कुंभ से रेल राजस्व को भारी नुकसान होने की आशंका

बोझ बना अन्य रेलों/मंडलों से बुलाया गया अनावश्यक स्टाफ

कुप्रबंधन का प्रमुख कारण रही मंडल अधिकारियों की अदूरदर्शीता

प्रदेश सरकार की अपेक्षा रेल प्रशासन ने लिए अदूरदर्शितापूर्ण निर्णय

प्रयागराज ब्यूरो : एक तरफ उत्तर प्रदेश सरकार को कुंभ के आयोजन से इस बार करीब 1200 करोड़ रुपये की कमाई होने जा रही है, वहीं इसमें लगाए गए तमाम संसाधनों और मानव संसाधन की बनिस्बत रेलवे को भारी राजस्व का नुकसान होने की आशंका व्यक्त की जा रही है. प्रयागराज में चल रहे कुंभ मेले में प्रयागराज मंडल, उत्तर मध्य रेलवे की लापरवाह प्रबंधन प्रणाली व्यापक चर्चा का विषय बनी हुई है.

कुंभ मेला के नाम पर लिए गए कुछ गैरजिम्मदाराना निर्णयों से इस बार रेल राजस्व में अभूतपूर्व क्षति की संभावना है. कम से कम मकर संक्रान्ति और पौष पूर्णिमा की स्नान तिथियों के समापन तक तो यही स्थिति देखी गई है. कुंभ के दौरान संभावित रेल यातायात का विश्लेषण किए बिना ही पूरी भारतीय रेल से हजारों की संख्या में बाहरी स्टाफ को बुला लिया गया, जिन पर प्रतिदिन यात्रा भत्ता इत्यादि की मद में औसतन 1000 रुपये से 2000 रुपये प्रति स्टाफ रेलवे वहन कर रही है.

जहां इस बार प्रदेश सरकार की दूरदर्शिता के कारण इस कुंभ मेले से राजस्व में वृद्धि और रोजगार का लाखों की संख्या में अस्थाई सृजन हुआ है, वहीं रेलवे के यातायात में अभूतपूर्व कमी आई है. बिना किसी उचित योजना के कुंभ मेला के नाम पर अनेकों मेला स्पेशल गाड़ियां चला दी गईं हैं, जिनमें क्षमता से आधे भी यात्री नहीं मिल सके. इस कुप्रबंधन की व्याख्या ऐसे की जा सकती है कि एक अनाड़ी कार चालक इस डर से आगे-पीछे का रास्ता दूसरों के लिए बंद कर देता है कि कहीं उसकी गाड़ी किसी अन्य वाहन से टकरा न जाए. यह हद है लापरवाही की.

यह सही है कि कुंभ मेले के सफल आयोजन हेतु रेलवे ने सजग रहकर व्यापक इंतजाम किए हैं, लेकिन इसका यह मतलब तो कतई नहीं हो सकता है कि घर फूंक तमाशा देखा जाए. वह भी तब, जब सबको यह पता है कि ट्रैफिक लोड कब-कब और किन-किन तिथियों पर रहेगा, तो फिर लकीर के फकीर की तरह सारे मैनपॉवर को एक साथ झोंक देने का क्या औचित्य है?

कुप्रबंधन का आलम ये है कि बाहर से बुलाए गए लगभग सभी रेलकर्मियों से प्रतिदिन 12-12 घंटे की ड्यूटी करवाई जा रही है, जबकि स्थानीय स्टाफ को 8-8 घंटे की ही ड्यूटी कराई जा रही है, क्योंकि उसने ज्यादा ड्यूटी करने से मना कर दिया था. इससे बाहर से आए कर्मचारियों की सामान्य दिनचर्या अस्त-व्यस्त हो गई है और उनमें प्रशासन के प्रति भारी नाराजगी व्याप्त है. वह आंदोलन करने का भी मन बना रहे हैं. हालांकि ट्रैफिक लोड कम होने से कुछ बाहरी स्टाफ को वापस भी भेजा गया है और जरूरत पड़ने पर बुलाए जाने की बात कही गई है.

यदि उ.म.रे. द्वारा कुंभ मेले के नाम पर किए गए कुल खर्चे और बदले में प्राप्त रेल राजस्व की जांच ‘कैग’ द्वारा ईमानदारी से की जाएगी, तभी रेल राजस्व में हुए इस नुकसान की जानकारी मिल सकती है. सीधे कहा जाए, तो रेल प्रशासन की कोई प्रोएक्टिव स्किल है ही नहीं.

इलाहाबाद जंक्शन पर यातायात को दिशा के आधार पर (कानपुर की तरफ, सतना की तरफ, दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन की तरफ और बनारस की तरफ) चार आश्रय स्थल बनाए गए हैं, जिनके अंदर अनारक्षित टिकट खिड़की, प्राथमिक चिकित्सा, प्रसाधन इत्यादि सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं. ऐसी ही व्यवस्था नैनी और छीवकी स्टेशनों पर भी की गई है.

इसमें भी कोई शक नहीं कि राज्य सरकार द्वारा भव्य व्यवस्था के कारण सड़क यातायात के सापेक्ष रेल यातायात प्रभावित हुआ है. इसके बावजूद तमाम जोनल रेलों और मंडलों से जो थोक में कुंभ-विशेष गाड़ियां चलाई गईं, उनकी कोई अंतरिम समीक्षा नहीं की जा रही है. वजह चाहे जो भी हो, एक रिव्यू टीम तो एक्टिव होनी ही चाहिए थी, जो यातायात के लोड को देखते हुए न सिर्फ स्टाफ का उचित डिप्लॉयमेंट करे, बल्कि विशेष गाड़ियों की भी समीक्षा की जा सके, जिससे राजस्व हानि को ज्यादा होने से बचा जा सके.

कुंभ ड्यूटी में लगे कई अधिकारी भी इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि इस बार कुप्रबंधन का कारण मंडल अधिकारियों द्वारा अदूरदर्शी निर्णय लिया जाना है. उनका कहना था कि इन्हें रेल राजस्व में वृद्धि की चिंता नहीं है, सिर्फ स्वयं को किसी भी तरह सुरक्षित रखना है. फिलहाल इस बार का कुंभ उत्तर मध्य रेलवे के लिए रेल राजस्व के बिंदु पर नुकसानदायक साबित होने की संभावना ज्यादा है.