहां नियुक्त लेखा विभाग के यह तीनों तथाकथित प्रोफेसर उच्च प्रशासनिक वेतनमान (एचएजी) के हैं, जबकि इनके लेक्चर जूनियर स्केल के आगंतुक व्याख्याताओं (विजिटिंग लेक्चरर्स) से कराए जा रहे हैं.
इसी प्रकार कोर्स नं. 2017-01/19 में यहां के डीन, फैकल्टी ऑफ फाइनेंस, जो यहां लेखा विभाग के हायर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड (एचएजी) के प्रोफेसर हैं, का एक भी व्याख्यान इस कोर्स में नहीं है और लेखा विभाग के जूनियर स्केल वाले विजिटिंग लेक्चरर बुलाकर उनसे कोर्स लेक्चर कराया जा रहा है. उपरोक्त तमाम तथ्यों से यह सिद्ध होता है कि नायर में सभी प्रोफेसर/ऑफिसर्स द्वारा रेलवे को लाखों रुपया का चूना लगाया जा रहा है और जनता की गाढ़ी कमाई की खुली लूट की जा रही है. ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि क्या ये सब जानबूझकर और रेलवे बोर्ड को अंधेरे में रखकर किया जा रहा है अथवा इसमें रेलवे बोर्ड की भी कोई मिलीभगत है?
‘सत्कार भत्ता’ के नाम पर ‘नायर’ में चल रही है खुली लूट
उपरोक्त के अलावा ‘नायर’ में सभी प्रोफेसर्स/ऑफिसर्स द्वारा ‘सत्कार भत्ता’ के नाम पर भी एक नए तरह का कदाचार चल रहा है. यहां लगभग सभी प्रोफेसर्स/ऑफिसर्स द्वारा सत्कार भत्ता के नाम पर यह एक नई तरह की लूट मामला सामने आया है. इस लूट को भी अन्य घोटालों की तरह ही यहां योजनाबद्ध तरीके से लागू किया गया है. प्राप्त जानकारी के अनुसार नायर में चार प्रकार के प्रोबेशनर्स (लेखा, कार्मिक, स्टोर्स, मेडिकल) को ट्रेनिंग दी जाती है. इन चारों विभागों के एक-एक पाठ्यक्रम निदेशक हैं, जो उनकी कॉउंसलिंग भी करते हैं.
रेलवे बोर्ड के पत्र सं. आरबीई/73/2018 के अनुसार पाठ्यक्रम निदेशक को सत्कार भत्ता देय है. परंतु उपरोक्त पत्र के अनुसार यह सत्कार भत्ता सिर्फ ऑफिस समय में ही देय है, न कि घर पर या होटल में! लेकिन यहां के सभी प्रोफेसर/ऑफिसर ‘घर पर सत्कार किया है’ बताकर सत्कार भत्ता के नाम पर एक नई तरह की लूट कर रहे हैं. नियमानुसार कोई भी भुगतान बिना बिल के नहीं किया जा सकता है. रेलवे बोर्ड ने भी इस तरह के आदेश जारी नहीं किए हैं कि यह सत्कार भत्ता बिना बिल के देय है. लेकिन यहां स्थानीय स्तर पर लेखा एवं कार्मिक विभाग के प्रोफेसर/ऑफिसर्स ने एक नया आदेश जारी करके एक नया नियम बना दिया कि यह सत्कार भत्ता बिना बिल के देय है. सभी प्रोफेसर/ऑफिसर्स सिर्फ यह लिख कर दे रहे हैं कि उन्होंने घर पर सत्कार किया है. जबकि स्थानीय स्तर पर ऐसा कोई नियम बनाने का उन्हें कोई अधिकार नहीं है. रेलवे बोर्ड के उपरोक्त पत्र में जानबूझकर की गई कोताही के कारण इस तरह यहां लगभग सभी अधिकारी सत्कार भत्ता के नाम पर खुली लूट कर रहे हैं.
प्राप्त जानकारी के अनुसार यहां यह लूट इस प्रकार से हो रही है. चारों विभागों (लेखा, कार्मिक, स्टोर्स, मेडिकल) के पाठ्यक्रम निदेशकों के अलावा अन्य किसी भी प्रोफेसर/ऑफिसर को यह सत्कार भत्ता देय नहीं है, लेकिन इन चारों विभागों के प्रोफेसर/ऑफिसर्स ने स्थानीय स्तर पर एक नया आदेश, जो कि उप महानिदेशक से अनुमोदित है, जारी करके और नया नियम बनाकर अन्य सभी प्रोफेसर/ऑफिसर्स को ‘काउंसलर’ का फर्जी दर्जा दे दिया है. इस प्रकार यह सभी अन्य प्रोफेसर/ऑफिसर्स ‘काउंसलर’ के नाम पर सत्कार भत्ता लेकर रेलवे को लूट रहे हैं.
जानकारों का कहना है कि नायर में सभी अन्य प्रोफेसर/ऑफिसर्स को ‘काउंसलर’ बनाने का यह अनोखा मगर फर्जी कार्य पहली बार हुआ है, जिससे सभी अन्य प्रोफेसर/ऑफिसर्स ‘काउंसलर’ के नाम पर सत्कार भत्ता ले सकें. इस तरह से यहां दोहरी लूट हो रही है. उनका यह भी मानना है कि सभी प्रोफेसर/ऑफिसर्स द्वारा सत्कार भत्ता के नाम पर रेलवे को लाखों रु. का चूना हर महीने लगाया जा रहा है.
इस मामले में उनका यह भी कहना है कि नायर में चल रहा ये तमाम कदाचार, भ्रष्टाचार अथवा रेल राजस्व की खुली लूट रेलवे बोर्ड के कुछ संबंधित अधिकारियों की मिलीभगत के बिना नहीं चल सकती है. उनका कहना है कि चेयरमैन, रेलवे बोर्ड और रेलमंत्री को या तो नायर सहित पूरी भारतीय रेल में हो रहे भ्रष्टाचार की गहराई से खबर लेनी चाहिए और इस लूट को बंद करवाना चाहिए अथवा भ्रष्टाचार-रहित प्रशासन का ढ़ोल पीटना बंद कर देना चाहिए!